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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती हैं || Makar Sankranti

मकर संक्रांति मनाने का कारण और महत्त्व:- मकर संक्रांति मुख्य हिंदू त्यौहार है, जो हर साल सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करने के दिन मनाया जाता हैं. मकर सक्रांति का त्योहार ज्यादातर 14 जनवरी को ही मनाया जाता है लेकिन कभी-कभी तिथि के अनुसार इसमें एक आध दिन ऊपर नीचे हो सकता है. हिंदू शास्त्रों के अनुसार जब सूर्य दक्षिणायन में होता है तब देवताओं के लिए रात्रि का समय होता है जोकि नकारात्मकता का प्रतीक है. दूसरी ओर जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है तो इसे बहुत शुभ माना जाता है. यही मकर संक्रांति मनाने का मुख्य कारण है. मकर संक्रांति क्या है? मकर सक्रांति भगवान सूर्य को समर्पित एक हिंदू त्यौहार हैं जो प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है. देश के विभिन्न राज्यों में इसे भिन्न-भिन्न नाम से जाना जाता है. मकर सक्रांति के दिन से ही सर्दी का मौसम जाने की शुरुआत हो जाती है और गर्मी का मौसम आने लगता है. मकर सक्रांति के दिन भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश कर जाने की वजह से धीरे-धीरे दिन बड़े होने लगते हैं और रात छोटी होने लगती है. यही मकर संक्रांति हैं. मकर संक्रांति कब म...

दिवेर का युद्ध || Battle Of Diver

दिवेर का युद्ध विश्व विख्यात और ऐतिहासिक दिवेर का युद्ध अक्टूबर 1582 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था. विजयदशमी के दिन दिवेर का युद्ध दिवेर छापली नामक स्थान पर लड़ा गया, जिसमें मेवाड़ की सेना का शौर्य देखते ही बनता था. एक ऐसा युद्ध जिसने महाराणा प्रताप द्वारा हल्दीघाटी में दिखाई गई वीरता और त्याग को आगे बढ़ाते हुए मुगल सेना को नतमस्तक कर दिया. दिवेर का युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमें मेवाड़ के वीरों ने मुगल सेना को अजमेर तक खदेड़ दिया था. इतना ही नहीं महाराणा प्रताप की सेना के सामने 30,000 से अधिक मुगल सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था. यही वजह रही कि इस युद्ध के पश्चात अकबर की सेना ने मेवाड़ की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखी. दिवेर का युद्ध भौगोलिक और सामरिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ था.  दिवेर का युद्ध (Battle Of Diver) नाम- दिवेर का युद्ध. अन्य नाम- मेवाड़ का मैराथन युद्ध. कब लड़ा गया- अक्टूबर, 1582. तिथि- विजयदशमी. कहां लड़ा गया- दिवेर-छापली नामक स्थान पर. किसके बिच हुआ- मेवाड़ और मुग़ल सेना की बिच. Diver Ka Yudh प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड क...

भामाशाह का इतिहास || History Of Bhamashah

भारमल को राजस्थान का प्रथम भामाशाह कहा जाता हैं जो कि भामाशाह के पिता थे. भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 ईस्वी में हुआ था. महाराणा प्रताप के आर्थिक रूप से मुख्य सहयोगी होने के कारण भामाशाह का नाम मेवाड़ में आज भी श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है. भामाशाह ने महाराणा प्रताप की आर्थिक मदद तो की ही थी लेकिन उन्होंने कई युद्धों में भी भाग लिया था. भामाशाह का इतिहास देखा जाए तो उन्होंने तन-मन से मातृभूमि की सेवा की थी. इसके साथ ही जब आक्रांताओं से लड़ने के लिए मेवाड़ राज्य को धन की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपने सभी संसाधन महाराणा प्रताप को सौंपते हुए इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया. देलवाड़ा के जैन मंदिर का निर्माण भामाशाह और उनके भाई ताराचंद द्वारा आबू पर्वत पर किया गया था. भामाशाह का इतिहास और जीवनी (Bhamashah History and Biography) नाम- भामाशाह. जन्म- 28 जून 1547. जन्म स्थान- मेवाड़ (चितौड़गढ़). पिता का नाम- भारमल. भाई- ताराचंद जी. पुत्र- जीवाशाह. धर्म- जैन धर्म ( कावेडिया गौत्र ओसवाल महाजन). भामाशाह का जीवन परिचय इतिहास बताता है कि भामाशाह के पिता भारमल को मेवाड़ सम्राट महाराणा सांगा ...