पुष्यभूति वंश का इतिहास || History Of Pushyabhuti Vansh
पुष्यभूति वंश का संस्थापक “पुष्यभूति” था, जिन्होंने छठी शताब्दी में “पुष्यभूति वंश” की स्थापना की थी. गुप्त वंश या साम्राज्य के पतन के साथ इस वंश का उदय हुआ. हूणों के साथ हुए ऐतिहासिक युद्धों के चलते इस वंश ने संपूर्ण भारत में ख्याति प्राप्त की. पुष्यभूति वंश का इतिहास इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इसमें हर्षवर्धन जैसे महान शासक ने जन्म लिया.
पुष्यभूति वंश के संस्थापक पुष्यभूति भगवान शिव के परम भक्त और बड़े उपासक थे. इस वंश के शासक शैव धर्म को मानने वाले थे. पुष्यभूति वंश का इतिहास देखा जाए तो इसमें मुख्य तीन राजा हुए हैं, जिनमें प्रभाकर वर्धन, राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन का नाम मुख्य है.
पुष्यभूति वंश का इतिहास/वर्धन वंश
पुष्यभूति वंश का संस्थापक | पुष्यभूति. |
पुष्यभूति वंश की स्थापना | छठी शताब्दी. |
पुष्यभूति वंश की राजधानी | थानेश्वर, अम्बाला (हरियाणा). |
धर्म | हिंदू, सनातन. |
शासन काल | 606 ईस्वी से 647 ईस्वी तक. |
मुख्य शासक | प्रभाकरवर्धन, राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन. |
पुष्यभूति वंश का अन्य नाम | वर्धन वंश. |
पुष्यभूति वंश का अन्तिम शासक | सम्राट हषर्वर्धन. |
पुष्यभूति वंश का इतिहास गौरवमयी रहा है. संभवत या वर्धन वंश के संस्थापक गुप्त शासकों के अधिनस्थ रहे होंगे. इस वंश को वर्धन वंश के रूप में भी जाना जाता है. पुष्यभूति वंश की उत्पत्ति को लेकर कोई भी प्रमाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है. पुष्यभूति वंश की स्थापना छठीं शताब्दी में हुई थी. सातवीं शताब्दी में जन्मे कवि बाण द्वारा रचित हर्षचरित से ज्ञात होता है कि पुष्यभूति नामक व्यक्ति ही पुष्यभूति वंश का वास्तविक संस्थापक था.
पुष्यभूति वंश का इतिहास बताते हर्षचरित से ज्ञात होता है कि प्रारंभ में पुष्यभूति ने अपने राज्य की राजधानी स्थानेश्वर में स्थापित की, जिसे आज के समय में थानेश्वर नाम से जाना जाता है जो हरियाणा के अंबाला में स्थित है. पुष्यभूति वंश की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार इस वंश के संस्थापक पुष्यभूति, भैरवाचार्य (तांत्रिक) नामक व्यक्ति के संपर्क में आकर श्मशान घाट पर एक तांत्रिक अनुष्ठान को अंजाम दिया था. इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर एक देवी ने उन्हें राजा बनने का आशीर्वाद दिया.
पुष्यभूति वंश के संबंध में कई शिलालेख और अन्य ऐतिहासिक स्त्रोत प्राप्त हुए हैं, जिनका अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि उपरोक्त वर्णित पुष्यभूति मात्र एक काल्पनिक पात्र है क्योंकि इनके संबंध में कोई भी शिलालेख प्राप्त नहीं हुआ है. पुष्यभूति वंश का इतिहास उठाकर देख आ जाए तो पुरातात्विक स्त्रोतों में पुष्यभूति का नाम नहीं मिलता है. इन स्त्रोतों के अनुसार पुष्यभूति वंश का प्रथम शासक नरवर्धन को बताया गया है.
पुष्यभूति वंश का इतिहास जानने के लिए बौद्ध ग्रंथ “आर्यमंजुश्रीमूलकल्प” और कवि बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्र मुख्य स्त्रोत हैं. बार-बार कवि बाण का जिक्र हो रहा है, इसके संबंध में आपको बता दें की यह दरबारी कवि थे जिन्होंने हर्षचरित्र के अलावा भी कादंबरी और चंडीशतक नामक ग्रंथों की रचना की थी.
हूणों का आक्रमण और पुष्यभुति वंश
प्रभाकरवर्धन को पुष्यभूति वंश/वर्धन वंश का जन्मदाता माना जाता है जिन्होंने परम भट्टारक तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी. प्रभाकरवर्धन के 2 पुत्र थे, जिनका नाम राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन था. इसके साथ ही उनकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम राज्यश्री था. इन्होंने अपनी पुत्री का विवाह मौखरि (कन्नौज) के राजा गृहवर्मा से कर दी.
प्रभाकर वर्धन के समय में ही विदेशी आक्रमणकारी हूणों ने लगभग 604 ईस्वी में भारत पर आक्रमण कर दिया, जिसका सामना करने के लिए प्रभाकरवर्धन के दोनों पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन एक बड़ी सेना के साथ निकल पड़े और हूणों को बुरी तरह पराजित कर दिया. कवि बाण द्वारा रचित हर्षचरित से ज्ञात होता है कि बीमारी के चलते प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी यशोमती भी सती हो गई.
दूसरी तरफ गुप्तचर से सूचना मिली की मालवा नरेश देवगुप्त ने राज्यश्री के पति गृहवर्मा का वध कर दिया गया है और राज्यश्री को कैद कर लिया गया है. यह सूचना मिलते ही प्रभाकरवर्धन का पुत्र और राज्यश्री के भाई राज्यवर्धन सेना सहित पहुंचे और देवगुप्त को मौत के घाट उतार दिया. दूसरी तरफ गौड़ नरेश शशांक ने षडयंत्र पूर्वक 606 ईस्वी में राज्यवर्धन की हत्या कर दी. पुष्यभूति वंश का इतिहास हूणों के आक्रमण की वजह से बहुत प्रसिद्ध हुआ.
पुष्यभूति वंश/वर्धन वंश के मुख्य शासक
पुष्यभूति वंश का इतिहास देखा जाए तो पुष्यभूति समेत मुख्य रूप से 4 राजाओं का नाम उभर कर सामने आता है जिनका हम विस्तृत अध्ययन करेंगे-
1. प्रभाकर वर्धन
प्रभाकर वर्धन को पुष्यभूति वंश का मुख्य शासक माना जाता है. इनके पिता का नाम आदित्य वर्धन तथा माता का नाम महासेन गुप्त था. हर्षचरित से ज्ञात होता है कि यह इस वंश के चौथे शासक थे जिन्हें प्रतापशील नाम से भी जाना जाता था. इनके दो पुत्र राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन थे जबकि एक पुत्री थी जिसका नाम राज्यश्री था.
प्रभाकर वर्धन ने अपनी पुत्री राज्यश्री का विवाह अवंती वर्मन के पुत्र गृह वर्मन से संपन्न करवाया जिसके परिणामस्वरूप प्रभाकर वर्धन का राजनीतिक कद बढ़ गया. पुष्यभूति वंश के शासकों में प्रभाकर वर्मन पहले राजा थे, जिन्होंने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की. प्रभाकर वर्धन की मृत्यु के पश्चात उनकी पत्नी सती हो गई.
2. राज्यवर्धन
पुष्यभूति वंश के अगले शासक राज्यवर्धन हुए जो प्रभाकर वर्धन के पुत्र अथवा इस वंश के उत्तराधिकारी थे. पिता की मृत्यु के पश्चात ये राज गद्दी पर बैठे. राज्यवर्धन ने परमसौगात की उपाधि धारण की थी.
605 ईस्वी में मौखिरी के राजा गृह वर्मा (राज्यवर्धन के बहनोई) की हत्या मालवा नरेश देवगुप्त द्वारा कर दी गई और उनकी पत्नी राज्यश्री को बंदी बना लिया गया. जब यह खबर राज्यवर्धन तक पहुंची तो उन्होंने दल बल के साथ मालवा पर धावा बोल दिया और देवगुप्त को मौत के घाट उतार दिया. दूसरी तरफ देवगुप्त का मित्र और बंगाल के शासक शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी.
3. हर्षवर्धन (शिलादित्य)
सम्राट हर्षवर्धन को शिलादित्य के नाम से भी जाना जाता था. ये पुष्यभूति वंश का अंतिम शासक भी था.
बड़े भाई राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद 606 ईस्वी में हर्षवर्धन महज 16 वर्ष की आयु में राजसिंहासन पर बैठा. पुष्यभूति वंश का इतिहास देखा जाए तो सम्राट हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का अंतिम शासक और सबसे महान राजा हुए हैं. राजा बनने के बाद इनके सामने दो मुख्य चुनौतियां थी सबसे पहली चुनौती अपनी बहन राज्यश्री को ढूंढ निकालना, जिसको मालवा के शासक देवगुप्त ने बंदी बना लिया था. दूसरी चुनौती यह थी कि हर्षवर्धन बंगाल नरेश शशांक को मारकर अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या का बदला ले सके.
सम्राट हर्षवर्धन अपनी बहन को ढूंढने और शशांक को मौत के घाट उतारने के लिए दल बल के साथ कन्नौज की तरफ चल पड़ा. जैसे ही गौड़ शासक शशांक को हर्षवर्धन के आगमन की सूचना मिली वह कन्नौज छोड़कर भाग गया.
कन्नौज में हर्षवर्धन को अपनी बहन राज्यश्री मिली जिसको उन्होंने वही की शासिका नियुक्त कर दिया. चीनी यात्रियों द्वारा इतिहास के संबंध में लिखित स्त्रोतों से ज्ञात होता है कि राजा हर्षवर्धन और उनकी बहन राज्यश्री एक साथ कन्नौज के सिंहासन पर बैठते थे. जैसे-जैसे समय बीतता गया पुष्यभूति वंश के महान शासक हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थापित कर ली. साथ ही एक बड़े सैन्य अभियान में इन्होंने शशांक को मौत के घाट उतार दिया.
पुष्यभूति वंश का अंतिम शासक सम्राट हर्षवर्धन ने लगभग 41 वर्षों तक शासन किया, इनका अधिकतर समय युद्ध अभियानों में बीता. इनका साम्राज्य जालंधर, पंजाब, कश्मीर, नेपाल तथा वल्लभी तक फैला हुआ था. राजा हर्षवर्धन को पहली बार चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय ने 630 ईस्वी में पराजित किया था. हर्षवर्धन ने प्रियदर्शिका रत्नावली और नागानंद नामक तीन नाटकों की रचना की थी. प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग हर्षवर्धन के काल में ही भारत आया था, जो लगभग 15 वर्षों तक यहां पर रहा. भारत आने की मुख्य वजह नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ना था.
643 ईसवी में सम्राट हर्षवर्धन द्वारा कन्नौज में एक धार्मिक सभा का आयोजन किया गया जिसमें 1000 नालंदा विश्वविद्यालय के शिक्षक, 3000 जैन साधु, 3000 बौद्ध साधु, 20 सामंत और 500 ब्राह्मण शामिल हुए. हर 6 वर्ष में आयोजित होने वाली महामोक्ष परिषद का आयोजन भी हर्षवर्धन द्वारा 644 ईस्वी में प्रयाग में किया गया था. इनके शासनकाल में शिक्षा उन्नत अवस्था में थी. सभी छात्रों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती थी. शिक्षा के लिए गुरुकुल, बौद्ध विहार और उच्च शिक्षा के लिए नालंदा विश्वविद्यालय था.
पुष्यभूति वंश के सबसे बड़े शासक सम्राट हर्षवर्धन के दरबारी कवियों में बाणभट्ट के अलावा हरिदत्त, जयसेन, मातंग, मयूर और दिवाकर मित्र जैसे विद्वान रहते थे. इनके शासनकाल में ही कन्नौज बौद्ध धम्म का प्रसिद्ध केंद्र था. इनके शासनकाल में सामान्य सेना को चाट एवं भाट नाम से, अश्वसेना के अधिकारियों को बृहदेश्वर नाम से और पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत तथा महाबलाधिकृत नाम से जाना जाता था. पुष्यभूति वंश का इतिहास इनकी वजह से स्वर्णिम बन गया.
पुष्यभूति वंश का अंत
पुष्यभूति वंश का इतिहास अद्भुत और अविस्मरणीय रहा है जिसमें सम्राट हर्षवर्धन जैसे महान राजा ने जन्म लिया. सम्राट हर्षवर्धन को पुष्यभूति वंश का अंतिम शासक माना जाता है. सम्राट हर्षवर्धन के कोई संतान नहीं थी अतः बिना उत्तराधिकारी के ही 647 ईस्वी में सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई. सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही एक विशाल और गौरवशाली वंश का पतन हो गया.
पुष्यभूति वंश का इतिहास बताने वाले ऐतिहासिक स्रोत
पुष्यभूति वंश का इतिहास जानने के लिए कई शिलालेख और अन्य स्त्रोत मिले हैं लेकिन निम्नलिखित 2 ग्रन्थ प्रामाणिक हैं-
1. बौद्ध ग्रंथ आर्यमंजुश्रीमूलकल्प.
2. बाणभट्ट रचित हर्षचरित.
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