Jedhe Karina (जेधे करीना) और जेधे स्टेटमेंट एक ऐसा रिकॉर्ड हैं जिसमें जेधे देशमुख परिवार द्वारा किए गए कार्यों का ब्यौरा मिलता हैं। ये परिवार कारी गाँव (kaari village ) भोर तालुका जो वर्तमान में पुणे के समीप स्थित हैं का रहने वाला था। इस रिकॉर्ड में 1626 से लेकर 1689 तक लगभग 65 वर्षों का लेखा-जोखा मिलता हैं।
इतना ही नहीं मराठा साम्राज्य की प्रारंभिक स्थिति के साथ-साथ यह स्टेटमेंट (Jedhe Karina) यह भी दर्शाता है कि कैसे धीरे-धीरे जेधे देशमुख परिवार समृद्ध और मराठा साम्राज्य के प्रति समर्पित होता गया।
जेधे देशमुख परिवार का अस्तित्व और इतिहास
Jedhe Karina के अनुसार जेधे, खोपदेस, बंदल और नाइक और निम्बालकर मावल के प्रमुख देशमुख थे। इनमें से जेधे (कारी,Kaari) वर्तमान में भोर के “राहिद खोरा” के देशमुख थे। इस क्षेत्र में आधुनिक पुणे जिले के समीप स्थित प्राचीन किलो में से रायेश्वर का किला और रोहिडेश्वर का क़िला शामिल हैं। जो कि पुणे से लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर भोर के दक्षिण में स्थित है।
कारी गांव से संबंध रखने वाले भोर और पुणे के आसपास के क्षेत्रों में राजनीतिक क्षेत्र में अव्वल होने के साथ-साथ, विशेषाधिकार प्राप्त परिवार था। राजनीतिक, सामाजिक और मजबूत आर्थिक स्थिति के चलते इस संपूर्ण क्षेत्र में इन का बोलबाला था।
Jedhe Karina के अनुसार Kanhoji Jedhe को इस परिवार का मुख्य संस्थापक माना जाता है। क्योंकि इनके साथ साथ इनके पुत्र बाजी सरजेराव जेधे ने 17वीं शताब्दी में शिवाजी के साथ मिलकर और मराठा साम्राज्य को अपनी अमूल्य सेवाएं देकर इस परिवार के अस्तित्व को सबके सामने लेकर आए।
अगर अब तक की समस्त ऐतिहासिक घटनाओं का प्रत्यक्ष प्रमाण देखा जाए तो इस परिवार द्वारा सुरक्षित रखे गए रिकॉर्ड जिनमें “Jedhe Karina” और “Jedhe Shakawali” मुख्य हैं।
Jedhe Karina में हैं क्या? (इसमें निम्नलिखित वर्णन मिलता है)
- इस स्टेटमेंट (Jedhe Karina) में 1626 से लेकर 1689 तक का रिकॉर्ड मौजूद है। जो कि मलिक अम्बर की मौत से शुरू होकर 1689 तक संभाजी कि गिरफ्तारी तक का 65 वर्षों का रिकॉर्ड मिलता है। जेधे देशमुख ने इस क्षेत्र में खेती और राजस्व वसूली का कार्य प्रारंभ किया। किलो (Forts) को लेकर निजाम तरह-तरह के आदेश जारी करता रहता था, इस वजह से यहां के जेधे को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- जेधे ने सैनिकों को एकत्रित किया उन्हें स्वराज्य की सुरक्षा के लिए तैयार किया, कई अभियान चलाए साथ ही बड़े बड़े जोखिम लेकर लड़ाइयां लड़ी। इतना ही नहीं जेधे देशमुख परिवार ने राज्य के काम को इतने अच्छे तरीके से किया कि निजाम शाह बहुत खुश हुए और उन्होंने “नाईकजी नाईक” को कारीगांव पारितोषिक के रूप में प्रदान किया।
- उनके पुत्र कान्होजी नाइक जेधे ने सैनिकों और तलवार के दम पर चंद्रराव मोरे और कृष्णजी नाइक बंदल का पुरजोर विरोध किया जो 12 मावलों पर जबरदस्ती अपना आधिपत्य जताते थे। मलिक अंबर के आदेश की पालना करते हुए कान्होजी नाइक जेधे ने रस्सी के सहारे मोहनगढ़ (Fort Kelanja) किले पर चढ़ाई की और अपना आधिपत्य स्थापित किया।
- मलिक अंबर की मृत्यु शाका 1578 (मई 1626) के वैशाख के महीने में हुई थी, इसके कुछ समय बाद यह क्षेत्र आदिल शाह के हिस्से में चला गया।
- 1554 (सितंबर 1632) शाका के भाद्रपद के महीने में शाहजी ने एक नया निज़ामशाही राजकुमार निकाला और अहमदनगर के पास पेमगिरी में उनकी ताजपोशी की।
- जल्द ही (1635 में) शाहजी ने ( Jedhe Karina के अनुसार ) राजकुमार को महुली फोर्ट में ले जाया गया, जो कि आदिल शाह के इशारे पर रणदुल्लाखान और कान्होजी द्वारा घेर लिया गया था। रणदुल्लाखान ने चुपके से आत्मसमर्पण के लिए शाहजी से बातचीत की। कान्होजी की मदद से पुनः शांति स्थापना हो पाई थी।
- कान्होजी द्वारा आदिलशाह से अनुरोध करने पर रणदुल्लाखान की सेवाओं को शाहजी को स्थानांतरित किया गया।
- शाहजी ने उनके पुत्र शिवाजी को शमराजपंत पेशेव (Shamrajpant peshwe), मानकोजी दहातोंडे, बालाजी हरि मजलसी के साथ लिपिकों (Clerks) और घुड़सवार सेना के साथ पुणे भेजा। शिवाजी और अन्य लोगों के लिए घर बनाए गए थे और किले कोंडाना (सिंहगढ़) पर कब्जा कर लिया गया था।
- आदिल शाह ने यह सुना तो वह सन्न रह गया और बहुत क्रोधित हुआ। उसने शाहजी, कान्होजी और दादाजी कृष्ण को जेल में डाल दिया। शांति स्थापना के लिए कोंडाना (सिंहगढ़) किले को पुनः आदिलशाह को सौंपा गया।
- मुक्त होने पर, शाहजी ने कान्होजी को शिवाजी के पास यह कहते हुए भेजा कि मावल के लोग आपका बहुत सम्मान करते हैं। मेरा इरादा आपको शिवाजी की मदद करने के लिए भेजने का है। उसके प्रति निष्ठावान रहो, इस आदेश की पालना करते हुए ’तत्पश्चात कान्होजी ने शपथ ली। उपरोक्त समस्त रिकॉर्ड Jedhe Karina में आज भी सुरक्षित हैं।
यह भी पढ़ें –