संप्रति मौर्य का इतिहास || History Of Samprati Maurya
संप्रति मौर्य कुणाल का पुत्र और सम्राट अशोक का पौत्र था। मौर्य साम्राज्य चंद्रगुप्त मौर्य, राजा बिंदुसार और सम्राट अशोक महान के बाद निरंतर पतन की ओर अग्रसर था, ऐसे समय में मौर्य साम्राज्य के पांचवे राजा के रूप में संप्रति मौर्य राजा बनें।संप्रति मौर्य का शासन काल 224 ईसा पूर्व से 215 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
अभिलेखों और पुराणों में संप्रति मौर्य के इतिहास की जानकारी नहीं मिलती है लेकिन प्राचीन किदवंतो के अनुसार कुणाल अंधा था, इसी वजह से संप्रति मौर्य को मौर्य साम्राज्य का सिंहासन मिला।
संप्रति मौर्य का इतिहास और जीवन परिचय
- पूरा नाम- मौर्य सम्राट संप्रति मौर्य।
- पिता का नाम- कुणाल मौर्य।
- दादा का नाम- सम्राट अशोक।
- साम्राज्य- मौर्य साम्राज्य।
- धर्म– जैन धर्म।
- शासन अवधि- 224 ईसा पूर्व से 215 ईसा पूर्व तक।
मौर्य सम्राट संप्रति मौर्य जैन धर्म का अनुयायी था, वह जैन धर्म में विश्वास करता था और जैन धर्म को ही मानता था। कई इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट अशोक के राज्याधीन पश्चिमी भू-भागों पर आगे चलकर संप्रति मौर्य ने राज किया था।
अपने शासनकाल के दौरान संप्रति मौर्य ने कई जैन मंदिरों का निर्माण करवाया था। संप्रति मौर्य के पिता कुणाल अंधा थे, इसी वजह से अपने चचेरे भाई दशरथ मौर्य के बाद संप्रति मौर्य को मौर्य साम्राज्य का सम्राट बनने का सौभाग्य मिला।
संप्रति मौर्य को कैसे मिला सिहासन?
संप्रति मौर्य को मौर्य साम्राज्य का सिंहासन मिलने के पीछे एक कहानी है। सम्राट अशोक की पत्नी पद्मावती का पुत्र कुणाल था, पद्मावती अपने पुत्र संप्रति को राजा बनाना चाहती थी इसलिए कुणाल को अंधा कर दिया गया।
कुणाल को राजा दशरथ मौर्य ने उत्तराधिकारी बनाया लेकिन क्योंकि वह अंधा था इसलिए उसकी जगह संप्रति मौर्य को यह पद मिला।
संप्रति मौर्य का शासन काल
जैन ग्रंथ परिशिष्टपर्वन के अनुसार संप्रति मौर्य ने उज्जैन और पाटलिपुत्र दोनों पर शासन किया था। सम्राट अशोक की मृत्यु के पश्चात मैसूर, महाराष्ट्र, आंध्र और सौराष्ट्र मौर्य साम्राज्य से अलग हो गए थे, जिन्हें संप्रति मौर्य ने पुनः एकीकृत किया और अपने राज्य में मिला लिया।
संप्रति मौर्य ने लगभग 9 वर्षों तक राज्य किया था, लेकिन एक जैन धर्म के ग्रंथ के अनुसार और जैन धर्म की मान्यता के अनुसार उन्होंने 53 वर्षों तक राज्य किया था, लेकिन यह बात प्रमाणित नहीं है।
संप्रति मौर्य द्वारा धर्म कार्य
संप्रति मौर्य को जन्म से ही जैन माना जाता है। भारत के पूर्वी भागों में जैन धर्म के प्रचार एवं प्रसार का मुख्य श्रेय संपत्ति मौर्य को दिया जाता है। संप्रति मौर्य के गुरु का नाम “सुहस्तीसुरजी” था।
जैन धर्म के लिए एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हुए भारत के कई महत्वपूर्ण हिस्सों में इन्होंने जैन धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया, साथ ही बर्बर भूमि की यात्रा की और हजारों की तादाद में जैन मंदिरों का निर्माण कराया। खंडित मंदिरों का नवीनीकरण करवाया और मूर्तियों के निर्माण के लिए आगे आए।
साहित्य में संप्रति मौर्य
अमरदेवसूरी द्वारा लिखित ट्रेजरी ऑफ स्टोरीज में संप्रति मौर्य का उल्लेख किया गया है। मनतुंगसूरी के एक शिष्य मलयप्रभासुरी जयंती कारिता में करुणा के गुण का बखान सम्प्रति मौर्य की कहानी के माध्यम से किया हैं। संस्कृत ग्रंथ ( सम्प्रति मौर्य नृप चरित्र के अनुसार) में कुछ श्लोक हैं जो सम्प्रति मौर्य को समर्पित हैं।
संप्रति मौर्य की मृत्यु
मौर्य साम्राज्य के पांचवे राजा और जैन धर्म के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले सम्राट संपत्ति मौर्य की मृत्यु 215 ईसा पूर्व में सामान्य रूप से हुई थी।
सम्राट अशोक के बाद संप्रति मौर्य (Samprati Maurya) को धार्मिक रूप से समर्पित राजा के रूप में याद किया जाता है। शुरू से ही जैन धर्म के अनुयायी होने की वजह से उन्होंने प्रजा प्रेम, कला और जैन धर्म के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में लिखने का कार्य किया था।
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