मोहर मंगरी (Mohar Magri) या चित्तौड़ी बुर्ज का इतिहास.

मोहर मंगरी (Mohar Magri) चित्तौड़गढ़ दुर्ग की दक्षिण दिशा में स्थित हैं। मोहर मंगरी का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। सन 1568 ईस्वी में इसका निर्माण हुआ था। यह मिट्टी का एक बहुत बड़ा ढेर हैं। इसका निर्माण मजदूरों द्धारा किया गया और अंत में उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया।

मोहर मंगरी का इतिहास (Mohar Magri History) और निर्माण से सम्बन्धित सभी जानकारी आपको इस लेख के माध्यम से मिलेगी। अगर आप यह जानना चाहते हैं कि मोहर मंगरी का निर्माण किसने करवाया, कब करवाया और इसके पीछे की कहानी क्या हैं तो यह लेख पूरा पढ़ें।

मोहर मंगरी का अर्थ

कई लोगों के मन में यह सवाल भी आता हैं कि आख़िर मोहर मंगरी किसे कहते हैं? इसका जवाब भी आपको इस लेख में मिल जाएगा।

मोहर और मंगरी दोनों अलग-अलग शब्द है। मोहर किसी भी धातु की बनी हुई वाह छोटी सी वस्तु होती है जिसे वस्तु विनिमय के लिए उपयोग में लाया जाता है यह सोने चांदी और तांबा की भी हो सकती है। जैसे सिक्के होते हैं वैसे ही मोहर भी होती है और इसका अपना मूल्य होता है। अलग अलग धातु के हिसाब से इनका अलग-अलग मूल्य हो सकता है।

जबकि राजस्थानी भाषा में मंगरी का अर्थ होता है मिट्टी का टीला। चित्तौड़गढ़ दुर्ग की दक्षिण दिशा में स्थित मोहर मंगरी (Mohar Magri) का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह मोहर के बदले में बनाई गई थी।

मोहर मंगरी के निर्माण की कहानी (Story of Mohar Magri)

सामरिक दृष्टि से चित्तौड़ का दुर्ग बहुत ही मजबूत है इसे भेद पाना इतना आसान नहीं है। जब अकबर आक्रमण के लिए चित्तौड़ पहुंचा तो उसे इस किले को जीतना आसान नहीं लगा। चित्तौड़ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए अकबर जगह तलाशने लगा। तभी उसने पाया कि दक्षिण दिशा में एक ऐसे टीले का निर्माण करवाया जाए जिसके ऊपर चढ़कर दुर्ग में प्रवेश किया जा सके।

मोहर मंगरी के निर्माण की मुख्य वजह यह थी कि किले की ऊंचाई और दीवारें बहुत मजबूत थी, जिसके कारण तोपों के वार से दीवार पर कुछ भी असर नहीं हो रहा था। क़िले की दीवारों पर नजदीक से वार करने और किले को भेदने के लिए मोहर मंगरी नामक टीले का निर्माण किया गया था.

लेकिन इस तरह टीले का निर्माण करना भी आसान नहीं था क्योंकि दुर्ग की सेना हाथों में बंदूक लेकर तैनात थी, जो भी उसके समीप जाता उसे गोली मार दी जाती थी। आक्रांता अकबर ने एक योजना बनाई जिसके तहत उसने आसपास के मजदूरों को सोने की मोहर का लालच दिया और कहा कि एक व्यक्ति को सिर्फ़ एक बार वहां पर मिट्टी डालकर आना हैं। जो भी मजदूर सफलतापूर्वक मिट्टी डालता जाएगा उसे बदले में सोने की मोहर दी जाएगी।

अकबर द्वारा मजदूरों के साथ धोखाधड़ी

अकबर ने मजदूरों से यह वादा किया था कि जो भी वहां पर मिट्टी डालेगा उसे एक सोने की मोहर दी जाएगी और ऐसा किया भी लेकिन जैसे ही सोने की मोहर लेकर मजदूर वहां से बाहर जाता उसे मारकर वह मोहर वापस छीन ली जाती थी। इस तरह कपट का सहारा लेकर अकबर ने मोहर मंगरी (Mohar Magri) का निर्माण करवाया।

कुछ ही महीनों में यहां एक बड़ा टीला बनकर तैयार हो गया जिसे बाद में “मोहर मंगरी” (Mohar Magri) का नाम दिया गया।

मोहर मंगरी का उपयोग

मोहर मंगरी (Mohar Magri) को लेकर अकबर ने जो योजना बनाई थी वह उसमें सफल रहा। इसी दिशा से अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग की दीवारें तोड़ने के लिए तोपों से वार किए और उसकी सेना मोहर मंगरी के ऊपर चढ़कर दुर्ग में प्रवेश करने में सफल रही।

हालांकि इसमें कई निर्दोष मजदूर मोहर मंगरी के निर्माण के समय मौत के घाट उतार दिए गए और उन्हें दी गई सोने की मोहरे भी वापस छीन ली।

मोहर मंगरी से संबंधित बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ Related to Mohar Magri)-

1 मोहर मंगरी कहां पर स्थित है?
उत्तर- मोहर मंगरी चित्तौड़ दुर्ग की दक्षिण दिशा में स्थित है।

2 मोहर मंगरी का निर्माण किसने करवाया था?
उत्तर- मोहर मंगरी का निर्माण अकबर ने करवाया।

3 मोहर मंगरी का निर्माण कब हुआ था?
उत्तर- मोहर मंगरी का निर्माण सन 1568 ईस्वी में हुआ।

4 मोहर मंगरी किसे कहते हैं?
उत्तर- चित्तौड़ दुर्ग के दक्षिण दिशा में मोहर के बदले मिट्टी से बनाए गए टीले को मोहर मंगरी के नाम से जाना जाता है।

5 मोहर मंगरी किस गांव के समीप स्थित है?
उत्तर- चित्तौड़ी गाँव के समीप।

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