छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास जीवन परिचय
छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj History In Hindi)
छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनते ही आज भी सभी हिंदुस्तानियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई ने हिंदू साम्राज्य की स्थापना करने का सपना देखा था, जिसे उनके पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज ने साकार कर दिखाया।
जीजाबाई ने अपनी ही देखरेख में छत्रपति शिवाजी की शिक्षा दीक्षा पूरी की और उन्हें इस काबिल बनाया की संपूर्ण भारतवर्ष में हिंदू साम्राज्य की स्थापना की जा सके। छत्रपति शिवाजी महाराज की खासियत यह थी कि यह सभी धर्मों का आदर करते थे, साथ ही महिलाओं का सम्मान की विशेष ध्यान रखते थे।
एक मां कोई सपना देखें और उसे उसका बेटा अगर साकार कर दिखाए तो एक मां के लिए इस दुनिया में इससे बड़ी बात कुछ भी नहीं हो सकती है। ऐसा ही सपना शिवाजी की माता जीजाबाई ने देखा था और यह सपना था कि भारतवर्ष में कैसे हिंदू साम्राज्य की स्थापना की जाए।
इसी सपने के साथ राजमाता जीजाबाई ने छत्रपति शिवाजी को जन्म दिया। साथ ही जीजा बाई को शिवाजी से यह अपेक्षा थी कि वह हिंदू साम्राज्य की स्थापना करेगा और हुआ भी ऐसा ही।
नाम- शिवाजी भोंसले।
धर्म- हिंदू।
जन्मतिथि- 19 फरवरी 1630 .
पिता का नाम- शाहजी भोंसले।
माता का नाम- जीजाबाई।
पालन पोषण- इनका पालन-पोषण पुणे में ब्राह्मण दादाजी कोंडा देव की देखरेख में हुआ था।
शासन काल- 1674 से लेकर 1680 तक।
पत्नियां – साई बाई निम्बालकर, सोयराबाई मोहिते, पुतलीबाई पालकर, सकवर बाई गायकवाड़, लक्ष्मी बाई विचारे, काशीबाई जाधव।
पुत्र पुत्रियां- इनके दो पुत्र थे जिनका नाम संभाजी और राजाराम था।
चार पुत्रियां थी जिनका नाम सखूबाई निंबालकर, रणु बाई जाधव, अंबिका बाई महादिक,राजकुमार बाई सीर्के, गुनवांता बाई इंगले।
शासक- रायगढ़ किला महाराष्ट्र।
उत्तराधिकारी- संभाजी भोसले।
मृत्यु- 3 अप्रैल 1680.
आज से लगभग 388 साल पहले एक ऐसे वीर योद्धा का जन्म हुआ जिन्हें युगों- युगों तक याद किया जाएगा। इस समय संपूर्ण भारत वर्ष में हिंदू शासक और धर्म के लोग संकट में थे।
एक ऐसे शासक की जरूरत थी जो सभी हिंदुओं को एकत्रित कर हिंदू साम्राज्य की स्थापना कर सकें। ऐसे समय में अपनी वीरता, वैभव और शौर्य के दम पर जिनके सामने मुगलों ने घुटने टेक दिए थे ऐसे महान हिंदू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ।
कुछ इतिहासकार और लोग इन्हें “मराठा सम्राट” के नाम से जानते हैं जबकि कुछ लोग इन्हें “हिंदू हृदय सम्राट” के नाम से जानते हैं। 19 फरवरी 1630 में शिवाजी का जन्म शिवनेरी दुर्ग में हुआ था।
बचपन से ही इनके अंदर एक ऐसा तेज देखने को मिलता था जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि आगे चलकर यह बालक कुछ ना कुछ बड़ा जरूर करेगा। इनकी माता जीजाबाई और पिता शाहजी भोंसले को पूर्ण विश्वास था कि शिवाजी भारतवर्ष की संप्रभुता को कायम करेंगे।
कुछ लोग इतिहास में छेड़छाड़ कर छत्रपति शिवाजी महाराज को मुस्लिम धर्म का विरोधी बताते हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। क्योंकि शिवाजी महाराज की सेना में उच्च पदों पर मुस्लिम लोग थे। जिन्हें बड़े- बड़े और महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया गया था। अगर यह मुस्लिम विरोधी होते तो कभी भी अपने मंत्रिमंडल में मुस्लिम सेनापतियों को जगह नहीं देते।
शिवाजी को बचपन में ‘शिबू‘ के नाम से पुकारा जाता था। जैसे-जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज की आयु बढ़ती गई इनकी माता जीजाबाई ने “समर्थ गुरु रामदास” जी के पास इन्हें उच्च शिक्षा के लिए भेजा। समय के साथ-साथ इनकी शिक्षा पूरी हो गई इन्हें लेने के लिए माता जीजाबाई गुरुजी के आश्रम पहुंची।
तब गुरु राम दास ने इन्हें बुलाया और कहा कि शिबू आज मेरी तबीयत खराब है, मुझे ऐसे हालात में छोड़कर आप कैसे जा सकते हो? तब शिबू ने गुरु जी से कहा की हे गुरुदेव! आप आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है और आपकी हालत को क्या हुआ?
तब रामदास जी ने कहा कि मेरे पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, जिसकी दवा लेकर आनी है। सभी शिष्यों को यहां पर बुलाओ।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने सभी शिष्यों को गुरुजी के पास एकत्रित किया। तब गुरु जी ने सभी शिष्यों को बताया कि मेरे पेट में असहनीय दर्द हो रहा है, जिसकी दवा लेकर आनी है और यह दवा बहुत ही दुर्लभ है जिसे हर कोई नहीं कर सकता है।
तभी सभी शिष्य एक साथ बोले “गुरु जी आप बताइए हम लेकर आ जाएंगे” तब गुरुजी ने कहा कि इस दर्द की दवा है शेरनी का दूध। इतना सुनते ही सभी शिष्यों ने अपनी अपनी गर्दन नीचे झुका ली तभी शिवाजी बोले “गुरु जी मैं लेकर आऊंगा”।
इतना कहकर अपने हाथ में एक पात्र लिए शिवाजी जंगल की ओर निकल पड़े। लेकिन उन्हें कहीं पर भी शेरनी दिखाई नहीं दी। धीरे-धीरे वह घने जंगल की ओर बढ़ते रहे वहां पर उन्हें एक झुंड में शेर और शेरनी दिखाई दी।
उस झुंड में शेरनी अपने बच्चों को दूध पिला रही थी। जैसे ही शिवाजी की नजर उस शेरनी के ऊपर पड़ी उनके चेहरे पर चमक आ गई।
वह उस झुंड की ओर बढ़ गए। शिवाजी को समीप आते देख शेर ने उनके ऊपर हमला कर दिया लेकिन शिवाजी ने अपने हाथों से उस शेर का जबड़ा चीर दिया। शिवाजी का क्रोध और रौद्र रूप देखकर शेरनी जहां की तहां खड़ी रह गई और उन्होंने शेरनी का दूध निकाला और गुरुजी के आश्रम की तरफ चल पड़े।
आसमान में चारों तरफ कड़ाके की बिजलियां चमक रही थी, घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। ऐसे समय में छत्रपति शिवाजी शेरनी का दूध लेकर आश्रम में पहुंचे और गुरुजी को कहा ” गुरु जी आपकी आज्ञा अनुसार में शेरनी का दूध लेकर आ गया”।
तभी गुरु जी ने कहा मैं आपकी परीक्षा ले रहा था जिसमें आप उत्तीर्ण हुए। आपके पीछे-पीछे में भी जंगल में आया था और छुप कर देख रहा था मेरी नजर में इस दुनिया में वर्तमान समय में आपके जितना निडर और साहसी बालक नहीं है।
इस छोटी सी कहानी के द्वारा अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिवाजी महाराज कितने निडर और साहसी थे। शिवाजी ने राजनीति और युद्ध की शिक्षा प्राप्त की थी।
शिवाजी महाराज के बड़े पुत्र का नाम संभाजी था। शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले की दूसरी पत्नी का नाम तुकाबाई मोहिते था। इनके भी एक पुत्र हुआ उसका नाम एकोजी राजे था। जीजा बाई का जन्म यादव परिवार में हुआ था जो कि एक असाधारण महिला थी। इनके पिता बहुत बड़े शक्तिशाली सामंत थे।
14 मई 1640 में मात्र 10 वर्ष की आयु में इनका विवाह “सई बाई निम्बालकर” के साथ हुआ था। यह कार्यक्रम लाल महल, पुणे में संपन्न हुआ था।
छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक (Accession Of Shivaji maharaj)
सन 1674 ईसवी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की नींव रखी। इतना ही नहीं इन्होंने फारसी भाषा का विरोध किया और मराठी भाषा और संस्कृत भाषा को अपनी राजभाषा का दर्जा दिया।
1674 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज राज्य अभिषेक करने के लिए दूतों को काशी विश्वनाथ भेजा ताकि वहां से ब्राह्मण आकर विधिवत रूप से इनका राज्य अभिषेक कर सके।
इस समय काशी में मुगलों का शासन था। जब काशी के ब्राह्मणों को यह बात पता लगी कि छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक करना है तो वह बहुत प्रसन्न हुए, साथ ही वहां जाने के लिए आतुर हो उठे।
यह बात मुगल सैनिकों को पता लग गई कि यहां से कुछ ब्राह्मण शिवाजी का राज्याभिषेक करने के लिए रायगढ़ जाना चाहते हैं तो उन्होंने उन ब्राह्मणों को कैद कर लिया।
ब्राह्मणों ने दिमाग लगाते हुए मुगल सैनिकों से कहा कि हम शिवाजी का राज्याभिषेक नहीं कर सकते हैं क्योंकि ना तो हम उनके राज्य का नाम जानते हैं ना ही उनकी गोत्र के बारे में जानते हैं।
इनके बिना उनका राज्याभिषेक नहीं हो सकता है लेकिन हम तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं इसीलिए काशी छोड़कर जा रहे थे। यह बात सुनकर मुगल सैनिकों को अच्छा लगा और उन्होंने उन ब्राह्मणों को छोड़ दिया।
लेकिन शिवाजी द्वारा भेजे गए दूतों को उन्होंने बंदी बना लिया और “मुगल बादशाह औरंगजेब” के पास दिल्ली भेज दिया। हालांकि दिल्ली जाने के बाद भी यह वहां से सुरक्षित निकल कर पुनः छत्रपति शिवाजी के पास पहुंच गए।
कुछ ही समय में काशी से निकले ब्राह्मण रायगढ़ पहुंच गए और छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक विधिवत रूप से किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लगभग 12 दिन के बाद इनके माता जीजाबाई का देहांत हो गया। माता के देहांत के पश्चात 4 अक्टूबर 1674 को पुनः राज्याभिषेक का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
छत्रपति शिवाजी महाराज “शुक्राचार्य और कौटिल्य” को आदर्श मानते थे। अष्टप्रधान नामक इनके आठ मंत्रियों की एक परिषद थी। इन मंत्रियों के प्रधान को “पेशवा” नामक उपाधि प्रदान की जाती थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के इस पद पर बाजीराव पेशवा विराजमान थे। राजा के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान था।
वित्त और राजस्व का काम देखने वाले को “अमात्य” कहा जाता था। मंत्री राजा के दैनिक कार्यों की निगरानी रखता था।
दफ्तर के कार्य जैसे मोहर लगाना संधि के पत्रों से आलेख तैयार करना आदि कार्य जो करता था उसे सचिव के पद से सम्मानित किया गया था।
विदेश मंत्री को सुमंत के नाम से तथा सेना के प्रधान को सेनापति के नाम से औरदान पुण्य और धार्मिक मामले देखने वाले व्यक्ति को “पंडितराव” के नाम से पुकारा जाता था।
लड़ाई झगड़े और न्यायिक मामलों के लिए नियुक्त व्यक्ति को न्यायाधीश की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
मराठा साम्राज्य तीन -चार भागों में विभाजित था। प्रत्येक प्रांत को एक सूबेदार दिया जाता था। शिवाजी अपने आप को “सरदेशमुख” मानते थे जोकि मराठों के राजा होते हैं।
इसलिए यह सरदेशमुख टैक्स वसूलते थे। इनके समय में “चौथकर” काफी प्रचलन हुआ। “चौथ” कर दूसरे राज्यों की सीमाओं पर लगने वाला टैक्स था जो कि उस राज्य को सुरक्षा प्रदान करता था।
रामचंद्र अमात्य को इन्होंने एक महत्वपूर्ण काम सौंपा। जितने भी ग्रंथ थे जिनमें फारसी भाषा का प्रयोग हुआ था उन्हें इससे निकालकर उनकी जगह संस्कृत के शब्दों को उपयोग में लेने की सलाह दी।
इस समय उनके राज्य में एक बहुत बड़ा विद्वान रहता था जिसका नाम “धुंधीराज” था। इन दोनों ने मिलकर 1350 नई संस्कृत शब्दों का समावेश करते हुए “राज्य व्यवहार कोश” नामक ग्रंथ की रचना की।
“कृते म्लेच्छोच्छेदे भुवि निरवशेषं रविकुला-वतंसेनात्यर्थं यवनवचनैर्लुप्तसरणीम्। नृपव्याहारार्थं स तु विबुधभाषां वितनितुम्।नियुक्तोऽभूद्विद्वान्नृपवर शिवच्छत्रपतिना”।।
छत्रपति शिवाजी महाराज बहुत बड़े प्रेरणा स्त्रोत थे इन्हीं के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक वीर योद्धाओं ने अपनी जान की परवाह किए बिना देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
छत्रपति शिवाजी महाराज अफजल खान युद्ध
10 नवंबर 1659 को छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया था। छत्रपति शिवाजी महाराज का साम्राज्य और आतंक लगातार बढ़ता जा रहा था। यह घटना बीजापुर की है। इस समय बीजापुर में आदिलशाह का शासन था।
आदिलशाह में छत्रपति शिवाजी को हराने की क्षमता नहीं थी। साथ ही इतनी भी काबिलियत नहीं थी कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बना सकें इसलिए आदिल शाह ने एक प्लान बनाया और छत्रपति शिवाजी महाराज के पिताजी शाहजी भोंसले को बंदी बना लिया।
जब यह खबर छत्रपति शिवाजी के पास पहुंची तो वह आग बबूला हो गए और उन्होंने तत्काल अपने पिताजी को आदिल शाह की सलाखों से मुक्त करने का फैसला किया।
छापामारी और गोरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लेते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज ने शाहजी भोंसले को आदिलशाह की गिरफ्त से मुक्त करवा दिया।
आदिल शाह का एक सेनापति था जिसका नाम था अफजल खान। अफजल खान बहुत ही निर्दयी और निकम्मे प्रवृत्ति का था। अफजल खान की रग- रग में मक्कारी और गद्दारी थी।
इसी का फायदा उठाने के लिए आदिल शाह ने अफजल खान को आदेश दिया कि कैसे भी करके छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बना लिया जाए या उन को मौत के घाट उतार दिया जाए।
अपने बादशाह के आदेश का पालन करते हुए अफजल खान छत्रपति शिवाजी महाराज के यहां पहुंचा और भाईचारे की बात करते हुए उन्हें गले से लगाया।
गले से लगाने के बाद उसने छुरी से छत्रपति शिवाजी की हत्या करने की सोची। शिवाजी महाराज बहुत ही सतर्क थे और उन्होंने बघनखे का प्रयोग करते हुए अफजल खान को तुरंत मौत के घाट उतार दिया।
छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल
छत्रपति शिवाजी की शक्ति साहस और साम्राज्य से मुगल शासक औरंगजेब बहुत ही बेचैन था। उसे यह चिंता सता रही थी कि जिस तरह शिवाजी की शक्ति और साहस बढ़ता जा रहा है, उसे देखते हुए औरंगजेब ने अपने सेनापति को भेजा और शिवाजी को मौत के घाट उतारना चाहा।
लेकिन उसे सफलता नहीं मिली और औरंगजेब का सूबेदार मारा गया इसके साथ ही औरंगजेब ने इस युद्ध में अपना पुत्र भी खो दिया।
पुत्र की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब कहां चुप बैठने वाला था। उसने अपने सबसे करीबी और सेना अध्यक्ष मानसिंह को 100000 से भी अधिक सैनिकों के साथ छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ ही युद्ध करने के लिए भेजा।
मानसिंह बहुत ही चतुर था। उसने सोचा कि यदि शिवाजी महाराज को हराना है तो सबसे पहले पुरंदर के किले को जीतना होगा होगी ताकि वहां से सैन्य शक्ति बढ़ाई जा सके।
24 अप्रैल 1665 में मानसिंह ने वज्रगढ़ के किले पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। पुरंदर के किले की रक्षा करते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज का सेनापति मुरारजी बाजी मारा गया।
22 जून 1665 का दिन था जब छत्रपति शिवाजी महाराज को लग गया कि उनका वीर सेनापति मुरारजी मारा गया है और अब इस किले को बचा पाना उनके वश में नहीं है तो उन्होंने मान सिंह के साथ पुरंदर की संधि कर ली। छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन लगभग 250 क़िले थे।
छत्रपति शिवाजी को आगरा में बंदी क्यों बनाया गया?
औरंगजेब चाहता था कि छत्रपति शिवाजी महाराज खुद उनसे मिलने के लिए आगरा आए। जब औरंगजेब ने उन्हें सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन दिया तो छत्रपति शिवाजी महाराज 1666 में औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा पहुंचे।
शिवाजी के साथ में उनका पुत्र संभाजी तथा लगभग 4000 मराठा सैनिक थे। औरंगजेब के दरबार में शिवाजी का आदर और सत्कार नहीं हुआ बल्कि उल्टा इन का तिरस्कार किया गया और हास्य का पात्र बनाया गया।
जिससे क्रोधित होकर शिवाजी ने औरंगजेब को विश्वासघाती और धोखेबाज जैसे शब्दों से संबोधित किया इस वजह से औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को बंदी बना लिया लेकिन 13 अगस्त 1666 में फलों की टोकरी में बैठकर 22 सितंबर 1666 को पुनः रायगढ़ आ गए।
छत्रपति शिवाजी गुरु (Chhatarpati Shivaji Ke Guru)
छत्रपति शिवाजी के गुरु का नाम “समर्थ गुरु रामदास” था। रामदास के सानिध्य में ही इन्होंने शिक्षा और दीक्षा प्राप्त की थी। यहीं से इन्होंने राजनीति और युद्ध कौशल में संपूर्णता प्राप्त की।
छत्रपति शिवाजी जयंती (Chhatarpati Shivaji Jayanti)
प्रतिवर्ष 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती को बड़े ही धूमधाम के साथ केवल महाराष्ट्र में ही नहीं संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है।
छत्रपति शिवाजी पुण्यतिथि
प्रतिवर्ष 3 अप्रैल को छत्रपति शिवाजी पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है 3 अप्रैल 1680 के दिन छत्रपति शिवाजी महाराज का देहांत हुआ था।
छत्रपति शिवाजी वंशावली( Chhatarpati Shivaji Ke Vanshaj)
छत्रपति शिवाजी महाराज की 8 पत्नियां थी। इन्होंने 6 पुत्र पुत्रियों को जन्म दिया जिनमें से 2 पुत्र और 4 पुत्रियां थी। इनके दोनों पुत्रों का नाम संभाजी और राजाराम था। और चार पुत्रियां थी जिनका नाम सखूबाई निंबालकर, रणु बाई जाधव, अंबिका बाई महादिक,राजकुमार बाई सीर्के था।
छत्रपति शिवाजी महाराज के कार्यकाल से संबंधित प्रमुख घटनाएं (Major Events Related To The Tenure Of Chhatrpati Shivaji Maharaj)-
1594 में छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले का जन्म हुआ था।
1596 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजा बाई का जन्म हुआ था।
1630 ईस्वी में शाहजी भोंसले और जीजा बाई के घर छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ।
1630 से लेकर 1631 तक महाराष्ट्र में अकाल पड़ा था जो कि बहुत ही भयानक था इसमें कई लोगों की जान गई थी।
1640 ईस्वी 14 मई1640 को छत्रपति शिवाजी महाराज का साईं बाई निंबालकर के साथ विवाह संपन्न हुआ का।
1646 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने “तोरण दुर्ग” पर आक्रमण किया और अपना अधिकार जमा लिया।
1656 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने जावली पर आक्रमण कर दिया और चंद्रराव मोरे से जावली जीत लिया।
1659 ईस्वी में 10 नवंबर के दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया।
1659 5 सितंबर 1659 में छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी राजे का जन्म हुआ। इतना ही नहीं इसी साल इन्होंने बीजापुर पर भी अपना अधिकार कर लिया।
1664 ईस्वी में 6 से लेकर 10 जनवरी तक इन्होंने सूरत पर आक्रमण किया और बहुत सारी धनसंपदा एकत्रित की।
1665 इसी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के साथ पुरंधर में शांति के लिए संधि की थी।
1666 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज आगरा में कारावास से भाग निकले।
1668 ईस्वी में एक बार फिर शिवाजी और औरंगजेब के बीच शांति संधि हुई।
1670 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज ने एक बार फिर सिर के ऊपर धावा बोल दिया और इस बार भी इन्होंने यह आक्रमण धनसंपदा एकत्रित करने के लिए की थी।
1674 ईस्वी यह बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ष था इसी वर्ष छत्रपति शिवाजी महाराज को छत्रपति की उपाधि मिली थी।साथ ही उन 1674 इसी में ही इनका राज्याभिषेक हुआ था और इनने अपनी प्रिय माता जीजाबाई को भी इसी साल में खो दिया।
1680 ईस्वी में छत्रपति शिवाजी महाराज का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया।
FAQ
1 what is full name of shivaji maharaj छत्रपति शिवाजी का पूरा नाम क्या है?
उत्तर- छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा नाम “शिवाजी राजे भोंसले” हैं।
2 who is the father of chhatrapati shivaji?
उत्तर – छत्रपति शिवजी महाराज के पिता का नाम शाहजी भोंसले( Shahji Bhonsale) था।
3 who was great grandfather of chatrapati shivaji?
उत्तर – मालोजी भोंसले ( Maloji Bhonsale ) था।
4 who made shivneri fort?
उत्तर – Shivneri Fort Made By Yadav in 17th( इसका निर्माण यादवों द्वारा 17 वीं शताब्दी में करवाया गया था ) Century.
5 who was shivaji and where did he live?
उत्तर – Shivaji was maratha king from raigarh maharashtra.
6 is shivaji was a rajput(what is the caste of chatrapathi shivaji) ?
उत्तर – NO, Shivaji was Marathi.
7 when was shivaji born(when was shivaji iv born)?
उत्तर -Shivaji Born In february 19,1630.
8 who was the son of sambhaji raje?
उत्तर – Shahu Was the son of sambhaji raje.
9 when was shivaji university created?
उत्तर -Shivaji Univercity Created In 1962.
10 what is the duration of veer shivaji?
उत्तर – 1930 To 1980.( approx. 50 years)
छत्रपति शिवाजी महाराज की 3 तलवारें
Post a Comment