चित्रांगद मौर्य कौन थे? || History Of Chitrangada Maurya
चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी (Chitrangada Maurya) के इतिहास की गवाही देता सदियों से चित्तौड़गढ़ दुर्ग खड़ा हैं। कई बड़े -बड़े महारथी राजा महाराजा आए और चले गए लेकिन वीरों की चित्तौड़गढ़ का क़िला ज्यों का त्यों खड़ा हैं। आज भी किले को छूकर बहने वाली हवा चित्रांगद मौर्य की वाह वाही करती हैं।
चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी को कई नामों से जाना जाता हैं। जिनमें चित्रांगद मोरी, चित्रांगदा, चित्रांग, चित्रंग, चित्रंग मोरी आदि।
चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी को चित्तौड़गढ़ का संस्थापक माना जाता है। मौर्य शासक चित्रांगद मौर्य के नाम पर ही इस शहर का नाम चित्रकूट पड़ा था, जब गंभीरी नदी कि पूर्व दिशा में विशाल दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने करवाया तो इसका नाम बदलकर चित्तौड़गढ़ कर दिया गया।
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चित्रांगद मोरी/चित्रांगद मौर्य का इतिहास Chitrangada Maurya history in hindi-
अन्य नाम- चित्रांगद मोरी, चित्रांगदा, चित्रांग, चित्रंग, चित्रंग मोरी।
शासन वर्ष – 7-8 शताब्दी।
सम्राज्य- मौर्य साम्राज्य।
इनके बाद राजा- राजा मान मोरी।
मुख्य कार्य- चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण।
बसाया गया शहर– चित्रकूट ( चित्तौड़).
चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी के काल से संबंधित जो सिक्के प्राप्त हुए हैं, उन पर इस शहर का नाम चित्रकूट अंकित है जो कि चित्रांगद मौर्य के नाम पर पड़ा था। कई वर्षों तक उनके नाम पर इस शहर का नाम चित्रकूट ही था जिसे बाद में चित्तौड़गढ़ कर दिया गया।
प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक में लिखा की चित्रांगद मौर्य चित्तौड़ के स्वामी थे।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में पहाड़ी पर स्थित यह किला लगभग 700 एकड़ में फैला हुआ है। इस किले की ऊंचाई लगभग 180 मीटर है।
सातवीं शताब्दी में मौर्य शासक चित्रांगद मौर्य अथवा चित्रांगद मोरी ने इस किले का निर्माण करवाया था, जिसका प्रमाण उस समय में जारी किए गए सिक्कों से प्राप्त होता है। इन सिक्कों पर इसका नाम चित्रकूट अंकित है।
कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार चित्रकूट को राजधानी बनाने से पहले चित्रांगद मौर्य की राजधानी मोरवन (डुंगला तहसील, चित्तौड़गढ़) नामक गांव था।
चित्रांगदा मोरी या चित्रांगद मौर्य मोरी कबीले के सरदार थे जो चित्तौड़ के आसपास के क्षेत्रों के राजा थे। इन्होंने ही यह शहर बसाया था और इसका नाम दिया चित्रकूट।
संभवतया सातवीं और आठवीं शताब्दी में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का निर्माण इनके सानिध्य में हुआ था। यह भारत का सबसे बड़ा किला है। चित्रांगद मौर्य के महल के खंडहर आज भी इस दुर्ग के ऊपर मौजूद हैं।
चित्रांगद मोरी/ चित्रांगद मौर्य का महल
मोरवन नामक गांव के कुछ पुरातन दावों पर विश्वास किया जाए तो चित्तौड़गढ़ किले पर आज भी खंडहर पड़े एक महल के बारे में कहा जाता है कि यह चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी का महल था।
कुछ लोग इसे मोरी का महल कहते हैं। वर्तमान में संभवतया यह महल पद्मिनी महल से थोड़ा आगे प्रतीत होता है, लेकिन इसके संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ भी कह पाना संभव नहीं है।
अगर बात की जाए तो चित्तौड़गढ़ जैसे विशाल किले का निर्माण करने वाले राजा ने खुद के लिए महल अवश्य बनवाया होगा। राजा चित्रांगद मौर्य ने किले पर एक तालाब का निर्माण करवाया था जिसका नाम “चतरंग मोरी तालाब” था।
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चित्रांगद मौर्य की सेना
मान कवि के राजविलास को ध्यान से पढ़ा जाए या इसका वर्णन किया जाए तो इसमें राजा चित्रांगद मौर्य/चित्रांगद मोरी की सेना और चित्रांगद मौर्य के बारे में वर्णन मिलता है।
राजविलास के अनुसार चित्रांगद मोरी अट्ठारह प्रांतों पर शासन करते थे। चित्रांगद मौर्य की सेना बहुत ही विशाल थी इनकी सेना में तीन लाख अश्व, क़रीब तीन हजार हाथी, एक हजार से अधिक रथ और करीब पांच लाख पैदल सैनिक थे।
इतनी विशाल सेना का नेतृत्व करने वाले चित्रांगद मौर्य के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है कि उनका कार्यकाल बहुत ही अद्भुत रहा होगा, जिन्होंने चित्तौड़गढ़ जैसे विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया।
चित्रांगद मौर्य की मृत्यु
आठवीं शताब्दी के प्रारंभ में चित्रांगद मौर्य की मृत्यु हो गई। इनके पश्चात राजा मान मोरी चित्तौड़गढ़ के शासक बने जिन्हें बाद में बप्पा रावल ने पराजित कर दिया था।
1820 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ के समीप पुठोली गांव के तालाब में एक शिलालेख मिला था, जिसमें चित्रांगद मौर्य के संबंध में लिखा हुआ था। चित्रांगद मौर्य जैसे शक्तिशाली राजाओं के इतिहास को इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया गया है, लेकिन उपलब्ध साक्ष्य और प्रमाणों के आधार पर अगर बात की जाए तो चित्रांगद मोरी का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा होगा।
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