बख्शी जगबंधु का इतिहास || History Of buxi jagabandhu
बख्शी जगबंधु स्वतंत्रता सेनानी थे, इनका इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है. इन्हें जगबंधु बख्शी या बख्शी जगबंधु किसी भी नाम से संबोधित कर सकते हैं. बख्शी जगबंधु का असली नाम “जगबंधु विद्याशर महापात्र” हैं. बख्शी एक उपाधि हैं जो जगबंधु के पूर्वजों को उड़ीसा के राजा (खुर्दा) द्धारा प्रदान की गई थी. बख्शी जगबंधु की जन्म तिथि के बारे में जानकारी नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता हैं कि 1773 ईस्वी में इनका जन्म हुआ. अंग्रेजों के खिलाफ़ लोहा लेते हुए 1829 ईस्वी में इनकी मृत्यु हो गई.
कोई भी स्वतंत्रता सेनानी अपने आप में महान होता हैं, बख्शी जगबंधु निडर, निर्भीक,साहसी और देश प्रेमी थे. “पाइक विद्रोह” के मुखिया होकर इन्होंने अंत तक अंग्रेजों का सामना किया इतना ही नहीं संख्या में बहुत कम होने के बावजूद ये हमेशा अंग्रजों की पकड़ से बाहर रहे. इनकी खासियत यह थी कि यह निस्वार्थ भाव से सेवा में थे. आइए जानते हैं आखिर कौन थे बख्शी जगबंधु.
बख्शी जगबंधु का इतिहास और जीवन परिचय
पूरा नाम- जगबंधु विद्याशर महापात्र.
अन्य नाम- पाइकली खंडायत बख्शी.
बख्शी जगबंधु का जन्म (buxi jagabandhu date of birth)- 1773.
बख्शी जगबंधु की मृत्यु- 24 जनवरी 1829.
बख्शी जगबंधु की पत्नि का नाम- कल्याणी.
उड़ीसा के राजा- मुकुंददेव.
भूमिका- स्वतंत्रता सेनानी.
प्रसिद्धि की वजह- पाइक विद्रोह.
राष्ट्रीयता- भारत.
मूल निवासी- उड़ीसा
प्रतिमा- भुवनेश्वर (उड़ीसा)
सम्मान- जगबंधु विद्याधर कॉलेज भुवनेश्वर,इनके नाम का सिक्का और डाक टिकट.
भारत में अंग्रेज धीरे धीरे अपने पैर पसार रहे थे. इसी क्रम में अंग्रेज़ों ने उड़ीसा पर भी अधिकार कर लिया. अंग्रेज़ों को उड़ीसा से खदेड़ने के लिए हथियारों के साथ एक बड़ा विद्रोह हुआ जिसका नाम था “पाइक विद्रोह”. पाइक विद्रोह का नेतृत्व बख्शी जगबंधु कर रहे थे. इस विद्रोह का एकमात्र मकसद था अंग्रेजो को उड़ीसा से भागना. पाइका विद्रोह क्या था?
पाइक विद्रोह को अंग्रेजो के खिलाफ स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. यह विद्रोह उड़ीसा के महान स्वतंत्रता सेनानी बक्सी जगाबंधु के नेतृत्व में हुआ था. पाइका उड़ीसा के गजपति शासकों के किसानों का असंगठित सैन्य दल था. शांति के समय यह सब लोग मिलकर खेती करते थे लेकिन जब भी राजा को जरूरत पड़ती तो यह हथियार उठा लेते.
सन 1803 ईस्वी में अंग्रेज़ों ने मराठों से कटक छीन लिया और खुर्दा (उड़ीसा) के राजा मुकुंददेव को बंदी बना लिया. खुर्दा के राजा के दीवान जय राजगुरु को फांसी पर लटका दिया. यह सब बख्शी जगबंधु से देखा नहीं गया कयोंकि वह भी एक छोटी सी रियासत संभाल रहे थे जिसे बलपूर्वक अंग्रेज़ों ने छीन लिया.
पिंडारी (एक कबीला) पहले ही अंग्रेज़ों के साथ मिल गए. अंग्रेजों ने पिंडारियों के साथ मिलकर उन पर अभियोग चलाया. यह सब देखकर बख्शी जगबंधु आग बबूला हो गए और मन में निश्चय किया कि अंग्रेजो को उड़ीसा से भगाना है और खुर्दा के शासक को पुनः राजगद्दी पर बिठाना.
जल्द ही वह दिन आ गया जब बख्शी जगबंधु ने मार्च 1817 में अपने 400 साथियों के साथ हथियार उठा लिए. बख्शी जगबंधु का हौसला और जज्बा देखकर धीरे-धीरे उनके साथ कई स्वतंत्रता सेनानी और जुड़ते गए और देखते ही देखते उनकी संख्या 5000 के पार पहुंच गई. पूरी और आसपास के क्षेत्रों से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया और पुनः अधिकार कर लिया. संख्याबल अंग्रेजों का कई गुना अधिक था इस वजह से जल्द ही “पाइक विद्रोह” विफल हो गया.
पाइक विद्रोह” तो विफल हो गया लेकिन बख्शी जगबंधु अपने साथियों के साथ घने जंगलों में चले गए. जब भी मौका मिलता बख्शी जगबंधु अंग्रेजों पर टूट पड़ते,यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. तंग आकर अंग्रेजी सेना ने उन्हें ऑफ़र दिया कि आप आराम से कटक में रहिए आपको हम पेंशन देंगे. 3 वर्षों तक बख्शी जगबंधु ने अंग्रेजों की बात नहीं मानी. बख्शी जगबंधु भी घबराकर जंगल से बाहर आ गए.
यह उनकी संगठन शक्ति का ही नतीजा था कि लाख कठिनाइयों के बाद भी वो झुके नहीं. पाइक विद्रोह की असफलता के बाद भी अंग्रेजो के खिलाफ़ उनकी गतिविधियां चालू रही. जब बख्शी जगबंधु कटक पहुंचे तो उन्होंने वहां पर अंग्रेजों को सीधी चेतावनी दी कि अगर जनता की मांगों को नहीं माना जाएगा तो भविष्य में भी इस तरह का विद्रोह होता रहेगा. अंग्रेज जनता की मांगों की अवहेलना करके खतरा मोल ना ही ले तो ही अच्छा रहेगा.
इन सब कामों में बख्शी जगबंधु की पत्नि कल्याणी ने भी उनका पूरा साथ दिया.
बख्शी जगबंधु की मृत्यु कैसे हुई?
पाइका विद्रोह की असफलता के बाद अंग्रेजों द्वारा निर्दोष लोगों का दमन किया जाने लगा. वहां के लोगों पर निरंतर अत्याचार बढ़ने लगे, कई लोगों को जेल में डाल दिया गया. 1825 ईस्वी में बख्शी जगबंधु को भी अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया. अंग्रेजों की कैद में रहते हुए 4 साल बाद 17 मार्च 1829 ईस्वी में बख्शी जगबंधु की मृत्यु हो गई लेकिन एक महान स्वतंत्रता सेनानी हमेशा के लिए अमर हो गया.
बख्शी जगबंधु को सम्मान देने के लिए भारत सरकार ने एक डाक टिकट और एक सिक्का उनके सम्मान में जारी किया. उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में बख्शी जगबंधु की भव्य प्रतिमा बनी हुई है. उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि बख्शी जगबंधु के नेतृत्व में हुए पाइका विद्रोह को “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” का दर्जा दिया जाए.
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