सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

राधाबाई का इतिहास और जीवन परिचय

राधाबाई (Radhabai barve) प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ की पत्नी थी। इन्होंने बाजीराव पेशवा प्रथम जैसे वीर पुत्र को जन्म दिया जो आगे चलकर मराठा साम्राज्य में पेशवा बने।

राधाबाई (Radhabai Barve History In Hindi)

  • पूरा नाम- राधाबाई बर्वे।
  • पिता का नाम- डूबेरकर अंताजी मल्हार बर्वे।
  • मृत्यु – 20 मार्च 1753 .

त्याग, दृढ़ता, कार्यकुशलता, उदारता के साथ साथ व्यवहार कुशलता जैसे अभूतपूर्व गुण राधाबाई में मौजूद थे। इनके पुत्र बाजीराव पेशवा को यह प्रेरित भी करती थी और कई कार्यों में मदद भी करती थी।

बाजीराव और मस्तानी को लेकर शुरू से ही इन्होंने विरोध किया। ताराबाई चाहती थी कि पेशवा परिवार की इज्जत भी बनी रहे और परिवार में फूट भी ना पड़े। बाजीराव पेशवा की द्वितीय पत्नी मस्तानी की माता मुस्लिम थी और मस्तानी भी मुस्लिम धर्म को मानती थी, इसलिए पेशवा परिवार उन्हें स्वीकार नहीं करना चाहता था।

मस्तानी के विरोध में खुद राधाबाई, बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमाजी अप्पा और बाजीराव पेशवा के पुत्र नानासाहेब मुख्य थे। प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ सिद्दियों के अधीन श्रीवर्धन नामक गांव के देशमुख थे।

भारत के पश्चिमी सिद्दियों के साथ दरार होनेे की वजह से विश्वनाथ और बालाजी ने श्रीवर्धन गांव छोड़ दिया। श्रीवर्धन गांव से पलायन के बाद यह बेला नामक स्थान पर आ गए, यहां पर इनका साथ भानु भाइयों ने दिया। राधाबाई इस समय छोटी थी अतः वह भी परिवार के साथ  बेला आ गई और यहीं पर रहने लगी।

बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु

सन 1720 बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो गई। इस घटना से Radhabai barve को बहुत दुख हुआ और वह पूरी तरह से टूट गई।

मराठा साम्राज्य के छत्रपति शाहूजी महाराज ने बालाजी की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र बाजीराव पेशवा प्रथम को नया पेशवा नियुक्त किया। बाजीराव के पेशवा बनाने से राधाबाई बहुत प्रसन्न हुई। हर राजनीतिक कार्य में राधाबाई पेशवा बाजीराव की मदद करती थी।

राधाबाई की तीर्थ यात्रा

1735 ईस्वी में राधाबाई ने तीर्थ यात्रा करने की इच्छा जताई। राधाबाई के दूसरे नंबर के पुत्र चिमाजी अप्पा ने इनकी यात्रा के लिए प्रबंध किया। 14 फरवरी 1735 के दिन Radhabai barve पुणे से यात्रा के लिए निकली और 8 मार्च को बुरहानपुर पहुंच गई।

6 मई को राधाबाई उदयपुर पहुंची, यहां पर इन्हें बहुत बड़ा राजकीय सम्मान मिला। 21 मई के दिन इन्होंने नाथद्वारा स्थित भगवान श्रीनाथजी के दर्शन किए।

यहां से राधाबाई सीधी जयपुर के लिए निकल गई जहां पर जयपुर के राजा जयसिंह ने इनका बहुत ही आदर और सत्कार किया, राधाबाई जयपुर लगभग 3 महीने तक रुकी।जब राधाबाई जयपुर से निकली तब सितंबर माह चल रहा था।

यहां से प्रस्थान करने के बाद मथुरा, वृंदावन, कुरुक्षेत्र और प्रयागराज होते हुए 17 अक्टूबर को काशी विश्वनाथ के दर्शन के लिए पहुंच गई। राधाबाई की यह यात्रा 1 जून 1736 ईस्वी में समाप्त हुई और वह पुनः पूना आ गई।

पारिवारिक अन-बन और विरोधी

यात्रा पूर्ण करके जब Radhabai barve पुणे पहुंची तब तक बाजीराव पेशवा और मस्तानी का विरोध जोर शोर से होने लगा। स्थानीय सरदारों के साथ-साथ ब्राह्मण समुदाय ने भी दोनों का विरोध करना प्रारंभ कर दिया।

राधाबाई के लिए भी मस्तानी नाक का नासूर बन चुकी थी। जब रघुनाथ राव का उपनयन और सदाशिवराव का विवाह होने वाला था तब बाजीराव पेशवा के आलोचकों का बर्ताव बहुत तेज हो गया।

इन सभी परिस्थितियों पर नियंत्रण करने का जिम्मा राधा बाई का था। Radhabai barve ने जिम्मेदारी लेते हुए सदाशिव राव का विवाह संपन्न करवाया और बाजीराव पेशवा को इनसे दूर रखा।

दोनों पुत्रों की मृत्यु

1740 राधाबाई के लिए बुरा वर्ष था। इस साल Radhabai barve ने अपने दोनों पुत्र बाजीराव पेशवा और चिमाजी अप्पा को मात्र 5 महीने के अंतराल में खो दिया।

इस वर्ष अप्रैल माह में बाजीराव पेशवा का निधन हो गया। इस घटना के मात्र 5 महीने बाद चिमाजी अप्पा भी परलोक सिधार गए। इनकी मृत्यु के पश्चात भी राधा बाई पेशवा और मराठा हितों के लिए कार्य करती रही।

यह भी पढ़ें - चिमाजी अप्पा/Chimaji Appa – बाजीराव पेशवा के भाई

1752 ईस्वी में जब पेशवा किसी काम से पुणे से बाहर गए हुए थे तब इन्होंने राधाबाई और उमा बाई की सेना का सामने किया और पुणे पर आक्रमण से रोका। इतना ही नहीं बाबूजी नाईक पेशवा के खिलाफ अनशन करने वाले थे लेकिन राधाबाई ने उन्हें रोक लिया।

राधा बाई की मृत्यु

20 मार्च 1753 में राधा बाई की मृत्यु हुई थी। Radhabai barve ने अपने सामान्य परिवार से पेशवा परिवार बनने तक का सफर तय किया। राधाबाई अपने आप में बहुत इतिहास समेटे हुए हैं, इसके साथ ही इन्होंने पेशवा बाजीराव जैसे वीर पुरुष को जन्म दिया। प्रतिवर्ष 20 मार्च को राधाबाई की पुण्यतिथि मनाई जाती है।

यह भी पढ़ें :- बाजीराव मस्तानी:- अजब प्रेम की गजब कहानी।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम, स्थान, स्तुति मंत्र || List Of 12 Jyotirlinga

List Of 12 Jyotirlinga- भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं. भगवान शिव को मानने वाले 12 ज्योतिर्लिंगो के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता हैं कि इन स्थानों पर भगवान शिव ज्योति स्वररूप में विराजमान हैं इसी वजह से इनको ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता हैं. 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं. इस लेख में हम जानेंगे कि 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? 12 ज्योतिर्लिंग कहाँ-कहाँ स्थित हैं? 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान. यहाँ पर निचे List Of 12 Jyotirlinga दी गई हैं जिससे आप इनके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएंगे. 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि ( List Of 12 Jyotirlinga ) 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि (List Of 12 Jyotirlinga) निम्नलिखित हैं- क्र. सं. ज्योतिर्लिंग का नाम ज्योतिर्लिंग का स्थान 1. सोमनाथ (Somnath) सौराष्ट्र (गुजरात). 2. मल्लिकार्जुन श्रीशैल पर्वत जिला कृष्णा (आँध्रप्रदेश). 3. महाकालेश्वर उज्जैन (मध्य प्रदेश). 4. ओंकारेश्वर खंडवा (मध्य प्रदेश). 5. केदारनाथ रूद्र प्रयाग (उत्तराखंड). 6. भीमाशंकर पुणे (महाराष्ट्र). 7...

नीलकंठ वर्णी (Nilkanth varni) का इतिहास व कहानी

Nilkanth varni अथवा स्वामीनारायण (nilkanth varni history in hindi) का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण का अवतार भी माना जाता हैं. इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा इनके कई भक्त होंगे और उनके जीवन की दिशा और दशा तय करने में नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का बड़ा योगदान रहेगा। हालाँकि भारत में महाराणा प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वीराज चौहान जैसे योद्धा पैदा हुए ,मगर नीलकंठ वर्णी का इतिहास सबसे अलग हैं। मात्र 11 वर्ष कि आयु में घर त्याग कर ये भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। यहीं से “नीलकंठ वर्णी की कहानी ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी की कथा ” या फिर “ नीलकंठ वर्णी का जीवन चरित्र” का शुभारम्भ हुआ। नीलकंठ वर्णी कौन थे, स्वामीनारायण का इतिहास परिचय बिंदु परिचय नीलकंठ वर्णी का असली न...

मीराबाई (Meerabai) का जीवन परिचय और कहानी

भक्तिमती मीराबाई ( Meerabai ) भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती हैं । वह बचपन से ही बहुत नटखट और चंचल स्वभाव की थी। उनके पिता की तरह वह बचपन से ही कृष्ण भक्ति में लग गई। राज परिवार में जन्म लेने वाली Meerabai का विवाह मेवाड़ राजवंश में हुआ। विवाह के कुछ समय पश्चात ही इनके पति का देहांत हो गया । पति की मृत्यु के साथ मीराबाई को सती प्रथा के अनुसार अपने पति के साथ आग में जलकर स्वयं को नष्ट करने की सलाह दी गई, लेकिन मीराबाई सती प्रथा (पति की मृत्यु होने पर स्वयं को पति के दाह संस्कार के समय आग के हवाले कर देना) के विरुद्ध थी। वह पूर्णतया कृष्ण भक्ति में लीन हो गई और साधु संतों के साथ रहने लगी। ससुराल वाले उसे विष  देकर मारना चाहते थे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया अंततः Meerabai भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गई। मीराबाई का इतिहास (History of Meerabai) पूरा नाम meerabai full name – मीराबाई राठौड़। मीराबाई जन्म तिथि meerabai date of birth – 1498 ईस्वी। मीराबाई का जन्म स्थान meerabai birth place -कुड़की (जोधपुर ). मीराबाई के पिता का नाम meerabai fathers name – रतन स...