Biography Of Savitribai Phule || सावित्रीबाई फुले जीवनी
सावित्री बाई फुले को “भारत की पहली महिला शिक्षिका” के रूप में भी याद किया जाता है। “सावित्रीबाई फुले का इतिहास” भारतीय महिलाओं के अधिकारों के इर्द-गिर्द घूमता है।
सावित्रीबाई फुले समाज सुधारिका के साथ-साथ एक मराठी कवियत्री भी थी। इतना ही नहीं संपूर्ण महिला समाज के उद्धार हेतु इन्होंने स्त्रियों के अधिकारों तथा शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए।
सावित्रीबाई फुले ने अपने पति के साथ मिलकर कार्य किया। इन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता हैं। “भारत की पहली महिला शिक्षिका” के साथ-साथ इन्हें एक महान समाज सेविका के रूप में भी याद किया जाता है। संक्षिप्त रूप में देखा जाए तो यही “सावित्रीबाई फुले का इतिहास” हैं।
सावित्रीबाई फुले जीवनी (Biography Of Savitribai Phule)
परिचय बिंदु | परिचय |
पूरा नाम | सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले |
जन्मतिथि | 3 जनवरी 1831 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु की वजह | प्लेग नामक रोग |
पिता का नाम | खंदोजी नैवेसी पाटिल |
माता का नाम | लक्ष्मी बाई |
पति का नाम | ज्योतिराव गोविन्दराव फुले |
पुत्र और पुत्री | दत्तक पुत्र यशवंतराव |
मृत्यु के समय आयु | 66 वर्ष |
धर्म | हिंदू, सनातन |
प्रसिद्धि की वजह | “भारत की पहली महिला शिक्षिका” , समाज सेविका और मराठी कवियत्री |
3 जनवरी 1831 के दिन सावित्रीबाई फुले का जन्म नायगांव सातारा महाराष्ट्र में हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मी बाई और पिता का नाम खंदोजी नैवेसी पाटिल था जो मुख्य रूप से कृषि कार्य करते थे। सभी भाई बहनों में सावित्रीबाई फुले सबसे बड़ी थी। जिनका सन 1840 ईस्वी में मात्र 9 वर्ष की आयु में विवाह ज्योतिराव गोविंदराव फुले अर्थात ज्योतिबा फुले के साथ संपन्न हुआ। इस समय ज्योतिबा फुले की आयु 12 वर्ष थी।
इनके पति भी समाज सुधारक, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। इन दिनों महाराष्ट्र में एक बहुत बड़े सामाजिक सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई और यह आंदोलन जोरों शोरों से पूरे महाराष्ट्र में फेल गया। इस आंदोलन के मुख्य आंदोलनकारियों में से एक थे ज्योतिबा फुले।
सावित्रीबाई फुले पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन उनके पति ने उन्हें पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। एक ऐसा समय जब पूरे समाज में महिला शिक्षा को घृणा की नजर से देखा जाता था और समाज में इसे पाप के समान माना जाता था। अपने पति से प्रभावित होकर सावित्रीबाई फुले ने तीसरी और चौथी कक्षा उत्तीर्ण की।
“सावित्रीबाई फुले का जीवन परिचय” पर नज़र डाली जाए तो सावित्रीबाई फुले महिलाओं के लिए आशा की किरण थी। महज 66 साल के अपने जीवन में सावित्रीबाई लाखों महिलाओं के लिए आदर्श और स्वाभिमान का प्रतीक बन गई। आने वाले कई वर्षों तक मां सावित्रीबाई फुले को “भारत की पहली महिला शिक्षिका” के साथ- साथ एक महान समाजसेवीका और मराठी कवियत्री के रूप में याद किया जाएगा।
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले ( Savitribai Phule) ने 19वीं सदी में महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सावित्रीबाई उनके पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाई।
जिनमें बाल विवाह, सती प्रथा, पुनर्विवाह के लिए वकालत, अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान और जातिगत और लिंग के आधार पर जो भेदभाव था उन्हें मिटाने के लिए इन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भारतीय महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में भी सावित्रीबाई फुले के विचारों को शामिल किया गया है। “सावित्रीबाई फुले की कहानी और निबंध” हिंदी विषय में कई बार पूछा जाता हैं।
सावित्रीबाई फुले ने किस क्षेत्र में काम किया था (savitribai phule information)
“सावित्रीबाई फुले कौन है और उन्होंने महिला समाज के लिए क्या किया?” यह प्रश्न आमतौर पर लोगों द्वारा पूछा जाता रहता हैं।
सावित्री बाई फुले ने उनके पति ज्योतिराव फुले अर्थात् ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर मुख्यत शिक्षा के क्षेत्र में काम किया था। सावित्रीबाई फुले को भारत के पहले बालिका विद्यालय की प्रथम प्रिंसिपल होने का ग़ौरव प्राप्त हैं। इतना ही नहीं ये पहले किसान विद्यालय की संस्थापिका भी थी।
सावित्री बाई फुले द्वारा किए गए मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले को महाराष्ट्र के साथ-साथ भारत में सामाजिक सुधार और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता हैं।
2. महिलाओं, दलित, आदिवासी और पिछड़े हुए लोगों की शिक्षा का श्रेय इनको ही जाता हैं।
3. सावित्रीबाई फुले का जीवन एक मिशन की तरह था। उन्होंने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना रखा था कि कैसे भी करके सामाजिक जीवन को ऊपर उठाना है।
4. विधवा विवाह पर उस समय पूर्ण रूप से प्रतिबंध था, सती प्रथा का प्रचलन था। इस वजह से ज्यादातर महिलाओं का जीवन कष्ट में गुजरता था और समाज में उनको लोग देखना तक पसंद नहीं करते थे। सावित्री बाई फुले ने विधवा विवाह करवाने पर ज़ोर दिया।
5. समाज के ख़िलाफ़ जाकर उन्होंने कई “विधवा विवाह” करवाएं।
6. छुआछूत समाज की एक बहुत बड़ी समस्या बन गई थी इसको समाप्त करने और समाज को जाग्रत करने का ज़िम्मा सावित्री बाई फुले ने उठाया।
7. महिलाओं की मुक्ति के साथ साथ दलित और आदिवासी महिलाओं की शिक्षा का स्तर उस समय नहीं के बराबर था। महिला शिक्षा पर कई तरह के सामाजिक प्रतिबंध लगे हुए थे। जिन्हें दूर करने में इन्होंने अपना जीवन लगा दिया।
8. जातिगत आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए इन्होंने अथाह प्रयास किए। इस बीच इन्हें कई लोगों से आलोचना का सामना करना पड़ा लेकिन अपने कर्तव्य और लक्ष्य से एक कदम भी पीछे नहीं हटी।
9. पुणे में लड़कियों के लिए पहला विद्यालय 1848 में शुरू किया गया था। इस कदम का समाज ने उनके साथ साथ उनके परिवार का भी विरोध शुरू कर दिया।
10 मंगल और महार जातियों के लिए उन्होंने विशेष रूप से कार्य किया। इनका मुख्य Focus पिछड़ी और दलित आदिवासी महिलाओं पर था। विधवा विवाह का पूरा श्रेय इन्हें जाता हैं।
11. समाज के लोगों द्वारा बहिष्कार किए जाने के बाद खुले दंपत्ति को इनके एक मित्र उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख का सहारा मिला। विद्यालय शुरू करने में आ रही प्रारंभिक समस्या का समाधान करते हुए उस्मान शेख और उनकी बहन ने उन्हें स्थान दिया।
12. सन् 1852 तक फुले परिवार ने 3 विद्यालय प्रारंभ कर दिए थे। शिक्षा के क्षेत्र में अतुल्य योगदान देने के लिए पूरे परिवार को ब्रिटिश सरकार द्वारा 16 नवंबर को सम्मानित किया।
13. इसी वर्ष Savitribai Phule को सर्वश्रे्ठ शिक्षिका के सम्मान से सम्मानित किया गया।
14. सावित्रीबाई फुले द्वारा “महिला सेवा मंडल” का शुभारंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था महिलाओं को उनके अधिकार, उनकी गरिमा के साथ जो सामाजिक मुद्दे हैं उनके प्रति जागरूक करना।
15.18 वीं शताब्दी में एक प्रथा का प्रचलन था जिसके तहत यदि कोई महिला विधवा हो जाती तो उसके बाल काट दिए जाते थे। धीरे-धीरे यह प्रथा समाज में विकट रूप लेते जा रही थी। सावित्रीबाई फुले ने इस प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया और सफल भी रही।
16. वर्ष 1857 सावित्रीबाई फुले के लिए कई समस्याओं को लेकर आया उनके द्वारा संचालित तीनों स्कूल बंद कर दिए गए। उनके ऊपर कई तरह के आरोप लगाए गए।
17. एक वर्ष के पश्चात सावित्रीबाई ने लगभग 18 नए विद्यालयों की शुरुआत की जो कि उनकी एक बहुत बड़ी जीत थी।
18. सावित्रीबाई के साथ फातिमा शेख भी जुड़ चुकी थी और वह भी दलित वर्ग को शिक्षित करने के लिए सावित्रीबाई फुले का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही थी।
19. उच्च वर्ण के लोग दलित और पिछड़े लोगों की शिक्षा के खिलाफ थे। इस वजह से वह फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले पर गोबर और पत्थर फेंकते थे।
20. कहते हैं जिनके हौसले बुलंद होते हैं उन्हें अंततः सफलता जरूर मिलती है और लोगों का साथ भी मिलता है। फातिमा शेख और सावित्रीबाई फुले को भी सुगना बाई नामक महिला का साथ मिला।
21. सुगना बाई ने की शिक्षा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
22. अडिग इरादे और बुलंद हौसले के दम पर सावित्रीबाई फुले ने रात्रि के समय विद्यालय प्रारंभ करने की योजना बनाई ताकि जो मजदूर महिला और पुरुष दिन में पढ़ नहीं सकते हैं, उन तक भी आसानी के साथ शिक्षा पहुंचाई जा सके।
23. सन1855 में सावित्रीबाई फुले ने कृषक और मजदूरों के लिए एक रात्रि कालीन विद्यालय की स्थापना की और सफलतापूर्वक संचालन किया।
24. सावित्रीबाई फुले व उनकी टीम समय-समय पर शिक्षकों और अभिभावकों की एक मीटिंग का आयोजन करती थी। जिसका उद्देश्य यह होता था कि शिक्षा और समाज के बीच में सामंजस्यपूर्ण वातावरण का निर्माण किया जा सके।
25. “बालहत्या प्रतिभानक गृह” की स्थापना 1867 ईसवी में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य शिशु मृत्यु दर को कम करना और ब्राह्मण विधवा महिलाओं और पिछड़ी विधवा महिलाओं और प्रजनन के समय आने वाली समस्याओं का एक छत के नीचे समाधान करना था। साथ ही लावारिस बच्चियों और बच्चों की देखभाल करना था।
26. काशीबाई नामक एक विधवा ब्राह्मण महिला के 1 बच्चे को ज्योति राव फुले और सावित्रीबाई फुले द्वारा 1874 ईसवी में गोद लिया गया। यह इन दोनों का दत्तक पुत्र था, इसका नाम यशवंतराव था जो बड़ा होकर डॉक्टर बना।
27. उस समय महिलाओं के अस्तित्व पर जो खतरा था, उन्हें दूर करने के लिए सावित्रीबाई फुले ने “विधवा पुनर्विवाह” के साथ महिलाओं को आगे लाने और उनके उत्थान के लिए कार्य किए।
28. सावित्रीबाई फुले नीची जाति की महिलाओं और पुरुषों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना चाहती थी, ताकि पारंपरिक हिंदू सनातन धर्म से सभी को जोड़ा जा सके और साथ ही भेदभाव दूर किए जा सके।
29. सावित्रीबाई फुले ने जो मुख्य कार्य किया वह यह था कि उन्होंने स्वयं के घर में एक पानी का कुआं खोदा। यह कुआं सभी धर्म और जातियों के लिए था, क्योंकि इस युग में अछूतों की छाया को भी घृणा की नजर से देखा जाता था। ऐसे में इस तरह का कार्य करके सावित्रीबाई फुले हमेशा के लिए अमर हो गए।
30. सावित्रीबाई फुले को सम्मान देने और उनकी जयंती को यादगार बनाने के लिए गूगल ने भी उनके लिए एक डूडल निकाला था।
31.”सावित्रीबाई फुले का इतिहास” गवाह देता है कि उन्होंने समाज के उत्थान के लिए कितना बड़ा त्याग किया और कई तरह की यातनाएं झेली थी।
सावित्रीबाई फुले की मृत्यु कैसे हुई (savitribai phule death)
18 वीं शताब्दी के समाप्त होते होते भारत में प्लेग नामक महामारी का प्रकोप बहुत ही तेजी के साथ फैल गया। सावित्रीबाई फुले का दत्तक पुत्र यशवंतराव बड़ा हो गया और बड़ा होने के बाद वह डॉक्टर बन गया। यशवंतराव अपनी माता सावित्रीबाई के साथ मिलकर लोगों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी।
1897 की बात है “बुलेसोनक प्लेग महामारी” से लड़ाई में जसवंत राव और उनकी माता सावित्रीबाई फुले एकजुट होकर महाराष्ट्र के लोगों की सेवा और सहायता में लगे हुए थे।
बढ़ती महामारी की रोकथाम के लिए उनके पुत्र ने एक क्लीनिक खोला। सावित्रीबाई फुले का काम था रोगियों को उस क्लीनिक तक लेकर जाना और आगे का काम उनका पुत्र देखता था।
कई दफा यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति जिस कार्य में पारंगत होता है या जिस उद्देश्य को लेकर जीवन यापन करता है, कभी-कभी वही चीजें उनकी मौत का कारण बनती है और मां सावित्रीबाई फुले के साथ भी यही हुआ।
सावित्रीबाई फुले को प्लेग नामक बीमारी ने चपेट में ले लिया जिसके चलते 10 मार्च 1897 को उनकी मृत्यु (savitribai phule death) हो गई।
मां सावित्रीबाई फुले को सम्मान और सावित्रीबाई फुले जयंती (savitribai phule jayanti)
“Savitribai Phule Birth Anniversary” (सावित्रीबाई फुले जयंती) को संपूर्ण भारत में मनाया जाता हैं। 1983 ईस्वी में सावित्रीबाई फुले को सम्मान देने के लिएपुणे सिटी कॉरपोरेशन द्वारा उनकी याद में एक स्मारक का निर्माण करवाया गया। 10 March 1998 को भारतीय डाक पोस्ट ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
2015 में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले विश्वविद्यालय पुणे कर दिया गया। गूगल ने भी सावित्रीबाई फुले को सम्मान देने के लिए उनकी 186वीं जयंती पर 3 जनवरी 2017 में “गूगल डूडल“ जारी किया था।
“सावित्रीबाई फुले पुरस्कार” महाराष्ट्र में आज की महिला समाज सुधारकों को प्रदान किया जाता है। “सावित्रीबाई फुले जयंती”(savitribai phule jayanti) प्रतिवर्ष 3 जनवरी को मनाई जाती हैं। “सावित्रीबाई फुले जयंती” (savitribai phule jayanti) सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि संपूर्ण भारत में मनाई जाती हैं।
सावित्रीबाई फुले कोट्स (savitribai phule quotes on education)
“सावित्रीबाई फुले के विचार या रोचक बातें” जो उनके चरित्र और कार्यों से निकलकर आई है का संक्षिप्त विश्लेषण हम करेंगे। सावित्रीबाई फुले की कहानी और निबंध हिंदी में भी कई बार सर्च किया जाता हैं।
आइए देखते हैं सावित्रीबाई फुले के विचार और रोचक बातें जिनसे हम जीवन में काफ़ी कुछ सीखने को मिलता हैं। सावित्रीबाई फुले के अनमोल विचार (Savitribai Phule Quotes In Hindi)-
1. गरीब और जरूरतमंद लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए कल्याणकारी कार्य करें। मैं अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाऊंगी, और विश्वास दिलाती हूं कि आपकी हमेशा मदद करूंगी।
2.अज्ञान को मारो-पिटो और जीवन से दूर भगा दो।
3. पढ़ो लिखो और आगे बढ़ो। मेहनती बनो, आत्मनिर्भर बनो।ज्ञान के बिना हम जानवरों के समान हैं इसलिए कुछ ना करने से बेहतर हैं शिक्षा प्राप्त करो।
4. स्वाभिमान के साथ जीवन यापन करने के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है, विद्यालय ही व्यक्तित्व का गहना है।
5. गाय और बकरी की सेवा करते हो, नाग पंचमी पर नाग को दूध पिलाते हो तो फिर तुम इंसानों को इंसान की जगह अछूत क्यों मानते हो।
6. मेरी कविता पढ़कर यदि आपको थोड़ा सा भी ज्ञान प्राप्त हो जाए तो, मैं समझूंगी कि मेरा परिश्रम सार्थक हो गया।
7. स्वावलंबी बनो, बिना शिक्षा जीवन पशु के समान हैं।
8.अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान प्राप्त करो।
9. अंग्रेज़ी मैया का दूध पियो, वही पोसती हैं शूद्रों को।
‘savitribai phule quotes” अगर आपको अच्छी लगी हो तो कमेंट करके बताएं।
“सावित्रीबाई फुले की कविता हिंदी” (Poets by Savitribai Phule)
(सावित्रीबाई फुले ने मराठी भाषा में एक कविता लिखी थी जिसका हिंदी अनुवाद हम आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे) जाओ पढ़ो, आत्मनिर्भर बनो, मेहनती बनो। काम करो और धन, ज्ञान कमाओ।।
ज्ञान के बिना कुछ भी नहीं है ज्ञान के बिना हम जानवरों के समान हैं।
दलितों और त्याग किए गए लोगों का सम्मान करो, उनके दुखों का अंत करो यह आपके पास एक बहुत अच्छा मौका है।
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