डिग्गी कल्याण जी इतिहास और कथा || History Diggi KalyanJi
डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और कथा– डिग्गी कल्याण जी को श्री कल्याण मन्दिर के नाम से भी जाना जाता हैं. डिग्गी कल्याण जी का मंदिर डिग्गी नामक कस्बे में मालपुरा तहसील जो कि राजस्थान के टोंक जिले में स्थित हैं. डिग्गी कल्याण जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता हैं. डिग्गी कल्याण जी के मन्दिर का निर्माण आज से लगभग 5600 साल पहले वहां के राजा डिगवा ने करवाया था. डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और कथा बहुत प्राचीन और पौराणिक हैं.
टोंक जिले की मालपुरा तहसील के पास डिग्गीधाम राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है. यह श्री कल्याण जी का मंदिर है जो राजस्थान के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक हैं. श्री डिग्गी कल्याणजी मंदिर का निर्माण तो हजारों वर्ष पूर्व हो गया था लेकिन इस मंदिर का पुनर्निर्माण मेवाड़ के राजा महाराणा संग्राम सिंह अर्थात महाराणा सांगा द्वारा सन 1527 ईस्वी की जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन तिवारी ब्राह्मणों द्वारा हुआ था. डिग्गी कल्याण जी का इतिहास प्राचीन होने के साथ-साथ गौरवमयी भी है.
डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और कथा
डिग्गी कल्याण जी अथवा डिग्गी पुरी का राजा कहें जाने वाले डिग्गी कल्याण जी की कथा की शुरुआत देवराज इंद्र के दरबार से होती है. देवराज इंद्र देवताओं के राजा थे. देवराज इंद्र के दरबार में कई अप्सराएं थी जो वहां नृत्य करती और देवराज इंद्र का मनोरंजन करती थी.
1 दिन की बात है देवराज इंद्र अपने सिहासन पर बैठे थे, उनके दरबार में उर्वशी नामक एक बहुत ही सुंदर अप्सरा नृत्य कर रही थी. नृत्य के दौरान बेवजह उर्वशी को हंसी आ गई. जब यह दृश्य देवराज इंद्र ने देखा तो उन्हें बहुत बुरा लगा. उन्होंने दरबार के नियमों का हवाला देते हुए क्रोधित होकर उर्वशी को स्वर्ग लोक से धरती पर भेज दिया और 12 वर्षों तक मृत्यु लोक में रहने का कठोर दंड दिया.
देवताओं के राजा होने के कारण अप्सरा उर्वशी ने देवराज इंद्र के आदेश को सहर्ष स्वीकार किया और मृत्यु लोक में 12 वर्षों का दंड भोगने के लिए आ गई. प्रारंभ में उर्वशी सप्त ऋषियों के आश्रम में पहुंची और उनसे शरण मांगी. ऋषियों आज्ञा लेकर वह उनके साथ रहने लगी. कुछ समय बाद उर्वशी ने ऋषियों का आश्रम छोड़कर चंद्रगिरी नामक पर्वत पर शरण ली.
इस दौरान जब उर्वशी को भूख लगती तो वह अपनी भूख शांत करने के लिए घोड़ी का रूप धारण करके चारा ढूंढती रहती. इस समय काल में वहां पर डिगवा नामक राजा राज्य करते थे. डिगवा के महल के समीप एक बहुत ही सुंदर उद्यान था जिसमें अप्सरा उर्वशी घोड़ी का रूप धारण करके भूख शांत करने के लिए आती थी.
धीरे-धीरे जब इस बात का पता राजा को लगा तो उसने रात्रि के समय ध्यान रखा. राजा ने अपने सैनिकों को उस उद्यान की निगरानी के लिए नियुक्त किया और स्वयं भी रात्रि में वहां पर पहुंच गए. जैसे ही स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी उस उद्यान में पहुंची तो राजा और सैनिकों ने उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा किया. लेकिन वह बहुत ही तेजी के साथ पर्वतों की और भाग गई.
राजा और सैनिक लगातार उसका पीछा करते रहे. जैसे ही वह पर्वत के ऊपर पहुंची उसने एक बहुत ही सुंदर नारी का रूप धारण कर लिया अर्थात अपने वास्तविक स्वरूप में आ गई.
राजा डिगवा उर्वशी की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गया. उन्होंने इससे पहले इतनी सुंदर नारी कभी नहीं देखी थी. जब राजा ने उर्वशी से उसके बारे में पूछा तब उर्वशी ने देवराज इंद्र के दरबार में घटित संपूर्ण कहानी उन्हें बताई. यह कहानी जानने के बाद भी राजा डिगवा उर्वशी के मोह जाल में फस गए और उर्वशी से आग्रह किया कि वह उनसे शादी करके राजमहल की शोभा बढ़ाएं.
अप्सरा उर्वशी ने राजा के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया लेकिन बार-बार जिद करने के बाद उर्वशी ने कहा कि वह डिगवा से शादी कर लेगी लेकिन इसके लिए उन्हें एक शर्त माननी पड़ेगी कि जब 12 वर्ष की दंड अवधि समाप्त होने के बाद देवराज इंद्र मुझे लेने आए तब राजा डिगवा मेरी रक्षा करेंगे और अगर रक्षा नहीं कर पाए तो मैं तुम्हें श्राप दे दूंगी.
कहते हैं कि समय किसी का इंतजार नहीं करता. देखते ही देखते 12 वर्ष की अवधि समाप्त हो गई और देवताओं के राजा देवराज इंद्र उर्वशी को लेने के लिए धरतीलोक पहुंचे. तभी राजा डिगवा देवराज इंद्र के सामने आकर खड़े हो गए और उन्होंने बताया कि उर्वशी अब मेरी रानी है आप उसे नहीं ले जा सकते हैं. यदि आप जोर जबरदस्ती करेंगे तो आपको मुझसे ही युद्ध करना पड़ेगा.
फिर क्या था देवताओं के राजा देवराज इंद्र और राजा डिगवा में एक बहुत भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध को काफी समय हो चुका था लेकिन ना तो इसमें कोई विजय हुआ ना कोई पराजय हुआ. यह सब देख कर देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से मदद मांगी. भगवान विष्णु की मदद पाकर देवराज इंद्र ने राजा डिगवा को पराजित कर दिया.
राजा डिगवा की पराजय हो जाने के बाद जब देवराज इंद्र उर्वशी को अपने साथ स्वर्ग लोग में ले जाने लगे तभी उर्वशी ने राजा डिगवा को श्राप दिया कि वह आजीवन कुष्ठ रोग से श्रापित रहेंगे. देवराज इंद्र और उर्वशी पुनः चले गए लेकिन कुछ ही समय बाद राजा डिगवा कुष्ठ रोग की चपेट में आ गए.
हर तरह के प्रयास करने के बाद जब राजा डिगवा का रोग ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु की तपस्या की. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने राजा डिगवा को कुष्ठ रोग निवारण का उपाय बताया. भगवान विष्णु ने कहा कि कुछ समय पश्चात उनकी मूर्ति समुद्र में बहकर आएगी जिसके दर्शन मात्र से आपका कुष्ठ रोग सदा के लिए समाप्त हो जाएगा.
कुछ समय बाद ऐसा ही हुआ और समुद्र में भगवान विष्णु की एक बहती हुई मूर्ति दिखाई दी. जहां पर मौजूद एक व्यापारी ने उसे बाहर निकाला. जब यह खबर राजा तक पहुंची तो राजा ने उस के दर्शन किए और तत्काल ही उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया. भगवान विष्णु की मूर्ति के दर्शन करके राजा और व्यापारी दोनों का कल्याण हो गया. लेकिन तभी राजा और व्यापारी के बीच इस बात पर युद्ध छिड़ गया कि इस प्रतिमा का उत्तराधिकारी कौन है?
राजा ने तर्क दिया कि भगवान विष्णु ने उन्हें कहा था कि उनकी मूर्ति पानी में बहकर आएगी तो उस पर मेरा अधिकार है. व्यापारी ने कहा कि यह तैरती हुई मूर्ति मुझे मिली है, इसलिए इस पर मेरा अधिकार है.
यह नजारा देखकर आकाशवाणी हुई कि आप दोनों में से जो भी रथ में घोड़ों के स्थान पर मूर्ति को लेकर जाएगा उसी को इसका अधिकार प्राप्त होगा. सबसे पहले उस व्यापारी ने प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा. जब राजा डिगवा का नंबर आया तो उन्होंने कुछ हद तक उस मूर्ति को अपने स्थान से दूर ले जाने में कामयाब रहे, परंतु जहां पर देवराज इंद्र और राजा डिगवा के बीच युद्ध हुआ था उसी स्थान पर जाकर रथ रुक गया.
राजा डिगवा ने कई प्रयास किए किंतु वह रथ आगे नहीं बढ़ा. अंततः थककर राजा ने इसी स्थान पर कल्याण जी के मंदिर की स्थापना की, तब से लेकर आज तक यह स्थान डिग्गी धाम के नाम से विश्व विख्यात है. यह था डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और डिग्गी कल्याण जी की कथा.
डिग्गी कल्याण जी कौन थे?
डिग्गी कल्याण जी का इतिहास और कथा पढ़ने के बाद आप निश्चित तौर पर यह जान गए होंगे कि डिग्गी कल्याण जी कौन थे. डिग्गी कल्याण जी भगवान विष्णु का अवतार थे. जिन्होंने अपनी लीला दिखाने के लिए प्रतिमा के रूप में धरती पर आए और राजा डिगवा द्वारा उन्हें स्थापित किया गया. डिग्गी कल्याण जी वैसे तो भगवान विष्णु का रूप हैं, लेकिन भक्त लोग इस प्रतिमा में भगवान राम और श्री कृष्ण का रूप देखते हैं. डिग्गी कल्याण जी धाम राजस्थान का एक मुख्य तीर्थ स्थल माना जाता है.
डिग्गी कल्याण जी मन्दिर का निर्माण किसने करवाया
डिग्गी कल्याण जी मंदिर का निर्माण राजा डिगवा द्वारा करवाया गया था. राजा डिगवा द्वारा आज से लगभग 5600 वर्ष पूर्व इस मंदिर का निर्माण करवाया था और उस स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की. इस मंदिर का पुनर्निर्माण मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह द्वारा 1527 ईस्वी में करवाया गया था.
कई लोगों का मानना है कि डिग्गी कल्याण जी मंदिर का निर्माण महाराणा सांगा द्वारा अर्थात महाराणा संग्राम सिंह द्वारा करवाया गया था लेकिन यह सत्य नहीं है. महाराणा संग्राम सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था ना कि निर्माण.
अतः डिग्गी कल्याण जी मंदिर का निर्माण का पूरा श्रेय राजा डिगवा को जाता है.
डिग्गी कल्याण जी का मेला या लक्खी मेला
प्रत्येक माह की पूर्णिमा को डिग्गी पुरी के राजा अर्थात डिग्गी कल्याण जी का मेला या लक्खी मेला लगता है. वैशाख माह की पूर्णिमा, श्रावण मास की एकादशी और अमावस्या के साथ जलझूलनी ग्यारस को यहां पर बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है.
डिग्गी कल्याण जी का मेला डिग्गी में आयोजित किया जाता है. यह स्थान राजस्थान के टोंक जिले में मालपुरा तहसील के पास स्थित है. डिग्गी कल्याण जी का मेला राजस्थान के टोंक जिले के डिग्गी नामक स्थान पर स्थित श्री कल्याण जी मंदिर में आयोजित किया जाता है. यह बहुत ही प्रसिद्ध मेला है, जिसमें ना सिर्फ टोंक और आसपास के लोग बल्कि राजस्थान और उसके बाहर के लोग भी श्रद्धा पूर्वक आते हैं.
सावन और भाद्रपद के महीने में यहां पर लाखों की तादाद में पैदल श्रद्धालु आते हैं.
श्री डिग्गी कल्याण जी मंदिर
श्री कल्याण जी का मंदिर राजस्थान के टोंक जिले में स्थित हैं. इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा है जो आज से लगभग 5600 साल पहले राजा डिगवा द्वारा स्थापित की गई थी. इस मंदिर का निर्माण पत्थर और चूने से हुआ है.
बांझपन अंधापन और कुष्ठ रोग से ग्रसित लोग यहां पर बड़ी तादाद में आते हैं. श्री कल्याण जी पर आधारित राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध गाना भी हैं “बाजे छे नोबत बाजा, म्हारा डिग्गी पुरी का राजा”.
डिग्गीपुरी के राजा भगवान श्री कल्याण जी धाम के मुख्य मंदिर में स्थापित चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा है. लेकिन कहते हैं कि सबकी अपनी अपनी श्रद्धा और मान्यता होती हैं तो यहां पर आने वाले भक्तगण इस प्रतिमा में भगवान श्रीराम को भी देखते हैं तो कुछ भगवान श्री कृष्ण को देखते हैं और कुछ लोग भगवान प्रदुम के रूप में इन्हें जानते हैं.
भगवान विष्णु के भक्तों को श्री कल्याण जी के इस प्राचीन मंदिर में एक बार जरूर दर्शन के लिए जाना चाहिए.
डिग्गी कल्याण जी का भजन
बाजे छे नोपत बाजा म्हारा डिग्गी पुरी का राजा भजन लिरिक्स-
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
हेला पे हेलो सूणजी म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।
डिग्गी पूरी का राजा ……
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
निर्धन को हेलो सूणजो म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।
आंधा ने आँखया दीज्यो म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
बांझाँ ने बेटो दिज्यो म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।।
डिग्गी पूरी का राजा ……
बांझाँ ने बेटो दिज्यो म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।
कोड़ा का कोड़ झड़ा जा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
लंगड़ा ने पगा चला जा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।।
डिग्गीपूरी का राजा ….
लंगड़ा ने पगा चला जा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।
नावा में बैठया डोले म्हारा डिग्गीपूरी का राजा,
फागण में होलया खेले म्हारा डिग्गीपूरी का राजा।।
सावन में झूला झूले म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
डिग्गी पूरी का राजा——-
मिस्री को भोग लगावे म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
घणा जात्रि आवे म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
डिग्गी पूरी का राजा——-
बजे छपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
चाँदी को चददर चड़ावे म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
डिग्गी पूरी का राजा——–
थारे रातीजोगो करावे म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
राजाजी सड़क बनायो म्हारा डिग्गी पूरी का राजा
में बैठी रेल में आयो डिग्गी पूरी का राजा
डिग्गी पूरी का राजा———–
बाजे छ नोपत बाजा म्हारा डिग्गीपूरी का राजा
माथा पे सिगड़ी ल्याई म्हारा डिग्गी पूरी का राजा
मैं कल्याण धनी के आई म्हारा डिग्गी पूरी का राजा
डिग्गी पूरी का राजा——
डिग्गी कल्याण जी सम्बंधित प्रश्नोत्तरी
[1] डिग्गी कल्याण जी का मेला कहाँ लगता हैं?
उत्तर- डिग्गी गाँव, मालपुरा तहसील ,जिला टोंक – राजस्थान में.
[2] डिग्गी कल्याण जी का मेला कब भरता हैं?
उत्तर- प्रतिवर्ष पीपल पूर्णिमा से.
[3] डिग्गी कौनसे जिले में पड़ता हैं?
उत्तर- टोंक, राजस्थान।
[4] डिग्गी मालपुरा कौनसे जिले में आता हैं?
उत्तर- टोंक, राजस्थान।
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