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रामप्यारी गुर्जर (Rampyari Gurjar) का इतिहास

रामप्यारी गुर्जर (Rampyari Gurjar) ही नहीं बल्कि भारत में बहुत बड़े -बड़े ऐसे नाम थे जो इतिहास के पन्नों से गायब हो चुके हैं। रामप्यारी गुर्जर (Rampyari Gurjar) ने नियमित व्यायाम ,कठिन परिश्रम और बुलंद हौंसले के दम पर अपने आपको इतना काबिल बना लिया की हर संकट से खुद के साथ – साथ दूसरों की भी रक्षा की जा सके। आईये जानते हैं कौन थी Rampyari Gurjar. रामप्यारी गुर्जर (Rampyari Gurjar History) तैमूर लंग इतिहास का सबसे बड़ा क्रूर और हत्यारा माना जाता हैं। ऐसा कहा जाता हैं की तैमूर द्वारा की गई हत्या से विश्व भर की आबादी में लगभग 3 प्रतिशत की कमी आ गई थी। लगभग 1398 ईस्वी में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया था। तैमूर के निशाने पर ज्यादातर हिन्दू धर्म के लोग थे। तैमूर की बर्बरता के वर्णन से रूह कांप उठती हैं फिर भी इतिहासकार ऐसे लोगों को महान और इनका सामना करने वाले को कायर बताते हैं। लेकिन तैमूर जैसे अत्याचारी को जवाब देने के लिए भारत की भूमि पर एक ऐसी वीरांगना का जन्म हुआ था जिसने तैमूर के इरादों पर न सिर्फ पानी फेरा बल्कि उसको भारत से बहार खदेड़ दिया था। उस महान ,मर्दानी ,तेजस्वी ,ओजस्वी वीरांग...

चित्तौड़ कि रानी पद्मावती का इतिहास और जीवन परिचय

रानी पद्मावती, सिंहल द्वीप (जो की प्राचीन समय में श्रीलंका में था) की रहने वाली थी। अगर रानी पद्मावती की विशेषता की बात की जाए तो यह बहुत सुन्दर और रूपवान थी। कहते हैं की जब रानी पानी पीती थी तो गले में अंदर जाता पानी साफ़ दिखाई देता था। इनका स्वरुप अद्भुद और देवीय था। रानी पद्मावती का जीवन परिचय पूरा नाम – रानी पद्मिनी या पद्मावती। धर्म – सनातन हिन्दू धर्म। माता का नाम – रानी चम्पावती। पिता का नाम – राजा गंधर्व सेन। पति का नाम – राजा रतन सिंह। जन्म स्थान – सिंहल द्वीप ( श्रीलंका ). मृत्यु – सन 1303 ईस्वी , चित्तौड़गढ़, मेवाड़। महारानी की सुंदरता अद्वितीय थी। जब वह पानी पीती थी तो बाहर से उसके गले के अंदर जाता पानी साफ नजर आता था। इतना ही नहीं पद्मावती को पक्षियों से बहुत प्रेम था। रंग-बिरंगे पक्षी उनके आसपास चहकते रहते थे। बचपन में पद्मिनी अपना ज्यादातर समय प्राकृतिक परिदृश्य में गुजारती थी। बप्पा रावल - केसरिया झंडा फ़हराने वाले पहले राजा वहां एक सतरंगी तोता भी था जो पद्मावती के दिल के बहुत करीब था ,उस तोते का नाम “हीरामणि” था। हीरामणि...

मीराबाई (Meerabai) का जीवन परिचय और कहानी

भक्तिमती मीराबाई ( Meerabai ) भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती हैं । वह बचपन से ही बहुत नटखट और चंचल स्वभाव की थी। उनके पिता की तरह वह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लग गई। राज परिवार में जन्म लेने वाली Meerabai का विवाह मेवाड़ राजवंश में हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात ही इनके पति का देहांत हो गया । पति की मृत्यु के साथ मीराबाई को सती प्रथा के अनुसार अपने पति के साथ आग में जलकर स्वयं को नष्ट करने की सलाह दी गई, लेकिन मीराबाई सती प्रथा (पति की मृत्यु होने पर स्वयं को पति के दाह संस्कार के समय आग के हवाले कर देना) के विरुद्ध थी। वह पूर्णतया कृष्ण भक्ति में लीन हो गई और साधु संतों के साथ रहने लगी। ससुराल वाले उसे विष  देकर मारना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया अंततः Meerabai भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गई। मीराबाई का इतिहास (History of Meerabai) पूरा नाम meerabai full name – मीराबाई राठौड़। मीराबाई जन्म तिथि meerabai date of birth – 1498 ईस्वी। मीराबाई का जन्म स्थान meerabai birth place -कुड़की (जोधपुर ). मीराबाई के पिता का नाम meerabai fathers name – रतन स...

बप्पा रावल का इतिहास और जीवन परिचय |History Of Bappa Rawal

बप्पा रावल (Bappa Rawal)  का मुस्लिम शासकों में और अरबी आक्रमणकारियों में इतना खौफ था कि वह लगभग 400 वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख सके। इतना ही नहीं इन्होंने रावलपिंडी नामक शहर को भी बसाया और संपूर्ण भारत में हिंदुत्व का परचम लहराया था। केसरिया झंडा फहराने वाले यह प्रथम राजा थे। महाराणा सांगा, महाराणा कुंभा और महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी राजा उनके ही वंशज थे। बप्पा रावल परिचय और इतिहास ( Bappa Rawal History In Hindi ) बप्पा रावल का जन्म कब हुआ था-  बप्पा रावल का जन्म 713 ईस्वी में एकलिंग नाथ (ईडर, उदयपुर) में हुआ था। इनका बचपन का नाम “कालभोज”(कालभोजादित्य) था। बप्पा रावल की मृत्यु कब हुई-   बप्पा रावल की मृत्यु 810 ईस्वी में हुई थी इस समय इनकी आयु लगभग 97 वर्ष थी। साथ ही इनकी मृत्यु नागदा नामक स्थान पर हुई जहां पर इनकी समाधि बनी हुई हैं। बप्पा रावल की जाति- बप्पा रावल ने गुहिल वंश की स्थापना की थी और ये राजपूत थे। बप्पा रावल के पिता का नाम-  इनके पिता का नाम महेंद्र सिंह (द्वितीय)। बप्पा रावल की माता का नाम-  इनकी माता का पुष्पवत...

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास जीवन परिचय और तराइन के युद्ध

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास (Prithviraj Chauhan ) और सच्चाई जानकर आपको गर्व होगा बिना आँखों के इन्होंने मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया। अल्पायु में माता-पिता की मृत्यु से लेकर दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने तक का सफर किया। भगवान श्री राम के पिता राजा दशरथ के पश्चात् पृथ्वीराज चौहान ऐसे राजा हुए जो शब्दभेदी बाण की कला जानते थे। महज 12 वर्ष की आयु में दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले पृथ्वीराज चौहान के जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले जिनमें मोहम्मद गौरी के साथ युद्ध ,राजा जयचंद के साथ दुश्मनी और संयोगिता के साथ प्रेम कहानी शामिल हैं। अंततः अपने बचपन के दोस्त और राजकवि चंदबरदाई की सहायता और शब्दभेदी बाण के विशेष कौशल के दम पर इन्होंने मोहम्मद गौरी को मौत के घाट उतार दिया। पृथ्वीराज चौहान का इतिहास (Prithviraj Chauhan History In Hindi) पूरा नाम- पृथ्वीराज चौहान तृतीय। अन्य नाम- हिन्दू सम्राट,राय पिथौरा, सपादलक्षेश्वर, भारतेश्वरऔर पृथ्वीराज तृतीय के नाम से भी जाना जाता हैं। जन्म तिथि- 1166 ईस्वी। जन्म स्थान- पाटण (गुजरात ). मृत्यु तिथि- 1192 ईस्वी। मृत्यु स्थान – गजनी। पित...

आल्हा ऊदल कौन थे? जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया

आल्हा ऊदल दोनों सगे भाई थे। आल्हा ऊदल का जन्म दस्सराज और देवकी के घर में हुआ था । इनके पिता का नाम दस्सराज तथा माता का नाम देवकी था। आल्हा एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने कभी पराजय नहीं झेली साथ ही पृथ्वीराज चौहान जैसे महान और वीर को भी पराजित कर दिया और प्राणदान देकर उनकी जान बख्स दी। आल्हा ऊदल का इतिहास में बहुत बड़ा नाम हैं. आल्हा ऊदल ने जीवनकाल में कुल 52 लड़ाईया लड़ी थी। आल्हा और ऊदल कौन थे आल्हा बुंदेलखंड के राजा परमाल के सेनापति थे। बचपन में इनके माता पिता का देहांत हो गया। परमाल और उनकी पत्नी मलिनहा दोनों को आल्हा बहुत प्रिय थे। मलिनहा इनको अपने बच्चों के सामान प्रेम करती थी। आल्हा जैसे जैसे बड़े हुए इनकी शिक्षा और दीक्षा भी शुरू हो गई। इन्होने अश्त्र और शस्त्र की भी शिक्षा प्राप्त की। जब ये वापस महोबा लौटे तो इनको परमाल ने सेनापति बना दिया। इस बात से मलिनहा के भाई को बहुत दुःख हुआ। आल्हा ने अपना पूरा जीवन राजा परमाल के लिए समर्पित कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान का इतिहास आल्हा की शादी (aalha udal ka vivah) आल्हा के लिए कहा जाता है कि इन्होंने तलवार की नोंक पर श...

वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय इतिहास कथा जयंती 2024

वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय और इतिहास (Durgadas Rathor Biography & History In Hindi) – राजस्थान में समय-समय पर कई वीर योद्धाओं ने जन्म लिया था जिनकी गौरव की गाथाएँ आज भी गायी जाती हैं, उनमें से एक थे दुर्गादास राठौड़. वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय और इतिहास बहुत प्रेरणादायक और गौरव का विषय हैं. वीर दुर्गादास राठौड़  ने बहुत ही बहादुरी के साथ मारवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाया था. दुर्गादास न तो राजा थे ना कोई सेनापति और ना ही कोई सामंत लेकिन उन्होंने अपने युद्ध कौशल और राजनैतिक चातुर्यता से औरंगजेब से मारवाड़ को मुक्त करवा दिया. इनका पालन पोषण इनकी माता ने किया था. वीर दुर्गादास राठौड़ बहुत वीर, देश भक्त और संस्कारी थे. राजा जसवंत सिंह ने दुर्गादास को “ मारवाड़ का भावी रक्षक ” की उपाधि प्रदान की थी. दुर्गादास की तारीफ में मारवाड़ में एक कहावत हैं जो हमेशा उनकी प्रशंसा में गाई जाती हैं-   “माई एहड़ो पूत जण ,जेहड़ो दुर्गादास। मार गंडासे थामियो ,बिन थाम्बा आकाश।। (एक मारवाड़ी कहावत) वीर दुर्गादास राठौड़   का जीवन परिचय इतिहास कथा परिचय...

राणा पूंजा का इतिहास और जीवन परिचय

राणा पूंजा का इतिहास और जीवन परिचय- राणा पूंजा एक ऐसे वीर योद्धा थे जिन्होंने ना सिर्फ महाराणा प्रताप का साथ दिया, बल्कि मेवाड़ को मुगलों से आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. राणा पूंजा को गोरिल्ला युद्ध रणनीति के जनक कहा जाता हैं और इसी युद्ध नीति के तहत इन्होंने मुगलों को विश्वविख्यात हल्दीघाटी के युद्ध में उल्टे पैर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था. राणा पूंजा का इतिहास को दबा दिया गया लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए की इनके बलबूते ही  महाराणा प्रताप  ने मुगलों को पराजित किया और महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह को भी भील गरासिया लोगों ने ही राज गद्दी पर बिठाया था. इस लेख में हम राणा पूंजा का इतिहास (Rana Punja History In Hindi) और राणा पूंजा का जीवन परिचय पढ़ेंगे, साथ ही यह भी जानेंगे कि राणा पूंजा भील थे या राजपूत. राणा पूंजा का इतिहास और जीवन परिचय (Rana Punja History In Hindi) पूरा नाम राणा पूंजा भील. जन्म /जयंती 5 अक्टूबर, मेरपुर (कोटड़ा). पिता का नाम दूदा जी. माता का नाम केहरीबाई दादा का नाम हमीर सिंह सम्बन्ध मेवाड़ राज्य प्रसिद्धि की वजह हल्दीघाटी का युद्ध राणा पूंज...