सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

दिवेर का युद्ध || Battle Of Diver

दिवेर का युद्ध विश्व विख्यात और ऐतिहासिक दिवेर का युद्ध अक्टूबर 1582 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था. विजयदशमी के दिन दिवेर का युद्ध दिवेर छापली नामक स्थान पर लड़ा गया, जिसमें मेवाड़ की सेना का शौर्य देखते ही बनता था. एक ऐसा युद्ध जिसने महाराणा प्रताप द्वारा हल्दीघाटी में दिखाई गई वीरता और त्याग को आगे बढ़ाते हुए मुगल सेना को नतमस्तक कर दिया.

दिवेर का युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमें मेवाड़ के वीरों ने मुगल सेना को अजमेर तक खदेड़ दिया था. इतना ही नहीं महाराणा प्रताप की सेना के सामने 30,000 से अधिक मुगल सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था. यही वजह रही कि इस युद्ध के पश्चात अकबर की सेना ने मेवाड़ की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखी. दिवेर का युद्ध भौगोलिक और सामरिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ था.

 दिवेर का युद्ध (Battle Of Diver)

नाम-दिवेर का युद्ध.
अन्य नाम-मेवाड़ का मैराथन युद्ध.
कब लड़ा गया-अक्टूबर, 1582.
तिथि-विजयदशमी.
कहां लड़ा गया-दिवेर-छापली नामक स्थान पर.
किसके बिच हुआ-मेवाड़ और मुग़ल सेना की बिच.
Diver Ka Yudh

प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड के ने दिवेर के युद्ध की तुलना मैराथन युद्ध से की थी. दिवेर का युद्ध “मेवाड़ का मैराथन” भी कहलाता हैं. विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना की करारी हार के पश्चात अकबर बौखलाया हुआ था. वह कैसे भी करके महाराणा प्रताप को पकड़ना चाहता था, जिसमें वह आजीवन असफल रहा.

दिवेर का युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के काका सेरीमा सुल्तान खा के बीच लड़ा गया. इस युद्ध के समय अकबर ने काका सेरिमा सुल्तान खां को दिवेर का सूबेदार बना रखा था.

1576 ईस्वी में हुए विश्व प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत हुई लेकिन कुछ छुटपुट इलाकों पर अकबर ने अधिकार कर लिया. जिसमें कुछ समय के लिए कुंभलगढ़, उदयपुर और गोगुंदा जैसे महत्वपूर्ण ठिकाने भी शामिल थे लेकिन महाराणा प्रताप अकबर की पकड़ से बाहर थे. हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत के प्रमाण भी प्राप्त हुए हैं.

मुगल आक्रांता अकबर ने महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए हल्दीघाटी के युद्ध के बाद से अर्थात 1576 ईसवी से लेकर 1582 ईसवी तक प्रयास करता रहा लेकिन सफलता नहीं मिली. मुगल सेना और अकबर के मन में महाराणा प्रताप का खौफ था. मुगल सेना जानती थी कि अगर महाराणा प्रताप को पराजित नहीं किया गया या उन्हें नहीं मारा गया तो किसी दिन वह मुगल सेना का सर्वनाश कर देंगे.

यह महाराणा प्रताप का खौफ ही था कि अकबर कभी भी प्रत्यक्ष रूप से युद्ध करने के लिए महाराणा प्रताप के सामने नहीं आए. दिवेर का युद्ध (Battle Of Diver) को हल्दीघाटी युद्ध का दूसरा भाग भी माना जाता है.

दिवेर के युद्ध की योजना

वर्ष 1582 ईसवी में दिवेर पर मुगल आक्रांता अकबर के चाचा सुल्तान खां को सूबेदार बनाकर जिम्मेदारी दी गई थी. महाराणा प्रताप और मेवाड़ की वीर सेना कैसे भी करके दिवेर को मुगलों से मुक्त करवाना चाहती थी. इसी को ध्यान में रखकर महाराणा प्रताप और उनके सामंतों ने मिलकर अरावली की पहाड़ियों में स्थित मनकियावस के जंगलों में मुगल सेना को पछाड़ने की योजना बनाई.

लेकिन महाराणा प्रताप के सामने सबसे बड़ी समस्या थी धन की. इस समय भामाशाह आगे आए और उन्होंने महाराणा प्रताप को आवश्यक धनराशि मुहैया करवाई. जिसकी मदद से महाराणा प्रताप ने विशाल सेना का गठन किया. दिवेर के युद्ध को लेकर रणनीति बनाई की मुगलों को पहाड़ी रास्तों से आक्रमण कर उनके हथियार लूट कर और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के द्वारा निरंतर हमले करके पराजित करेंगे. इस युद्ध में भामाशाह की सहायता मेवाड़ की सेना के लिए वरदान साबित हुई.

दिवेर के युद्ध की शुरुआत

महाराणा प्रताप के नेतृत्व में दिवेर का युद्ध लड़ा गया था. इसमें सेना की एक टुकड़ी की जिम्मेदारी महाराणा प्रताप ने उनके पुत्र सुरवीर कुंवर अमर सिंह को दे रखी थी. मेवाड़ी सेना दो भागों में बैठकर युद्ध लड़ रही थी. एक टुकड़ी का नेतृत्व स्वयं महाराणा प्रताप कर रहे थे जबकि दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व कुंवर अमर सिंह के हाथ में था.

वर्ष 1582 में अक्टूबर के महीने में मेवाड़ी सेना ने विजयदशमी का अच्छा दिन देखकर मुगल सेना पर धावा बोल दिया. सबसे पहले मेवाड़ी सेना ने दिवेर के शाही थाने पर कुंवर अमर सिंह के नेतृत्व में भीषण आक्रमण कर दिया. महाराणा प्रताप की तरह ही कुंवर अमर सिंह वीर और बहादुर थे. कुंवर अमर सिंह ने सीधा दिवेर के सूबेदार सुल्तान खां पर वार किया.

कुंवर अमर सिंह द्वारा सुल्तान खां पर भाले से किया गया वार इतना खतरनाक था कि भाला सुल्तान खां के शरीर और घोड़े को चीरता हुआ निकल गया. यह दृश्य देखकर मुगल सेना में अफरा-तफरी मच गई. मेवाड़ के वीरों ने चुन-चुन कर मुगलों को मौत के घाट उतारा और मुगल सेना को खदेड़ ते हुए दिवेर से अजमेर तक पहुंचा दिया. इस युद्ध में 30,000 से अधिक मुगल सैनिकों ने महाराणा प्रताप के सामने आत्मसमर्पण किया.

“मेवाड़ के वीर सवार को एक ही बार में घोड़े समेत काट देते हैं” यह कहावत इस युद्ध के बाद ही प्रचलित हुई थी. इस युद्ध के परिणाम स्वरूप महाराणा प्रताप ने पुनः जावर, मदारिया, कुंभलगढ़, गोगुंदा, बस्सी, चावंड, मांडलगढ़ और मोही जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्जा कर लिया.

दिवेर के युद्ध के परिणाम और महत्व

दिवेर का युद्ध सामरिक और भौगोलिक दोनों ही दृष्टि से मेवाड़ के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ. इस युद्ध के बाद मुगल सेना में इतना डर था कि यदि कोई भी काफिला मेवाड़ की सीमा से गुजरता तो बड़ी रकम अदा करनी पड़ती थी. दिवेर के युद्ध के बाद मुगल सेना का मेवाड़ से समूल नाश हो गया.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम, स्थान, स्तुति मंत्र || List Of 12 Jyotirlinga

List Of 12 Jyotirlinga- भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं. भगवान शिव को मानने वाले 12 ज्योतिर्लिंगो के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता हैं कि इन स्थानों पर भगवान शिव ज्योति स्वररूप में विराजमान हैं इसी वजह से इनको ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता हैं. 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं. इस लेख में हम जानेंगे कि 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? 12 ज्योतिर्लिंग कहाँ-कहाँ स्थित हैं? 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान. यहाँ पर निचे List Of 12 Jyotirlinga दी गई हैं जिससे आप इनके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएंगे. 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि ( List Of 12 Jyotirlinga ) 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि (List Of 12 Jyotirlinga) निम्नलिखित हैं- क्र. सं. ज्योतिर्लिंग का नाम ज्योतिर्लिंग का स्थान 1. सोमनाथ (Somnath) सौराष्ट्र (गुजरात). 2. मल्लिकार्जुन श्रीशैल पर्वत जिला कृष्णा (आँध्रप्रदेश). 3. महाकालेश्वर उज्जैन (मध्य प्रदेश). 4. ओंकारेश्वर खंडवा (मध्य प्रदेश). 5. केदारनाथ रूद्र प्रयाग (उत्तराखंड). 6. भीमाशंकर पुणे (महाराष्ट्र). 7...

महाराणा प्रताप का इतिहास || History Of Maharana Pratap

प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का नाम सुनते ही हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप भारतीय इतिहास के एकमात्र ऐसे योद्धा थे जिन्हें शीश कटाना मंजूर था लेकिन किसी के सामने झुकाना नहीं. चित्तौड़गढ़ के सिसोदिया वंश में जन्म लेने वाले महाराणा प्रताप का नाम इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में हमेशा के लिए अंकित रहेगा. सभी देश प्रेमी आज भी प्रातः उठकर महाराणा प्रताप की वंदना करते हैं. देशप्रेम, स्वाधीनता, दृढ़ प्रतिज्ञा, निर्भिकता और वीरता महाराणा प्रताप की रग-रग में मौजूद थी. मुगल आक्रांता अकबर ने महाराणा प्रताप को झुकाने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया लेकिन दृढ़ प्रतिज्ञा के धनी महाराणा प्रताप तनिक भी ना झुके. महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था. स्वाधीनता और स्वाभिमान का दूसरा नाम थे महाराणा प्रताप जो कभी किसी के सामने झुके नहीं चाहे परिस्थितियाँ कुछ भी हो, मुग़ल आक्रांता अबकर भी शोकाकुल हो उठा जब उसने वीर महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनी. महाराणा प्रताप का इतिहास, जन्म और माता-पिता (Maharana Pratap History In Hindi) महा...

नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) का इतिहास व कहानी

Nilkanth varni अथवा स्वामीनारायण (nilkanth varni history in hindi) का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण का अवतार भी माना जाता हैं. इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा इनके कई भक्त होंगे और उनके जीवन की दिशा और दशा तय करने में नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का बड़ा योगदान रहेगा। हालाँकि भारत में महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वीराज चौहान जैसे योद्धा पैदा हुए ,मगर नीलकंठ वर्णी का इतिहास सबसे अलग हैं। मात्र 11 वर्ष कि आयु में घर त्याग कर ये भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। यहीं से “नीलकंठ वर्णी की कहानी ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी की कथा ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र” का शुभारम्भ हुआ। नीलकंठ वर्णी कौन थे, स्वामीनारायण का इतिहास परिचय बिंदु परिचय नीलकंठ वर्णी का असली न...