राणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई? (Maharana Sanga ki Mrityu Kaise Hui) पढ़ें, इसके पिछे की सच्ची कहानी।
महाराणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई (Maharana Sanga ki Mrityu Kaise Hui) इस पर आज भी 2 राय है। विश्व प्रसिद्ध और ऐतिहासिक खानवाँ के युद्ध के पश्चात् राणा सांगा जब पुनः अपने राज्य (मेवाड़) लौट रहे थे, तब कालपी नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हो गई।
महाराणा सांगा की मृत्यु की असली वजह पर आज भी संशय है, हम इस लेख के माध्यम से इस संशय को दूर करने के साथ साथ यह भी जानेंगे कि वास्तव में महाराणा सांगा की मृत्यु की वजह क्या रही।

महाराणा सांगा की मृत्यु के पिछे की असली कहानी (Maharana Sanga ki Mrityu Kaise Hui)-
महाराणा सांगा और बाबर के मध्य लड़े गए खानवा के ऐतिहासिक युद्ध में भीतरी घात और असंगठित सेना के साथ साथ आपसी मतभेदों के चलते महाराणा सांगा की हार हुई। और वह घायल अवस्था में पुनः अपने सैनिकों के साथ मेवाड़ की तरफ निकल पड़े। प्रसिद्ध लेखक और इतिहासकार K.V. कृष्ण राव के अनुसार महाराणा सांगा विदेशी आक्रांता बाबर को देश से बाहर निकालने के लिए महमूद लोदी (इब्राहिम लोदी का भाई) और हसन खां मेवाती (अफ़गानी) का समर्थन लेने में कामयाब रहे
प्रारंभ में महाराणा सांगा ने बयाना का युद्ध में बाबर को पराजित कर दिया। लेकिन उसके बाद असंगठित सेना और आपसी मतभेदों के चलते खानवाँ युद्ध में हार गए। अपनी सेना को पुनः संगठित और सुव्यवस्थित करके महाराणा सांगा बाबर को ख़त्म करना चाहते थे। लेकिन यदि इसमें महाराणा सांगा सफ़ल हो जाते तो पूरे भारत वर्ष में उनके नाम का डंका बजने लग जाता, तो हुआ ऐसा कि कुछ लोगों (कुछ सरदार भी शामिल) ने राणा सांगा के साथ होने का ढोंग करते हुए उन्हें ज़हर दे दिया।
इसी विश्वासघात के चलते कालपी नामक स्थान पर 30 जनवरी 1528 को महाराणा सांगा की मृत्यु (Maharana Sanga ki Mrityu Kaise Hui) हो गई।
इस युद्ध के समय एक ऐसी घटना सामने आई जिसका उल्लेख करने से इतिहासकार डरते हैं और वह है महाराणा सांगा की जीत। कहा जाता है कि इस समय बाबर के पास एक भी तोप नहीं थी, हो सकता हैं इस युद्ध में उनकी जीत हुई हो।
महाराणा सांगा की मृत्यु को लेकर यह भी कहा जाता कि खानवाँ के युद्ध में महाराणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए थे जिसकी वजह से वापस चित्तौड़ लौटते समय रास्ते में उनकी मृत्यु हो गई। महाराणा सांगा की अन्तिम इच्छानुसार मांडलगढ़ में उनका अन्तिम संस्कार किया गया, जहां पर आज भी महाराणा सांगा की छतरी बनी हुई हैं।
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