चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बनें?
चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बनें? यह प्रश्न सबके मन हैं लेकिन किंग और किंग मेकर में अंतर होता हैं और शायद यही कारण था कि एक बहुत बड़े किंगमेकर होने के कारण आचार्य चाणक्य स्वयं राजा नहीं बनें. चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध जैसे विशाल साम्राज्य का राजा बनाने वाले चाणक्य चाहते तो स्वयं राजा बन सकते थे।
इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर ऐसी क्या वजह या कारण रहे जिनके चलते चाणक्य स्वयं राजा नहीं बनें.
चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बनें? इसके 10 बड़े कारण
1. आचार्य चाणक्य बहुत बड़े राष्ट्र प्रेमी थे। राजनीति में आने पर उनके मन में कपट और लालचा आ सकता था इसलिए चाणक्य स्वयं राजा नहीं बनें।
2. अपने पिता की हत्या का बदला लेना ही चाणक्य का मुख्य उद्देश्य था ना कि राजा बनना, इसलिए उन्होंने मगध के राजा के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना।
3. आचार्य चाणक्य वैराग्य भाव वाले व्यक्ती थे इसलिए उन्हें राजा बनना पसंद नहीं था।
4. तीक्ष्ण बुद्धि और नीति की वजह से चाणक्य जानते थे कि वो स्वयं राजा नहीं बनकर किसी दुसरे को राजा बनाया जाए तो यह राज्य के हित में होगा।
5. चाणक्य उनके पिता के हत्यारे धनानंद से बदला लेना चाहते थे और वो अपने इस उद्देश्य को पूरा कर लिया।
6. आचार्य चाणक्य अच्छी तरह से जानते थे कि चन्द्रगुप्त मौर्य एक बहुत ही चतुर और कुशल नेतृत्वकर्ता थे इसलिए चाणक्य ने उन्हें राजा के रूप में चुना।
7. देश हित, जन हित और सामाज कल्याण में विश्वास रखने वाले आचार्य चाणक्य को राजनेता बनने में दिलचस्पी नहीं थी।
8. वो अपनी योग्यता से वाकिफ थे, इसलिए किंग नहीं बनकर किंग मेकर बनें।
9. मार्गदर्शन का काम आचार्य चाणक्य से बेहतर कोई नहीं कर सकता था इसलिए चाणक्य स्वयं राजा नहीं बनें और चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना।
10. सब अपने अपने कामों में एक्सपर्ट होते हैं जैसे कि बाजीराव पेशवा अस्त्र और शस्त्र विद्या में निपूर्ण होने के बाद भी राजा नहीं थे। यहीं वजह थी कि आचार्य चाणक्य स्वयं राजा नहीं बनें.
पहली कहानी जो साबित कर देगी कि चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बनें?
सर्दी का समय था मौर्य साम्राज्य के प्रथम शासक चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य चाणक्य को बुलाया और कहा कि गरीबों में कंबल का वितरण किया जाए। यह कह कर उन्हें सैकड़ों की तादाद में कंबल दिए।
सभी कंबल को लेकर आचार्य चाणक्य अपनी छोटी सी झोपड़ी में चले गए। रात्रि का समय था कुछ चोर वहां पर चोरी करने के लिए पहुंचे लेकिन वहां का दृश्य देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ।
उन्होंने देखा कि आचार्य चाणक्य के समीप सैकड़ों कंबल पड़ी होने के बावजूद भी वह एक फटी हुई कंबल ओढ़ कर सो रहे थे और उन्हें ठंड भी लग रही थी। चोरों ने चोरी करने के बजाय आचार्य चाणक्य को जगाया और उनसे कहा कि आपके पास में इतनी सारी कंबल होने के बाद भी आप इस फटी हुई कंबल को ओढ़ कर सो रहे हैं जो निश्चित तौर पर इस कड़ाके की सर्दी को रोकने में असमर्थ है।
यह बात सुनकर आचार्य चाणक्य ने जवाब दिया कि राजा ने यह कंबले गरीबों को बांटने के लिए दी है इन पर मेरा कोई अधिकार नहीं है इसलिए मैं इनका उपयोग नहीं कर रहा हूं।
यह घटना देख कर चोरों का मन परिवर्तन हो गया और उन्होंने भी साधारण लोगों की तरह जीवन यापन करने की ठान ली और चोरी करना बंद कर दिया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आचार्य चाणक्य के लिए राष्ट्रहित और जनहित पहले नंबर पर था इसलिए उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को मगध जैसे विशाल साम्राज्य का राजा चुना।
दुसरी कहानी जो साबित कर देगी कि चाणक्य स्वयं राजा क्यों नहीं बनें?
आचार्य चाणक्य से संबन्धित एक प्रेरक प्रसंग बहुत ही प्रचलित हैं। एक बार मेगास्थनीज आचार्य चाणक्य से मिलने गया। जब वह चाणक्य जी की झोपड़ी पर पहुंचा तो आश्चर्य चकित रह गया। एक इतना बड़ा विद्वान एक टूटी फूटी झोंपड़ी में रहता हैं यह उसने कभी सोचा भी नहीं होगा।
चाणक्य के सामने 2 दीपक रखें हुए थे,एक जल रहा था दूसरा ऐसे ही पास में पड़ा था। चाणक्य कुछ काम कर रहे थे। थोड़ी देर बाद उन्होंने दिये को बुझा दिया और पास में रखे दुसरे दीपक को जला लिया।
यह देखकर मेगास्थनीज के दिमाग़ में एक प्रश्न खड़ा हो गया कि आख़िर चाणक्य ने ऐसा क्यों किया? मेगास्थनीज उनके करीब गए और पुछा कि पहले भी दीया जल रहा था, आपने उसको बुझाकर दूसरा जलाया यह बात मेरे गले नहीं उतरती कि आपके जैसा विद्वान ऐसे कैसे कर सकते हैं।
तब हल्की सी मुस्कान के साथ आचार्य चाणक्य ने जवाब दिया कि पहले मैं व्यक्तिगत काम कर रहा था इसलिए मेरा स्वयं का दीपक जलाएं रखा था। अब मैं राजा का काम कर रहा हूं इसलिए सरकारी दीपक काम में ले रहा हूं। इस घटना से अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि वो कितने ईमानदार और राष्ट्र प्रेमी थे।
यह भी पढ़ें-
चाणक्य की मौत कैसे हुई?
चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास।
Post a Comment