वीर सावरकर की माफी का सच जानने से पहले आपको बता दें कि वीर सावरकर एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे. सावरकर ऐसे महान देशभक्त थे जिन्होंने भारत माता की स्तुति में 6000 कविताएँ जेल की दीवारों पर लिख दी थी.
वीर सावरकर एक ऐसे क्रांतिवीर हुए हैं जिनकों अंग्रेजी हुकूमत ने 50 साल की कठोर काला पानी की सजा सुनाई और अंडमान निकोबार की जेल में डाल दिया। इतिहासकार तो नहीं लेकिन राजनेता सावरकर के लिए एक जुठ का प्रचार करते हैं कि उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी माँगी थी! लेकिन यह सत्य नहीं हैं.
वीर सावरकर एक बात हमेशा कहते थे “माता भूमि पुत्रो अहम् पृथिव्याः” जिसका अर्थ हैं “यह भारत भूमि ही मेरी माता हैं और मैं इसका पुत्र हूँ”. ऐसी सोच रखने वाले महापुरुषों के लिए मातृभूमि से बड़ा कोई नहीं हो सकता हैं.
वीर सावरकर की माफी का सच इस लेख में पूरी जानकारी के साथ जानेंगे ताकि आपका यह सवाल हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए कि वीर सावरकर ने माफी मांगी थी या नहीं?
वीर सावरकर की माफी का सच
आपको तार्किक रूप से बताते हैं कि वीर सावरकर की माफी का सच क्या था? क्या सच में सावरकर ने माफी मांगी या अन्य किसी घटना को तोड़मोड़ कर पेश किया गया? वीर सावरकर ने एक किताब लिखी थी जिसका नाम था “1857 का स्वातंत्र्य समर” लेकिन इस किताब को अंग्रेजों ने पब्लिश नहीं होने दिया और प्रतिबन्ध लगा दिया गया. इस किताब को अंग्रजों ने सिर्फ इसलिए प्रतिबंधित कर दिया था क्योंकि इसमें वीर सावरकर ने यह सिद्ध कर दिया था की 1857 की क्रांति भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम था जिसे अंग्रेज महज एक सिपाही विद्रोह मानते थे.
एक क्रांतिकारी जो कठोर कारावास में रहकर अमानवीय यातनाओं को सहन करने का सामर्थ्य रखता हो, जिसके लिए अपनी जान से ज्यादा प्यारी मातृभूमि हो भला ऐसा व्यक्ति कैसे किसी से माफी मांग सकता हैं. आप और हम आज तक जिस माफीनामा के बारे में सुनते आए है वह तो एक याचिका महज थी जिसे विधान के अनुसार हर कोई राजनैतिक कैदी दायर कर सकता था. इस याचिका का गलत अर्थ निकला गया और सावरकर का माफीनामा बोलकर एक वीर स्वतंत्रता सेनानी की वीरता और त्याग पर सवाल खड़ा किया गया.
वीर सावरकर के साथ-साथ और भी कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने यह याचिका दायर की थी जिनमें सचिन्द्र नाथ सान्याल (HRA के गठनकर्ता) और पारीख घोष (क्रांतिकारी अरविन्द घोष का भाई) नाम भी शामिल हैं. इतना ही नहीं वीर सावरकर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं “जब-जब सरकार ने सहूलियत दी, तब-तब मैंने याचिका दायर की”. यह बात और कोई नहीं बल्कि स्वयं वीर सावरकर ने लिखी हैं.
निन्म मानसिकता के लोग यदि इस याचिका को माफीनामा मानते हैं तो उनको अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा. वीर सावरकर की माफी का सच यह हैं कि उन्होंने कभी अंग्रेजों से माफ़ी नहीं माँगी थी, यह फैलाया गया भ्रम हैं.
इस सम्बन्ध में आपसे कुछ प्रश्न हैं-
वीर सावरकर की माफी का सच सामने लाने के लिए आपको निम्नलिखित प्रश्नों पर गौर करना चाहिए-
[1] राजनैतिक बंदी के रूप में सरकार आपको बचाव का मौका दे तो क्या आप करेंगे, दया याचिका दायर करेंगे या नहीं?
[2] क्या आप बंधन से छुटकारा नहीं पाना चाहेंगे?
[3] एक क्रांतिकारी होने के नाते वो यह नहीं चाहेंगे कि स्वतंत्रता आंदोलन में वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहे?
जहाँ तक एक सामान्य बुद्धिमान और पढ़ें-लिखे लोगों की बात हैं तो सब यहीं कहेंगे कि सावरकर जी सही थे. महात्मा गाँधी खुद सावरकर को पत्र लिख चुके थे कि उन्हें सरकार में याचिका दायर करनी चाहिए ताकि जेल से बाहर आ सके. यह बात गाँधी जी “यंग इंडिया” नामक पत्र के जरिए लिखते थे जो वर्ष 1920-21 के दौरान लिखे गए थे.
50 साल की कालेपानी की सजा काट रहे वीर सावरकर को वर्ष 1921 में 10 वर्ष की सजा काटने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया.
वीर सावरकर ने सरकार द्वारा सहूलियत देने और महात्मा गाँधी द्वारा पत्र लिखने के बाद जेल से बाहर आने की याचिका दायर की थी एक सामान्य घटना थी लेकिन देश संकुचित मानसिकता से ग्रसित और राजनैतिक फायदे के लिए लोगों ने यह कहकर एक महान क्रांतिकारी वीर सावरकर को बदनाम करने की मंशा से यह भ्रम फैलाया कि उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी.
वीर सावरकर की माफी का सच यह हैं कि उन्होंने कभी अंग्रेजों से माफी नहीं माँगी थी, सिर्फ एक सामान्य याचिका दायर की गई थी वह भी सरकार और गाँधी के कहने पर.
सारांश:-
वीर सावरकर की माफी का सच पर आधारित यह पूरा लेख पढ़ने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफ़ी नहीं मांगी थी.
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