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स्वामीनारायण संप्रदाय का इतिहास || History Of swaminarayan sampraday

स्वामीनारायण सम्प्रदाय का इतिहास बहुत पुराना हैं। इस सम्प्रदाय को पहले उद्धव संप्रदाय के नाम से जाना जाता था। स्वामीनारायण या नीलकंठ वर्णी को स्वामीनारायण संप्रदाय का जनक या संस्थापक माना जाता हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रवर्तक नीलकंठ वर्णी या सहजानंद जी का जन्म उत्तरप्रदेश के गोंडा जिले के छपिया नामक गाँव में हुआ था।

वर्तमान में इस गाँव को स्वामीनारायण छपिया के नाम से जाना जाता हैं। स्वामीनारायण सम्प्रदाय वेद के ऊपर स्थापित किया गया हैं। नीलकंठ वर्णी द्वारा स्थापित स्वामीनारायण सम्प्रदाय से अब तक लाखों की तादाद में लोग जुड़ चुके हैं। सहजानंद जी या नीलकंठ वर्णी द्वारा 6 मंदिरों का निर्माण करवाया था। मुख्य मंदिर आज भी नीलकंठ वर्णी के जन्म स्थल गोंडा,छपिया में स्थित हैं।

स्वामीनारायण संप्रदाय की 2 सीखें

1. शिक्षापतरी।

2. वचनमृत।

स्वामीनारायण सम्प्रदाय के मुख्य मंदिर

1. स्वामीनारायण मंदिर छपिया, गोंडा।

2. स्वामीनारायण मंदिर भुज, गुजरात।

3. स्वामीनारायण मंदिर अहमदाबाद गुजरात।

4. स्वामीनारायण मंदिर,धोलका।

5. स्वामीनारायण मंदिर,धोलेरा।

6. स्वामीनारायण मंदिर,जूनागढ़।

7. स्वामीनारायण मंदिर,जेतलपुर।

8. स्वामीनारायण मंदिर,मुली।

9. स्वामीनारायण मंदिर,गढ़डा।

10. स्वामीनारायण मंदिर, वड़ताल।

स्वामीनारायण या नीलकंठ वर्णी की पूरी कहानी

स्वामीनारायण संप्रदाय मंदिर के 2 मुख्य विभाग

1. नर नारायण देव गाड़ी (अहमदाबाद ).

2. लक्ष्मी नारायण देव गाड़ी (वड़ताल).

स्वामीनारायण ( नीलकंठ वर्णी ) ने उनके 2 भांजों को दोनों विभागों का मुखिया बनाया था। भगवान स्वामीनारायण अर्थात नीलकंठ वर्णी स्वयं सबके साथ श्रमदान करके मंदिर निर्माण में अहम भूमिका निभाते थे। नीलकंठ वर्णी ने अपने कार्यकाल में अहमदाबाद मुली, भुज, जेतलपुर, धोलका, वड़ताल, बड़ा, धोलेरा तथा जूनागढ़ में भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया था, जो मंदिरों की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना माना जाता है।

स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयाई विश्व भर में फैले हुए हैं। स्वामीनारायण संप्रदाय के अनुयायियों के बारे में कहा जाता है कि वह मंदिरों को सेवा विज्ञान का केंद्र बना कर जन सेवा के कार्य करते हैं। जिस तरह से नीलकंठ वर्णी ने यज्ञ में हिंसा, बलि देने की प्रथा, सती प्रथा, कन्या हत्या, भूत बाधा जैसी कुरीतियों को बंद कराने में अहम भूमिका निभाई थी, वैसे ही स्वामीनारायण संप्रदाय आज भी काम करता है।

हमेशा से ही भगवान नीलकंठ वर्णी की तरह स्वामीनारायण संप्रदाय अपने शिष्यों को पांच व्रत का पालन करने के लिए बाध्य करता है। जिनमें मांस खाना, मदिरा का सेवन करना, चोरी करना, व्यभिचार का त्याग करना तथा सभी धर्मों का पालन करने की बात मुख्य रूप से बताई जाती है। स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा बनाए गए नियमों का कड़ाई के साथ पालन किया जाता है।

कौन थे स्वामीनारायण?

आइए जानते हैं स्वामीनारायण कौन थे? नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का जन्म उत्तरप्रदेश में हुआ था। इनके जन्म के पश्चात्  ज्योतिषियों ने देखा कि इनके हाथ और पैर पर “ब्रज उर्धव रेखा” और “कमल के फ़ूल” का निशान बना हुआ हैं। इसी समय भविष्यवाणी हुई कि ये बच्चा सामान्य नहीं है , आने वाले समय में करोड़ों लोगों के जीवन परिवर्तन में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।

नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का जन्म उत्तरप्रदेश के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। नीलकंठ वर्णी अथवा स्वामीनारायण का असली नाम घनश्याम पांडे था। इनका नामकरण इनके माता-पिता द्वारा किया गया। 5 वर्ष कि आयु से ही इनकी शिक्षा दीक्षा शुरू हो गई। 11 वर्ष कि आयु में जनेऊ धारण कर ली।

शास्त्र अध्ययन में बचपन से ही गहरी रुचि थी। मात्र 11 साल कि उम्र में कई मुख्य शास्त्रों का अध्ययन कर लिया।छोटी सी उम्र में माता पिता का साया उठ गया।

कहते हैं कि भाई से किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया और ये विरक्त हो गए। स्वामीनारायण अर्थात् घनश्याम पांडे ने घर त्याग कर भारत दर्शन के लिए निकल पड़े। अपनी भारत यात्रा पूरी करने के बाद इन्होंने अंतिम समय में स्वामीनारायण संप्रदाय की स्थापना की थी। तो अब जान चुके हैं कि स्वामीनारायण कौन थे.

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