शुभ्रक घोड़ा का इतिहास (Shubhrak ghoda History)
Shubhrak ghoda– भारत के इतिहास से सम्बंधित हर एक पहलु अपने आप में अद्भुद और विचारणीय हैं। कितना महान रहा होगा इतिहास इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं की सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि उनके पाले हुआ जानवर तक शौर्य और स्वामिभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। मेवाड़ के शासक कर्णसिंह के घोड़े का नाम था शुभ्रक.
शुभ्रक नामक घोड़े का इतिहास राजस्थान के मेवाड़ राज्य से हैं। इस समय मेवाड़ में राणा कर्ण सिंह का राज था। कर्णसिंह के घोड़े का नाम था शुभ्रक.
Shubhrak ghoda बहुत सुन्दर ,मजबूत और तेज़ रफ़्तार के लिए जाना जाता था। मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक की नजर इस घोड़े पर पड़ी तो उसके मन में उसको पाने की लालसा जगी। मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात् कुतुबुद्दीन ऐबक ने खुद को लाहौर का राजा घोषित कर दिया।
अपने राज्य को बढ़ने की लालसा के साथ कुतुबुद्दीन ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध में मेवाड़ की सेना ने पराजय स्वीकार कर ली। कर्ण सिंह को बंदी बना लिया गया। बंदी बनाकर उनको अपने साथ लाहौर ले गया ,साथ ही राजकुमार कर्ण सिंह के घोड़े शुभ्रक को भी लेकर गया। इस चमकदार घोड़े ने कुतुबुद्दीन का मन मोह लिया।
कुतुबुद्दीन को यह घोड़ा हद से ज्यादा पसंद आया और मन ही मन वह बहुत ज्यादा खुश था ,जीत से ज्यादा खुशी शुभ्रक घोड़े को पाने की हो रही थी।
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शुभ्रक घोड़े ने कुतुबुद्दीन को क्यों मारा (Shubhrak ghoda ne kutubuddin ebak ko kyon mara) –
राजकुमार कर्णसिंह को यहाँ जेल में कैद कर रखा था। एक दिन कर्ण सिंह ने मौका देखा और यहाँ से भागने की सोची ताकि जल्द से जल्द मेवाड़ पहुंचा जा सके।
जैसे ही राजा कर्णसिंह वहां से निकले कुछ सैनिकों ने उनको देख लिया। पुनः पकड़कर उनको जेल में दाल दिया गया। जब इस बात का लाहौर शासक कुतुबुद्दीन ऐबक को पता चला तो उन्होंने सेनापति को आदेश दिया की कल सुबह के समय कर्णसिंह को मेरे समक्ष पेश किया जाए।
अगले दिन जब उनको बादशाह के सामने पेश किया तो कुतुबुद्दीन आदेश दिया कि इसकी गर्दन को धड़ से अलग की जाए और उससे हम पोलो का खेल खेलेंगे। कुतुबुद्दीन शुभ्रक घोड़े पर ही सवार होकर पहुंचे।
जब उनको पोलो खेल प्रांगण में बंदी बनाकर लाया गया तो शुभ्रक ने अपने स्वामी कर्णसिंह को पहचान लिया और जोर जोर से हिनहिनाने लगा। वह घोडा इतने तेज़ गति से हाथ पैर फेंकने लगा और बेकाबू हो गया।
Shubhrak ghoda के ऊपर सवार कुतुबुद्दीन धड़ाम से निचे गिर पड़े। जैसे ही ये गिरे घोड़े ने अपने दोनों पैरों से उनके ऊपर प्रहार कर दिया। शुभ्रक के प्राण घातक हमले से कुतुबुद्दीन ऐबक ने दम तोड़ दिया।
स्वामिभक्त शुभ्रक घोड़ा दौड़कर अपने स्वामी कर्णसिंह के पास पहुंचा और उनको लेकर तेज़ रफ़्तार के साथ उदयपुर महल आकर रुका। जैसे ही राजा कर्णसिंह घोड़े से निचे उतरे और उसके घोड़े पर हाथ फेरा तो उसके प्राण जा चुके थे।
राणा कर्णसिंह को बहुत दुःख हुआ। उस घोड़े को उसी महल के सामने दफनाया गया। जहाँ पर आज भी Shubhrak ghoda की समाधी बनी हुई हैं।
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