इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi)- एक राष्ट्रभक्त।

इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) के पूर्वज भील थे या फिर भील जनजाति से संबंध रखते थे। इब्राहिम खान गर्दी के बाल्यकाल के बारे में ज्यादा इतिहास पढ़ने को नहीं मिलता है लेकिन इन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत 18 वीं शताब्दी में “दखानी मुस्लिम जनरल” से की थी।

इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) का इतिहास या इब्राहिम खान गर्दी स्टोरी इन हिंदी –

  • नाम – तोपची इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi).
  • पद – तोपची या तोपखान प्रमुख.
  • मृत्यु वर्ष brahim Khan Gardi Death – 14 जनवरी,1761.
  • मृत्यु स्थान – पानीपत ( भारत).

हैदराबाद के आसपास के क्षेत्र में मुख्य रूप से भील, लामन बंजारा, पारधी, महादेव कोली, मासन जोगी और कुछ मराठी जातियां मुख्य है। इब्राहिम खान गर्दी का जन्म भी इन्हीं जनजातियों में हुआ था।मराठवाड़ा के समीप गर्दी समुदाय बहुतायत से पाए जाते हैं।

इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) ऊंचे लंबे कद के थे देखने में वीर योद्धा की भांति प्रतीत होते थे और उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि जैसे यह व्यक्ति इतिहास बनाने के लिए पैदा हुआ हो।
इब्राहिम खान गर्दी का इतिहास यह हैं कि उनमें शुरू से ही अपने देश और राज्य के प्रति विशेष प्रेम और समर्पण था। देशभक्ति का नमूना उन्होंने पानीपत के तीसरे युद्ध में भी “अहमद शाह अब्दाली” के सामने प्रस्तुत किया था।

इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) के प्रारंभिक जीवन की बात की जाए तो वह हैदराबाद के निजाम के यहां पर नौकरी करते थे। हैदराबाद के निजाम का रवैया इब्राहिम खान गर्दी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने हैदराबाद के निजाम की नौकरी छोड़ दी।

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निजाम की नौकरी छोड़ बने मराठी सैनिक –

राष्ट्र के प्रति प्रेम, अदम्य साहस और अभूतपूर्व युद्ध कौशल के चलते मराठा साम्राज्य के पेशवा बालाजी बाजीराव और सदाशिवराव भाऊ ने उन्हें मराठों के साथ शामिल होने का प्रस्ताव भेजा। आसपास के क्षेत्रों में बड़े पदों पर आसीन कई मुस्लिम शासकों ने उनका विरोध किया लेकिन उन्होंने राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए मराठों का साथ दिया।

पेशवा बालाजी बाजीराव ने उन्हें मराठी सेना में महत्वपूर्ण पद दिया और मराठी सेना के तोपची बनाए गए अर्थात तोपखाने के प्रमुख। इब्राहिम खान गर्दी ने भी इस पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ कार्य किया।

यही वजह रही कि आज सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी इब्राहिम खान गर्दी को एक सच्चे देशभक्त के रूप में याद किया जाता है।

पानीपत का तीसरा युद्ध और इब्राहिम खान गर्दी Third battle of panipat and Ibrahim Khan Gardi –

अहमद शाह अब्दाली को इब्राहिम खान (Ibrahim Khan Gardi) के नाम से घृणा थी। इसकी क्या वजह रही यह इस आर्टिकल को आगे बढ़ने के बाद आपको पता चल जाएगी। पानीपत का तीसरा युद्ध 1761 ईस्वी में अहमद शाह अब्दाली और मराठी सेना के बीच लड़ा गया था।

इस युद्ध में इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) के पास संपूर्ण तोपों की देखरेख की जिम्मेदारी थी। इनके नेतृत्व में ही तोपों का संचालन हो रहा था। फ्रैंच तोपखानों से मिला अनुभव काम आया, बहुत ही बहादुरी के साथ इब्राहिम खान गर्दी युद्ध लड़े।

लेकिन संख्या बल अधिक होने की वजह से पानीपत के तीसरे युद्ध में अफगानी सेना जीत गई और मराठों की पराजय हुई। इस युद्ध में इब्राहिम खान गर्दी बुरी तरह से घायल हो गए। घायल इब्राहिम खान गर्दी को शुजाउद्दौला के टीले में कैदी बनाकर रखा गया।

इब्राहिम खान गर्दी को सैनिक शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली के सामने पेश किया। अब्दुल शाह अब्दाली ने उसे अपनी मजहब का हवाला देते हुए कहा कि, तुम मुसलमान होते हुए भी मराठों के लिए लड़े। खैर कोई नहीं इस गुनाह के लिए तुम्हें तुम्हें माफ करता हूं।

तब इब्राहिम खान गर्दी ने अब्दुल शाह अब्दाली को जवाब दिया कि तुम्हें पता नहीं कि मुसलमान किसे कहते हैं?  एक सच्चा मुसलमान कभी भी अपने देश के विरुद्ध नहीं जा सकता है और बेगुनाहों की हत्या नहीं करता है।

इब्राहिम खान गर्दी ने मरते समय कहा कि तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो। इब्राहिम की पुष्टि हुई आंखों के सामने अहमद शाह अब्दाली बहुत गुस्से में था। उसने कहा कि मेरी तलवार बिजली बनकर तुम्हारी गर्दन पर गिरे उससे पहले मेरी नजरों के सामने से हट जाओ।

इब्राहिम खान गर्दी की मृत्यु कैसे हुई ( Ibrahim Khan Gardi Death)-

बुरी तरह से घायल हुए इब्राहिम खान गर्दी की आंखें बुझ रही थी। धीरे-धीरे इब्राहिम खान गर्दी की आंखों में अंधेरा छाने लगा। 14 जनवरी 1761 के दिन इब्राहिम खान गर्दी ने मरते हुए कहा कि “इंसानियत के लिए शहीद होने वाले कहीं तोबा करते हैं”। यह कहते हुए इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) आन बान और शान के साथ देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए। इनके साथ पेशवा के भाई सदाशिवराव भाऊ की भी मृत्यु हो गई।

यह इनकी वीरता का ही परिणाम है कि आज भी बुरहानपुर का “पारधी समुदाय” अपनी रस्मो और कसीनो में सुलेमान खान गर्दी और इब्राहिम खान गर्दी की पूजा करते हैं। जाति और समुदाय से ऊपर उठकर समाज और देश की सेवा करने वाले ऐसे वीर दुनिया में बहुत ही कम देखने को मिलते हैं। मराठा साम्राज्य और पानीपत के तृतीय युद्ध की जब भी बात होती है इब्राहिम खान गर्दी का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जाता है।

वर्ष 2019 में आई हिंदी “फिल्म पानीपत” में नवाब शाह ने इब्राहिम खान गर्दी (Ibrahim Khan Gardi) का रोल किया था।

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