राणा हम्मीर सिंह का इतिहास || History Of Rana Hammir Singh
14वीं शताब्दी में राणा हम्मीर सिंह मेवाड़ (राजस्थान) के शासक थे। 13वीं शताब्दी की बात है, दिल्ली सल्तनत ने गुहीलों की सिसोदिया राजवंश की शाखा को मेवाड़ से सत्तारूढ़ कर दिया। सिसोदिया राजवंश से पहले मेवाड़ पर गुहिल वंश के ही रावल परिवार का शासन था, जिसके मुखिया थे बप्पा रावल या भोजराज।
राणा हम्मीर के ही वंशज महाराणा कुंभा ने कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति में राणा हमीर के लिए “विषम घाटी पंचानन” शब्द का प्रयोग किया। इसका अर्थ होता है, संकटकाल में सिंह के समान। राणा हमीर सिंह को सिसोदिया वंश के प्रथम शासक के रूप में जाना जाता है, साथ ही इन्हें मेवाड़ का उद्धारक भी कहा जाता है।
राणा हमीर सिंह का इतिहास (History Of Rana Hammir Singh)
- अन्य नाम – हम्मीरा और विषम घाटी पंचानन।
- जन्म वर्ष – 1314 ईस्वी।
- मृत्यु वर्ष – 1364.
- मृत्यु के समय आयु –50 वर्ष
- पिता का नाम – अरी सिंह।
- माता का नाम – ऊर्मिला।
- दादा का नाम – लक्ष्मण सिंह।
- पत्नि का नाम – सोंगरी देवी।
- पुत्र का नाम – राणा क्षेत्र सिंह।
- शासन अवधि – 1326 से 1364 ईस्वी तक।
- राज्य – मेवाड़ (राजस्थान).
- राजवंश – सिसोदिया।
- इनके पश्चात् मेवाड़ का राजा- राणा क्षेत्र सिंह।
- विशेषता- मेवाड़ के प्रथम राणा।
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया का जन्म सिसोद नामक गांव में हुआ था। राणा हम्मीर सिंह ने बचपन में ही वह करिश्मा कर दिया जिसको देखकर मेवाड़ की जनता समझ गई कि यही मेवाड़ का भावी सरदार है। बप्पा रावल के वंशज राणा हम्मीर सिंह ने मात्र 2 वर्ष की आयु में अपने माता और पिता दोनों को खो दिया।
Rana Hammir Singh की माता उर्मिला देवी ने रानी पद्मावती के साथ जोहर कर लिया। मेवाड़ बहुत बड़े संकट से जूझ रहा था। यह उस समय की बात हैं जब मुंजा बलेचा नामक एक डाकु का आतंक मेवाड़ और चित्तौड़गढ़ के आस पास फैल रहा हैं। यह एक बहुत बड़ा लुटेरा था जिसके सर पर अलाउद्दीन खिलजी का हाथ था। एक बार की बात है, रात्रि के समय लूटपाट करने के बाद मुंजा बलेचा उसके कैंप में जा रहा था।
तभी वहां पर एक नन्हे बालक ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। पहले तो मुंजा बलेचा को यकीन नहीं हुआ लेकिन वह घोड़े से उतरा और छोटे बच्चे को मारने के लिए दौड़ा, तभी उस छोटे बच्चे ने मुंजा बलेचा की गर्दन धड़ से अलग कर दी। यही बालक बड़ा होकर राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया के नाम से जाने जाना लगा। इन्हें युद्ध प्रणालियों की शिक्षा इनके चाचा अजय सिंह द्वारा दी गई थी, जिनमें गोरिल्ला युद्ध प्रणाली सबसे मुख्य थी।
राणा हम्मीर सिंह धीरे-धीरे बड़े हो रहे थे। इस समय मेवाड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र खिज्र खां शासन कर रहे थे लेकिन इनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं था। मेवाड़ पूरा खाली खाली लग रहा था इसलिए खिज्र खां मेवाड़ छोड़कर दिल्ली चले गए।
अब भी चित्तौड़गढ़ किला और मेवाड़ अलाउद्दीन खिलजी के अधीन ही था। चला गया क्योंकि शासन करे तो करे किस पर मेवाड़ में तो जनता ही नहीं थी अलाउद्दीन ने तुरंत मेवाड़ की सत्ता अपने एक सेवक मालदेव सोनगरा को दे दी।
राणा हम्मीर सिंह बनें मेवाड़ के राजा और किला जीता
राणा हम्मीर सिंह के चाचा अजय सिंह ने राणा हम्मीर सिंह को तिलक लगाकर मेवाड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। संपूर्ण मेवाड़ में यह खबर फैल गई कि बप्पा रावल के असली वंशज अभी जिंदा है।
1326 में राणा हम्मीर सिंह ने चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण कर इसे जीत लिया। मालदेव सोनगरा बचकर दिल्ली भाग निकले लेकिन उनका पुत्र जय सिंह हम राणा हमीर की कैद में आ गया।यहीं से राणा हम्मीर सिंह का विजय अभियान शुरू हुआ। धीरे-धीरे मेवाड़ के 80 बड़े ठिकाने जहां पर मुस्लिम शासन था उन्हें राणा हम्मीर सिंह ने जीत लिया।
विषम परिस्थितियों मैं राणा हमीर सिंह ने चित्तौड़ पर विजय प्राप्त की इसीलिए इन्हें “विषम घाटी पंचानन” के नाम से जाना जाता है।
राणा हम्मीर सिंह बनाम मोहम्मद बिन तुगलक में सिंगोली का युद्ध (1336)
अलाउद्दीन खिलजी के पश्चात मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली का नया शासक बना। मोहम्मद बिन तुगलक राणा हम्मीर सिंह की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभुत्व से परेशान हो गया।
साल 1336 में तुगलक सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक अपनी विशाल सेना के साथ दिल्ली से रवाना हुआ। 3 महीने के लंबे सफर के बाद तुगलक सिंगोली नामक एक गांव में पहुंचा। भयंकर बारिश और घोर रात्रि के कारण तुगलक ने इसी गांव में अपनी सेना का डेरा जमा दिया।
इधर राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया को भली प्रकार से पता था कि दिल्ली का सुल्तान मेवाड़ पर चढ़ाई जरूर करेगा।
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया ने गोरिल्ला युद्ध प्रणाली का प्रयोग करते हुए तुगलक पर हमला कर दिया और उसे चारों खाने चित कर दिया। राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया और मोहम्मद बिन तुगलक के बीच लड़ा गया सिंगोली का यह युद्ध इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया।
मोहम्मद बिन तुगलक को राणा हम्मीर सिंह ने लगभग 6 महीने कैद कर रखा। राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया का इतना खौफ था कि इनके जीते जी किसी ने मेवाड़ की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा।
अन्नपूर्णा माता के मंदिर का निर्माण
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, साथ ही सनातन संस्कृति के मानने वाले थे। उन्होंने ना सिर्फ मेवाड़ में केसरिया ध्वज फहराया बल्कि कई मंदिरों का निर्माण भी करवाया, जिसमें चित्तौड़गढ़ किले के ऊपर स्थित अन्नपूर्णा माता का मंदिर सबसे मुख्य है।
क्या आप जानते हैं राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया ने विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः प्रारंभ किया? ज्यादातर लोगों को इस बारे में यह जानकारी है कि ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवा पुनर्विवाह प्रथा को पुनः शुरू किया था। लेकिन अगर सबसे पहले इसकी शुरुआत किसी ने की थी तो वह थे, मेवाड़ के शासक राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया।
युद्ध में पराजित होने के बाद मालदेव, राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया को नीचा दिखाने के लिए एक विधवा राजकुमारी सोंगरी देवी का विवाह उनसे करवाना चाहता था, हालांकि उस समय यह प्रथा प्रचलन में नहीं थी फिर भी राणा हम्मीर सिंह ने उसे पत्नी के रूप में स्वीकार कर इस प्रथा पुनः स्थापित किया।
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया की मृत्यु कैसे हुई?
राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया की मृत्यु सामान्य रूप से अर्थात सामान्य परिस्थितियों में 1364 ईस्वी में हुई थी। इन्हें मेवाड़ का उद्धारक माना जाता है। इतिहास के पन्नों में भले ही राणा हम्मीर सिंह सिसोदिया का नाम ज्यादा नहीं हो लेकिन वास्तविक रूप में यह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने मेवाड़ को मुस्लिमों से मुक्त करवाया था। इनके जीते जी कोई भी मुस्लिम शासक आंख उठाकर भी मेवाड़ की तरफ नहीं देख सका।
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