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भामाशाह का इतिहास || History Of Bhamashah

भारमल को राजस्थान का प्रथम भामाशाह कहा जाता हैं जो कि भामाशाह के पिता थे. भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 ईस्वी में हुआ था. महाराणा प्रताप के आर्थिक रूप से मुख्य सहयोगी होने के कारण भामाशाह का नाम मेवाड़ में आज भी श्रद्धा और आदर के साथ लिया जाता है. भामाशाह ने महाराणा प्रताप की आर्थिक मदद तो की ही थी लेकिन उन्होंने कई युद्धों में भी भाग लिया था.

भामाशाह का इतिहास देखा जाए तो उन्होंने तन-मन से मातृभूमि की सेवा की थी. इसके साथ ही जब आक्रांताओं से लड़ने के लिए मेवाड़ राज्य को धन की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपने सभी संसाधन महाराणा प्रताप को सौंपते हुए इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया. देलवाड़ा के जैन मंदिर का निर्माण भामाशाह और उनके भाई ताराचंद द्वारा आबू पर्वत पर किया गया था.

भामाशाह का इतिहास और जीवनी (Bhamashah History and Biography)

नाम-भामाशाह.
जन्म-28 जून 1547.
जन्म स्थान-मेवाड़ (चितौड़गढ़).
पिता का नाम-भारमल.
भाई-ताराचंद जी.
पुत्र-जीवाशाह.
धर्म-जैन धर्म ( कावेडिया गौत्र ओसवाल महाजन).
भामाशाह का जीवन परिचय

इतिहास बताता है कि भामाशाह के पिता भारमल को मेवाड़ सम्राट महाराणा सांगा ने अलवर से बुलाया था. जब भारमल मेवाड़ पहुंचे तो उन्हें महाराणा सांगा ने उनके पुत्र विक्रमादित्य की सुरक्षार्थ रणथंभोर भेज दिया और वहां का किलेदार बनाया. भामाशाह का जन्म मेवाड़ में ही हुआ था यह बचपन से ही महाराणा प्रताप के मित्र थे. भामाशाह को मेवाड़ की धरती से विशेष प्रेम था. भामाशाह का इतिहास में नाम उनकी दानवीरता और वीरता दोनों के लिए लिया जाता है.

भामाशाह उदयपुर में रहते थे, मोती बाजार के पास उनकी हवेली थी. जावर माता मंदिर का निर्माण भामाशाह ने करवाया था. हल्दीघाटी युद्ध में भामाशाह ने भी भाग लिया. भामाशाह महाराणा प्रताप के हरावल दस्ते में शामिल थे. भामाशाह के साथ-साथ उनके भाई ताराचंद ने भी हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना से लोहा लिया था. हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात लगभग 12 वर्षों तक मुगल सेना और महाराणा प्रताप की सेना के बीच युद्ध चलता रहा.

12 वर्षों तक अनवरत चले छूटपुट युद्धों में भामाशाह ने महाराणा प्रताप का बहुत साथ दिया था और यह कहा जाए कि भामाशाह के आर्थिक सहयोग की वजह से ही महाराणा प्रताप विशाल मुगल सेना का सामना करने में सफल हुए तो इसमें कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी. भामाशाह का अद्वितीय योगदान देखकर ही महाराणा प्रताप ने उन्हें राममहासारणी के स्थान पर प्रधानमंत्री नियुक्त किया.

महाराणा प्रताप द्वारा भामाशाह को दिया गया यह एक बहुत बड़ा सम्मान था.

हल्दीघाटी युद्ध के बाद भामाशाह का सहयोग

हल्दीघाटी का युद्ध बहुत ही भीषण और विनाशक इस युद्ध में हजारों मेवाड़ी सैनिकों के साथ-साथ मुगल सेना को भी भारी जन और धन की हानि हुई थी, लेकिन यह युद्ध अनिर्णीत रहा. इस युद्ध में ना तो अकबर जीता और ना ही महाराणा प्रताप हारे. लेकिन ऐसे प्रमाण मौजूद हैं जो महाराणा प्रताप की जीत बताते हैं. हल्दीघाटी युद्ध के बाद महाराणा प्रताप के पास लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे. सैनिकों की संख्या कम हो गई, हथियार भी नहीं थे और ना ही धन बचा था.

हताश निराश महाराणा प्रताप जंगलों में इधर उधर भटक रहे थे तभी वहां पर भामाशाह, प्रथा भील के साथ पहुंचते हैं. प्रथा भील के दादा परदादा मेवाड़ राज्य के संसाधनों और खजानो की रक्षा किया करते थे. प्रथा भील से मिलकर महाराणा प्रताप को बहुत खुशी हुई और उन्होंने उसे गले लगा लिया. 

भामाशाह ने महाराणा प्रताप को 25,00,000 रुपए और 12,000 अशर्फियां समर्पित कर बहुत बड़ा दान दिया. उस समय यह संपत्ति अर्थात धन इतना बड़ा था कि इस धन से मेवाड़ी सेना का 10-12 वर्षों तक निर्वहन निर्बाध रूप से हो सकता था.

यह भी पढ़ें- महाराणा प्रताप की जीत के प्रमाण.

भामाशाह ने कई बार मेवाड़ की सैन्य टुकड़ियों का भी नेतृत्व किया था. भामाशाह द्वारा ज्यादातर आक्रमण गुजरात, मालवा और मेवाड़ क्षेत्रों में किए जाते थे जहां से उन्हें प्रचुर मात्रा में धन संपदा भी मिलती थी.

भामाशाह द्वारा मालवा पर मुगल सेना के खिलाफ बोला गया धावा विश्वविख्यात है. इसमें उन्होंने महाराणा प्रताप के पुत्र कुंवर अमर सिंह के साथ मालपुरे में मुगल खजाने को लूट लिया. महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच दिवेर की घाटी के मध्य लड़े गए युद्ध में मेवाड़ी सेना ने मुगल सेना के छक्के छुड़ा दिए थे.

महाराणा प्रताप के बाद महाराणा अमर सिंह के शासनकाल में भी भामाशाह ने 2 करोड़ का दान उन्हें प्रदान किया था, इसका उल्लेख खुम्मान रासो में मिलता है.

भामाशाह को अकबर का प्रलोभन

भामाशाह को अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम था, साथ ही पूर्ण रूप से समर्पित होकर मेवाड़ की धरा को मुगल शासन से दूर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भामाशाह को अकबर ने कई प्रलोभन देते हुए मेवाड़ और महाराणा प्रताप से अलग करने की कोशिश की लेकिन इसका तनिक भी असर नहीं हुआ.

अकबर जहां पर कामयाब नहीं होता वहां पर फूट डालो और राज करो की नीति अपनाता तथा इस नीति के तहत वह राजपूत राजाओं, सामंतों और उच्च अधिकारियों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काकर अलग करता या उन्हें अपनी सेना में शामिल करता.

इसी रणनीति के तहत अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना नामक एक कूटनीतिज्ञ को भेजा और कैसे भी करके भामाशाह को अपने पक्ष में करने या महाराणा प्रताप से अलग करने के लिए भेजा. लेकिन भामाशाह ने इसे ठुकरा दिया.

सर्व संपदा दान और भामाशाह की मृत्यु

उम्र के अंतिम पड़ाव पर भामाशाह ने उनकी पत्नी को अपने पास बुलाया और मेवाड़ के खजाने का संपूर्ण विवरण उसे सौंप दिया और कहा कि यह मातृभूमि की रक्षा के लिए दान कर देना. उस समय मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह का राज था, भामाशाह की पत्नी ने संपूर्ण धनसंपदा को दान कर दिया. ऐसे विशाल हृदय वाले, देशप्रेमी, प्रजा प्रेमी और निष्ठावान, कर्मठ, दानदाता और दानवीर भामाशाह का नाम इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया.

भामाशाह की मृत्यु सन 1600 में हुई थी. भामाशाह की मृत्यु के समय उनकी आयु 51 वर्ष थी. 1597 ईस्वी में महाराणा प्रताप की मृत्यु हुई थी और महाराणा प्रताप की मृत्यु के 3 वर्ष पश्चात भामाशाह ने भी प्राण त्याग दिए.

वीर, दानवीर और दानदाता भामाशाह का नाम इतिहास में सदा के लिए अमर हो गया.

भामाशाह सम्मान

लोगों के कल्याण के लिए और आत्मसम्मान के लिए अपनी संपूर्ण संपदा दान करने वाले महापुरुष भामाशाह के नाम पर छत्तीसगढ़ सरकार ने उनकी स्मृति में “दानवीर भामाशाह” सम्मान नामक योजना चलाई. वही राजस्थान में भी राजस्थान सरकार ने “भामाशाह कार्ड” जारी करके उन्हें सम्मान दिया.

31 दिसंबर 2000 को भारत सरकार द्वारा भामाशाह के नाम पर डाक टिकट जारी किया था. आज भी चित्तौड़गढ़ (दुर्ग पर) में भामाशाह की हवेली बनी हुई है.

FAQ

[1] भामाशाह का जन्म कहां हुआ था?

उत्तर- भामाशाह का जन्म चितौड़गढ़ में हुआ था.

[2] भामशाह क्यों प्रसिद्ध हैं?

उत्तर- भामाशाह अपनी दानवीरता, त्याग और मातृ-भूमि से विशेष प्रेम के साथ-साथ महाराणा प्रताप का आजीवन साथ देने के प्रसिद्ध हैं. मुश्किल के दिनों में महाराणा प्रताप को अपनी संपूर्ण धन संपदा दान करने वाले महापुरुष भामाशाह ही थे. इन्होंने मेवाड़ का आत्मसम्मान भी बढ़ाया था.

[3] भामाशाह का मूल नाम क्या था?

उत्तर- भामाशाह का मूल नाम भामाशाह भारमल था.

[4] महाराणा प्रताप की भामाशाह से मुलाकात कब हुई?

उत्तर- हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान वर्ष 1576 ईसवी में महाराणा प्रताप और भामाशाह ने मिलकर काम किया था. महाराणा प्रताप और भामाशाह बचपन से ही मित्र थे और एक दूसरे को जानते थे.

[5] भामाशाह का जन्म कब हुआ था?

उत्तर- भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 को हुआ था लेकिन कई इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 19 अप्रैल 1547 लिखते हैं.

[6] भामाशाह के पिता का नाम क्या था?

उत्तर- भामाशाह के पिता का नाम भारमल था.

दोस्तों उम्मीद करते हैं “भामाशाह का इतिहास” (Bhamashah History In Hindi) पर आधारित यह लेख आपको अच्छा लगा होगा,धन्यवाद।

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