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महर्षि वाल्मीकि की मृत्यु कब हुई

महर्षि वाल्मीकि महाकाव्य रामायण के रचियता थे. महाकाव्य रामायण ने आधुनिक समाज को मर्यादा, सत्य, प्रेम, भाईचारा और परिवार में रहना सिखाया हैं. महर्षि वाल्मीकि का पुराना नाम रत्नाकर था. इनके पिता का नाम प्रचेता था. महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन हुआ, प्रतिवर्ष इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती हैं.

महर्षि वाल्मीकि का जन्म, मृत्यु और परिचय

परिचय बिंदुपरिचय
नाममहर्षि वाल्मीकि जी
पुराना नामरत्नाकर या आदिकवि वाल्मीकि जी
पिता का नामप्रचेता
जन्म दिनाँकअश्विन माह की पूर्णिमा
मुख्य रचनामहाकाव्य रामायण
(महर्षि वाल्मीकि जन्म,मृत्यु, परिचय)

महर्षि वाल्मीकि की मृत्यु कब हुई

महर्षि वाल्मीकि का उल्लेख तीनों युगों में मिलता हैं. तीनों युगों (सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग) में उल्लेख मिलने की वजह से भगवान वाल्मीकि जी सृष्टिकर्ता के नाम से भी जाना जाता हैं. वैदिक इतिहास या पौराणिक इतिहास में महर्षि वाल्मीकि की मृत्यु को लेकर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं.

रामचरित मानस के अनुसार जब भगवान श्रीराम वाल्मीकि जी के आश्रम गए तब उनको दंडवत प्रणाम किया था. तब भगवान श्रीराम ने उनके लिए कहा-

तुम त्रिकालदर्शी मुनिनाथा।

विश्व बदर जिमि तुमरे हाथा।।

अर्थात इसका मतलब हैं- आप तीनों कालों को जानने वाले स्वयं प्रभु हैं, यह संसार आपके हाथ में एक बैर के समान लगता हैं.

महाभारत काल में भी महर्षि वाल्मीकि जी का उल्लेख मिलता हैं. जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो जाता हैं तब द्रौपदी एक यज्ञ का आयोजन करवाती हैं. इस यज्ञ की सफलता शंख बजाने के बाद मानी जानी थी लेकिन बहुत कोशिस करने के बाद भी जब श्री कृष्ण से भी शंख नहीं बजा तो उनके कहने पर सभी वाल्मीकि आश्रम जाते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं.

जब महर्षि वाल्मीकि वहाँ आते हैं तब शंख स्वतः बजने लगता हैं और द्रौपदी का यज्ञ सफल होता हैं. इस घटना के सन्दर्भ में कवी कबीर लिखते हैं-

सुपच रूप धार सतगुरु आए।

पांडवों के यज्ञ में शंख बजाए।।

इस तरह तीन युगों में विद्यमान भगवान महर्षि वाल्मीकि की मृत्यु के सम्बन्ध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं.

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