History Of Dhaula Gujari || धौला गुजरी का इतिहास ||
भारतीय इतिहास में धौला गुजरी (Dhaula Gujari) जैसी हजारों वीरांगनाओं ने जन्म लिया लेकिन इन्हें इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया।
स्वतंत्र भारत में यही विडंबना रही कि शुरू से ही शिक्षा मंत्री ऐसे रहे जिन्होंने भारत की तुलना में विदेशी आक्रांताओं को ज्यादा तवज्जों दी।
धौला गुजरी का इतिहास (dhaula gurjari) पढ़कर आपको गर्व होगा। यह न सिर्फ अभूतपूर्व वीरांगना थी जबकि आज के समय में महिला समाज के लिए प्रेरक और आदर्श भी है।
भारतीय संस्कृति हमेशा से ही पुरुष प्रधान रही हैं लेकिन इस भूमि पर रानी लक्ष्मीबाई, काशीबाई , अहिल्याबाई होलकर, रानी पद्मावती जैसी वीर और साहसी महिलाओं ने जन्म लिया। ये अपने कामों से इतिहास में सदा के लिए अमर हो गई।
इसी लिस्ट में एक और नाम आता हैं वीर धौला गुजरी (dhaula gurjari) लेकिन क्या आप जानते हैं कौन थी धौला गुजरी? अगर नहीं तो चलिए पढ़ते हैं यह लेख-
धौला गुजरी का इतिहास (Dhaula Gujari History or Dhaula Gujari ka Itihas)
परिचय बिंदु | परिचय |
नाम | धौला गुजरी (dhaula gujari) |
जन्म स्थान | गांव रायपुर (जेवर) |
लंबाई Height | 6 फीट |
गौत्र | बिधुरी |
पति का नाम | बुंठा छावड़ी गुजर |
किसने सम्मनित किया? | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
धौला गुजरी का इतिहास (dhaula gujari history) जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि धौला गुजरी कौन थी? (Dhaula Gujari kaun thi?). भारतीय इतिहास में सन् 1947 वर्ष बहुत महत्वपूर्ण रहा।
इस साल भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिली थी। भारत आजाद हो गया लेकिन हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच जगह – जगह दंगे फसाद हो रहे थे। अपनी संस्कृति के अनुसार हिंदू समाज ने कभी भी युद्ध या लड़ाई की पहल नहीं की लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों की वजह से कठोर निर्णय लेने पड़े। हिंदुस्तान के मूल निवासी आगे चलकर ना कभी लड़े और ना ही कभी पीछे हटे।
अब इस आर्टिकल के माध्यम से जानते हैं कि धौला गुजरी कौन थी? (dhaula gurjari ) एक ऐसी वीर, साहसी और निडर वीरांगना जिसने इस दौरान भड़के हिंदू – मुस्लिम दंगो में कमजोर पड़ते हिंदू समुदाय में गजब का साहस और ऊर्जा भर दी थी। धौला गुजरी इस दंगे में ख़ुद भाला लेकर कुद पड़ी। दोनों तरफ़ से खूनी युद्ध चल रहा था।
पूरे जोश और जुनून के साथ युद्ध मैदान में डटकर दंगाईयों के दांत खट्टे करने वाली वीरांगना धौला गुजरी के दाई ओर कंधे में गोली लग गई। लेकिन अदम्य साहस से लबालब और अडिग धौला गुजरी ने हार नहीं मानी।
इस दंगे का अंत यह हुआ कि अंततः मुस्लिम दंगाई मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए। यह देखकर हजारों लोगों में नया जोश भर गया।
1947 में ना सिर्फ भारत आजाद हुआ बल्कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन भी हुआ। यही मुख्य वजह थी कि देश में जगह जगह दंगे हो रहे थे। अकेले पुरुष कितना लड़ पाते, भारत में जन्म लेने वाले सिर्फ पुरुष ही नहीं वीर नहीं होते हैं अपितु स्त्रियां भी साक्षात काली का रूप मानी जाती हैं।
वर्ष 1947 दशहरे के जस्ट बाद एकदाशी के दिन पलवल की पूर्व दिशा में स्थित “गुलावद” नामक गांव में हिंदू – मुस्लिम दंगे भड़क गए। एक पूर्वनियोजित योजना के तहत् मुस्लिम आक्रमणकारियों ने गुलावद गांव पर आक्रमण कर दिया। गांव वालों पर पत्थर, डंडो और बंदूकों से हमला हो गया।
एकाएक गांव वालों को कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जल्द ही परिस्थिति को भांप लिया। इस समय धौला गुजरी (Dhaula Gujari) अपने घर में घर का काम कर रही थी। इस गांव में हिंदू संख्या ज्यादा थी लेकिन हथियारों की कमी और इस तरह के दंगे का पूर्वानुमान नहीं था।
कुछ ही समय में मारकाट और चीखना – चिल्लाना हो रहा था।जब धौला गुजरी को यह अंदेशा हुआ तो वह भागकर बाहर आई। उसने देखा कि कई ग्रामीण घायल होकर पड़े हैं।धौला गुजरी ने पानी का घड़ा लिया और घायलों को पानी पिलाया। मुस्लिम दंगाई यह देखकर धौला गुजरी को भी समाप्त करना चाहते थे।
अगर वास्तविक बात कि जाए तो गांव वालों में अफरा तफरी मची हुई थी वो भाग रहे थे। धौला गुजरी को लगा कि अगर ऐसे ही होता रहा तो कुछ समय में सभी को मौत के घाट उतार दिया जाएगा।
अब समय था जब खुद वीर धौला गुजरी युद्ध मैदान में कुद पड़ी। उसने परिस्थिति को भांप कर छत पर चढ़ गई। मुस्लिम बंदूकधारियों के मुखिया पर इतने जोर से धौला गुजरी ने ईंट से प्रहार किया कि वह सरदार वहीं पर गिर पड़ा और भगवान को प्यारा हो गया।
जैसे ही वह हमलावर 72 हूरों के पास पहुंचा, साथी दंगाई डर गए।हिंदुओं को ललकारा, पुकारा और नया जोश भरा साथ ही खुद के साथ साथ मातृभूमि की रक्षा का संकल्प दिलाया।
एक स्त्री के मुंह से निकली बातों ने हिंदुओं में नई ऊर्जा का संचार कर दिया।
अब बारी थी दंगाईयों को खदेड़ने और गांव से बाहर निकालने की। सभी लोगों से लाठी, डंडों और पत्थरों से जवाबी हमले शुरू कर दिए। खुद धौला गुजरी (Dhaula Gujari) अपने हाथ में भाला लिए हुए लड़ रही थी।
नए साहस को पाकर गांव वालों भूखे शेरों की तरह उन दंगाईयों पर टूट पड़े। फिर क्या था माहौल एक दम उलट गया। अब दंगाई वहां से भागने का रास्ता तलाशने में लग गए।धौला गुजरी के अदम्य साहस की वजह से पूरा गांव बच गया।
लेकिन एक गोली धौला गुजरी के कंधे पर लगी थी जिसका उपचार हो गया।धौला गुजरी ने खुद के साथ साथ पूरे गांव वालों को बचा लिया।इस साहस और वीरता का पुरुस्कार भी धौला गुजरी को मिला। सरदार वल्लभ भाई पटेल और तत्कालीन भारतीय सरकार ने भी धौला गुजरी को सम्मानित किया था।
सम्मान और पुरस्कार
सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा सम्मान
स्वतंत्रता के पश्चात एक बार लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का “गुलावद” गांव की तरफ़ आना हुआ। उन्होंने भी धौला गुजरी (Dhaula Gujari) की वीरता के बारें में सुना था। धौला गुजरी से मिलना भी चाहते थे और उनको सम्मानित भी करना चाहते थे। जब सरदार वल्लभ भाई पटेल गुलावद गांव पहुंचे तो सैंकड़ों की संख्या में लोग वहां एकत्रित हो गए। लेकिन सरदार पटेल ने लोगों से कहा कि वह धौला गुजरी से मिलना चाहते हैं।
फिर क्या था रथ में बैठाकर पूरे गांव में जुलूस निकाला और और पुष्प वर्षा द्वारा उनका सम्मान किया गया।वास्तव में एक वीरांगना के लिए यह बहुत बड़ी बात थी।इस दौरान सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने भाषण में कहा कि
” जिस क्षेत्र में धौला गुजरी (Dhaula Gujari) जैसी वीर, साहसी और निडर महिला रहती हैं वहां के लोगों को मुझसे सहायता मांगना कतई शोभा नहीं देता हैं। आप आपस में लड़ाई नहीं करें , बहादुरी के साथ रहे। मैं अपने कर्तव्य से भली भांति परिचित हूं। जो मुसलमान मुस्लिम लीग को वोट करते हैंं और पाकिस्तान जाने कि मंशा है वो जा सकते हैं। जिनको यहां रहना है वो शांति के साथ रहे। जो लोग दंगे या गुंडागर्दी का सहारा लेंगे उनको सही सबक सिखाया जाएगा। कोई भी किसी भी तरह के भ्रम में ना रहे।”
पंजाब सरकार द्वारा सम्मान
पंजाब सरकार भी धौला गुजरी (Dhaula Gujari) को उनकी वीरता और साहस के लिए सम्मान देना चाहती थी। यहीं वजह रही कि पंजाब सरकार ने पुरुस्कार स्वरूप धौला गुजरी को ₹1000 की राशि भेंट की। आज से लगभग 75 साल पहले यह बहुत बड़ी रकम थी।
इतिहास के पन्नों में धौला गुजरी (Dhaula Gujari) को हमेशा याद किया जाएगा इतना ही नहीं आने पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का काम करेगी।
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