अजातशत्रु कौन था? यह जानने से पहले अजातशत्रु का अर्थ जानना जरूरी हैं। अजातशत्रु का अर्थ होता हैं “शत्रुविहीन” अर्थात् जिसका कोई दुश्मन या शत्रु पैदा नहीं हुआ हो। अब बात करते हैं कि अजातशत्रु कौन था, अजातशत्रु हर्यक वंश के प्रथम शासक बिंबिसार के पुत्र थे। अपने पिता को मौत के घाट उतारकर अजातशत्रु मगध के राजा बने।
अजातशत्रु हर्यक वंश से संबंध रखते थे। अजातशत्रु का दूसरा नाम कुणिक था। अजातशत्रु को बौद्ध धर्म का अनुयाई माना जाता है। अजातशत्रु के बेटे का नाम उदयभद्र और उदयिन था, उनकी मृत्यु के बाद मगध की गद्दी पर उनका पुत्र उदयिन बैठा।
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि अजातशत्रु का इतिहास क्या रहा, अजातशत्रु की हत्या किसने की और अजातशत्रु ने अपने शासनकाल में क्या मुख्य कार्य किए तो इस लेख को पुरा पढ़ें।
अजातशत्रु का इतिहास (History Of Ajatshatru)
मगध के राजा अजातशत्रु का इतिहास जानने से पहले हम संक्षिप्त में उनके जीवन परिचय की चर्चा करेंगे।
- पूरा नाम- मगध नरेश अजातशत्रु।
- अजातशत्रु के बचपन का नाम– कुणिक।
- जन्म वर्ष- 509 ई.पू.
- मृत्यु वर्ष- 461 ई.पू.
- पिता का नाम- राजा बिंबीसार।
- माता का नाम- वैदेही।
- पत्नी का नाम- राजकुमारी वजीरा।
- पुत्र- उदयभद्र और उदयिन।
- धर्म- जैन धर्म और बौद्ध धर्म।
- आजातशत्रु के मंत्री का नाम- वस्सकार।
- पूर्ववर्ती राजा- बिंबिसार।
- उत्तरवर्ती राजा- उदयभद्र।
- शासनकाल- 492 ई.पू. से 460 ई.पू. तक।
प्राचीन भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो कई नामी-गिरामी राजाओं ने यहां पर जन्म लिया और भारतवर्ष की शोभा को बढ़ाया। कई राजा अपने काम की वजह से विख्यात हुए तो कुछ अपने सृजनात्मक कार्यों की वजह से जाने गए।
कुछ राजा ऐसे भी थे जो अपनी क्रूरता और निरंकुश नीतियों के कारण गलत छवि छोड़ गए। प्राचीन समय में सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ राजा सभी हदों को पार करते हुए अपने परिवार के लोगों को ही मौत के घाट उतार देते थे।
मगध नरेश राजा अजातशत्रु के बारे में भी यह बात विख्यात है कि उन्होंने अपने पिता को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था। अजातशत्रु मगध राज्य के नरेश थे। अजातशत्रु ने मगध का सिंहासन अपने पिता राजा बिंबिसार की हत्या करके प्राप्त किया था। अजातशत्रु शूरवीर और प्रतापी राजा के रूप में जाने जाते हैं। सम्राज्य विस्तार की नीति अपनाते हुए राजा अजातशत्रु ने मगध साम्राज्य की सीमाओं को चरमोत्कर्ष तक पहुंचा दिया था।
अजातशत्रु ने मगध राज्य पर कितने समय तक राज्य किया इसके बारे में कोई स्पष्ट लेख मौजूद नहीं है लेकिन “सिंहली अनुश्रुतियों” का अध्ययन किया जाए तो राजा अजातशत्रु ने लगभग 32 वर्षों तक शासन किया था। 32 वर्ष के सुशासन के पश्चात अजातशत्रु की हत्या उनके पुत्र उदयन द्वारा की गई।
अजातशत्रु ने काशी, कोसल, वज्जी, लिच्छवी और अंग जैसे जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर हर्यक वंश के साम्राज्य का विस्तार किया। अजातशत्रु भगवान बुद्ध के समकालीन थे। पाटलिपुत्र की स्थापना का श्रेय अजातशत्रु को जाता है।
राजा अजातशत्रु को सत्ता कैसे मिली?
माता वैदेही और पिता बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु आगे चलकर मगध का सम्राट बना। इतिहासकारों के अनुसार अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार को जेल में डाल कर सत्ता हासिल की। अजातशत्रु को कठोर दिल वाला इंसान माना जाता है।
वह बचपन से ही साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेने की महत्वकांक्षी रखता था,लेकिन सबसे बड़ा रोड़ा था उसके पिता बिंबिसार। सबसे पहले राजा अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार से बात की और उन्हें अवगत कराया कि वह मगध साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहता है लेकिन छोटी उम्र देख कर उसके पिता ने मना कर दिया इसके बाद अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार को बंदी बना लिया।
राजा बिंबिसार को बन्दी बनाकर 491 ईसा पूर्व में अजातशत्रु मगध के राजा बने।
आजातशत्रु की साम्राज्य विस्तार निति
सत्ता अपने हाथ में लेते ही अजातशत्रु (Ajatshatru) ने राज्य की सीमाओं के विस्तार करने पर विशेष ध्यान दिया। काशी, कोसल, वज्जी, लिच्छवी और अंग जैसे जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर विशाल राज्य की स्थापना करने में कामयाबी हासिल की।
ऊपर बताए गए पांच महाजनपदों के अतिरिक्त छठा जनपद था मगध और इन सबके राजा थे अजातशत्रु। धीरे-धीरे अजातशत्रु ने भारत के 40% हिस्से पर अधिकार कर लिया।अजातशत्रु के मंत्री “वस्सकार” कुशल राजनीतिज्ञ का परिचय देते हुए लिच्छिवियों में फूट डाल दी, परिणामस्वरूप अजातशत्रु को यह साम्राज्य भी मिल गया।
अजातशत्रु की कोसल पर विजय
प्रसेनजीत नामक राजा का उस समय कोसल पर राज था। साम्राज्य विस्तार की नीति के तहत अजातशत्रु कोसल पर आक्रमण करके इस जनपद को अपने साम्राज्य में मिलाना चाहता था।
कोसल महाजनपद को जीतने के लिए अजातशत्रु (Ajatshatru) द्वारा किया गया युद्ध, उनके जीवन काल का प्रथम युद्ध माना जाता है।काशी जनपद के उत्तर क्षेत्र को पुनः अपने अधिकार में लेने के लिए राजा प्रसेनजीत ने शक्ति का प्रयोग किया।
इस घटनाक्रम को देखकर अजातशत्रु भी अपनी सेना के साथ वहां पर पहुंचे। मगध और कोसल की सेनाएं आमने सामने थी, जिसके बाद राजा अजातशत्रु और कोसल नरेश प्रसेनजीत के बिच एक भयानक युद्ध हुआ।
इस युद्ध में अजातशत्रु ने अपनी शक्ति का लोहा मनवाया और प्रसेनजीत के साथ संधि कर ली, अब यह कौशल का पूरा क्षेत्र राजा अजातशत्रु के अधीन आ गया।
इस संधि के तहत कौशल नरेश प्रसेनजीत ने अपनी पुत्री वजीरा का विवाह, मगध साम्राज्य के राजा अजातशत्रु के साथ कर दिया। काशी का पूरा क्षेत्र जो राजा बिंबिसार के अधीन था और उसे प्रसनजीत पुनः प्राप्त करना चाहता था। वह कर नहीं पाया और पुनः मगध साम्राज्य में मिल गया।
अजातशत्रु द्वारा वज्जि पर आक्रमण और विजय
जीत किसी भी राजा के उत्साह को दोगुना कर देती है। राजा अजातशत्रु के साथ भी ऐसा ही हुआ। कौशल सेना को बुरी तरह पराजित करने के बाद अजातशत्रु का हौसला सातवें आसमान पर था। बढ़ती साम्राज्य विस्तार की लालसा ने अजातशत्रु को युद्ध के लिए तैयार किया।
8 गणों वाले वज्जी संघ को अपने सम्राज्य में मिलाकर विशाल साम्राज्य स्थापित करने का सपना देख रहे राजा अजातशत्रु के लिए यह वज्जी पर हमला करने का यह उचित समय था। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी कि यह राज्य एकजुट था, विशाल सेना थी और ताकतवर भी थी।
तभी राजा अजातशत्रु ने अपने मंत्री वस्सकार को बुलाया और रणनीति बनाने का कार्य सौंपा। अजातशत्रु का मंत्री वस्सकार बहुत ही चतुर और कुशल राजनीतिज्ञ था, उसने वज्जी के आठों गणों में विद्रोह की स्थिति पैदा कर दी, जिससे राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और कमजोर पड़ते इस राज्य पर अजातशत्रु ने आक्रमण कर दिया।
आठों गणों के लोगों को स्वतंत्रता चाहिए थी, इसी का फायदा उठाकर राजा अजातशत्रु ने अपने सैनिक भेजकर उनकी मदद की जिससे संपूर्ण साम्राज्य उसे प्राप्त हो गया।
अजातशत्रु की उपलब्धियां या अजातशत्रु के कार्य
अजातशत्रु ने अपने जीवन काल में लोगों की भलाई के लिए एवं साम्राज्य विस्तार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। इन्हीं कार्यों को अजातशत्रु की उपलब्धियां माना जाता है।
अजातशत्रु की मुख्य उपलब्धियां निम्नलिखित है–
1. महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण पर अजातशत्रु ने भी बुध की अस्थियां प्राप्त करने का प्रयास किया था यह अजातशत्रु के समय घटित होने वाली सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी।
2 अजातशत्रु ने भगवान बुद्ध की अस्थियां लाकर उनकी स्मृति में राजगृह की पहाड़ियों पर एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
3 बौद्ध संघ की पहली संगीति राजगृह की वैमर पर्वत की सप्तपरणी गुहा में हुई थी।
4 अजातशत्रु के समय बुध की प्रथम संगीति में सूत पीतक और विनय पिटक का संपादन हुआ, यह अजातशत्रु की उपलब्धियों में गिना जाता है।
5. बौद्ध धर्म के संरक्षण और विशाल साम्राज्य विस्तार की वजह से राजा अजातशत्रु को एक महान राजा के रूप में ख्याति प्राप्त हुई, यह भी उनकी एक उपलब्धि है।
अजातशत्रु की मृत्यु कैसे हुई?
हर्यक वंश के सभी राजाओं के बारे में यह बात प्रचलित है कि उनके परिवार और प्रिय जनों द्वारा ही उनकी हत्या की गई और यही वजह है कि इसे हर्यक वंश के साथ-साथ पितृहंता वंश के नाम से जाना जाता हैं।
जिस तरह राजा अजातशत्रु ने अपने पिता बिंबिसार की हत्या कर दी थी, उसी प्रकार राजा अजातशत्रु के बारे में भी कहा जाता है कि उनके पुत्र उदयन द्वारा 461 ईसा पूर्व में उनकी हत्या कर दी गई।
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2. राजा बिंबिसार का इतिहास और कहानी।