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राणा रायमल का इतिहास || History Of Rana Raimal

राणा रायमल का इतिहास जानने से पहले आपको बता दें कि ये उदय सिंह प्रथम के भाई और महाराणा कुम्भा के पुत्र थे। मेवाड़ में फैली अराजकता को दूर करने के लिए मेवाड़ी सरदारों द्वारा राणा रायमल को उनके ससुराल ईडर से बुलाकर मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया गया। इनकी शासनावधि 1473 ईस्वी से 1509 ईस्वी तक रही।

महाराणा उदय सिंह प्रथम ने उनके पिता महाराणा कुम्भा की हत्या कर राज्यसिंहासन पर बैठे थे। इसलिए प्रजा उनके खिलाफ़ हो गई और उदय सिंह प्रथम के छोटे भाई राणा रायमल को राजा नियुक्त किया। इस लेख में आप पढ़ेंगे की राणा रायमल का इतिहास क्या है? राणा रायमल की कहानी? और राणा रायमल की शासन व्यवस्था कैसी थी?

राणा रायमल का इतिहास (History Of Rana Raimal)

  • नाम- राणा रायमल।
  • जन्म वर्ष- ज्ञात नहीं।
  • जन्म स्थान- चित्तौड़ (मेवाड़).
  • मृत्यु वर्ष-1509 ईस्वी.
  • मृत्यु स्थान– चित्तौड़।
  • पिता का नाम- महाराणा कुम्भा।
  • माता का नाम– मीरा।
  • पत्नी का नाम- श्रृंगारदेवी और रतन बाई.
  • पुत्र/ पुत्रियां- महाराणा सांगा और जयमल (मेवाड़ के पृथ्वीराज).
  • राज्य- मेवाड़ ( वर्तमान में राजस्थान).
  • शासनावधी-1473 ईस्वी से 1509 ईस्वी तक.
  • इनसे पहले राजा- महाराणा उदय सिंह प्रथम।
  • इनके बाद राजा- महाराणा सांगा।
  • धर्म- हिन्दू सनातन।

विक्रम संवत 1530 ( 1473 ईस्वी) में महाराणा रायमल मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठे। महाराणा उदय सिंह प्रथम कुंभलमेर से भागकर सोजत चले गए। सोजत जाने के पश्चात वहां पर उन्होंने कुंवर बागा राठौड़ की पुत्री के साथ शादी की। महाराणा उदय सिंह प्रथम के दोनों पुत्र सूरजमल और सेंसमल भी उनके साथ थे।

मेवाड़ राज्य को पुनः हासिल करने और खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने के लिए उदय सिंह प्रथम, सूरजमल और सेंसमल मांडू के बादशाह गयासुद्दीन खिलजी के पास मदद के लिए गए। प्रारंभ से लेकर अंत तक पूरी कहानी सुनने के बाद गयासुद्दीन खिलजी ने उदय सिंह प्रथम की मदद करने का आश्वासन दिया। लेकिन गयासुद्दीन ने एक शर्त रखी कि उदय सिंह प्रथम की बेटी के साथ उनका विवाह करवाना होगा, इस पर उदय सिंह प्रथम राजी हो गए।

मांडू से पुनः सोजत की तरफ लौट रहे उदयसिंह प्रथम के ऊपर आसमानी बिजली गिर गई, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। मेवाड़ राज्य में कभी ऐसा नहीं हुआ कि किसी भी राजघराने की बहू या बेटी का विवाह किसी मुस्लिम के साथ हुआ हो और यह शायद भगवान को भी मंजूर नहीं था।

उदय सिंह प्रथम की मृत्यु के पश्चात उनके दोनों पुत्र सूरजमल और सेंसमल गयासुद्दीन से संपर्क में बने रहे और उनसे आग्रह किया कि आप हमें मेवाड़ राज्य वापस दिलाने में मदद करें। तब गयासुद्दीन अपनी सेना के साथ मेवाड़ की तरफ निकल पड़ा। गयासुद्दीन लालची प्रवृत्ति का था इसलिए बाहर चाहता था कि राजपूतों की आपस की लड़ाई में वह फायदा उठा ले।

गयासुद्दीन की सेना ने चित्तौड़ किले को चारों तरफ से घेर लिया और बारी-बारी से हमला शुरू कर दिया। मेवाड़ और चित्तौड़ के राजा महाराणा रायमल अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए किले से बाहर निकले, और बिजली की तरह गयासुद्दीन की सेना पर टूट पड़े। गयासुद्दीन और उसकी सेना महाराणा रायमल की सेना का सामना नहीं कर पाई और गयासुद्दीन जैसे तैसे वहां से मांडू भाग गया और अपनी जान बचाई। इस विजय के प्रमाण की बात की जाए तो श्री एकलिंग जी के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति के श्लोक संख्या 68 से 71 में मिलता हैं।

इस जीत से प्रफुल्लित होकर महाराणा रायमल निश्चिंत होकर मेवाड़ राज्य पर राज कर रहे थे। इस विजय के पश्चात उनके जो छोटे-छोटे दुश्मन थे वह डर गए। साथ ही महाराणा रायमल भी निश्चिंत हो गए की अब गयासुद्दीन पुनः मेवाड़ पर आक्रमण करने के बारे में नहीं सोचेगा।

दूसरी तरफ गयासुद्दीन मांडू पहुंचकर बदले की भावना में तपने लगा। गयासुद्दीन ने अपने रिश्तेदारों से संपर्क किया और युद्ध सामग्री की व्यवस्था करता रहा, साथ ही पहले से मजबूत और शक्तिशाली सेना तैयार की। सभी तैयारियां पूरी होने के पश्चात गयासुद्दीन मांडू से निकलकर पुनः मेवाड़ की तरफ आक्रमण करने के लिए निकल गया।

मेवाड़ के पूर्वी क्षेत्र में गयासुद्दीन की सेना ने जफर खान मलिक के नेतृत्व में लूटपाट करने लगी। यह उस समय की बात है जब हाडा चाचकदेव जो कि उस समय बेगू के जागीरदार हुआ करते थे, महाराणा रायमल के समक्ष उपस्थित होकर बताया कि गयासुद्दीन की सेना जफर खान मलिक के नेतृत्व में भैंसरोड, श्योपुर, कोटा आदि क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है।

यह सुनकर महाराणा रायमल तुरंत युद्ध करने के लिए तैयार हो गए हो और अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार किया। गयासुद्दीन और महाराणा रायमल के बीच हुए इस दूसरे युद्ध का विवरण महाराणा रायमल का रासा नामक ग्रंथ में मिलता है जो कि इसका जीता जागता सबूत है।

इस समय मेवाड़ का सहयोग करने वाले और मेवाड़ के सरदारों ने अपने अपने घोड़े Rana Raimal को प्रदान किए ताकि युद्ध में गयासुद्दीन का सामना किया जा सके। महाराणा रायमल स्वयं रूपमल नामक घोड़े पर सवार होकर आसेर, चंदेरी, नरवर, बूंदी, आमेर, रायसेन, चाकसू, लालसोट, सांभर अजमेर, टोडा, मारोठ आदि के राजाओं के साथ मांडलगढ़ की तरफ चल पड़े।

मलिक जफर खान और महाराणा रायमल की सेना के बीच यहां पर एक बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन वीर मेवाड़ी सेना के सामने बाहर टिक नहीं पाया और हजारों सैनिकों के मारे जाने के पश्चात वह भाग गया। महाराणा रायमल ने उनका पीछा करते हुए खैराबाद को लूट लिया। उपरोक्त घटना का विवरण श्री एकलिंग जी के दक्षिण द्वार की प्रशस्ति के श्लोक 77-78 के साथ महाराणा रायमल का रासा में मिलता है।

गयासुद्दीन की तरफ से समझौते का प्रस्ताव

लगातार दो बार युद्ध में बुरी तरह पराजित होने के पश्चात मांडू के गयासुद्दीन खिलजी ने उसके एक बहुत ही विश्वसनीय व्यक्ति को महाराणा रायमल के पास समझौते के लिए भेजा। जब वह व्यक्ति चित्तौड़ किले पर पहुंचा तब महाराणा रायमल स्वयं उससे बातचीत करने के लिए उसके समक्ष बैठे। महाराणा रायमल और गयासुद्दीन का दूत बड़ी ही विनम्रता के साथ एक दूसरे से बात कर रहे थे और एक दूसरे की बातें सुन रहे थे।

तभी वहां पर महाराणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज अर्थात रणमल का आगमन होता है। यह दृश्य देखकर वह बहुत ही क्रोधित हो जाता है और अपने पिता से कहता है कि मुसलमानों के साथ इस तरह विनम्र होकर बात करना उचित नहीं है। यह लोग पीठ में छुरा गोपने वाले होते हैं, इन पर कभी भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।

यह सुनकर गयासुद्दीन का दूत क्रोधित हो गया और वहां से उठ कर चला गया। मांडू जाकर उसने उसके बाद शाह गयासुद्दीन को पूरे कहानी सुनाई। गयासुद्दीन पहले से ही मेवाड़ पर खार खाता था और यह बात सुनकर उसने पुनः युद्ध की ठान ली और निश्चित किया कि इस बार कैसे भी करके महाराणा रायमल को पराजित करना है।

मेवाड़ के राजकुमार पृथ्वीराज और गयासुद्दीन के बीच युद्ध

मेवाड़ की तरफ से महाराणा रायमल के छोटे पुत्र राजकुमार पृथ्वीराज मेवाड़ी सेना के साथ युद्ध के लिए निकल पड़े। दूसरी तरफ मांडू से गयासुद्दीन की सेना भी मेवाड़ी रणबांकुरे से लोहा लेने के लिए युद्ध मैदान में पहुंची।

मेवाड़ी सेना और गयासुद्दीन की सेना के बीच मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर मुकाबला हुआ। इस बार दोनों तरफ से अच्छा युद्ध लड़ा जा रहा था ना मेवाड़ी सेना जीत पा रही थी ना ही गयासुद्दीन की सेना हार मान रही थी। पहले दिन का युद्ध बिना नतीजे के समाप्त हुआ। जैसे ही सूर्यास्त हुआ दोनों सेनाएं पीछे हट गई और अपने डेरे में जा पहुंची।

थक हार कर बैठे राजकुमार पृथ्वीराज ने खाना खाने के पश्चात चुनिंदा सरदारों को बुलाया और कहा कि मैंने पिता श्री महाराणा रायमल जी से गयासुद्दीन को जिंदा पकड़ कर दरबार में पेश करने का वादा किया था, जो कि अब थोड़ा मुश्किल लग रहा है क्योंकि हमारे सामने विशाल सेना है जिसका सामना करने के लिए हमें किसी चालाकी की जरूरत पड़ेगी।

रणनीति बनाकर 500 से अधिक मेवाड़ी सरदारों को बुलाया और पूरी रणनीति उन्हें समझा कर 10-10 लोगों का ग्रुप बनाकर गयासुद्दीन के डेरे की तरफ भेजा। वहां पहुंचते ही मेवाड़ के वीर रणबांकुरे ने गयासुद्दीन के मुख्य सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया और गया गयासुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया।

तभी अचानक से गयासुद्दीन के सैनिक उन्हें बचाने के लिए उनकी तरफ दौड़े लेकिन राजकुमार पृथ्वीराज ने कहा कि अगर कोई हमारे करीब आएगा तो हम गयासुद्दीन को मौत के घाट उतार देंगे। डर के मारे गयासुद्दीन भी ऊंची आवाज में अपने सैनिको तक संदेश पहुंचाया की तुम कुछ मत करो वरना यह लोग मुझे मार डालेंगे।

राजकुमार पृथ्वीराज ने गयासुद्दीन को गिरफ्तार करके मेवाड़ के राज दरबार में महाराणा रायमल के समक्ष प्रस्तुत कर दिया, जहां पर उसे दंड दिया गया और तहखाने में बंद कर दिया।इस बात को लगभग 1 महीना बीत जाने के पश्चात महाराणा रायमल (Rana Raimal) ने गयासुद्दीन को कैद से मुक्त करने का आदेश दिया। तारीख ए फरिश्ता नामक फारसी किताब में यह लिखा हुआ है कि गयासुद्दीन हारने के बाद सुख विलास में व्यस्त हो गया और उसके बाद कभी युद्ध नहीं किया।

महाराणा रायमल की वंशावली

मेवाड़ के महाराणा रायमल ने 13 राजकुमार और 2 राजकुमारियों को जन्म दिया। महाराणा रायमल का इतिहास उठाकर देखा जाए तो उन की दो पत्नियां थी जिनका नाम श्रृंगारदेवी और रतन बाई था। महाराणा रायमल के 13 पुत्रों के नाम निम्नलिखित है-

1. पृथ्वीराज।

2. जयमल।

3. संग्राम सिंह।

4. पत्ता।

5. राम सिंह।

6. भवानी दास।

7. कृष्ण दास।

8. शंकर दास।

9. नारायण दास।

10. देवीदास।

11. सुंदर दास।

12. ईश्वर दास।

13. वेणी दास.

महाराणा रायमल के 13 पुत्रों के अलावा दो पुत्रियां भी थी जिनका नाम-

1. आनन्दकुंवर।

2. दमाबाई कुंवर।

महाराणा रायमल के पुत्रों में लड़ाई

मेवाड़ में सब कुछ ठीक चल रहा था, तभी राजघराने के ज्योतिषी वहां पर आए। महाराणा रायमल के पुत्रों जिसमें संग्राम सिंह, जयमल और पृथ्वीराज ने अपनी जन्म कुंडली ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी राजकुमार पृथ्वीराज और राजकुमार जयमल के ग्रह नक्षत्र भी अच्छे हैं, लेकिन मेवाड़ का अगला राजा संग्राम सिंह होगा।

यहीं से महाराणा रायमल के पुत्रों के बीच मतभेद शुरू हो गए और दोनों बड़े भाइयों ने मिलकर  संग्राम सिंह को मारने का प्लान बनाया। 1 दिन की बात है राजकुमार पृथ्वीराज ने तलवार के पिछले हिस्से से संग्राम सिंह की आंख फोड़ दी।इनके बीच लड़ाई आगे बढ़ती इससे पहले उनके काका श्री सूरजमल वहां पर आ जाते हैं।

सूरजमल के आने से भाइयों के बीच आपस की लड़ाई बंद हो गई लेकिन एक बार शुरू हुआ यह विवाद और बढ़ता दिखाई दिया तब सूरजमल ने उन्हें बताया कि ज्योतिषियों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। और तुम्हें यह कतई शोभा नहीं देता कि पिता के जिंदा होते हुए तुम सिंहासन के लिए लड़ाई करो।

तुंगल शाखा के चारण की बीरी नामक कन्या

सूरजमल जोकि राजकुमार पृथ्वीराज के काका थे उन्होंने बताया कि यदि तुम अपना भविष्य जानना ही चाहते हो तो मैं एक ऐसी कन्या के बारे में बताता हूं जो एकदम सटीक भविष्यवाणी करेगी। सूरजमल ने बताया कि एकलिंग जी से पूर्व दिशा में नाहर मगरा के पास भीमल गांव में देवी का अवतार मानी जाने वाली बीरी नामक एक कन्या रहती हैं।

यह सुनकर तीनो भाई अपने काका सूरजमल के साथ नाहर मगरा की तरफ चल पड़े। भीमल गांव में तीनों बीरी के पास पहुंचे बीरी ने उन्हें बताया कि तुम कल देवी के मंदिर में आना वहीं पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

दूसरे दिन का सूर्योदय हुआ तीनों भाई और उनके काका सूरजमल देवी के दरबार में पहुंच गए। देवी के दरबार में पहुंचकर उन्होंने देखा कि वहां पर एक सिहासन पड़ा था, उस सिहासन पर राजकुमार पृथ्वीराज जाकर बैठ गया। पास में ही एक गादी बिछी हुई थी जिस पर सांगा अर्थात संग्राम सिंह जाकर बैठ गया और गादी के कोने पर उनके काका सूरजमल बैठ गए।

कुछ समय पश्चात शक्ति का अवतार माने जाने वाली बीरी वहां पर आई। उनको देखकर तीनों ने बीवी को प्रणाम किया और आग्रह किया कि हमारी समस्या का समाधान किया जाए इस पर बीरी ने कहा कि आपकी समस्या का समाधान हो चुका है, मैंने यह गादी मेवाड़ के स्वामी के लिए बिछाई है और यहां पर संग्राम सिंह आकर बैठ गए हैं, तो भविष्य में वही मेवाड़ के राजा होंगे।

भविष्यवाणी के छिड़ा आपसी युद्ध-

यह भविष्यवाणी होते ही राजकुमार पृथ्वीराज और जयमल दोनों ने मिलकर संग्राम सिंह पर हमला कर दिया। दूसरी तरफ सूरजमल और संग्राम सिंह भी दोनों पर टूट पड़े, इस लड़ाई में सूरजमल घायल हो गए। संग्राम सिंह भी घायल हो गए लेकिन अपने घोड़े पर बैठकर वहां से भाग निकले।

जयमल ने सोचा कि पृथ्वीराज और सूरजमल की मृत्यु हो गई होगी, अब अगर मैं संग्राम सिंह को खत्म कर दूं तो मेवाड़ पर मेरा अधिकार हो जाएगा। संग्राम सिंह भागकर सेवंत्री नामक गांव जा पहुंचा, जहां पर महाराणा हमीर सिंह द्वारा बनाया हुआ रूप नारायण भगवान का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर था।

संग्राम सिंह यहां पर रुक गए उसी समय वहां पर विदा जैतमलोत दर्शन के लिए आए। उन्होंने संग्राम सिंह को घायल अवस्था में देखा तो उनके गांवों पर पट्टी बांधी। तभी वहां पर संग्राम सिंह का बड़ा भाई जयमल भी अपने साथियों और सेना के साथ आ पहुंचा और विदा से आग्रह किया कि संग्राम सिंह को हमारे हवाले कर दो नहीं तो आप भी मारे जाएंगे। लेकिन विदा ने संग्राम सिंह के लिए साफ मना कर दिया और लड़ाई शुरू हो गई। विदा ने संग्राम सिंह को मारवाड़ की तरफ भेज दिया और इस लड़ाई में विदा की मृत्यु हो गई।

जब संग्राम सिंह जयमल के हाथ नहीं आया तो जयमल कुंभलमेर के किले में चला गया। दूसरी तरफ पृथ्वीराज और सूरजमल पेट ठीक हो गए। मेवाड़ के महाराणा रायमल ने पृथ्वीराज और जयमल के पास संदेश भेजा कि तुम मुझे मुंह मत दिखाना। मेरे जीते जी तुमने राज्य के लिए लड़ाई की है और अपने ही भाई संग्राम सिंह को मार दिया।

दूसरी तरफ अपनी जान बचाने में सफल रहे संग्राम सिंह मारवाड़ में जाकर एक गडरिया के यहां पर रुके। कुछ समय के पश्चात संग्राम सिंह यहां से निकले और अजमेर के निकट श्रीनगर के ठाकुर करमचंद पवार के पास पहुंचे। करमचंद पवार एक बहुत बड़ा लुटेरा था, लेकिन एक अच्छी सेना उनके पास थी। संग्राम सिंह ने भी भेस बदला और उनके साथ रहने लग गया।

सदरी की लड़ाई और राणा रायमल की मृत्यु

सूरजमल और रायमल की सेनाओं के बीच सदरी में आमना-सामना हुआ जिस पर सूरजमल ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में राणा रायमल के साथ उनका पुत्र पृथ्वीराज भी शामिल था। पृथ्वीराज के साथ आने से रायमल की ताकत और बढ़ गई।

सूरजमल और रायमल की सेनाओं के बीच हुए इस भयंकर युद्ध में पृथ्वीराज ने सूरजमल पर सीधा हमला कर दिया। सूरजमल को मेवाड़ छोड़कर जाना पड़ा और वह प्रतापगढ़ में जाकर बस गया, फिर भी दोनों के बीच में कई बार झड़प होती रही।

अबू देवरा नामक व्यक्ति ने राजकुमार पृथ्वीराज को जहर देकर मौत के घाट उतार दिया। सन 1509 ईसवी की बात है, मेवाड़ राजघराने के बहादुर और सिसोदिया वंश के बाहुबली योद्धा राणा जयमल की मृत्यु हो गई। राणा जयमल की मृत्यु के पश्चात संग्राम सिंह के लिए मेवाड़ आना आसान हो गया। मेवाड़ में वापसी करते ही संग्राम सिंह को मेवाड़ का सिंहासन मिला।

यह भी पढ़ें –

(1) महाराणा उदय सिंह प्रथम का इतिहास।

(2) महाराणा मोकल का इतिहास

(3) राणा लाखा का इतिहास

(4) राणा क्षेत्र सिंह का इतिहास

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