ramchandra pant amatya information जानने के लिए उनके इतिहास को जानना जरुरी हैं। रामचंद्र नीलकंठ बावडेकर (Ramchandra Pant Amatya) (1650–1716), जिन्हें रामचंद्र पंत अमात्य के नाम से भी जाना जाता है।
रामचंद्र पंत अमात्य ने अष्ट प्रधान परिषद में वित्त मंत्री (अमात्य) से लेकर छत्रपति शिवाजी को 1674 से 1680 तक अपनी सेवाएं प्रदान की।
इसके बाद उन्होंने चार सम्राटों, संभाजी, राजाराम, शिवाजी द्वितीय और संभाजी II के लिए इंपीरियल रीजेंट (संरक्षक या देख-भाल करने वाला) के रूप में सेवा की।
रामचंद्र पंत अमात्य ने अजनापत्र (Adnyapatra or ajnapatra), नागरिक और सैन्य प्रशासन का एक प्रसिद्ध किताब लिखी , इतना ही नहीं मराठा साम्राज्य के सबसे महान नागरिक प्रशासकों, राजनयिकों और सैन्य रणनीतिकारों में से एक के रूप में प्रसिद्ध मिली।
Ramchandra Pant Amatya Bavdekar History और रामचंद्र पंत अमात्य का इतिहास-
- पुरा नाम Full name- रामचंद्र नीलकंठ बावडेकर (ramchandra pant amatya bavdekar).
- जन्म वर्ष Birth Year- 1650 ईस्वी।
- जन्म स्थान Birth place- कोलवान, जिला पुणे महाराष्ट्र।
- पिता का नाम Ramchandra Pant Amatya Father’s name- नीलकंठ सोनदेव बहुटकर (Neelkanth sondeo Bahutkar aur Nilo sondeo).
- मृत्यु वर्ष death year- 1716 ईस्वी।
- मृत्यु स्थान death place- पन्हाला, कोल्हापुर ज़िला, महाराष्ट्र।
- पत्नि का नाम Ramchandra Pant Amatya wife’s name- जानकीबाई।
- भाई Brother – नारायण।
- रामचंद्र पंचम आज के द्वारा लिखित पुस्तक- राजनीति ( अदन्यापत्र Adnyapatra).
रामचंद्र पंत (ramchandra pant amatya information ) का जन्म लगभग 1650 में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे नीलकंठ सोंदेव बहुतकर (जो निलो सोंदेव के नाम से अधिक लोकप्रिय थे) के सबसे छोटे पुत्र थे, रामचंद्र पंत ने शिवाजी के दरबार में स्थानीय राजस्व संग्रह पद (कुलकर्णी) से मंत्री पद तक का सफ़र तय किया।
उनका परिवार कोलवन गाँव (कल्याण भिवंडी के पास) से आया था। रामचंद्र पंत (ramchandra pant amatya bavdekar) के दादा “सोनोपंत” और चाचा “अबाजी सोंदेव” शिवाजी के करीबी थे। बहुतकर परिवार, “समर्थ रामदास” के साथ निकटता से जुड़ा हुआ था, समर्थ रामदास को शिवाजी का आध्यात्मिकक गुरु माना जाता हैै, जिन्होंने सोंदेव के घर जन्म लेने वाले नवजात बच्चे का नाम रामचंद्र रखा था।
रामचंद्र पंत अमात्य (ramchandra pant amatya bavdekar) का नामकरण “छत्रपति शिवाजी महाराज” के गुरु “समर्थ रामदास” द्वारा किया गया था।
1672 से पहले, रामचंद्र पंत शिवाजी के प्रशासन में लिपिक (Clerk) पद पर कार्यरत थे। 1672 में, उन्हें और उनके बड़े भाई नारायण दोनों को शिवाजी द्वारा राजस्व मंत्री (मुजुमदार) के पद पर पदोन्नत किया गया था।
1674 में, राज्याभिषेक समारोह में, मुजुमदार के पद का नाम बदलकर “अमात्य” रखा गया और रामचंद्र पंत को यह उपाधि प्रदान की गई।
मृत्यु के समय छत्रपति शिवाजी ने उन्हें मराठा साम्राज्य के छह स्तंभों में से एक बताया, जो मुश्किल समय में राज्य बचा सकते हैं।
जब छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई तब रामचंद्र पंथ अमात्य को मराठा साम्राज्य के कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करने का मौका मिला, क्योंकि संभाजी महाराज उस समय छत्रपति बने, जब उनके पास अनुभव की कमी थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ काम कर चुके रामचंद्र पंथ अमात्य को सभी कार्यों की अच्छी जानकारी थी।
1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद, संभाजी मराठा साम्राज्य के शासक बन गए। अर्थात् छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात् संभाजी महाराज को मराठा साम्राज्य का अगला छत्रपति बनाया गया।
रामचंद्रपंत अमात्य प्रशासन के साथ विभिन्न पदों पर बने रहे। अन्य कर्तव्यों में, रामचंद्र पंत को औरंगज़ेब के विद्रोही पुत्र राजकुमार अकबर के पास बातचीत के लिए भेजा गया और 1685 में, संभाजी ने उन्हें कुछ संवेदनशील बातचीत के लिए विजापुर (vijapur ) में एक दूत के रूप में तैनात किया।
विभिन्न छत्रपतियों के अधीन रामचंद्र पंत अमात्य का कार्य-
रामचंद्रपंत अमात्य (Ramchandra Pant Amatya) मराठा साम्राज्य के एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने मराठा साम्राज्य के 5 छत्रपतियों के अधीन कार्य किया और अपने पूरे जीवन को मराठा साम्राज्य के विस्तार और सेवा में समर्पित कर दिया।
मराठा साम्राज्य की मुश्किल घड़ियों में रामचंद्र पंत अपने विशिष्ट ज्ञान, पद के प्रति समर्पण, मराठा साम्राज्य और हिंदुत्व को सुरक्षित रखने के लिए बल प्रयोग करने से भी नहीं चूकते थे।
पहली बार रामचद्र पंत को मराठा साम्राज्य की सेवा करने का मौका छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा प्रदान किया गया। इस समय मराठा साम्राज्य के अष्ट प्रधानों में सबसे कम आयु के प्रधान राम चंद्र पंत अमात्य थे।
Ramchandra Pant Amatya के पूर्वजों का स्वराज्य की स्थापना से पहले ही भोंसले परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से पहले इनके पिता शिवाजी द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लेते थे। रामचद्र पंत ने अपने पिता की परंपरा को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया और इतिहास में इस परिवार का नाम रोशन किया। स्वराज्य की रक्षा के लिए रामचंद्र पंत आगे आए और प्रारंभ से लेकर अंत तक उन्होंने मोर्चा संभाला, इसी वजह से उन्हें इतिहास में हमेशा याद किया जाता है।
रामचंद्रपंत अमात्य के प्रयासों से प्रभावित होकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने अष्टप्रधान मंत्रिपरिषद में शामिल किया। इसी को देखते हुए कहा जा सकता है कि रामचंद्र पंत विशिष्ट गुणों, योग्यता, कुशलता और राजनीतिक गुणों से भरपूर व्यक्तित्व वाले थे।
रामचंद्रपंत अमात्य जब मात्र 22 वर्ष के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके पिता की मृत्यु के पश्चात सन 1662 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने उनके पिता नीलकंठ सोंदेव की अमानत के रूप में उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी।
बाखारकर ( Bakharkars) के अनुसार उन चुनिंदा लोगों में से थे, जो रायगढ़ में मृत्यु शैया पर पड़े छत्रपति शिवाजी महाराज के पास खड़े थे। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अंतिम समय में रामचंद्र पंत अमात्य का नाम लिया और कहा कि यह स्वराज्य की रक्षा करने में सक्षम है।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात भी रामचंद्र पंत (Ramchandra Pant Amatya) अमात्य ने छत्रपति संभाजी, छत्रपति राजाराम, महारानी ताराबाई और संभाजी राजे जोकि कोल्हापुर के पहले शासक भी थे के कार्यकाल में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे और पूर्ण समर्पण भाव के साथ मराठा साम्राज्य के लिए कार्य किया।
शिवाजी महाराज के कार्यकाल से लेकर संभाजी राजे के कार्यकाल तक रामचंद्र अमात्य एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो समर्पित रूप से सिहासन की सेवा करने में विश्वास करते थे।
रामचंद्रपंत अमात्य ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम राजनीति (अदन्यापत्र Adnyapatra) था। रामचंद्र पंत कि यह पुस्तक छत्रपतियों और हिंदवी स्वराज्य के लिए उनकी सेवा और समर्पण को दर्शाती है और इसे इसका प्रमाण भी माना जा सकता है।
स्वतंत्रता के लिए रामचंद्र पंत द्वारा लड़ी गई लड़ाई-
छत्रपति संभाजी महाराज का दुर्भाग्यपूर्ण निधन हो गया। ऐसे समय में मराठा साम्राज्य को बहुत बड़ी क्षति हुई और मराठा साम्राज्य संकट में आ गया।
मौके का फायदा उठाकर औरंगजेब ने मराठों के कई किलो को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इससे पहले औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य को खत्म करने और मराठों को हराने के लिए संकल्प लिया हुआ था, इसी संकल्प को ध्यान में रखते हुए उसने विशाल सेना के साथ मराठों पर आक्रमण किए।
कमजोर पड़ चुके मराठा साम्राज्य में उम्मीद की किरण बनकर रामचंद्र पंत अमात्य आगे आए और उन्होंने संताजी घोरपड़े, धनजी जाधव, परशुराम पंत के साथ मिलकर इस स्वतंत्रता संग्राम में मुगलों को धूल चटाने की ठान ली।
गिंगी में रह रहे राजाराम महाराज 1697 पुनः महाराष्ट्र लौट आए। यह भी मराठा साम्राज्य के लिए उम्मीद की किरण थे, लेकिन 3 वर्ष पश्चात सन 1700 एसवी में सिंहगढ़ किले में राजाराम महाराज की मृत्यु हो गई साम्राज्य फिर से संकट के बादल मंडराने लगे।
मराठा साम्राज्य के इतिहास में यह बहुत ही कठिन समय था। ऐसे समय में सभी मराठा सरदारों को एकजुट रहकर मुगलों का सामना करना था और यह कार्य रामचंद्र पंत ने बहुत ही अच्छी तरीके से किया।
सन 1716 से लेकर 1707 तक निरंतर 7 वर्षों तक मराठी सैनिक औरंगजेब के साथ लड़ाई लड़ते रहे। राजाराम महाराज की मौत के बाद औरंगजेब को लगा कि अब मराठा साम्राज्य में कोई ताकतवर राजा नहीं बचा है इसका फायदा उसे मिल सकता है।
लेकिन फिर मराठी सरदारों जिनमें Ramchandra Pant Amatya, संताजी के अलावा धनजी जाधव और परशुराम पंत प्रतिनिधि ने मिलकर मुगलों की विशाल सेना के दांत खट्टे कर दिए।
सन 1707 में औरंगजेब ने हार मान ली और अहमदनगर चला गया, जहां पर उसकी मौत हो गई। हालांकि यह 7 वर्ष मराठों के लिए बहुत ही कठिन और संघर्षपूर्ण रहे जिनमें कई तरह की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा।
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मराठा साम्राज्य में आंतरिक कलह उत्पन्न हुआ क्योंकि महारानी ताराबाई उसके पुत्र शिवाजी द्वितीय को मराठा सिंहासन पर बिठाना चाहती थी लेकिन रामचंद्र पंत अमात्य चाहते थे कि राजकुमार साहू लौट आए और उन्हें मराठा साम्राज्य का सरदार घोषित किया जाए इसी बात को लेकर दोनों में ठन गई।
यह भी पढ़ें – Parashuram Pant Pratinidhi परशुराम पंत प्रतिनिधि का इतिहास।
रामचंद्र अमात्य का स्टेटमेंट Ramchandra Pant Amatya statement-
किसी भी इतिहास को पढ़ने या उसके बारे में जानने से पहले उसके पक्ष में मौजूद साक्ष्य की बड़ी भूमिका होती है।
पूर्व इतिहासकारों के कई ऐसे लेख मिलते हैं जिनमें रामचंद्रपंत अमात्य का जिक्र किया गया है। रामचंद्र पंत अमात्य एक राजनेता होने के साथ-साथ एक महान योद्धा भी थे, उन्होंने कई युद्धों में मराठा सेना का नेतृत्व किया।
मुगल इतिहासकारों का मानना है कि 1694 में औरंगजेब के पोते ने पन्हाला पर हमला किया था। इसका जवाब देने के लिए रामचंद्र पंत ने पृथ्वीनाथ के साथ मिलकर मुगल सेना पर जवाबी हमला किया जिसमें मुगल सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया गया।
एक फारसी इतिहासकार का भी कहना है कि रामचंद्रपंत ( ramchandra pant amatya )1699 कोंकण युद्ध में सेना के प्रमुख के तौर पर कार्य कर रहे थे और उन्होंने अपनी पूरी ताकत के साथ विपक्षी सेना पर हमला किया।एक पुर्तगाली इतिहासकार किल्डार ने उल्लेख किया है कि 22 फरवरी 1701 को रामचंद्र पंत ने 20000 मराठों के साथ डांडिया के सिद्धि याकूब खान पर हमला किया था और उन्हें पराजित कर दिया।
रामचंद्र पंत अमात्य द्वारा लिखित पुस्तक-
रामचंद्र पंत अमात्य ( book written by Ramchandra Pant Amatya ) मराठा इतिहास की राजनीति पर पुस्तक लिखने वाले प्रथम लेखक थे। इनके द्वारा लिखित पुस्तक का नाम अदन्या पत्र Adnyapatra था।
रामचंद्र पंत अमात्य (ramchandra pant amatya) द्वारा लिखित इस पुस्तक में निम्नलिखित विषय वस्तु को शामिल किया गया है-
(1) राजा और शासन के कर्तव्य।
(2) राज्य के लिए राजस्व कितना महत्वपूर्ण है.
(3) सेना का महत्व और सभी क्षेत्रों में विद्वानों और विशेषज्ञों का महत्व।
(4 ) प्रधानों की शिक्षाएक प्रधान का महत्व अर्थात प्रधानमंत्री और उनके कर्तव्य।
(5) ब्रिटिश फ्रेंच आदि से संबंधित विदेश नीतियां।
(6) न्यायपालिका उनके बारे में नीतिकिलों का महत्व।
(7) जिनके पास नौसेना है वह समुद्र पर शासन करते हैं.
(8) प्राकृतिक संसाधनों के बारे में नीति।
इन महत्वपूर्ण विषयों को शामिल करने वाली इस ऐतिहासिक पुस्तक की तुलना कौटिल्य के अर्थशास्त्र से की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह पुस्तक छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन सिद्धांतों और तरीकों को रेखांकित करती है।
इस पुस्तक को लिखे हुए 300 वर्षों से भी अधिक का समय बीत चुका है लेकिन आज के समय में भी यह प्रासंगिक हैं। किसी भी राज्य के प्रशासन में या फिर किसी व्यक्ति विशेष के मार्गदर्शन के लिए यह बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है।
1716 ईस्वी में रामचंद्रपंत का 66 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके जीवन को मराठा साम्राज्य के प्रति समर्पित और मुगल आक्रमणकारियों के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए पन्हाला के किले में एक स्मारक भी बनाया गया है, उनके उत्तराधिकारी आज भी गगनबावड़ा कोर्ट के पास रहते हैं।
गगनबावड़ा क़िला ( Gaganbavda Fort )-
गगनबावड़ा किला राजा भोज द्वारा लगभग 1178 से 1209 ईसवी में बनाया गया था।
समुद्र तल से किले की ऊंचाई लगभग 2244 फीट है, किले की कई इमारतें ध्वस्त हो गई।
गगनबावड़ा किला वर्ष 1660 में मराठों के नियंत्रण में आया। यह Ramchandra Pant Amatya के पिता नीलकंठ सोनदेव बहुटकर को दिया गया था
कुछ समय के लिए इसे आदिलशाह ने कब्जा लिया लेकिन 1689 में मराठों के पास आ गया।
मुगलों द्वारा संभाजी को पकड़े जाने के बाद यह किला मराठों के हाथ से भी निकल गया लेकिन 1700 में रामचंद्र पंत अमात्य ने इसे पुनः अपने कब्जे में ले लिया और आजाद करवाया।