तनोट माता मंदिर इतिहास || History Of Tanot Mata

तनोट माता मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में तनोट नामक गांव में स्थित हैं. तनोट माता के मंदिर को “तनोट राय मातेश्वरी” के नाम से भी जाना जाता हैं. तनोट माता का इतिहास बताता है कि मामडिया नामक चारण की बेटी “देवी आवड़ जी” की तनोट माता के रूप में पूजा अर्चना की जाती हैं. तनोट माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता हैं.

तनोट माता मंदिर का निर्माण विक्रम संवत 828 में राजा तणुराव (तनुजी राव) द्वारा करवाया गया था. तणुराव भाटी राजपूत वंश से आते हैं. जैसलमेर और समीपवर्ती लोग तनोट माता की पूजा अर्चना करते हैं. तनोट माता का चमत्कार देखकर ब्रिगेडियर शाहनवाज खान यहाँ दर्शन करने आया और माता जी को चाँदी का छत्र चढ़ाया.

तनोट माता मंदिर का इतिहास

तनोट माता कहां स्थित हैं-तनोट गांव, जैसलमेर (राजस्थान).
तनोट माता के अन्य नाम-रुमाल वाली देवी, आवड़ माता, तनोट राय माता,नागणेची ,काले डूंगरराय ,भोजासरी,देगराय ,तेभडेराय आदि .
तनोट माता मंदिर निर्माण-विक्रम संवत 828.
तनोट माता मंदिर निर्माण किसने करवाया-तणुराव भाटी राजपूत या तनुराव भाटी.

तनोट माता मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है. Tanot Mata Mandir जैसलमेर में स्थित हैं लेकिन इसकी स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं. इस कथा के अनुसार प्राचीन समय में मामडिया चारण नामक एक व्यक्ती था जिसकी कोई औलाद नहीं थी. इस बात को लेकर वह बहुत दुःखी रहता था.

संतान सुख प्राप्ति हेतु मामडिया चारण ने मां हिंगलाज की आराधना शुरु की. कहते हैं मामडिया चारण पूरे मन से हिंगलाज माता (पाकिस्तान) की पैदल यात्रा की. पूर्ण भाव से की गई इस यात्रा से माता बहुत प्रसन्न हुई और मामडिया चारण के सपने में आकर कहा कि तुम्हें बेटी चाहिए या बेटा? तभी मामडिया चारण ने कहा कि आप ही मेरे घर में जन्म ले लीजिए. इस घटना के बाद चारण के घर में 7 पुत्रियां और एक पुत्र का जन्म हुआ.

मामडिया जी के घर में में पहली संतान के रूप में विक्रम संवत 808 चैत्र सुदी मंगलवार को माता श्री आवड़ देवी का जन्म हुआ जो आगे चलकर तनोट माता के नाम से प्रसिद्ध हुए. इनके पश्चात् 6 और बहिनों का जन्म हुआ जिनका नाम क्रमशः आशी,सेसी ,गेहली , होल ,रूप एवं लांग था.

इन 7 पुत्रियों में एक आवड़ मां थी. यही आवड़ माता आगे चलकर तनोट माता के नाम से प्रसिद्ध हुए. मामडिया चारण को मां हिंगलाज की विशेष कृपा प्राप्त हुई. तनोट माता के इतिहास के संबंध में यह कथा कई वर्षों से प्रचलित और प्रासंगिक हैं.

भारत पाकिस्तान युद्ध के समय तनोट माता का चमत्कार

सन 1965 में सितंबर माह में भारत और पाकिस्तान के बिच युद्ध हुआ था. पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ यह मंदिर जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर है. कभी यह ताना माता का मन्दिर नाम से जाना जाता था लेकिन अब इसे तनोट राय माहेश्वरी नाम से जाना जाता हैं.

दरअसल हुआ यह है कि वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था. वर्ष 1965 के सितंबर माह में पाकिस्तान की सेना ने पूर्व दिशा में किशनगढ़ से 74 किलोमीटर दूर स्थित बुईली पर अपना कब्जा जमा लिया जिसके चलते पाकिस्तानी सेना का पश्चिम दिशा में शाहगढ़ से लेकर साधेवाला तक कब्जा हो गया.

वहीं दूसरी तरफ उत्तर दिया में अछरी टीबा 7 किलोमीटर तक क्षेत्र पर बी पाकिस्तान सेना का कब्जा हो गया. तनोट माता को मंदिर 3 दिशाओं से घेरकर पाकिस्तानी सेना इस मंदिर पर कब्जा करना चाहती थी ताकि रामगढ़ से लेकर शाहगढ़ तक का संपूर्ण इलाका उनके कब्जे में आ जाए.

पाकिस्तानी सेना ने तोपों की मदद से तनोट माता मंदिर पर हमला कर दिया. इस हमले में पाकिस्तानी सेना ने तनोट माता मंदिर पर करीब 3000 के लगभग बम गिराए लेकिन इस मंदिर को तनिक भी क्षति नहीं पहुंची. इतना ही नहीं मंदिर प्रांगण में गिरने वाले लगभग 450 बम नहीं फटे, यह देख कर भारतीय सैनिकों के साथ-साथ पाकिस्तान के सैनिक भी आश्चर्यचकित रह गए.

यह नजारा देखकर भारतीय सैनिक बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें यकीन हुआ कि तनोट माता हमारे साथ है जिससे उनका उत्साह और जोश दोगुना हो गया और उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों पर जोरदार जवाबी कार्यवाही की. इस जवाबी कार्यवाही में पाकिस्तान के सैकड़ों सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए.

यह भी कहा जाता है कि तनोट माता ने एक सैनिक के सपने में आकर कहा कि जब तक तुम मेरे क्षेत्र में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूंगी. भारत पाकिस्तान का युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन तनोट माता का यह चमत्कार भारत के सभी मुख्य अखबारों की ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया.

तब से लेकर आज तक तनोट माता मंदिर में हर दिन श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है.

BSF (सीमा सुरक्षा बल) पर हैं सुरक्षा और पूजा का ज़िम्मा

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध के बाद तनोट माता की पूजा बी.एस.एफ. के जवानों द्वारा की जाती है. वर्तमान में Tanot Mata Mandir का जिम्मा सीसुब नामक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है.

बीएसएफ वाले तनोट माता को अपनी आराध्य देवी मानते हैं, साथ ही इस मंदिर का रखरखाव भी बीएसएफ के जवानों द्वारा ही किया जाता है.

भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में तनोट माता का चमत्कार

1965 के बाद वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक और युद्ध हुआ. इस युद्ध के दौरान 4 दिसंबर 1971 की रात में पाकिस्तान की टैंक रेजीमेंट ने लोंगेवाला पर हमला किया. यह तनोट माता की त्रिपाठी जी सीमा सुरक्षा बल और पंजाब रेजीमेंट ने मिलकर पाकिस्तानी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी.

लोंगेवाला एक स्थान है जो पाकिस्तानी सीमा के समीप स्थित है. तनोट माता का मंदिर भी इसके समीप है. इस युद्ध में विजय के बाद तनोट माता मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण करवाया गया. इस विजय स्तंभ का निर्माण पाकिस्तान पर जीत की खुशी में करवाया गया था. इसी जीत को मद्देनजर रखते हुए प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को सैनिकों द्वारा एक विशेष उत्सव यहां पर मनाया जाता है, साथ ही इस युद्ध में शहीद हुए जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.

तनोट माता का चमत्कार देख नतमस्तक हुआ था पाकिस्तानी ब्रिगेडियर

1965 के युद्ध में जब पाकिस्तान की तरफ से तनोट माता मंदिर पर बमों की बौछार की गई तो एक भी बम नहीं फटा. यह चमत्कार देखकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान आश्चर्यचकित हो गए, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि आखिर ऐसा चमत्कार कैसे हुआ?

कहते हैं कि चमत्कार को सभी नमस्कार करते हैं. तनोट माता का चमत्कार देखकर पाकिस्तानी ब्रिगेड शाहनवाज खान ने भारत में आकर तनोट माता के दर्शन करने की अनुमति मांगी, करीब ढाई साल बाद उन्हें अनुमति मिल गई और वह यहां पर आए माता के दर्शन किए और माता को चांदी का छत्र भी चढ़ाया जो आज भी वहां पर मौजूद हैं.

तनोट माता से सम्बन्धित बार बार पूछे जाने वाले प्रश्न

[1] तनोट माता किसकी कुलदेवी है?

उत्तर- तनोट माता भाटियों (राजपूत) की कुलदेवी है.

[2] तनोट माता का मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर- तनोट माता मंदिर की प्रसिद्धि की मुख्य वजह है भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा मंदिर पर बम बरसाए गए लेकिन एक भी बम नहीं फटा. आज भी संग्रहालय में 450 बम रखे हुए हैं जो पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा फेंके गए थे. युद्ध के बाद यह खबर पूरे भारत के अखबारों में मुख्य खबर बन गई इसीलिए तनोट माता मंदिर को अधिक प्रसिद्धि मिली इसके अतिरिक्त तनोट माता का चमत्कार साक्षात देखने को मिलता है.

[3] तनोट में किसका मंदिर है?

उत्तर- तनोट में राजपूत राव तनुजी द्धारा बनाए गए मंदिर में हिंगलाज माता का स्वरूप माने जाने वाली तनोट राय मातेश्वरी का मंदिर है.

[4] पाकिस्तान बॉर्डर पर कौन सी माता है?

उत्तर- भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर तनोट राय माता का मंदिर बना हुआ है जो जैसलमेर से लगभग 130 किलोमीटर है.

[5] तनोट माता का दूसरा नाम क्या है?

उत्तर- तनोट माता को रक्षा की देवी भी कहा जाता है तनोट माता को कई नामों से जाना जाता है जिनमें रुमाल वाली देवी, आवड़ माता, तनोट राय माता मुख्य हैं.

[6] तनोट माता कितना दूर है?

उत्तर- जैसा कि आप जानते हैं तनोट माता राजस्थान के जैसलमेर में स्थित है. यह जैसलमेर जिला मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर दूर है.

[7] तनोट माता की आरती कितने बजे होती है?

उत्तर- तनोट माता की आरती हर शाम 8:00 बजे होती है और उसके बाद मंदिर को बंद कर दिया जाता है लेकिन सुबह 6:00 बजे से यह भक्तों के दर्शन के लिए खुला रहता है.

[8] तनोट माता की पूजा कौन करता है?

उत्तर- तनोट माता की आरती पूजा का जिम्मा बीएसएफ के जवानों को दिया गया है.

[9] तनोट माता का मंदिर कहां स्थित है?

उत्तर- तनोट माता का मंदिर राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले में तनोट नामक गांव में स्थित हैं. जो जैसलमेर मुख्यालय से लगभग 120 किलोमीटर दूर है.

[10] जैसलमेर से तनोट माता कितना दूर है?

उत्तर- जैसलमेर से तनोट माता लगभग 120 किलोमीटर दूर है.

[11] रामदेवरा से तनोट माता मंदिर कितना दूर है?

उत्तर- रामदेवरा से भी तनोट माता का मंदिर लगभग 120 किलोमीटर दूर है.

[12] तनोट माता में उत्सव कब मनाया जाता हैं?

उत्तर- प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को, 1971 युद्ध में पाकिस्तान पर जीत की ख़ुशी में जश्न मनाया जाता हैं.

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