राजा जनक भारतवर्ष के महान राजा थे. न्यायप्रियता, धार्मिकता और जीवों पर दया इनके आभूषण थे. उत्तरी भारत के मिथिला राज्य पर राजा जनक का शासन था. इसे विदेह राज्य के नाम से भी जाना जाता हैं. जनक के राज्य मिथिला का उल्लेख हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त जैन और बौद्ध धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता हैं.
इस लेख में हम राजा जनक की कहानी, राजा जनक की कथा और इतिहास के बारे में जानेंगे।
राजा जनक का जीवन परिचय
राजा जनक का जीवन परिचय निन्मलिखित हैं-
परिचय बिंदु | परिचय |
नाम | राजा जनक. |
मुख्य नाम | सिरध्वज. |
अन्य नाम | विदेह. |
पिता का नाम | निमी. |
पत्नी का नाम | सुनैना. |
किस युग में जन्म हुआ | त्रेता युग (रामायण काल). |
वंश/गौत्र | मिथिला वंश/निमी. |
भाई-बहिन | कुशध्वज (छोटा भाई). |
संतान | सीता/उर्मिला. |
पुत्री सीता का विवाह | भगवान श्रीराम के साथ. |
पौराणिक मान्यता के अनुसार इक्ष्वाकु वंश के राजा निमी ने विदेह नामक राज्य की स्थापना की थी, जिसकी राजधानी मिथिला थी. मिथिला में जनक नामक राजा हुए जिन्होंने जनक नामक राज्य की स्थपना की.आगे चलकर इनका राजवंश ही जनक राजवंश के नाम से जाना जाने लगा. जनक के पुत्र का नाम उदावयु था ,जनक के पौत्र का नाम नंदिवर्धन् और कई पीढ़ी पश्चात् ह्रस्वरोमा हुए. ह्रस्वरोमा के दो पुत्र सीरध्वज और कुशध्वज थे. ये वही सिरध्वज हैं जिन्हें आज हम माता सीता के पिता राजा जनक के नाम से जाना जाता हैं.
राजा जनक का मूल नाम
कई लोग अक्सर यह सवाल करते हैं कि राजा जनक का मूल नाम क्या था? लेकिन बहुत कम लोग ही हैं जो राजा जनक का मूल नाम जानते हैं. राजा जनक का मूल नाम सीरध्वज था. कई लोग “मिथिला नरेश” इनका मूल नाम समझते हैं लेकिन यह गलत हैं. मिथिला इनकी राजधानी थी और ये वहां के राजा थे इसलिए इन्हें मिथिला नरेश के नाम से जाना जाता हैं.
राजा जनक की कहानी/कथा
मिथिला नरेश राजा जनक अपने आध्यात्मिक ज्ञान की वजह से विख्यात थे. राजा होने के बाद भी मिथिला नरेश सन्यासी का जीवन का यापन करते थे. इस लेख में हम राजा जनक के जन्म और कहानी के बारे पढ़ेंगे।
राजा जनक के पूर्वजों को विदेह या निमी कुलनाम का वंशज माना जाता हैं. विदेह कुलनाम सूर्यवंशी या इक्ष्वाकु वंश के राजा निमी से निकली एक शाखा हैं. इसी विदेह वंश के द्वितीय वंशज मिथि जनक ने मिथिला राज्य की स्थापना की थी. इस वंश में निमी नामक राजा का जन्म हुआ था. निमी के कोई पुत्र नहीं था. उन्होंने एक बड़े यज्ञ का आयोजन रखा जिसमें वसिष्ठ जी को यज्ञ के लिए बुलाया। वसिष्ठ देवराज इन्द्र के यहाँ एक अन्य यज्ञ में लगे हुए होने के कारण आने में असमर्थ थे.
तभी निमी ने गौतम ऋषि की सहायता से यज्ञ प्रारंभ किया, जब यह बात ऋषि वसिष्ठ तक पहुंची तो उनको बुरा लगा और उन्होंने निमी को शाप दे दिया। यह जानकर राजा निमी ने भी वसिष्ठ को शाप दिया जिसका नतीजा यह हुआ की दोनों ही जलकर ख़त्म हो गए.
अब गौतम ऋषि और उनके साथ मौजूद अन्य ऋषियों ने यज्ञ को पूरा करने के लिए राजा निमी को जीवित रखा, कोई पुत्र ना होने की वजह से ऋषियों ने अरणी से राजा निमी के शरीर का मंथन किया परिणामस्वरूप उनके एक पुत्र का जन्म हुआ जो आगे चलकर राजा जनक कहलाए।
विदेह का अर्थ होता है जिसकी देह ना हो वह विदेह कहलाता हैं. शरीर मंथन से उत्पन्न होने की वजह से राजा जनक को मिथि या विदेह के नाम से जाना जाता हैं. मृत शरीर से पैदा होने की वजह से यही पुत्र जनक कहलाए।
विदेह होने के कारन विदेह और मंथन से पैदा होने के कारण निमी “मिथिला” कहलाए। इसी नाम के आधार पर इन्होंने मिथिला नगर बसाया था. आगे चलकर माता सीता का जन्म राजा जनक के घर में हुआ था.
राजा जनक को विदेह क्यों कहा जाता है?
एक समय की बात हैं राजा जनक ने अपना शरीर त्याग दिया, ऐसा करने के कुछ समय बाद स्वर्ग से एक विमान उन्हें लेने के लिए आया जिसमें सवार होकर वो कालपुरी पहुंचे। कालपुरी में बहुत पापात्माएँ कष्ट भोग रही थी लेकिन जैसे ही राजा जनक वहां पहुंचे उन पापात्माओं को कुछ शीतलता हुई.
जैसे ही राजा जनक वहां से जाने लगे तो उन पापी आत्माओं ने उन्हें रोक लिया और बताया की आपके यहाँ आने से उनकी पीड़ा कम हुई हैं. उन्होंने राजा जनक से विनती की आप यही रुक जाओ. तब राजा जनक ने वहीँ रुकने का निर्णय लिया। जब काल वहाँ पहुँचा तो वह राजा जनक से बोला ” हे राजन आप यहाँ क्या कर रहे हो?
जनक ने जवाब दिया ” आप ऐसी कोई युक्ति बताओ की इन सब को यातनाओं से मुक्ति मिल सके. तभी काल ने कहा अगर आप अपने पुण्य इनको देदो तो इनको मुक्ति मिल सकती हैं. राजा जनक ने अपने सभी पुण्य उनको दे दिए जिससे उनकी मुक्ति हो गई.
तब राजा ने पूछा की मुझे किसकी सजा मिल रही हैं इस पर काल ने जवाब दिया एक बार अपने गाय को चारा खाने से रोक था. अब आप यहाँ से स्वर्ग जा सकते हो. यह सुनकर राजा जनक ने विदेह को प्रणाम किया और स्वर्ग के लिए चल पड़े. ऐसी दिन से राजा जनक को विदेह कहा जाने लगा.
राजा जनक ने माता सीता को गोद लिया था?
राजा जनक और उनकी पत्नी सुनैना को कोई भी संतान नहीं हुई थी. एक समय की बात हैं जनकपुरी में भयंकर अकाल पड़ गया जिसके बाद ऋषि-मुनियों ने वहां पर एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। यज्ञ के पूरा होने के बाद राजा जनक को खेत जोतना था. जब राजा जनक खेत जोट रहे थे तभी किसी के रोने के आवाज आई. राजा जनक ने देखा की खेत में एक छोटी बच्ची रो रही हैं तो उन्होंने उसको गोद ले लिया और उसका नाम रखा सीता।
इस तरह राजा जनक ने माता सीता को गोद लिया।
राजा जनक के पास शिव धनुष कहाँ से आया?
लोगों के मन में अक्सर यह सवाल रहता हैं कि राजा जनक के पास शिव धनुष कहाँ से आया? राजा जनक के पूर्वज थे निमी और निमी के सबसे बड़े बेटे का नाम था देवरात। देवरात की धरोहर के रूप में यह धनुष राजा जनक के पास रखा हुआ था. दक्ष यज्ञ के नष्ट होने के बाद भगवान शिव ने इसी धनुष को टंकार लगाकर कहा था “देवताओं ने उन्हें यज्ञ में भाग नहीं दिया इसलिए वह इस धनुष से सभी का सर काट लेंगे”
बहुत मनाने और स्तुति करने के बाद भगवान भोलेनाथ ने देवताओं को ही अर्पित कर दिया था. सभी देवताओं मिलकर धरोहर स्वरुप यह धनुष राजा जनक के पूर्वजों के पास इसे धरोहर के रूप में रखा था.
जब राजा जनक ने एक बार बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था तब ऋषि विश्वामित्र भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण जी को लेकर वहां पहुंचे ताकि शिव धनुष के दर्शन हो सके.
जानकी विवाह
माता सीता जी को जानकी के नाम से भी जाना जाता हैं. माता सीता के पिता राजा जनक प्रतिदिन धरोहर स्वरुप प्राप्त भगवान शिव के धनुष की पूजा-पाठ करते थे. एक दिन की बात हैं राजा जनक ने देखा कि सीता जी उस धनुष को उठाकर उसको साफ़ कर रही थी. यह आश्चर्य का विषय था क्योंकि यह धनुष कोई साधारण व्यक्ति नहीं उठा सकता था. उस दिन से ही राजा जनक ने निर्णय लिया की जो व्यक्ति इस धनुष को उठाएगा वह सीता जी का विवाह उसी के साथ करेगा।
जब सीता जी विवाह योग्य हो गए तब राजा जनक ने चारों दिशाओं में उनकी बेटी के स्वयंवर की खबर पहुँचाई। आमंत्रण पाकर दूर-दूर के राजा महाराजा इस स्वयंवर में पहुंचे। गुरु विश्वामित्र जी भी भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के साथ पहुंचे।
सभी राजाओं के वहाँ आने के बाद उस धनुष को एक जगह रखा गया और कहा की जो भी वीर पुरुष इस धनुष को उठाकर इस पर धनुष की डोर चढ़ा देगा उसके साथ राजा जनक अपनी पुत्री सीता जी का विवाह कर देंगे। बारी-बारी से सभी राजा आए लेकिन कोई भी राजा उस धनुष को नहीं उठा सका.
राजा जनक के दरबार में निराशा फ़ैल चुकी थी तभी राजा जनक ने कहा की क्या ऐसा कोई शक्तिशाली राजा नहीं हैं जो इस धनुष को उठा सके तभी विश्वामित्र की आज्ञा पर श्रीराम आगे आए और उन्होंने उस धनुष को उठाकर डोर चढ़ा दी.
राजा जनक ने अपनी पुत्री माता सीता जी का विवाह अपने वचनानुसार प्रभु श्रीराम के साथ कर दिया।
सारांश
राजा जनक मिथिला नगरी के राजा था उन्हें विदेह के नाम से भी जाना जाता हैं. राजा जनक को भगवान शिव का धनुष धरोहर स्वरुप मिला था. राजा जनक ने अपनी बेटी माता सीता के स्वयंवर में यह शर्त रखी की जो भी राजा उस धनुष को उठा लेगा, सीता जी का विवाह उसी के साथ होगा। तब श्रीराम ने यह धनुष उठाया और माता सीता जी साथ उनका विवाह हुआ था.
FAQ
[1] राजा जनक के गुरु कौन थे?
उत्तर- राजा जनक के गुरु मुनि अष्टावक्र थे.
[2] राजा जनक के पुरोहित कौन थे?
उत्तर- राजा जनक के पुरोहित शतानन्द जी थे.
[3] राजा जनक कहाँ के राजा थे?
उत्तर- राजा जनक मिथिला अथवा जनकपुर के राजा थे.
[4] राजा जनक के पिता का नाम क्या था?
उत्तर- राजा जनक के पिता का नाम निमी था.
[5] राजा जनक का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर- राजा जनक का वास्तविक नाम सीरध्वज था.
[6] राजा जनक की पुत्री का नाम क्या था?
उत्तर- राजा जनक की पुत्री का नाम माता सीता जी था.
[7] राजा जनक की पुत्री का विवाह किसके साथ हुआ था?
उत्तर- राजा जनक की पुत्री का विवाह भगवान श्रीराम के साथ हुआ था.
[8] राजा जनक के भाई का नाम क्या था?
उत्तर- राजा जनक के कुशध्वज था.
[9] राजा जनक का जन्म किस युग में हुआ था?
उत्तर- रामायण काल में त्रेतायुग में हुआ था.
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