Sumer Singh Gardi का इतिहास

Sumer Singh Gardi का परिचय

Sumer Singh gardi (सुमेर सिंह गर्दी) शिकारी काबिले का मुखिया था। भीलों का यह काबिला मुख्य रूप से शिकार करने के लिए जाना जाता था। यह लोग बहुत ही खूंखार और आक्रामक होते थे। दया और संकोच नाम से अनभिज्ञ इसका विलय के लोग बहुत ही क्रूर और युद्ध विद्या में निपुण थे। Sumer Singh gardi ( सुमेर सिंह गर्दी ) पेशवा नारायण राव के समय गार्ड के रूप में शनिवार वाड़ा के महल में कार्यरत था।

बड़े भाई माधवराव पेशवा की मृत्यु के पश्चात नारायण राव मराठा साम्राज्य के पेशवा बने। इनके चाचा रघुनाथ राव इनसे बिल्कुल भी खुश नहीं थे और हमेशा से ही इनके विरोधाभासी रहे।
रघुनाथराव बहुत महत्वकांक्षी व्यक्ति था। रघुनाथ राव किसी भी कीमत पर मराठा साम्राज्य का पेशवा बनना चाहता था लेकिन उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा था नारायणराव पेशवा।

सुमेर सिंह गर्दी द्वारा नारायण राव की हत्या

रघुनाथ राव ने उसकी पत्नी आनंदीबाई के साथ मिलकर नारायण राव को जान से मारने के षड्यंत्र रचने लगे।

तभी रघुनाथ राव के मन में “सुमेर सिंह गर्दी” का नाम आया सुमेर सिंह गर्दी बिलों के एक विशाल काबिले का मुखिया था इसका विलय का मुख्य कार्य शिकार करना था।
रघुनाथ राव Sumer Singh gardi (सुमेर सिंह गर्दी) से एक गुप्त रूप से मिलकर उसे कहता है कि गणेश चतुर्थी के दिन मंदिर से निकलते वक्त रघुनाथ राव को कैद करना है और बंदी बनाकर इसे जेल में डालना है।

रघुनाथ राव “सुमेर सिंह गर्दी” (Sumer Singh gardi) को कहते हैं कि वह एक पत्र के जरिए पूरी सूचना उसके तक पहुंचा देगा। पूरी प्लानिंग के साथ रघुनाथ राव पत्र के जरिए Sumer Singh gardi (सुमेर सिंह गर्दी) के लिए संदेश भेजता है जिसमें लिखा होता है कि इस को बंदी बना लिया जाए।

लेकिन संयोग की बात यह थी कि यह पत्र “सुमेर सिंह गर्दी” तक पहुंचने से पहले रघुनाथराव की माता आनंदीबाई के हाथ लग गया और उसने इस पत्र में बदलाव करते हुए लिखा कि नारायणराव की हत्या कर दी जाए। 30 अगस्त 1773 का दिन था सुमेर सिंह गर्दी और उसके काबिले के साथी पहले से ही घात लगाकर बैठे थे। जैसे ही नारायणराव पेशवा पूजा के बाद मंदिर से बाहर निकले उन पर काबिले के लोगों ने ताबड़तोड़ हमला कर दिया।

नारायणराव पेशवा कुछ समझ पाते इससे पहले ही उन पर कई बार प्राणघातक हमले हो रहे थे। आनन-फानन में उन्हें कुछ नहीं सूझा और वह दौड़ कर अपने चाचा रघुनाथ राव के कमरे की तरफ बढ़े और जान बचाने की याचना की लेकिन रघुनाथराव ने उनकी मदद नहीं की। “सुमेर सिंह गर्दी” ने धारदार हथियार से नारायणराव पेशवा को मौत के घाट उतार दिया इतना ही नहीं उनके शरीर को कई टुकड़ों में बांट दिया गया।

बाद में “सुमेर सिंह गर्दी” की सहायता से ही नारायणराव पेशवा के शरीर को पोटली में लपेट कर नदी में फेंक दिया गया। 1775 ईस्वी में रहस्यमयी ढंग से “सुमेर सिंह गर्दी की मृत्यू” ( Sumer Singh gardi died in 1775) पटना में हुई थी।

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