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प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ का इतिहास और जीवन परिचय

प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। “कर”(Tax) के बारे में अच्छी जानकारी होने की वजह से इन्हें वित्तीय सलाहकार (राजस्व विभाग का मुखिया) भी बनाया गया। कोंकण के “चित्तपावन वंश” से संबंध रखने वाले बालाजी विश्वनाथ ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। यह अपनी तीव्र बुद्धि और अनुपम प्रतिभा की वजह से बहुत प्रसिद्ध थे।

इस लेख में हम प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ की जीवनी पढ़ेंगे।

पेशवा बालाजी विश्वनाथ का जीवन परिचय (Peshwa Balaji Vishwanath Bhat History)

पूरा नाम- पेशवा बालाजी विश्वनाथ।

अन्य नाम- बालाजी विश्वनाथ भट्ट।

जन्म- 1662 ईस्वी।

जन्म स्थान- श्रीवर्धन नामक स्थान पर, महाराष्ट्र।

मृत्यु दिनांक और स्थान- 2 अप्रैल 1720 सास्वड, महाराष्ट्र।

पिता का नाम- विश्वनाथ विसाजी भट्ट (देशमुख)।

पत्नी का नाम- राधाबाई।

पुत्र- बाजीराव प्रथम।

उपाधि- प्रथम पेशवा।

धर्म – हिंदू (सनातनी)।

वंश और भाषा- मराठा वंश और मराठी भाषा।

निर्धन परिवार में जन्म लेने वाले Peshwa Balaji Vishwanath बचपन से ही दूरदर्शी प्रवृति के व्यक्ति थे। ये चतुर और तेज़ दिमाग वाले थे। युद्ध कौशल के साथ साथ प्रबंधन और वित्त क्षेत्र में इनका ज्ञान अच्छा था। जब प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ वयस्क हुए तब शाहू जी महाराज मराठा साम्राज्य के छत्रपति थे। उस समय छत्रपति शाहू जी महाराज के सेनापति धनाजी जाधव थे।

खेड़ा के युद्ध में साहू जी को समर्थन देते हुए पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने ताराबाई के सेनापति धनाजी जाधव को साहू की तरफ मिलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।

सन् 1708 ईस्वी की बात है, अभूतपूर्व योग्यता, विश्वास और वफादारी के चलते सेनापति धनाजी जाधव ने बालाजी विश्वनाथ को “कारकून” पद पर नियुक्त किया। कारकून मतलब राजस्व विभाग का मुख्य बाबु बनाया गया, इसकी मुख्य वजह “कर” से संबंधित इनका विशेष ज्ञान और योग्यता थी।

सेनापति धनाजी जाधव की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र चन्द्रसेन जाधव सेनापति बने। चंद्रसेन के साथ ही बालाजी विश्वनाथ को भी बड़ा पद प्रदान किया गया और संयुक्त रूप से इन्हें चंद्रसेन के बराबर पदभार दिया गया।

जैसे- जैसे समय बीतता गया पेशवा बालाजी विश्वनाथ के प्रति राजा और प्रजा का अटूट विश्वास बढ़ता गया। राजनैतिक कौशल,अच्छी प्रबंधन व्यवस्था के साथ- साथ इनमें वो हर गुण मौजूद थे तो एक अच्छे राजा में होते हैं।

मराठा साम्राज्य के सबसे विश्वसनीय लोगों में से एक बालाजी विश्वनाथ को सेनापति चंद्रसेन ने 1712 ईस्वी में, पूरी सेना का संगठनकर्ता घोषित कर दिया। यह इनके लिए बहुत बड़ा सम्मान था। चंद्रसेन का झुकाव ताराबाई की तरफ था। और इसी के चलते छत्रपति शाहूजी महाराज ने चंद्रसेन को सेनापति के पद से हटाकर बालाजी विश्वनाथ को नियुक्त किया।

मौका भुनाना बालाजी विश्वनाथ से अच्छा कोई नहीं जानता था। अब इनको ना सिर्फ सैनिक संगठनकर्ता बल्कि सैनिक शासक का काम भी करने का मौका मिल गया। यही वह समय था जब इन्होंने अपनी छाप छोड़ी और सेना का नेतृत्व करते रहे।

प्रथम पेशवा का पद

छत्रपति शाहू जी महाराज इनकी कार्यप्रणाली से बहुत प्रभावित हुए। छत्रपति शाहू जी महाराज ने बड़ा निर्णय लेते हुए असीम प्रतिभा के धनी बालाजी विश्वनाथ को पेशवा बनाने का फैसला किया। सैन्य संगठनकर्ता के मुखिया से 16 नवंबर 1713 के दिन इनको मराठा साम्राज्य का “प्रथम पेशवा” के पद से सम्मानित किया गया। बालाजी विश्वनाथ के लिए यह एक बहुत बड़ा दिन था।

सेनापति का पद छीन जाने की वजह से धनाजी जाधव का पुत्र चंद्रसेन जाधव बहुत दुखी था। चंद्रसेन अपने जीवन में सबसे बड़ा अपमान इसी घटना को मानता था और उसके मन में बदले की भावना थी।

जैसे-जैसे समय बीतता गया चंद्रसेन और सीमा रक्षक “कान्होजी आंगड़े” का सहारा लेते हुए ताराबाई ने साहू जी महाराज और उनके पेशवा बहिरोपंत पिंगले को कैद कर लिया।

यही वह समय था जब बालाजी विश्वनाथ को अपनी कूटनीति और बुद्धिमता का प्रदर्शन करना था। बालाजी विश्वनाथ की रणनीति और कूटनीति के चलते बिना युद्ध के ही कान्होजी शाहूजी की तरफ़ आ गए।

इस युद्ध में चंद्रसेन पराजित हो गया। यही वह मौका था जब चत्रपति साहूजी महाराज अपने आप को पुनः स्थापित कर पाए। और इसी घटना की बाद साहू जी महाराज ने 16 नवंबर 1713 के दिन प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ को बनाया गया।

मुगलों से संधि और छत्रपति शिवाजी महाराज का स्वराज

मराठों और मुगलों के बीच में काफी समय से युद्ध चला रहा था। छत्रपति शिवाजी के समय से लेकर छत्रपति शाहूजी महाराज तक सभी ने मुगलों का सामना बड़ी ही वीरता के साथ किया और इतना ही नहीं मुगलों को समय-समय पर धूल भी चटाई।

मराठों की वीरता से परेशान होकर मुगलों ने उनके सामने संधि का प्रस्ताव रखा। प्रथम पेशवा बनने के लगभग 6 साल बाद सन 1719 ईस्वी में छत्रपति शाहूजी महाराज के नेतृत्व में मराठा और मुगलों के बीच में एक महत्वपूर्ण संधि हुई।

सैयद बंधुओं की पहल पर यह संधि हुई थी। मराठों की तरफ से इस संधि के मुख्य कर्णधार प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ थे। मराठों और मुगलों के बीच में हुई इस संधि की मुख्य शर्ते निम्नलिखित थी-

[1] छत्रपति शिवाजी महाराज के स्वराज्य में शामिल कुछ राज्यों को मुगल पुनः साहूजी महाराज को लौटा देंगे।

[2] मुगलों के जिन राज्यों को मराठों ने जीत लिया था उनमें हैदराबाद, गोंडवाना, खानदेश,बरार और कर्नाटक के वह मुख्य सेक्टर शामिल थे जिन्हें मराठों ने मुगलों को पराजित करके छीन लिया था, वापस मुगलों के हवाले करने होंगे।

[3] चौथ और सरदेशमुखी नामक करों की वसूली का अधिकार दक्कन में मराठों को होगा। जिसके चलते 15000 जवान सम्राट की सेवा में तत्पर रहेंगे।

[4] छत्रपति शाहूजी महाराज प्रतिवर्ष 10 लाख रुपए का कर मुगलों को दान में देंगे।

[5] पूर्व में मुगल सेना द्वारा कैद किए गए शाहूजी की मां, भाई और परिवार के अन्य लोगों को बंधन मुक्त किया जाएगा।

बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु ( balaji vishwanath death)

सैयद बंधुओं की पहल पर मुगलों और मराठों के बीच हुई संधि मराठी साम्राज्य के लिए पुनः पावर में आने के समान थी। इस संधि को सर “रिचर्ड टेंपल” ने “मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा” करार दिया।

इस संधि ने मराठों को कई शक्तियां प्रदान की। इसी संधि की देन थी कि अब मराठी सीधे तौर पर मुगलों की राजनीति में हस्तक्षेप कर सकते थे।इसी संधि के तहत प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ 15000 सैनिकों के साथ दिल्ली में प्रवेश किया जहां पर मुगलों का कब्ज़ा था। इन मराठी सैनिकों की मदद से सैयद बंधुओं ने फर्रूखसियर को सिंहासन से हटा दिया और इसकी जगह रफीउद्दराजात को सम्राट बनाया। इसने भी इस संधि को स्वीकार कर लिया।

एक सामान्य परिवार से संबंध रखने वाले पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने जिस तरह से 0 से लेकर पेशवा तक का सफर तय किया, यह उनकी अटूट मेहनत, परिश्रम, बुद्धिमता,नेतृत्व और प्रबंधन कला की वजह से ही संभव हो पाया था।
1720 ईस्वी मराठी साम्राज्य के लिए एक ऐसा वर्ष था जिसको कभी नहीं भुलाया जा सकता।

प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु 2 अप्रैल 1720 ईस्वी में हुई थी। मात्र 58 वर्ष की आयु में इन्होंने ऐसी धाक और रुतबा जमाया की मुगलों ने छत्रपति शाहूजी महाराज को, पुनः छत्रपति बनाने के लिए राजी हो गए।साहू जी महाराज का पुनः छत्रपति बनाना यह दर्शाता है कि Peshwa Balaji Vishwanath ने किस तरह की मेहनत की थी।

पेशवा बालाजी विश्वनाथ का पुत्र (Balaji Vishwanath son)

छत्रपति साहूजी महाराज Peshwa Balaji Vishwanath से बहुत ही प्रभावित हुए इनकी मृत्यु के पश्चात साहूजी ने निर्णय लिया कि पेशवा का पद बालाजी विश्वनाथ के वंश के लिए रिजर्व रहेगा।

और यही वजह देगी पेशवा बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के पश्चात इनके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा पद से नवाजा गया। बाजीराव एक वीर पुरुष थे। साथ ही इनमें अदम्य साहस की झलक देखने को मिलती थी। बाजीराव प्रथम को राजनीति की गहरी जानकारी थी।

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