History Of Moropant Trimbak Pingle मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले का इतिहास
Moropant Trimbak Pingle, मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले (1620-1683), जिन्हें “मोरोपंत पेशवा” या मोरोपन्त त्रयम्बक पिंगले के नाम से भी जाना जाता है, मराठा साम्राज्य के पेशवा थे, जो छत्रपति शिवाजी महाराज की अष्ट प्रधान परिषद (आठ मंत्रियों की परिषद) में सेवारत थे।
Moropant Trimbak Pingle History और जीवन परिचय-
- पूरा नाम Full name of Moropant Trimbak Pingle– मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले।
- जन्म वर्ष Birth Year– 1620.
- जन्म स्थान birth place– नीमगांव।
- मृत्यु वर्ष Year of Moropant Trimbak Pingle death– 1683.
- मृत्यु स्थान Place of death– प्रतापगढ़, सतारा।
- पिता का नाम Moropant Trimbak Pingle father’s name– त्र्यंबक पिंगले।
- साम्राज्य Empire– मराठा साम्राज्य।
- पद Post– अष्ट प्रधान परिषद में पेशवा।
- बच्चे children’s– नीलकंठ मोरेश्वर पिंगले (Nilakanth Moreshvar pingale और बहिरोजी पिंगले (Bahiroji Pingale).
- धर्म religion– हिंदू, सनातन।
मराठा साम्राज्य में एक से बढ़कर एक हिम्मतवाले, वीर, शौर्याशाली, तेज़ और शक्तिशाली योद्धाओं का समय समय पर जन्म हुआ हैं। जिनके इतिहास और वीर गाथा का शब्दों में वर्णन करना मुमकिन नहीं है।
मराठा साम्राज्य ने ऐसे कई वीर योद्धाओं को जन्म दिया जो देश की आन-बान और शान के लिए मर मिटे। 1620 ईस्वी में एक ऐसे ही वीर पुरुष Moropant Trimbak Pingle, (मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले) का जन्म हुआ जिन्होंने मराठा साम्राज्य के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।इनके परिवार ने कई वर्षों तक मराठा साम्राज्य की सेवा की।
ऐसे वीर Moropant Trimbak Pingle, मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले का जन्म 1620 निमगाँव (जो कि महाराष्ट्र में स्थित है) में देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इस परिवार ने पीढ़ी दर पीढ़ी मराठा साम्राज्य की सेवा की।
मोरोपंत मराठा साम्राज्य की स्थापना और विस्तार करने के लिए ये छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ शामिल हो गए।
Moropant Trimbak Pingle उन योद्धाओं में से एक थे जिन्होंने बीजापुर के आदिल शाह की सेनाओं के खिलाफ शिवाजी की 1659 की लड़ाई में भाग लिया था, जिसने तुरंत बाद आदिल शाह के जनरल अफजलखान की जवाली में मौत हो गई थी। इस युद्ध में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ त्र्यंबकेश्वर किले (Trimbakeshwar fort) और वाणी-डिंडोरी (wani- Dindori) की लड़ाई में भी भाग लिया था। उन्होंने 1664 में सूरत में शिवाजी के साथ मराठी सेना में शामिल हुए और इस युद्ध का आगाज़ करते हुए विजय पताका फहराई।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज आगरा से भागने के बाद मथुरा में मोरोपंत के रिश्तेदारों (Relative of Moropant Trimbak Pingle) के साथ रहे।
मोरोपंत ने छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में ध्वनि राजस्व प्रशासन की शुरुआत की, और रणनीतिक किलों के बचाव और रखरखाव से संबंधित संसाधन नियोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इन्होंने कई किलों का जीणोद्धार करवाया और कई किलों की मरम्मत कार्य में प्रमुखता से कार्य किया।
मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले प्रतापगढ़ के निर्माण और प्रशासन के लिए भी जिम्मेदार माना जाता हैं। शिवाजी की मृत्यु के समय, मोरोपंत पिंगले नासिक जिले में सालहर-मूलेर किले (Salher-Mulher Fort) के सुधार हेतु मुख्य पर्यवेक्षक (supervisor) के रूप में काम कर रहे थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यू के पश्चात् उनके उत्तराधिकारी संभाजी के सानिध्य में, उन्होंने 1681 में बुरहानपुर की लड़ाई में भी भाग लिया, इस युद्ध में मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले ने अदम्य साहस का परिचय दिया। मराठों की जीत में इनका अनुभव काफी काम आया।
मोरोपंत त्र्यंबक पिंगले की मृत्यु –
1683 ईस्वी में प्रतापगढ़ (सतारा) में इन्होंने अन्तिम सांस ली। इनकी मृत्यु (moropant pingle death) के पश्चात कई वर्षों तक इस परिवार ने मराठों के लिए काम किया।
इनके बाद इनके पद पर इनके बड़े पुत्र नीलकंठ मोरेश्वर पिंगले आसीन हुए।
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