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चिमाजी अप्पा का इतिहास (History Of Chimaji Appa)

श्रीमंत चिमाजी अप्पा बल्लाल भट्ट (Chimaji Appa) बाजीराव पेशवा के छोटे भाई थे। जब पश्चिमी तट पर पुर्तगालियों ने अधिकार जमा लिया था तब चिमाजी अप्पा के नेतृत्व में ही यह क्षेत्र मुक्त हुआ था। इनके जीवन का सबसे बड़ा युद्ध वसई में लड़ा था और इस युद्ध में इनकी जीत हुई।

चिमाजी अप्पा का इतिहास (Chimaji Appa History In Hindi)

  • पूरा नाम- श्रीमंत चिमाजी अप्पा बल्लाल भट्ट।
  • जन्म- 1707 ईस्वी में।
  • मृत्यु- 1740 ईस्वी में।
  • माता का नाम- राधाबाई।
  • पद- पेशवा।
  • पत्नी का नाम- रकमा बाई।
  • बच्चे- सदाशिव राव भाऊ।

प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ के पुत्र होने के साथ-साथ भारत के महान सम्राटों में से एक बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमाजी अप्पा को बचपन से ही युद्ध की कलाएं सीखने का मौका मिला।

इतना ही नहीं यह अपने बड़े भाई बाजीराव पेशवा प्रथम के छोटे से लेकर बड़े कार्यों में मदद करते थे। जहां पर बाजीराव नहीं पहुंच सकते थे वहां पर सेना की एक टुकड़ी का नेतृत्वकर्ता बनाकर चिमाजी अप्पा को भेजा जाता था।

मराठी साम्राज्य के साथ-साथ हिंदुत्व की रक्षा और भारतवर्ष की सुरक्षा हेतु यह सदैव तत्पर रहते थे और हर युद्ध में अनुकूल प्रदर्शन करते थे। बाजीराव इनसे काफी प्रसन्न और प्रभावित भी थे।

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सन 1733 ईस्वी में शंकरबुआ शिंदे के साथ मिलकर चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों से बेलापुर के किले को छीन लिया। सरदार जनकोजीराव शिंदे जो कि रानोजीराव शिंदे के वास्तविक दादा और दत्ताजीराव शिंदे के वास्तविक छोटे भाई थे के साथ मिलकर हमला किया।

साथ में प्रतिज्ञा ली की पुर्तगालियों को सफलतापूर्वक हटा दिया, तो वे पास के ही एक अमृतेश्वर मंदिर में बेल के पत्तों की एक माला रखेंगे, और जीत के बाद किले का नाम बदलकर बेलापुर किला रख दिया जाएगा और  ऐसा ही हुआ।

सन 1736 ईस्वी में चिमाजी अप्पा ने सिद्धियों को पराजित किया।
यह उस समय की बात है जब पुर्तगालियों के बाद धीरे-धीरे भारत में अंग्रेज, डच और फ्रांस के लोग समुद्र मार्ग के रास्ते भारत में अपना प्रभुत्व जमाने के लिए आने लगे थे।

गुजरात के समुद्री तट पर पुर्तगालियों की विशाल सेना डेरा डाले हुए थे जिन्हें पराजित करना मुश्किल था क्योंकि सैनिक अधिक संख्या में थे। वसई किले पर भी पुर्तगालियों का अधिकार था जिससे उनकी शक्ति कई गुना बढ़ गई।

चिमाजी अप्पा मजबूत पुर्तगालियों के खिलाफ लोहा लेने के लिए अपनी छोटी सी सेना के साथ आगे बढ़ गए और उन पर धावा बोल दिया। पुर्तगालियों के खिलाफ लड़ाई के भीषण युग में मराठों की जीत हुई।

28 मार्च 1737 को, राणोजीराव शिंदे और शंकरबुवा शिंदे के नेतृत्व में मराठा सेनाओं ने अर्नला के रणनीतिक द्वीप किले पर कब्जा कर लिया ।1737 में ठाणे और साल्सेट द्वीप को मुक्त कर दिया गया।

नवंबर 1738 में, चिमाजी अप्पा ने दहानू के किले पर कब्जा कर लिया। सन 1739 ईसवी की बात है, बाजीराव पेशवा ने चिमाजी अप्पा को बेसिन से भी पुर्तगालियों को हटाने का आदेश दिया। सब काम शांति से निपट जाए इसके लिए चिमाजी अप्पा ने पुर्तगालियों को पत्र लिखकर संदेश दिया कि बेसिन क्षेत्र को जितना जल्दी हो सके खाली किया जाए।

लेकिन पुर्तगालियों की तरफ से किसी भी पत्र का ठीक से जवाब नहीं दिया गया।
ऐसे में चिमाजी अप्पा के पास युद्ध ही एकमात्र विकल्प था जो कि आसान नहीं था। चिमाजी अप्पा के पास अब मराठा सरदारों को एकत्रित करने की बड़ी जिम्मेदारी भी आ गई ताकि पुर्तगालियों से युद्ध के मैदान में लोहा लिया जा सके।

कान्होजी आंग्रे के पुत्र से Chimaji Appa ने संपर्क किया और कई मराठा सरदारों को एकजुट किया और बेसिन के किले पर डेरा डाल दिया, जिसके चलते सन 1739 ईस्वी में ही पुर्तगालियों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

पुर्तगालियों ने बेसिन को मराठों के हवाले कर दिया। पुर्तगाली ना सिर्फ भारत में अपने व्यापार को बढ़ा रहे थे बल्कि धर्म परिवर्तन पर भी विशेष जोर दे रहे थे।

20 जनवरी 1739 को माहिम को भी अपने कब्जे में ले लिया। फरवरी 1739 चिमाजी अप्पा ने बेचैन किले पर आक्रमण किया। उन्होंने सबसे पहले वरसोवा और धारावी किले पर कब्जा कर लिया। बेसिन के किलो को चारों ओर से घेर लिया गया साथ ही किले के समीप चारों तरफ विस्फोटक सामग्री लगा दी गई।

विस्फोट की वजह से किले की दीवारों में दरारें पड़ गई जैसे ही रणजी राव शिंदे और उनके चचेरे दादा जनाजी राव के पुत्र श्रीनाथ चंगोजी राव ने किले में प्रवेश किया पुर्तगालियों ने आधुनिक हथियारों के साथ उन पर हमला कर दिया।

सेंट सेबेस्टियन का टॉवर एक विस्फोट में ढह गया, और पुर्तगाली का मनोबल गिर गया। सभी प्रतिरोध तुरंत बंद हो गए। 16 मई को पुर्तगाली सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। पुर्तगाली कप्तान केतनो डी सूजा परेरा ने समर्पण पर हस्ताक्षर किए क्योंकि सेना के अधिकांश अधिकारी पहले ही मर चुके थे।

इसके बाद तेजी से चेंगोजीराव शिंदे, केर्गेओ / माहिम के किलों के कब्जे के बाद, 1739 को द्वीप और करंजा के किले को रावोलोजी शिंदे की सेना से पुर्तगाली हार गए।

पुर्तगाली स्रोतों से पता चलता है कि 1737-1740 के दौरान Chimaji Appa के साथ पूरे युद्ध के दौरान, उत्तरी प्रांत की राजधानी बाकायम (वसई के लिए पुर्तगाली नाम) के अलावा, उन्होंने आगे आठ शहरों, चार मुख्य बंदरगाहों, बीस किले, दो गढ़ पहाड़ियों और 340 गांवों को खो दिया। यह नुकसान लगभग पूरे उत्तरी प्रांतों को हुआ।

हिंदुत्व की रक्षा के लिए और पुर्तगालियों के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए मराठों ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी।

बाजीराव पेशवा की खिलाफत

एक समय था जब चिमाजी अप्पा बाजीराव के मुख्य रणनीतिकार माने जाते थे।
जब बाजीराव पेशवा ने बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल की सहायता की और उन्हें मुगलों के खिलाफ जीत दिलाई।

इससे प्रसन्न होकर राजा छत्रसाल ने अपनी पुत्री मस्तानी की शादी बाजीराव पेशवा के साथ कर दी लेकिन क्योंकि उसकी माता मुस्लिम थी और वह भी मुस्लिम धर्म को मानती थी।

इसलिए बाजीराव पेशवा के छोटे भाई चिमाजी अप्पा और इनकी माता राधाबई इनके खिलाफ हो गए।

चिमाजी अप्पा की मृत्यु (how Chimaji Appa died)

सन 1740 ईसवी में चिमाजी अप्पा/Chimaji Appa की मृत्यु हुई थी।

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