सोमवार व्रत कथा और कहानी

सोमवार व्रत कथा जानने से पहले आपको बता दें कि सनातन संस्कृति और हिंदु धर्म में किसी भी व्रत, उपवास या कार्य के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कथा या वजह जरूर होती हैं। सोमवार व्रत कथा के पीछे एक बहुत दिलचस्प कहानी है।

एक राजा द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु भगवान शिव की आराधना करने से लेकर शिवजी द्वारा उसकी मनोकामना पूरी करने और अल्पायु में पुत्र की मृत्यु हो जाने पर माता पार्वती द्वारा पुनः जीवित करने के लिए शिवजी से आग्रह की यह प्राचीन कथा सोमवार व्रत कथा मानी जाती हैं।

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सोमवार व्रत कथा के पीछे की कहानी।

सोमवार व्रत कथा से जुड़ी कहानी

बहुत प्राचीन समय की बात है, एक नगर में बहुत ही प्रतिष्ठित व्यापारी रहता था। उस व्यापारी के पास ना तो धन दौलत की कमी थी ना ही मान सम्मान की कमी थी। उसका व्यापार दूरदराज के क्षेत्रों में फैला हुआ था। ना सिर्फ उस नगर के लोग बल्कि बाहर के लोग भी उस व्यापारी का बहुत ही आदर और सम्मान करते थे। वह व्यापारी भी बहुत दयालु और दानी स्वभाव का था।

विवाह के कई वर्ष बीत जाने के बाद भी जब उस व्यापारी को कोई भी पुत्र नहीं हुआ, तो धीरे-धीरे उसके मन में यह चिंता घर करने लगी कि आने वाले समय में उसके व्यापार को कौन संभालेगा अर्थात उसका उत्तराधिकारी कौन होगा। इस बात को लेकर वह व्यापारी बहुत ही बेचैन रहने लगा।

भगवान शिव में अथाह विश्वास और श्रद्धा रखने वाले उस व्यापारी ने पुत्र प्राप्ति के लिए प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव के नाम का व्रत रखना प्रारंभ किया। सोमवार के दिन सुबह वह स्नान कर शिवजी के मंदिर जाता और शिवलिंग पर जल चढ़ाता। दिन भर व्रत रखने के पश्चात शाम के समय शिवजी के समक्ष घी का दीपक जलाता।

भगवान शिव के प्रति इतनी श्रद्धा और भावना देखकर माता पार्वती प्रसन्न हो गई। माता पार्वती ने यह बात शिवजी को बताई और उस व्यापारी की मनोकामना पूरी करने के लिए आग्रह किया। भोले भंडारी ने माता पार्वती की तरफ देखा और मुस्कुराए उन्होंने बताया कि प्रत्येक व्यक्ति और जीव जंतु को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है।

यदि इस व्यापारी के कर्म अच्छे होंगे तो इसके काम खुद ब खुद अच्छे होंगे। माता पार्वती ने भगवान शिवजी से पुनः आग्रह किया कि हे नाथ आपको उनकी मनोकामना पूरी करनी चाहिए। इतना ही नहीं माता पार्वती व्यापारी की मनोकामना पूरी करने के लिए बार-बार आग्रह करती रही।

शिवजी को ऐसे ही भोलेनाथ नहीं कहा जाता है, उन्होंने माता पार्वती की बात मान ली और उस व्यापारी को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान किया। साथ ही माता पार्वती को बताया कि इस व्यापारी को पुत्र की प्राप्ति हो जाएगी लेकिन वह मात्र 16 वर्ष तक ही जीवित रह पाएगा।

उसी दिन रात के समय भगवान शिव जी उस व्यापारी को स्वप्न में दर्शन दिए और पुत्र प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दिया साथ ही उस व्यापारी को बताया कि आपका पुत्र 16 वर्ष की आयु तक ही जीवित रह पाएगा।

भगवान शिव के दर्शन पाकर वह व्यापारी अति प्रसन्न हुआ। साथ ही भगवान शिव जी द्वारा प्रदान किया गया पुत्र प्राप्ति के वरदान ने उसकी खुशी को दोगुना कर दिया। अगले ही क्षण उसकी खुशी गम में तब्दील हो गई जब उसे यह ज्ञात हुआ कि उसका पुत्र अल्पायु में ही मर जाएगा।

वरदान प्राप्त करने के बाद भी वह सोमवार के दिन भगवान शिव जी का व्रत श्रद्धा के साथ करता रहा। धीरे-धीरे समय बीतता गया लेकिन उस व्यापारी की श्रद्धा तनिक भी कम नहीं हुई। कुछ ही वर्षों के पश्चात उसके घर में एक बालक का जन्म हुआ।

भगवान शिव द्वारा उस व्यापारी की मनोकामना पूरी करने के उपलक्ष में उस व्यापारी ने पूरे नगर में मिठाइयां बंटवाई, भगवान शिव के मंदिरों में पूजा अर्चना की। इस दिन को एक उत्सव के रूप में पूरे नगर में एक साथ मनाया गया।

पुत्र की अल्पायु के बारे में जानकारी होने की वजह से व्यापारी के मन में चिंता जरूर थी। बहुत ही लाड प्यार के साथ धीरे-धीरे वह बच्चा 12 वर्ष का हो गया। अब व्यापारी की चिंता और बढ़ गई, उसने बच्चे को उसके मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति के लिए वाराणसी अथवा काशी विश्वनाथ भेज दिया।

सुबह का समय था उगते हुए सूर्य की किरणें उस नगर को सोने की तरह चमक दे रही थी। वह व्यापारी, उसका बच्चा और बच्चे का मामा भगवान शिव के मंदिर में गए पूजा अर्चना की उसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाया और वाराणसी के लिए निकल पड़े। मामा भांजा खुशी-खुशी चले जा रहे थे, जहां वो विश्राम करते, वहां पर पूजा-पाठ और यज्ञ का आयोजन करते साथ ही आसपास रहने वाले ब्राह्मणों को भोजन करवाते।

एक दिन दोनों एक गांव से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि उस गांव को बहुत ही अच्छे तरीके से सजाया गया था। जब दोनों ने इसका कारण जानना चाहा तो उन्हें पता चला कि नगर में राजा की पुत्री का विवाह है। यह सुनकर दोनों मामा और भांजा उस विवाह को देखने के लिए वहां पर पहुंचे।

बारात निकल रही थी, दूल्हा घोड़े पर सवार होकर राजा के महल की तरफ बढ़ रहा था लेकिन दूल्हे के पिता चिंतित और व्यथित नजर आ रहे थे। दूल्हे के पिता इस बात को लेकर चिंतित थे कि उनके बेटे की एक आंख फूटी हुई थी, उन्हें लगातार यह डर सता रहा था कि कहीं राजा इस विवाह के लिए मना ना कर दे।

पास खड़े मामा और भांजा (व्यापारी का पुत्र) को देखकर दूल्हे के पिता के मन में यह विचार आया कि क्यों ना मैं इस लड़के को वर बनाकर राजा की लड़की के साथ विवाह संपन्न करवा दूं। शादी के पश्चात इस लड़के को मैं अपार धन-संपत्ति देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी मेरे बेटे की पत्नी बन कर रहेगी।

दूल्हे के पिता ने मामा से इस विषय पर बात की और बताया कि यदि आप अपने भांजे की शादी राजा की पुत्री के साथ करवाने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो शादी के पश्चात मैं तुम्हें अथाह धन संपदा प्रदान करूंगा और आप अपने भांजे को लेकर चले जाना क्योंकि मेरा पुत्र अंधा है और यदि वह राजकुमारी से विवाह के लिए मंडप में जाएगा तो हो सकता है लड़की के पिता अंधे लड़के से विवाह के लिए मना कर दे।

धन का लालच पाकर व्यापारी के बेटे के मामा ने इस विवाह के लिए हां कर दिया। बहुत ही धूमधाम के साथ यह विवाह संपन्न हुआ। राजा ने दहेज के रूप में अपनी कन्या को अथाह धन संपदा प्रदान की।

व्यापारी का पुत्र यह अच्छी तरह से जानता था कि उस राजकुमारी के साथ गलत हो रहा है। उससे सच ज्यादा देर तक छुपाया नहीं जा सका और उसने सारी बात उस राजकुमारी की साड़ी पर लिख दी।

व्यापारी के पुत्र ने राजकुमारी की साड़ी पर लिखा कि हे राजकुमारी! आपका विवाह मेरे साथ संपन्न हुआ है. मैं पढ़ाई करने के लिए वाराणसी जा रहा था लेकिन जबरदस्ती मुझे मंडप में बिठाया गया और धन संपदा का लालच पाकर मेरे मामा ने इस विवाह के लिए हामी भर दी। आपको जिस लड़के के साथ रहना है, वह एक आंख से अंधा है।

व्यापारी का लड़का उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी चला गया। राजकुमारी ने ओढ़नी/साड़ी पर लिखा संदेश पढ़ लिया और तुरंत ही अंधे लड़के के साथ रहने के लिए मना कर दिया। राजा अपनी पुत्री को पुनः अपने महल में ले गया और आश्वासन दिया कि जब तक तुम चाहो यहां पर रह सकती हो।

4 वर्ष पश्चात उस व्यापारी के पुत्र की आयु 16 वर्ष हो गई, इसके साथ ही उसकी शिक्षा भी पूर्ण हुई। शिक्षा पूर्ण होने पर व्यापारी के पुत्र और उसके मामा ने वहां पर मौजूद ब्राह्मणों एवं साधु-संतों को प्रेम भोजन करवाया। सब काम पूर्ण होने के पश्चात वह लड़का अपने कक्ष में जाकर सो गया लेकिन भगवान शिव द्वारा दिए गए वरदान के अनुरूप लड़का सोने के बाद वापस उठा नहीं अर्थात उसकी मृत्यु हो गई।

सुबह का समय था जब भांजा उठा नहीं तो उसका मामा उसके पास गया और उसने देखा कि वह मर चुका है। यह देखकर उसका मामा जोर-जोर से विलाप करने लगा, यह देखकर और सुनकर आसपस के लोग वहां पर एकत्रित हो गए। असहनीय विलाप माता पार्वती के कानों में पड़ा तो उन्होंने भगवान शिव को बताया कि अल्पायु में ही इस लड़के की मृत्यु हो जाने की वजह से इसके मामा और आसपास के लोग विलाप कर रहे हैं।

हे प्राणनाथ, आप इसे जीवनदान प्रदान करें। भगवान शिव ने आंखें खोली और माता पार्वती से कहा कि यह वही लड़का है जिसको मैंने वरदान दिया था कि 16 वर्ष की आयु में इसकी मृत्यु हो जाएगी।

मृत्यु शाश्वत सत्य है, इसको कोई नहीं रोक सकता है। यह सुनकर माता पार्वती पुनः शिवजी से आग्रह करने लगी कि मुझसे इन लोगों का विलाप नहीं देखा जा रहा है आप इसे जीवित करें। शिवजी, माता पार्वती की बात मानकर उस लड़के को जीवनदान दिया।

अपने भांजे को पुनः जीवित देखकर मामा बहुत प्रसन्न हुए और घुटनों के बल पर बैठकर दोनों हाथ जोड़ते हुए भगवान भोलेनाथ को प्रणाम किया। शिक्षा पूर्ण होने के बाद मामा और भांजा (व्यापारी का पुत्र) पुनः अपने घर जाने के लिए वाराणसी से निकल गए।

घर जाते समय संयोग से पुनः उसी नगर में होकर निकले जिसमें उस राजकुमारी का विवाह इस लड़के के साथ हुआ था। मामा और भांजा को तुरंत ही वहां के लोगों ने पहचान लिया और राजा तक यह खबर पहुंचाई, राजा ने दोनों को अपने दरबार में बुलाया।

दरबार में आने के पश्चात मामा और भांजा का जोरदार स्वागत किया गया उन्हें अपार धन-संपत्ति प्रदान की गई। क्योंकि राजकुमारी का विवाह व्यापारी के पुत्र के साथ हुआ था तो राजा ने अपनी पुत्री को व्यापारी के पुत्र के साथ विदा कर दिया और हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया।

दूसरी तरफ व्यापारी जो कि भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था, वह प्रत्येक दिन भगवान शिव की उपासना करते और सोमवार का व्रत करते। व्यापारी ने भगवान शिव के सामने प्रण किया था कि यदि उनका बेटा 16 वर्ष की आयु के पश्चात जीवित नहीं लौटा तो वह स्वयं भी अपने प्राण त्याग देंगे।

सोमवार का दिन था व्यापारी भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना कर घर की तरफ लौट रहे थे, तभी उन्होंने सामने से उनके पुत्र को आते हुए देखा और पुत्र को जीवित देख कर बहुत प्रसन्न हुए। साथ ही व्यापारी के मन में यह जानने का कोतुहल बना हुआ था कि उनके पुत्र के साथ एक कन्या कौन है। तभी व्यापारी के पुत्र के मामा ने सारी बात बताई इस पर व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने खुशी-खुशी राजकुमारी को अपने घर ले गए। व्यापारी भगवान शिव के चरणों में जाकर लेट गया।

उसी दिन रात को व्यापारी ने एक सपना देखा, जिसमें भगवान भोलेनाथ ने उसको दर्शन दिए और कहा कि मैं तेरी उपासना, पूजा, सोमवार के व्रत और सोमवार व्रत कथा से प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।

यही है सोमवार व्रत कथा। सनातन धर्म के शास्त्रों में स्पष्ट लिखा गया है कि जो भी व्यक्ति या स्त्री सोमवार का व्रत करते हैं या सोमवार व्रत कथा सुनते हैं, भगवान भोलेनाथ उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

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