रानी नायकी देवी कौन थी || History Of Rani Nayika Devi
रानी नायकी देवी इतिहास के पन्नों से गायब एक ऐसी वीरांगना थी जिसने पृथ्वीराज चौहान को धोखे से पराजित करने वाले मोहम्मद गौरी को नपुसंक बना दिया। रानी नायकी देवी का इतिहास भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाना चाहिए था लेकिन दोहरी मानसिकता से ग्रसित इतिहासकारों ने रानी नायकी देवी का नामोनिशान इतिहास की किताबों से मिटा दिया।
जब आप रानी नायकी देवी का इतिहास और कहानी पढ़ेंगे तो आपको गर्व होगा कि हमारे समाज में ऐसी महान वीरांगना ने जन्म लिया था। रानी नायकी देवी ने तलवार के एक बार से मोहम्मद गौरी की गुदा फाड़ दी।
इस लेख में आप पढ़ेंगे कि रानी नायकी देवी कौन थी या रानी नायकी देवी का इतिहास या रानी नायकी देवी की कहानी और मोहम्मद गौरी को पराजित करने की पूरी कहानी।
रानी नायकी देवी का इतिहास (History Of Rani Nayika Devi)
परिचय का आधार | परिचय |
पूरा नाम | रानी नायकी देवी सोलंकी ( Rani Nayika Devi solanki). |
नायकी देवी कहां की रानी | गुजरात (भारत). |
राजधानी | अंहिलवाड़ा. |
वंश | चालुक्य वंश. |
पिता का नाम | महाराजा शिवचित्ता परमांडी (कंदब के महामंडलेश्वर). |
पति का नाम | अजयपाल सिंह. |
पुत्र का नाम | मूलराज सिंह द्वितीय और भीमदेव द्वितीय. |
किसके साथ युद्ध हुआ | मोहम्मद गौरी. |
कब हुआ | 1178 ईस्वी. |
विजेता | रानी नायकी देवी. |
गुजरात के चालुक्य वंश की राजकुमारी नायकी देवी सोलंकी का जन्म गोवा में हुआ था। बचपन से युद्ध कला में महारत हासिल करने वाली राजकुमारी नायकी देवी सोलंकी एक कुशल कूटनीतिज्ञ भी थी। इनके पिता महाराजा शिवचित्ता परमांडी, कंदब के महामंडलेश्वर थे। जब राजकुमारी नायकी देवी सोलंकी बड़ी हुई तो इनका विवाह गुजरात के राजकुमार अजयपाल सिंह के साथ हुआ। अजयपाल सिंह गुजरात के महाराजा महिपाल के पुत्र थे।
सन 1175 ईस्वी में अजयपाल सिंह की उनके ही अंगरक्षक ने हत्या कर दी और मौत के घाट उतार दिया। महाराजा अजयपाल सिंह का कार्यकाल 4 वर्षों का रहा, 1171 ईस्वी से लेकर 1175 ईस्वी तक इन्होंने राज किया था।
रानी नायकी देवी के हाथों राज्य की कमान
महाराजा अजयपाल सिंह सोलंकी की मृत्यु के पश्चात् अंहिलवाड़ा (गुजरात) की कमान नायकी देवी सोलंकी के हाथ में आ गई क्योंकि इस समय इनका पुत्र आयु में बहुत छोटा था। अजयपाल सिंह सोलंकी और रानी नायकी देवी सोलंकी के 2 पुत्र थे बड़े बेटे का नाम मूलराज द्वितीय और छोटे पुत्र का नाम भीमदेव द्वितीय था।
गुजरात राज्य के लिए यह संकट का समय था क्योंकि कई विदेशी आक्रांताओं की और दुश्मनों की नजर इस राज्य पर थी। अजयपाल सिंह की मृत्यु के पश्चात कई दुश्मन तिरछी नजरों से इस राज्य की आमदनी और धन दौलत पर कब्जा जमाना चाहते थे। गुजरात राज्य के सामने पहला संकट तो यह था कि राज्य की कमान किसके हाथों में सौंपी जाए।
राज्य के वरिष्ठ मंत्रियों, सामंतों और दरबारी राजाओं ने मिलकर यह निर्णय लिया कि राजनीतिक कुशलता और कूटनीतिज्ञ रानी नायकी देवी के हाथों में यह राज्य सुरक्षित रहेगा और उन्हें राज्य की कमान सौंपने का निर्णय लिया गया।लेकिन रानी नायकी देवी ने यह कहकर राज्य की कमान संभालने से मना कर दिया कि नियमानुसार इस राज्य के वारिस के जिंदा रहते दूसरा कोई सिंहासन पर नहीं बैठ सकता है।
लेकिन जब सामंत और मंत्री अपनी बात पर अड़ गए तो रानी नायकी देवी ने यह निर्णय लिया कि वह राज्य की कमान अपने हाथ में नहीं ले सकती हैं लेकिन इस राज्य के उत्तराधिकारी मूलराज द्वितीय की प्रतिनिधि बंद कर उनका मार्गदर्शन करने के लिए तैयार हो गई।
राज्य पर संकट और मोहम्मद गौरी से युद्ध
महाराजा मूलराज द्वितीय के राजा बनने के पश्चात कुछ समय तक गुजरात राज्य में सब कुछ शांतिपूर्ण था। लेकिन धीरे-धीरे चारों तरफ से दुश्मनों ने इस राज्य को जीतने और धन दौलत लूटने के इरादे से अपनी तैयारियां शुरू कर दी। गुप्तचरों के माध्यम से रानी नायकी देवी को सूचना प्राप्त हुई की किसी भी समय विदेशी आक्रांता राज्य पर आक्रमण कर सकते हैं।
मोहम्मद गोरी एक तुर्की लुटेरा था जो हवसी और आक्रांता था। अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए सन 1178 ईस्वी में विशाल सेना के साथ गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा की तरफ निकल पड़ा। मोहम्मद गौरी का उद्देश्य था, गुजरात राज्य को जीतना. इसी को मध्य नजर रखते हुए अन्हिलवाड़ा से 40 मील दूर सन 1178 ईस्वी में आबू पर्वत के पास गदारराघट्टा नामक घाट पर मोहम्मद गोरी ने तंबू लगाकर अपना सैन्य शिविर स्थापित किया।
मोहम्मद गोरी ने रानी नायकी देवी के साम्राज्य पर सीधा आक्रमण नहीं करके अपने एक दूध के जरिए संदेश भिजवाया कि रानी और उसके बच्चों के साथ-साथ राज्य की सभी महिलाओं एवं कन्याओं को धन दौलत समेत मुझे सौंप दो, नहीं तो सभी को मौत के घाट उतार दिया जाएगा। जब मोहम्मद गोरी का दूत संदेश लेकर रानी नायकी देवी के दरबार में पहुंचा तो रानी ने संदेश पढ़ा और उसका जवाब देते हुए मोहम्मद गौरी को लिखा कि “हमें आपकी सभी शर्तें मंजूर है”।
रानी नायकी देवी के इस निर्णय ने राज्य के सभी मंत्रियों एवं सामंतों को संशय में डाल दिया। तभी रानी ने उन्हें समझाया कि यह उसकी एक चाल है, मोहम्मद गौरी को पराजित करने का तरीका है।
रानी नायकी देवी ने नाडोल के राजा कल्हण देव चौहान के यहां पर राज्य की सभी स्त्रियों एवं कन्याओं को भेज दिया ताकि वह वहां पर सुरक्षित रह सके।
रानी नायकी देवी नए सेनापति कुंवर रामवीर को आदेश दिया कि आप कुछ सैनिकों के साथ मेरे से कुछ दूरी पर रहना।
पूर्व योजना के अनुसार रानी ने 200 वीर और बलशाली योद्धाओं को आदेश दिया कि तुम भेष बदलकर मोहम्मद गौरी की सेना में शामिल हो जाओ।
कुछ योद्धा आबू पर्वत की तलहटी में छुप गए, इस तरह रानी ने मोहम्मद गौरी को भ्रम में रखने के लिए अपनी सेना के 25000 सैनिकों को अलग-अलग भागों में बांट दिया। पूरी योजना बनाने के पश्चात रानी नायकी देवी अपने दोनों पुत्रों मूलराज और भीमदेव को अपनी पीठ पर बांधा और घोड़े पर बैठकर मोहम्मद गोरी के सैन्य शिविर की तरफ चल पड़ी।
अपनी जीत सुनिश्चित मानकर मोहम्मद गोरी मन ही मन बहुत खुश था और जैसे ही उसने रानी नायकी देवी को अपनी तरफ आते हुए देखा उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मोहम्मद गोरी से कुछ ही दूरी पर आकर रानी नायकी देवी (Nayika Devi History In Hindi) रुक गई। जैसे ही रानी वहां पर रुकी मोहम्मद गौरी की सेना में शामिल राजपूत सैनिकों ने हर हर महादेव का नारा लगाते हुए तुर्की सैनिकों पर टूट पड़े।
रानी नायकी देवी सोलंकी के साथ घुड़सवार सैनिक, पैदल सैनिक और हाथियों पर सवार सैनिकों को देखकर मोहम्मद गौरी के पैरों तले जमीन खिसक गई।
मोहम्मद गोरी कुछ भी समझ पाता इससे पहले ही रानी ने तलवार के तेज वार से मोहम्मद गोरी के गुप्त अंग को भंग कर दिया। घायल अवस्था में दर्द से कांपता हुआ मोहम्मद गौरी युद्ध मैदान से भाग निकला।
मेरूतुंग के द्वारा लिखी गई “प्रबंध चिंतामणि” नामक पुस्तक और अन्य इतिहासकारों के अनुसार मोहम्मद गौरी इतना डर गया कि मुल्तान पहुंचने के बाद ही वह अपने घोड़े से नीचे उतरा। मुल्तान पहुंचने के पश्चात मोहम्मद गोरी ने देखा कि वाह नपुसंक बन गया इस घटना के बाद मोहम्मद गोरी ने आगामी 13 वर्षों तक भारत की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखी।
मोहम्मद गौरी और रानी नायकी देवी सोलंकी के मध्य हुवे इस युद्ध में दिल्ली सम्राट केल्हान देव चौहान ने रानी की सहायता की थी। विश्व प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड एवं डॉ दशरथ शर्मा द्वारा लिखित पुस्तकों से भी इस बात का साक्ष्य प्राप्त होता है।
वीर वीरांगना रानी नायकी देवी सोलंकी को हमारे देश के कुंठित मानसिकता के इतिहासकारों ने इतिहास की किताबों से गायब कर दिया।
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