सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आम्रपाली का इतिहास || History Of Amrapali

आम्रपाली कौन थी? सबसे पहले आपको बताते हैं आम्रपाली एक बहुत ही सुंदर कन्या थी जिसे समय के फेर ने नगरवधू बना दिया और बाद में महात्मा बुद्ध की शरण में जाकर भिक्षुणी बन गई।

आम्रपाली के जीवन की कहानी में बहुत उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो हर्यक वंश के संस्थापक राजा बिंबिसार भी आम्रपाली की सुंदरता के कायल थे।

Amrapali History and Story in Hindi.आम्रपाली का इतिहास और कहानी।
आम्रपाली (amrapali photo)

आम्रपाली का इतिहास और कहानी

नाम– आम्रपाली।

अन्य नाम- अम्बपाली या अम्बपालिका।

माता पिता का नाम- अज्ञात।

किसको मिली- महनामन (एक सामंत).

जन्म- लगभग 2500 वर्ष पूर्व (भगवान बुद्ध के समकालीन).

प्रसिद्धि- नगरवधु।

आम्रपाली की कहानी की शुरूआत वैशाली नगर से होती हैं वर्तमान में बिहार (भारत) में स्थित हैं। अगर ऐसे देखा जाए तो वैशाली वह नगर हैं जिसने सम्पूर्ण विश्व को सबसे पहले गणतंत्र का पाठ पढ़ाया था। इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजा महाराजाओं के साथ असीम सुंदरता की धनी नगरवधू आम्रपाली के किस्सों से इतिहास के पन्ने रंगे हुए हैं।

आज से लगभग 25 सौ वर्ष पूर्व एक गरीब दंपत्ति को आम के पेड़ के नीचे एक मासूम कन्या मिली। इसको यहां कौन छोड़ गया, इसका कुछ भी पता नहीं था। लावारिस रूप में मिली इस मासूम और सुंदर कन्या को महनामन नामक एक सामंत ने पेड़ के नीचे से उठाया और अपने घर ले गया।

क्योंकि यह आम के वृक्ष के नीचे पड़ी मिली थी इसलिए इसका नामकरण उस सामंत ने आम के नाम पर ही “आम्रपाली” रखा। आम्रपाली जब युवावस्था में पहुंची तो वैशाली नगर के सभी युवक उससे शादी करने के लिए तड़पने लगे। आम्रपाली के माता पिता के पास रोज सैकड़ों रिश्ते आने लगे। आम आदमी से लेकर राजा महाराजा तक। एक छोटा सा काम करने वाले व्यक्ति से लेकर व्यापारी तक, हर कोई आम्रपाली को पाना चाहता था।

आम्रपाली के माता पिता के लिए यह बहुत ही दुविधापूर्ण और संकट का समय था क्योंकि अगर वह किसी एक को आम्रपाली के लिए चुनते तो वैशाली नगर में अशांति फैलने का डर था।

आम्रपाली नगरवधु कैसे बनी?

इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला के रूप में जाने जाने वाली आम्रपाली को जब कोई एक बार देख लेता तो फिर उसकी नजर नहीं हटती, इतना ही नहीं इसके बाद वह किसी अन्य स्त्री में दिलचस्पी नहीं लेता था। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम्रपाली कितनी सुंदर थी। आइए अब जानते हैं आम्रपाली वैशाली की सबसे सुंदर कन्या से नगरवधू कैसे बनी।

आम्रपाली के माता पिता उसके विवाह को लेकर चिंता में पड़ गए क्योंकि वह किसी से भी दुश्मनी नहीं करना चाहते थे। आम्रपाली की सुंदरता और विवाह से संबंधित समस्या का निराकरण करने के लिए वैशाली में एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया गया।

इस सभा में हजारों की संख्या में युवाओं ने भाग लिया, जो आम्रपाली से विवाह करना चाहते थे। इतनी बड़ी मात्रा में एक साथ युवाओं को देखकर वैशाली गणतंत्र की सभा में यह निर्णय लिया गया की आज से आम्रपाली किसी एक की ना होकर संपूर्ण वैशाली नगर की नगरवधू घोषित की जाती है।

ऐसा करने के पीछे मुख्य कारण वैशाली गणतंत्र की एकता और अखंडता को बनाए रखना था। अगर किसी एक के साथ आम्रपाली का विवाह किया जाता तो ऐसा अंदेशा था कि राज्य में अशांति फैल जाती, क्योंकि अब आम्रपाली नगरवधू बन गई अतः हर कोई स्वतंत्रता के साथ उसे प्राप्त कर सकता था।

इस तरह का निर्णय आम्रपाली को आजीवन नगरवधू और उसके पश्चात राज दरबार की नर्तकी बना कर छोड़ दिया।इतना ही नहीं आम्रपाली के लिए एक बहुत बड़े और खूबसूरत महल की व्यवस्था की गई जिसमें उसकी सेवा करने के लिए दासियों को भी लगाया गया। आम्रपाली के महल में सभी सुख सुविधाएं थी लेकिन उसके ऊपर लगा सबसे बड़ा कलंक अमिट था।

आम्रपाली के पास इतनी अधिक मात्रा में धन दौलत थी कि राजा महाराजा और बड़े-बड़े व्यापारी भी उनसे उधार पैसे लेते थे।

आम्रपाली और भगवान बुद्ध का सम्बन्ध

कहते हैं कि संतो के संपर्क में आने से बुरे से बुरा इंसान भी अच्छा बन जाता है। आम्रपाली के साथ भी ऐसा ही हुआ। वैशाली नगर में एक नगरवधू का जीवन यापन कर रही आम्रपाली के जीवन के अंतिम समय में ऐसा पड़ाव आया जिसने उसके जीवन को पूर्णतया बदल दिया। यह घटना उस समय की है जब आम्रपाली भगवान बुद्ध के संपर्क में आई और उनके प्रवचन सुने। आम्रपाली और बुद्ध का संबंध एक गुरु और शिष्य का था।

एक दिन आम्रपाली महल में आराम कर रही थी तभी उनके द्वार पर एक भिक्षुक भिक्षा मांगने के लिए आया। जब भिक्षा देने के लिए वह दरवाजे पर आई तो उस भिक्षुक को देखते रह गई। उस भिक्षुक के प्रति आम्रपाली के मन में प्रेम उमड़ आया। शायद यह वह क्षण था जब पहली बार आम्रपाली और बुद्ध का सम्बन्ध स्थापित हुआ.

उस भिक्षुक के पीछे बहुत सारे भिक्षुक थे जिन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वह भिक्षा मांगने के लिए आम्रपाली की चौखट पर आए हैं। क्योंकि वैशाली नगर के रहने वाले भिक्षुक आम्रपाली को हीन भावना से देखते थे।

भिक्षा देने के पश्चात् आम्रपाली ने भिक्षुक से आग्रह किया कि कुछ ही दिनों में वर्षा ऋतु प्रारंभ होने वाली है, मेरा आपसे आग्रह है कि इस समय अवधि में आप मेरे महल में ही ठहरे।

इस आग्रह के प्रत्युत्तर में युवक ने कहा कि इसके लिए मुझे अपने स्वामी अर्थात महात्मा बुद्ध से अनुमति लेनी होगी, अगर इसके लिए वह सहमत हो जाएंगे तो मैं यहां रुक जाऊंगा।जब यह बात महात्मा बुद्ध के पास पहुंची तो महात्मा बुद्ध ने अन्य शिष्यों से कहा कि अभी वह वहां पर रुका नहीं है, उसे रुकने के लिए मेरी अनुमति की जरूरत है और वैसे भी बिना मेरी अनुमति के वह वहां पर नहीं रुकेगा।

आम्रपाली की चौखट पर भिक्षा मांगने गया युवक जैसे ही लोटा सबसे पहले महात्मा बुद्ध के पैर छुए और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। इस पर बुद्ध ने उस भिक्षु से कहा कि तुम वहां पर रह सकते हो।

भगवान बुद्ध के इस निर्णय से अन्य भिक्षुक स्तब्ध रह गए, उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि बुद्ध इस तरह का निर्णय ले सकते हैं। बुध से आज्ञा लेकर वह भिक्षु आम्रपाली के महल में चार माह रहने के लिए चला गया। तभी बुद्ध ने अन्य भिक्षुओं को आदेश दिया कि तुम अपनी दिनचर्या का पालन करो, मुझे उस पर पूरा यकीन है कि उसके मन में अब कुछ इच्छा नहीं है।

यदि उसे वहां पर रहने के लिए आज्ञा नहीं दी जाती तो उसको आघात पहुंचता क्योंकि उसका मन निर्मल है और मुझे पूरा यकीन है कि वह आम्रपाली से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होगा। जहां तक मैं उसे जानता हूं उसका धम्म अटल है और वह आम्रपाली के सामने समर्पण नहीं करेगा।

इतना ही नहीं एक भिक्षु के लिए यह परीक्षा का समय है कि वह कितना अटल रह सकता है। हम सबको 4 महीनों का इंतजार करना पड़ेगा और यकीनन वह मेरे विश्वास पर खरा उतरेगा और लौट आएगा।

जब आम्रपाली बुध की शरण में आई

वर्षा ऋतु चली गई इसके साथ ही वह भिक्षुक महात्मा बुद्ध के पास लौट आया। अन्य भिक्षुओं ने देखा कि उसके पीछे पीछे आम्रपाली भी बुद्ध की शरण में आ गई।

महात्मा बुद्ध के पास पहुंचकर सबसे पहले आम्रपाली ने उनको प्रणाम किया और उनसे आज्ञा मांगी कि वह भी भिक्षुणी संघ में शामिल होना चाहती है।

साथ ही यह भी बताया कि वह उस भिक्षु को उसकी खींचने के लिए हर संभव प्रयास किया, तरह तरह के लालच दिए लेकिन वह तनिक भी विचलित नहीं हुआ।

यह देखकर मेरा मन परिवर्तित हो गया और अब मैं भी एक भिक्षुणी का जीवन यापन करना चाहती हूं और यह भी जानती हूं कि यही सत्य और मुक्ति का मार्ग है। मेरे पास मौजूद समस्त धनसंपदा को मैं आपके चरणों में समर्पित करती।

आम्रपाली का महल बौद्ध भिक्षुओं का वह मुख्य स्थान बन गया जहां पर चातुर्मास में सभी भिक्षुक यहां पर रहते। नगरवधू से लेकर महात्मा बुद्ध की सबसे प्रतिष्ठित भिक्षुणियों में शामिल होने तक का यह सफर आम्रपाली के लिए कतई आसान नहीं था। आम्रपाली और बुद्ध का संबंध ने आम्रपाली के जीवन को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया।

यह भी पढ़ें-

  1. अजातशत्रु का स्वर्णिम इतिहास।
  2. नागा साधु और अहमद शाह अब्दाली के बिच युद्ध, जो इतिहास के पन्नों से गायब हैं.
  3. हर्यक वंश का इतिहास।
  4. राजा बिंबिसार का इतिहास।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम, स्थान, स्तुति मंत्र || List Of 12 Jyotirlinga

List Of 12 Jyotirlinga- भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं. भगवान शिव को मानने वाले 12 ज्योतिर्लिंगो के दर्शन करना अपना सौभाग्य समझते हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता हैं कि इन स्थानों पर भगवान शिव ज्योति स्वररूप में विराजमान हैं इसी वजह से इनको ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता हैं. 12 ज्योतिर्लिंग अलग-अलग स्थानों पर स्थित हैं. इस लेख में हम जानेंगे कि 12 ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? 12 ज्योतिर्लिंग कहाँ-कहाँ स्थित हैं? 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान. यहाँ पर निचे List Of 12 Jyotirlinga दी गई हैं जिससे आप इनके बारे में पूरी जानकारी हासिल कर पाएंगे. 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि ( List Of 12 Jyotirlinga ) 12 ज्योतिर्लिंग के नाम और स्थान सूचि (List Of 12 Jyotirlinga) निम्नलिखित हैं- क्र. सं. ज्योतिर्लिंग का नाम ज्योतिर्लिंग का स्थान 1. सोमनाथ (Somnath) सौराष्ट्र (गुजरात). 2. मल्लिकार्जुन श्रीशैल पर्वत जिला कृष्णा (आँध्रप्रदेश). 3. महाकालेश्वर उज्जैन (मध्य प्रदेश). 4. ओंकारेश्वर खंडवा (मध्य प्रदेश). 5. केदारनाथ रूद्र प्रयाग (उत्तराखंड). 6. भीमाशंकर पुणे (महाराष्ट्र). 7...

कंस द्वारा मारे गए देवकी के 6 पुत्रों सहित सभी 8 पुत्रों के नाम

 भगवान  श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी आप सभी जानते हैं। कंस जब अपनी बहिन देवकी का विवाह वसुदेवजी के साथ करने के बाद खुद उसके ससुराल छोड़ने के लिए जा रहा था तब आकाशवाणी हुई की देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाली 8वीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी।  जब कंस को ये पता चला कि उसकी चचेरी बहन देवकी का आठवाँ पुत्र उसका वध करेगा तो उसने देवकी को मारने का निश्चय किया। देवकी के 8 पुत्रों के नाम. देवकी के पति वासुदेव जी ने कंस से प्रार्थना कर देवकी को ना मरने का आग्रह किया।  वसुदेव के आग्रह पर वो उन दोनों के प्राण इस शर्त पर छोड़ने को तैयार हुआ कि देवकी की गर्भ से जन्म लेने वाले हर नवजात शिशु को कंस को सौंप देंगे। दोनों ने उनकी ये शर्त ये सोच कर मान ली कि जब कंस उनके नवजात शिशु का मुख देखेगा तो प्रेम के कारण उन्हें मार नहीं पाएगा। किन्तु कंस बहुत निर्दयी था। उसने एक-एक कर माता देवकी के 6 पुत्रों को जन्म लेते ही मार दिया। सातवीं संतान को योगमाया ने देवकी की गर्भ से वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया इसीलिए वे संकर्षण कहलाये और बलराम के नाम से ...

मूमल महेंद्र की प्रेम कहानी || Love Story Of Mumal-Mahendra

मूमल महेंद्र की प्रेम कहानी ना सिर्फ राजस्थान बल्कि संपूर्ण विश्व में विख्यात है। यह ऐतिहासिक प्रेम कहानी जरा हटके है, जहां मूमल बहुत सौंदर्यवान थी वहीं दूसरी तरफ महेंद्र अदम्य साहस के धनी थे। मूमल और महेंद्र की प्रेम कहानी आज से लगभग 2000 वर्ष पुरानी है लेकिन उतनी ही लोकप्रिय है। महेंद्र और मूमल का इतिहास कहें या फिर महेंद्र और मुमल की प्रेम कहानी एक ही बात है, जिसकी चर्चा हम इस लेख में करेंगे. मूमल राजस्थान के जैसलमेर की राजधानी लौद्रवा की रहने वाली थी जबकि महेंद्र अमरकोट (पाकिस्तान) के रहने वाले थे। जिस तरह हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल, ढोला-मारू, संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान , राजा मानसिंह और मृगनयनी , जीवाजी राव सिंधिया और विजया राजे सिंधिया , बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानियां विश्व विख्यात है उसी तरह मूमल महेंद्र की प्रेम कहानी भी विश्व विख्यात है। मूमल महेंद्र की प्रेम कहानी लौद्रवा नगर (जैसलमेर) के समीप बहने वाली काक नदी के किनारे बसा हुआ था। यहीं पर रानी मूमल का का महल था जिसे “इकथंभीया-महल” कहा जाता हैं. राजस्थान में महल के ऊपर छत पर बने कमरों को मेड़ी कहा जाता है...