रघुनाथ राव पेशवा Raghunath Rao Peshwa History In Hindi

रघुनाथ राव को “Raghoba”और “Raghoba Dada”नाम से भी जाना जाता है। इनका विवाह आनंदी बाई के साथ हुआ, जिनके दो पुत्र हुए पहले का नाम बाजीराव द्वितीय जबकि दूसरे पुत्र का नाम चीमाजी राव द्वितीय था।

रघुनाथ राव पेशवा इतिहास और जीवन परिचय (Raghunath Rao Peshwa History In Hindi)

  • पूरा नाम Full Name – श्रीमंत रघुनाथराव बल्लाल पेशवा।
  • अन्य नाम Other Names– राघो बल्लाल, राघों भरारी, राघोबा, राघोबा दादा।
  • जन्म तिथि Raghunath Rao peshwa date of birth– 18 अगस्त 1734.
  • जन्म स्थान Birth place– महुली, सतारा।
  • मृत्यु तिथि Death- 11 दिसंबर 1783.
  • पद – पेशवा 1773 से 1774 तक।
  • पत्नी का नाम Raghunath Rao wife Name– आनंदीबाई।
  • पुत्र Raghunath Rao Son– बाजीराव II और चिमाजी राव II, एक गोद लिया हुआ लड़का था जिसका नाम अमृत राव था।
  • पूर्वाधिकारी– नारायण राव।
  • उत्तराधिकारी– माधवराव नारायण।
  • धर्म– हिंदू, सनातन।

Raghunath Rao Peshwa का प्रारंभिक जीवन

raghunath rao peshwa का बचपन सतारा में बीता था। बचपन से ही इन्होंने युद्ध कला सीखी थी। आप जानना चाहेंगे कि who was Raghunath Rao? तो आपको बता दें कि ये मराठा साम्राज्य के 11वें पेशवा थे।

रघुनाथ राव को “Raghoba”और “Raghoba Dada”नाम से भी जाना जाता है। इनका विवाह आनंदी बाई के साथ हुआ, जिनके दो पुत्र हुए पहले का नाम बाजीराव द्वितीय जबकि दूसरे पुत्र का नाम चीमाजी राव द्वितीय था।

इनके अलावा Raghunath Rao Peshwa ने एक पुत्र गोद लिया जिसका नाम अमृतराव था।

मराठों के उदय में रघुनाथरव का योगदान

मराठों और मराठा साम्राज्य के उदय में Raghunath Rao Peshwa का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। खासकर उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य के विस्तार और मराठों के प्रभाव को बढ़ाने में इनका सबसे बड़ा योगदान माना जाता है।

रघुनाथ राव धार्मिक प्रवृत्ति के पेशवा थे इन्होंने हिंदू सनातन धर्म के सबसे बड़े धार्मिक स्थानों में से एक “गयाजी” और “मथुरा” में अपनी संस्कृति की पुनः स्थापना की और हिंदू राज्य स्थापित किया।

700 वर्षों के पश्चात पाकिस्तान तक मराठा साम्राज्य का विस्तार करने में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी।1756 के अंत में अब्दुल शाह अब्दाली भारत पर आक्रमण करना चाहता था उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा मुगल साम्राज्य था।

नानासाहेब पेशवा, रघुनाथ राव (Raghunath Rao Peshwa), मल्हार राव होलकर और दत्ता जी शिंदे ने निर्णय लिया कि वह मुगलों का साथ देंगे।

अब्दुल शाह अब्दाली को रोकने के लिए बालाजी बाजीराव पेशवा उर्फ नानासाहेब ने इस कार्य के लिए रघुनाथ राव को चुना और मल्हार राव होलकर को आदेश दिया कि वह रघुनाथराव की सहायता करेंगे।
14 जनवरी 1757 में रघुनाथ राव इंदौर पहुंचे और वहां जाकर मल्हारराव होल्कर से मिले।

raghunath rao peshwa के उत्तरी भारत पर प्रभुत्व जमाने के लिए दो मुख्य चुनौतियां थी पहली मुगलों पर होने वाले अफ़गानी आक्रमण को रोकना और दूसरा था अपनी सेना के लिए पर्याप्त मात्रा में राशन और धन एकत्रित करना।

रघुनाथ राव का नानासाहेब को पत्र

ऐसे समय में रघुनाथ राव ने पेशवा नानासाहेब को एक पत्र लिखा।

उसमें लिखा कि “मैं सिर्फ गांवों को लूट कर सेना का भरण पोषण कर रहा हूं, यहां पर सभी जगह किलेबंदी की हुई है बिना लड़ाई के राशन का एक दाना भी एकत्रित करना मुश्किल है। हमारे पास पैसा भी नहीं है और खाद्य सामग्री के लिए ऋण भी एकत्रित नहीं किया जा सकता है।हमारे सैनिक याद तो एक समय खाना खाते हैं या उन्हें एक-दो दिन का उपवास रखना पड़ता है”

(रघुनाथ राव द्वारा लिखित पत्र)


इंदौर से अपनी सेना के साथ रघुनाथराव जयपुर के लिए निकल पड़े। 1757 में ही वह जयपुर पहुंचकर माधव सिंह से राशन और धन की मांग की, ऐसा नहीं करने पर माधव सिंह को युद्ध की चेतावनी भी दी।

जयपुर राजघराने में मंत्री कनीराम ने मराठों और राजपूतों के बीच में सहमति बनाने के लिए मराठों को धन देने का आश्वासन दिया।

रघुनाथ राव ने 40 से 50 लाख रुपए की मांग की साथ ही 14 लाख आमदनी वाले क्षेत्रों पर अधिकार की बात की।माधव सिंह ने नाथ राव की शर्तों को मानने से इनकार कर दिया और अपने सभी सामंतों को सतर्क कर दिया।

क्योंकि कई समय से घेराबंदी करने की वजह से मराठी से ना थोड़ा कमजोर पड़ गई इसलिए माधव सिंह और रघुनाथ राव ने शांति वार्ता को ही उचित समझा।

12 जुलाई 1757 में मराठों और राजपूतों के बीच में संधि हुई इस संधि के तहत राजपूतों ने मराठों को 11लाख रुपए देने का आश्वासन दिया।

इस संधि के पश्चात रघुनाथराव ने पेशवा नानासाहेब को दूसरा पत्र लिखा-

“मेरे पास कोई पैसा नहीं है, न ही कोई ऋण उपलब्ध है। मेरे सैनिक कर्ज में डूबे हैं।  यहां कीमतें बहुत अधिक हैं। मैं रोजाना अपना भोजन गांवों को बर्खास्त करके ही प्राप्त कर रहा हूं। ”  (12 जुलाई 1757 को पेशवा को रघुनाथराव का पत्र।)

रघुनाथ राव का दूसरा पत्र।

गंगा दोआब में मराठों का प्रवेश

मई 1757 में खोई हुई संपत्ति को पुनः प्राप्त करने के लिए raghunath rao peshwa ने अपने सैनिकों को आगरा के दोआब में भेजा।

सखाराम बापू, तात्या गंगाधर, अंताजी मनकेश्वर और विट्ठल शिवदेव नेतृत्व में मराठी सैनिक रवाना हुए। आगरा पहुंचने के पश्चात मराठों ने राजा सूरजमल के साथ शांति संधि कर ली।

यमुना नदी को पार करते हुए मराठी सेना ने इटावा और सिकंदरा को अपने कब्जे में ले लिया।
17 जून 1757 में मराठों ने कासगंज में डेरा डाल दिया।

अंताजी मनकेश्वर 2 जुलाई 1757 में अनूपशहर पहुंचे। उस समय मेरठ पर नजीब खान का अधिकार था।

उन्होंने मराठों का विरोध करना शुरू कर दिया लेकिन ऐसे समय में वहीं के एक मंत्री इमाद उल मुल्क ने मराठों के साथ मैत्रीपूर्ण संधि कर ली, इस संधि के तहत यह तय हुआ कि ना तो वह नदीम खान का साथ देंगे ना मराठों का।

शुजा-उद-दौला और नजीब-उद-दौला को पराजित करके मराठों ने मेरठ को अपने नियंत्रण में ले लिया।

पानीपत के तीसरे युद्ध में हार के बाद क्या हुआ

1761 ईस्वी में मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की बुरी तरह हार हुई।

इस हार के बाद उत्तर भारत में मराठों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगा। इससे बुरी हालत मराठों की पहले कभी नहीं हुई थी।

रघुनाथ राव पेशवा कैसे बने

पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद असाध्य रोग की वजह से उनके भाई बालाजी बाजीराव अर्थात नाना साहेब की मृत्यु हो गई। नाना साहेब की मृत्यु के बाद ‘raghunath rao peshwa‘ पेशवा बनने के सपने देखने लगे लेकिन उनकी राह कतई आसान नहीं थी।

उनका सपना तब चकनाचूर हो गया जब पेशवा पद पर माधवराव को बिठा दिया गया। इसी के चलते रघुनाथ राव और माधवराव के बीच में शीत युद्ध छिड़ गया।

रघुनाथराव को जेल में डाल दिया गया। लेकिन अचानक से पेशवा माधवराव की मृत्यु के पश्चात उनके छोटे भाई नारायण राव ने रघुनाथ राव को कैद से मुक्त कर दिया।

1773 ईस्वी में गणेश चतुर्थी के दिन raghunath rao peshwa ने नारायण राव को मौत के घाट उतार दिया। नारायण राव की उम्र इस समय महज 18 वर्ष थी, अपने चाचा रघुनाथ राव से बहुत मदद मांगने के बाद भी उन्हें नहीं छोड़ा गया।

नारायणराव को मारने के लिए उन पर अंधाधुंध वार करते हुए सैनिक उनके पीछे दौड़ रहे थे, तब वह भागकर अपने चाचा रघुनाथराव के कमरे में पहुंचे लेकिन रघुनाथ राव ने उनकी मदद नहीं की।

1773 से लेकर 1774 के बीच में थोड़ी सी अवधि के लिए रघुनाथ राव मराठा साम्राज्य के पेशवा रहे।

नारायण राव का वध करने के बाद उनके शरीर के कई टुकड़ों में बांट दिया और इतना ही नहीं उनके शरीर को नदी में फेंकने का आदेश दिया गया।

यह रघुनाथ राव के मस्तिष्क पर सबसे बड़ा कलंक माना जाता है। रघुनाथ राव को लग रहा था कि अब उसे पेशवा पर आसानी के साथ मिल जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

नारायण राव के 1 वर्षीय पुत्र जिनका नाम माधवराव था (माधवराव II) समस्त मंत्रियों ने मिलकर नया पेशवा चुना। रघुनाथ राव शनिवारवाड़ा छोड़कर भाग गए।

शनिवारवाडा से जाने के पश्चात रघुनाथराव अंग्रेजों से जाकर मिल गए और मराठों के खिलाफ खड़े हो गए।

यहीं से प्रथम “मराठा और आंग्ल युद्ध” की शुरुआत हुई। अंग्रेज और मराठा आमने-सामने थे रघुनाथ राव अंग्रेजो की तरफ से लड़े लेकिन इस युद्ध में अंग्रेजो और raghunath rao peshwa की हार हुई।

रघुनाथ राव की मृत्यु कैसे हुई (How Raghunath Rao peshwa died)

1783 ईस्वी में रघुनाथ राव का असर पूरी तरह खत्म हो गया। 11 दिसंबर 1783 में अज्ञात कारणों से उम्र 49 वर्ष की आयु में रघुनाथ राव का निधन हो। इनकी मृत्यु के पश्चात इन के तीनों पुत्रों को पेशवा के मंत्री नाना फडणवीस ने कैद में रखा।

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