वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय इतिहास कथा जयंती 2024
वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय और इतिहास (Durgadas Rathor Biography & History In Hindi)– राजस्थान में समय-समय पर कई वीर योद्धाओं ने जन्म लिया था जिनकी गौरव की गाथाएँ आज भी गायी जाती हैं, उनमें से एक थे दुर्गादास राठौड़. वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय और इतिहास बहुत प्रेरणादायक और गौरव का विषय हैं.
वीर दुर्गादास राठौड़ ने बहुत ही बहादुरी के साथ मारवाड़ को मुग़लों से मुक्त करवाया था. दुर्गादास न तो राजा थे ना कोई सेनापति और ना ही कोई सामंत लेकिन उन्होंने अपने युद्ध कौशल और राजनैतिक चातुर्यता से औरंगजेब से मारवाड़ को मुक्त करवा दिया.
इनका पालन पोषण इनकी माता ने किया था. वीर दुर्गादास राठौड़ बहुत वीर, देश भक्त और संस्कारी थे. राजा जसवंत सिंह ने दुर्गादास को “मारवाड़ का भावी रक्षक” की उपाधि प्रदान की थी.
दुर्गादास की तारीफ में मारवाड़ में एक कहावत हैं जो हमेशा उनकी प्रशंसा में गाई जाती हैं-
“माई एहड़ो पूत जण ,जेहड़ो दुर्गादास।
मार गंडासे थामियो ,बिन थाम्बा आकाश।।
(एक मारवाड़ी कहावत)
वीर दुर्गादास राठौड़ का जीवन परिचय इतिहास कथा
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम | वीर दुर्गादास राठौड़. |
वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म | 13 अगस्त 1638. |
वीर दुर्गादास राठौड़ जन्म स्थान | सालवा गाँव. |
वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु | 22 नवंबर 1718. |
वीर दुर्गादास राठौड़ के पिता का नाम | आसकरण जी. |
वीर दुर्गादास राठौड़ की माता का नाम | नेतकँवर जी. |
वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु कहाँ हुई | उज्जैन. |
वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु के समय आयु | 80 वर्ष 3 माह और 28 दिन. |
वीर दुर्गादास राठौड़ की जाति /धर्म | राजपूत/हिन्दू. |
वीर दुर्गादास राठौड़ कि उपाधियाँ | राठौड़ों का यूलीसैस, मारवाड़ के अणबिंदिया मोती, मारवाड़ का भावी रक्षक और मारवाड़ के उद्धारक. |
वीर दुर्गादास राठौड़ का इतिहास ना सिर्फ मारवाड़ बल्कि सम्पूर्ण राजस्थान और भारत के लिए गर्व का विषय हैं. इन्होंने जिस तरह से अविश्वसनीय साहस, स्वामिभक्ति, राष्ट्रभक्ति, स्वाभिमानता और रण-कौशल दिखाया उसकी वजह से इनका नाम इतिहास के पन्नों में सदैव के लिए अमर हो गया. प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार का एक वक्तव्य “मुग़लों की शक्ति और धन दुर्गादास राठौड़ को रास्ते से नहीं डिगा सका” उनके चरित्र चित्रण के लिए काफी हैं.
प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने दुर्गादास राठौड़ को “राठौड़ों का यूलीसैस” कहकर संबोधित किया. अब आप सोच रहे होंगे कि युलिसेस कौन थे? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि युलिसेस ग्रीस के बहुत बड़े हीरो थे.
वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म और परिवार
वीर दुर्गादास का जन्म जोधपुर (मारवाड़) के महाराजा जसवंत सिंह के दरबारी मंत्री आसकरण और माता नेतकँवर के घर में 13 अगस्त 1638 में हुआ था. जिस गाँव में दुर्गादास का जन्म हुआ उसका नाम सालवा था. इनके पिता महाराजा के दरबार में मंत्री होने के साथ-साथ दुनेवा जागीर के जागीरदार भी थे.
इनके माता-पिता में आपस में अनबन थी जिसके चलते इनकी माता नेतकँवर अपने बेटे दुर्गादास राठौड़ को लेकर आसकरण जी से अलग रहने लग गई.
परिवार में अनबन की वजह आसकरण की अन्य पत्नियां थी जो नेतकँवर के साथ रहना पंसद नहीं करती थी. पुत्र दुर्गादास का पालन-पोषण करने के लिए उनकी माता लूणवा गाँव में खेती करके इनका पेट भरती थी, इनका बाल्यकाल थोड़ा कष्ठपूर्ण रहा. लूणवा नामक गाँव में ही इन्होने राष्ट्र भक्ति और युद्ध कौशलता में निपुणता हासिल की.
खेत में ऊँट चराने वाले को सजा (दुर्गादास की कहानी)
पिता से अलग होने के बाद वीर दुर्गादास राठौड़ और उनकी माता नेतकँवर लूणवा गाँव में रहने लगे. यहीं पर वो खेती-बाड़ी का काम करते थे. वीर दुर्गादास राठौड़ की कहानी बहुत प्रचलित हैं जिसमें वो कैसे एक ऊँट चराने वाले को सजा देते हैं और जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी खुश अपनी बहादुरी भरी बातों से प्रभावित करते हैं.
एक बार की बात हैं एक ऊँट वाले ने उनके खेत में ऊँट चरा दिया जिसके कारण उनकी सारी फसल बर्बाद हो गई. जब दुर्गादास वहाँ पहुंचे तो ऊँट वाले ने अपनी गलती मानने की बजाए उल्टा दुर्गादास को भला-बुरा कहने लगा. शब्दों की मर्यादाओं को लाँघते हुए वह जोधपुर दरबार के बारे में भी उल्टी-सीधी बातें करने लगा.
वीर दुर्गादास राठौड़ बहुत ही प्रेम से उसको समझाते रहे लेकिन समझने की बजाए अपनी हेकड़ी दिखाना जारी रखा. यह सब देखकर दुर्गादास को गुस्सा आ गया. उन्होंने अपनी कटार निकाली और ऊँट वाले का सर धड़ से अलग कर दिया.
धीरे-धीरे यह बात जोधपुर दरबार तक पहुँच गई और जसवंत सिंह को यह भी पता चला की यह आसकरण का बेटा हैं. दुर्गादास को जोधपुर दरबार में बुलाया गया.
भरी सभा में जब आसकरण से यह पूछा गया कि क्या यह तुम्हारा बेटा हैं?
तो आसकरण ने जवाब दिया बेटा नहीं कपूत!
जब वीर दुर्गादास से पूछा गया कि आपने उसका सर धड़ से अलग क्यों किया? तो उनका जवाब था ” एक तो वह अपनी गलती मानने को राजी नहीं था और दूसरा वह जोधपुर दरबार के बारे में भी अमर्यादित भाषा का प्रयोग कर रहा था तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसका सर धड़ से अलग कर दिया. मेरे तक तो ठीक लेकिन मैं अपने राज्य के लिए गलत सुनने की क्षमता नहीं रखता हूँ.
यह बात सुनकर जोधपुर के राजा जसवंत सिंह बहुत खुश हुए और उन्हें शाबाशी देते हुए कहा यह एक दिन मारवाड़ के काम आएगा. यह कहते हुए उन्होंने वीर दुर्गादास राठौड़ उनका मुख्य अंगरक्षक बनाया.
औरंगजेब की मारवाड़ पर नजर और अजित सिंह की रक्षा
महाराजा जसवंत सिंह जोधपुर के राजा होने के साथ-साथ औरंगजेब के मुख्य सेनापति भी थे. उत्तर भारत में उस समय औरंगजेब का दबदबा था. अपने राज्य में वृद्धि करने हेतु औरंगजेब की नजर मारवाड़ पर थी. एक षड़यंत्र के तहत औरंगजेब ने महाराजा जसवंत सिंह को मुग़लों की से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेज दिया, क्योंकि ये औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे.
जसवंत सिंह के एक पुत्र था जिसका नाम पृथ्वी सिंह था. जब राजा अफगानिस्तान चले गए तब मौका पाकर औरंगजेब ने उनके पुत्र पृथ्वीसिंह को जहरीली पौषक पहनाकर मौत के घाट उतर दिया.
इस दौरान उनकी एक रानी महामाया गर्भवती थी जिन्होंने अजीतसिंह नामक पुत्र को जन्म दिया. औरंगजेब इनको भी मरना चाहता था लेकिन वीर दुर्गादास राठौड़ ने सूझबूझ और वीरता के सहारे इनको बचा लिया.
उधर औरंगजेब की तरफ से लड़ने गए महाराजा जसवंत सिंह की 1678 में जमरूद में मौत हो गई. फिर औरंगजेब ने एक चाल चली और अजीतसिंह को मारवाड़ का राजा बनाने का लालच देकर दिल्ली आने का न्यौता दिया.
राणा पूंजा भील का इतिहास और महाराणा प्रताप के जीवन में योगदान
औरंगजेब का यह इरादा था की या तो अजीतसिंह को मार दिया जाएगा या फिर मुसलमान बना दिया जाएगा. वीर दुर्गादास राठौड़ को पहले से शक था इसलिए वो भी अजीतसिंह के साथ दिल्ली गए. मौका पाकर मुग़ल सेना ने अजीतसिंह के आवास को घेर लिया.
धाय गोरा टांक ने बड़ा दिल दिखाया, अपने पुत्र को वहीँ छोड़ दिया और अजीतसिंह को लेकर गुप्त रास्ते से बाहर निकल गई. इसी समय वीर दुर्गादास राठौड़ ने वीरता का परिचय दिया और दुश्मनों को युद्ध में हराकर जोधपुर की और निकल गए.
कुछ समय पश्चात् जब औरंगजेब को यह बात पता लगी तो उन्होंने तुरंत धाय गोरा के पुत्र को मार दिया. जोधपुर जाते समय सिरोही के समीप कालिंदी गांव में अजीतसिंह को दुर्गादास ने जयदेव नामक पुरोहित के घर रखा और साथ ही मुकुंददास खींची को उनकी रक्षा हेतु तैनात किया.
मारवाड़ की आजादी और अजित सिंह को राजा बनाना
जोधपुर आने के पश्चात् वीर दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ को मुग़ल शासन से मुक्ति दिलाने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए. साथ ही उन्होंने प्रतिज्ञा कर राखी थी की कैसे भी करके अजीतसिंह को राजगद्दी पर बैठाना हैं.
महाराणा प्रताप के प्रेरणात्मक QUOTES
औरंगजेब ने घोषणा की कि जो भी अजीतसिंह और दुर्गादास को ज़िंदा या मुर्दा पकड़ लेगा उसको इनाम के रूप में बड़ी रकम और पद दिया जाएगा. मुग़ल सेना पुरे दमखम के साथ उनको ढूंढने लगी और मारवाड़ राज्य के हर क्षेत्र को छान मारा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
वीर दुर्गादास राठौड़ लगातार राजपूत राजाओं और सामंतो को एक करने के लिए प्रयासरत रहे. मेवाड़ के राजा महाराणा राज सिंह को भी इन्होने मनाने की कोशिस की लेकिन सफलता नहीं मिली.
वीर दुर्गादास राठौड़ ने भी मुग़लो के साथ एक चाल चली की कैसे भी करके इनको कमजोर किया जाए. इस रणनीति के तहत इन्होंने मुग़ल सेना के अधीन सामंतो पर आक्रमण करने लगे.
इन्होंने औरंगजेब के छोटे पुत्र अकबर को राजा बनाने का लालच दिया लेकिन किसी कारणवश यह प्लान फ़ैल हो गया. लगातार 20 सालों तक वीर दुर्गादास राठौड़ यह काम करते रहे. हालाँकि दुर्गादास ना तो राजा थे और ना ही कोई सामंत लेकिन इनका प्रण था की मारवाड़ को आजाद करवाना हैं.
जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई तो ज्यादातर सामंत इनकी तरफ मिल गए और मारवाड़ आजाद हो गया.
20 मार्च 1707 का दिन था जब महाराजा अजीतसिंह मारवाड़ के राजा बने. खुश होकर अजीतसिंह ने दुर्गादास को प्रधान का पद देना चाहा लेकिन दुर्गादास ने इंकार कर दिया क्योंकि इस समय तक उनकी आयु ज्यादा हो चुकी थी.
दुर्गादास राठौड़ की छतरी (Durgadas ki chhatri)
वीर दुर्गादास की छतरी उज्जैन में बनी हुई हैं. इसका निर्माण मारवाड़ के शासकों ने दुर्गादास की स्मृति में किया था. यह छतरी चमकीली हैं. साथ ही इसके आस पास भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य हैं. दुर्गादास की छतरी शिप्रा नदी के किनारे ठीक उसी जगह बनी हुई हैं जहाँ पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था.

दुर्गादास को मारवाड़ से निकाले जाने का सच
अजीतसिंह को राजा बने कुछ ही समय हुआ था की सामंतों की बातों में आकर वीर दुर्गादास राठौड़ को राज्य से बाहर कर दिया, ऐसा जैन यति जयचंद की रचना कहती हैं. मगर यह बात सत्य नहीं हैं. क्योंकि अजीतसिंह को बचाने और राजा बनाने में इन्होंने अपना जीवन लगा दिया था.
साथ ही राजा अजीतसिंह इतने सामर्थ्यवान भी नहीं थे की वीर दुर्गादास राठौड़ जैसे पुरुष को राज्य से बाहर निकल दे क्योंकि राजपूतों में इनकी बहुत अच्छी पकड़ होने के साथ साथ भारत के भिन्न- भिन्न राज्यों के राजाओ के साथ दिल्ली के राजा भी इनका बहुत सम्मान करते थे.
साथ इस समय इनकी आयु 78 वर्ष के करीब थी तो सभी लोग इनका बहुत सम्मान और आदर करते थे.

वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु कैसे हुई?
वीर दुर्गादास राठौड़ के सबसे नजदीकी और मारवाड़ के महामंत्री मुकुंददास चम्पावत और उनके भाई रघुनाथ सिंह चम्पावत की की हत्या कर दी गई. इस घटना से वीर दुर्गादास राठौड़ टूट गए. साथ ही जोधपुर राज महल में उनका सम्मान कम होने लगा तो वो खुद ही मारवाड़ से दूर हो गए.
वीर दुर्गादास राठौड़ उज्जैन चले गए. 80 वर्ष 3 माह और 28 दिन की उम्र में 22 नवंबर 1718 को वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु हो गई. इनकी अंतिम इच्छानुसार शिप्रा नदी के तट पर ही इनका अंतिम संस्कार किया गया.
दुर्गादास राठौड़ जयंती
प्रतिवर्ष 13 अगस्त को वीर दुर्गादास राठौड़ की जयंती मनाई जाती हैं.
FAQ.
[1] क्या दुर्गादास राठौड़ राजपूत हैं?
उत्तर- हाँ, मारवाड़ राज्य के राठौड़ (राजपूत).
[2] दुर्गादास राठौड़ की छतरी कौनसे राज्य में हैं?
उत्तर- उज्जैन (मध्यप्रदेश) शिप्रा नदी के तट पर.
[3] दुर्गादास का जन्म कब हुआ था?
उत्तर- दुर्गादास का जन्म 13 अगस्त 1638 को हुआ था.
[4] दुर्गादास की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर- दुर्गादास की मृत्यु 22 नवंबर 1718 को हुई थी.
[5] दुर्गादास की जयंती कब मनाई जाती हैं?
उत्तर- हर साल 13 अगस्त को दुर्गादास की जयंती मनाई जाती हैं.
[6] दुर्गादास के पिता का नाम क्या था?
उत्तर- दुर्गादास के पिता का नाम आसकरण था.
[7] दुर्गादास की माता का नाम क्या था?
उत्तर- दुर्गादास की माता का नाम नेतकँवर था.
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