ग्वालियर का इतिहास || History Of Gwalior

ग्वालियर मध्य प्रदेश में स्थित है। ग्वालियर की पहचान एक ऐतिहासिक शहर के रूप में है जहां पर सिंधिया राजवंश (राणोजीराव सिंधिया से लेकर जीवाजीराव सिंधिया तक) ने कई वर्षों तक शासन किया था। ग्वालियर का इतिहास की बात की जाए तो महाभारत के समय से लेकर जब भारत अंग्रेजों से स्वतंत्र (1947) हुआ तब तक का इतिहास बहुत ही अद्भुत रहा है।

ग्वालियर का प्राचीन नामगोपराष्ट्र
प्रथम राजासूरजसेन पाल
वंश से सम्बन्धसिंधिया
अंतिम राजाजीवाजीराव सिंधिया (स्वतंत्रता तक)
History Of Gwalior

ग्वालियर मध्य प्रदेश राज्य की उत्तर दिशा में स्थित है। ग्वालियर गुर्जर प्रतिहार राजवंश, तोमर तथा बघेल कछवाहों की राजधानी रहा है। इतिहास की गवाही देते प्राचीन चिन्ह, स्मारक, किले और महल आज भी ज्यों के त्यों खड़े हैं। पांचवी शताब्दी तक ग्वालियर शहर में एक बहुत ही प्रसिद्ध गायन स्कूल था जिसमें तानसेन ने हिस्सा लिया था।

आज भी ग्वालियर पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है साथ ही औद्योगिक केंद्र भी है।

ग्वालियर को “गालव ऋषि” की तपोभूमि भी कहा जाता है। गालव ऋषि ने अपने गुरु विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में 800 काले रंग के घोड़े देने का आश्वासन दिया था जोकि बहुत विशेष था। उन घोड़ों की प्राप्ति के लिए “गालव ऋषि” ने यहां पर 60 हजार सालों तक कठिन तपस्या की उसके परिणाम स्वरूप उन्हें श्यामवर्णी घोड़े प्राप्त हुए, और उन्होंने अपना वचन पूरा किया था।
ग्वालियर का पुराना नाम क्या है? या फिर यह कहे कि ग्वालियर का नामकरण किस आधार पर हुआ तो इसके इतिहास को खंगालने की जरूरत पड़ेगी।

छठी शताब्दी के दौरान सूरजसेन पाल कछवाहा नामक एक राजा हुआ करते थे, जो यहां के राजा थे। वह एक ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो गए जिसका उपचार नहीं मिल पा रहा था। ऐसी स्थिति में वहां पर एक संत आए जिनका नाम ग्वालिपा था। उन्होंने राजा को ठीक कर दिया और जीवनदान दिया कहते हैं कि उन्हीं के नाम पर सर्वप्रथम इसे ग्वालियर नाम दिया गया। सूरजसेन पाल के 83 वंशजों ने यहां पर राज किया था लेकिन 84वें वंशज तेज करण हार गए।

ग्वालियर का पुराना नाम गोपराष्ट्र भी है, यह महाभारत के समय का नाम है, ग्वालियर के आसपास के क्षेत्र को उस समय गोपराष्ट्र  के नाम से जाना जाता था। ग्वालियर किले में एक चतुर्भुज मंदिर बना हुआ है, जिसमें “शून्य” की घटना का जिक्र किया गया है। ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिरकुल की देन है, जो छठी शताब्दी में यहां के राजा हुआ करते थे। इस प्रशस्ति में राजा मिहिरकुल ने उनके पिता की महिमा का मंडन किया है।

इल्तुतमिश ने कड़े प्रयास के बाद 1231 में ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और उसके बाद तेरहवीं शताब्दी तक ग्वालियर मुस्लिम शासन के अधीन रहा। तोमर वंश के संस्थापक राजा वीर सिंह ने 1375 ईस्वी में ग्वालियर का शासन अपने हाथ में लिया। यह ग्वालियर के इतिहास का स्वर्णिम काल था। तोमर वंश के संस्थापक के बाद भी जो वंशज हुए और जिन्होंने यहां पर राज किया उन्होंने ग्वालियर के किले में कई जैन मूर्तियों का निर्माण करवाया था।

जिनमें राजा मानसिंह तोमर द्वारा निर्मित सपनों का महल “मैन मंदिर पैलेस” जो आज भी ग्वालियर में पर्यटकों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है शामिल हैं। “मैन मंदिर पैलेस” के बारे में बात की जाए तो मुगल सम्राट बाबर ने इसे भारत के किलो के हार में मोती और हवा भी इसके मस्तिष्क को नहीं छू सकती है, के रूप में वर्णित किया है।

1730 ईस्वी में मराठा साम्राज्य के अधीन सिंधिया परिवार ने ग्वालियर पर कब्जा कर लिया और ब्रिटिश शासन की समाप्ति तक यह एक रियासत बना रहा।

1857 की क्रांति को अंग्रेजो के खिलाफ पहले विद्रोह के रूप में देखा जाता है। इसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम या भारतीय विद्रोह भी कह सकते हैं। यह संग्राम अंग्रेजो के खिलाफ था लेकिन इस संग्राम में ग्वालियर ने भाग नहीं लिया बल्कि यहां के शासकों ( ग्वालियर रियासत ) ने अंग्रेजों का साथ दिया था।

झांसी पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के पश्चात “झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” ग्वालियर आ पहुंची और यहां के शासकों से पनाह मांगी, लेकिन अंग्रेजों के सहयोगी होने के कारण सिंधिया राजवंश ने उन्हें पनाह देने से मना कर दिया।

आधुनिक हथियार होने की वजह से अंग्रेजों ने “झांसी की रानी लक्ष्मीबाई” को पराजित कर दिया और 1858 ईस्वी में अंग्रेजों से लड़ते हुए ग्वालियर में ही रानी लक्ष्मीबाई ने प्राण त्याग दिए। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के साथी तात्या टोपे और नाना साहिब वहां से सुरक्षित बच निकले। रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान को आज भी भारत में गर्व के साथ याद किया (Gwalior History in Hindi, ग्वालियर का इतिहास) जाता है।

जैसा कि आप जानते हैं ग्वालियर का इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है। गौरवपूर्ण इतिहास के पीछे यहां पर राज करने वाले राजा महाराजाओं के अतिरिक्त उनके द्वारा निर्मित किए गए इस स्मारक और मंदिर आज भी प्रमुख है।

1. M.O.R.A.R.
यह एक सैन्य क्षेत्र था। जिसका पूरा नाम “मिलिट्री ऑफिसर्स रेजिडेंशियल एरिया रिजर्व्ड” हैं। इसी क्षेत्र को मुरार नाम से भी जाना जाता है।

2. थर्टी फॉर लांसर
ग्वालियर रियासत कालीन समय में यहां पर सेना के सरकारी आवाज थे। “थर्टी फॉर लांसर “के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद इस समस्त क्षेत्र को मध्य प्रदेश सरकार के अधीन ले लिया गया और इसका नाम बदलकर थाटीपुर कर दिया।

3. सास बहू का मंदिर
यह मंदिर ग्वालियर किले के ऊपर निर्मित है। एक मान्यता के अनुसार यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इससे सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है हजार भुजाओं वाले अर्थात भगवान विष्णु। जैसे जसे समय बीतता गया इस मंदिर का नाम पूरी तरह से बदल कर सास बहू का मंदिर कर दिया गया।

4. गौराक्षी मन्दिर
सिंधिया राजवंश की कुलदेवी का गौराक्षी मन्दिर है, जिसे देवी गौराक्षी जी का मंदिर भी कहा जाता है। बाद में इसे गोरखी नाम से जाना जाने लगा।

5. पान पत्ते की गोठ
पानीपत के तीसरे युद्ध में पराजित होकर जब मराठा सेना वापस लौट रही थी, तब विश्राम करने के उद्देश्य से मराठा सेना कुछ समय के लिए यहां पर रुकी। इसलिए इस स्थान को पानीपत की गोठ कहा जाता था लेकिन बाद में चलकर इसका नाम पान पत्ते की गोठ हो गया।

6. तेली का मंदिर
पांचवी शताब्दी में गुज्जर राजा के सेनापति तेल्प द्वारा दक्षिण और उत्तर भारतीय शैली में एक मन्दिर निर्मित किया गया, इसे तेली के मंदिर के नाम से जाना जाता हैं।

7. महाराजा मानसिंह का किला

महाराजा मानसिंह का किला एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है। यह ग्वालियर का मुख्य स्मारक होने के साथ-साथ ग्वालियर शहर की चारों दिशाओं से दिखाई पड़ता है। इसका निर्माण सेंड स्टोन से हुआ है। बहुत ही पतले और सकड़े रास्ते को पार करते हुए इसके ऊपर पहुंचा जा सकता है। रास्ते के दोनों तरफ चट्टानों पर निर्मित जैन तीर्थकरो कि विशाल और खूबसूरत मूर्तियां जो की बहुत ही बारीकी के साथ गढ़ी गई है, रोमांचित कर देने वाली है।

इस किले की ऊंचाई लगभग 300 फीट है, किस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य कला के अद्भुत नमूने देखने को मिलते हैं। महाराजा मानसिंह और गुर्जर रानी मृगनयनी की प्रेम कहानी बयान करता 15 वीं शताब्दी में निर्मित गुजरी महल भी मध्यकालीन स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है। महाराजा मानसिंह के किले के आंतरिक भाग में एक बड़े संग्रहालय का निर्माण किया गया है, जिसमें बहुत ही प्राचीन और दुर्लभ मूर्तियों को रखा गया है। यह मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई अति प्राचीन और ऐतिहासिक है।

8. मान मंदिर महल, ग्वालियर
15 वीं शताब्दी में सत्ताधीन ग्वालियर के सम्राट राजा मान सिंह द्वारा मान मंदिर महल का निर्माण 1486 ईस्वी से लेकर 1517 के बीच में करवाया गया था। इस महल का अतीत बहुत ही भव्य रहा होगा। यह इसके अंदर और बाहर के हिस्सों में नीली, पीली, हरी और सफेद टाइलों से बनी उत्कृष्ट कलाकृतियों के अवशेषों को देखकर लगता है।महाराजा मानसिंह के कार्यकाल को ग्वालियर के इतिहास का स्वर्ण काल माना जाता है।

राज परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्त्रियां जिनमें राजकुमारी और महारानियां भी शामिल है। संगीत प्रेमी थी, संगीत का आनंद लेती थी और संगीत सीखती भी थी, जो यहां पर जालीदार दीवारों से बना संगीत कक्ष बयां करता है। औरंगजेब ने उसके भाई मुराद को इस किले में कैद करवाया था और उसे मौत के घाट उतार दिया था। यहां पर स्थित एक कैदखाना जो कि इस महल के तहखाने में से एक है इसका इतिहास यही कहता है।

ग्वालियर के प्रथम शासक सूरजमल के नाम पर यहां पर एक “सूरजकुंड” भी स्थित हैं। भगवान विष्णु का मंदिर जिसे सहस्त्रबाहु मंदिर (सास बहू का मंदिर) भी स्थित है।
सिखों के छठे धर्म गुरु हरगोबिंद सिंह की याद में यहां पर एक बहुत ही सुंदर गुरुद्वारा बनाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि आक्रांता जहांगीर ने 2 वर्षों तक यहां पर गुरु हरगोबिंद सिंह जी को बंदी बनाकर रखा था।

9. जय विलास महल, ग्वालियर

यह एक बहुत ही भव्य संग्रहालय साथ ही सिंधिया परिवार का निवास स्थान भी यही है। यह बहुत ही विशाल और उत्कृष्ट हैं, इसके 35 कमरों को संग्रहालय बना दिया गया है। इटालियन स्थापत्य कला से निर्मित यह बहुत ही सुंदर महल है।इस संग्रहालय की सबसे भव्य और प्रसिद्ध चीजों में से एक हैं यहां पर बनी चांदी की ट्रेन, जिसकी पटरिया डाइनिंग टेबल से होकर गुजरती है और विशिष्ट दावतों में यह पीने का पानी परोसती है।

10. तानसेन स्मारक
तानसेन एक महान संगीतकार था, जो अपनी धुन के बल पर बादलों को बरसने के लिए मजबूर कर देता था। अकबर के नवरत्नों में से एक था जिसे भारतीय शास्त्रीय संगीत का स्तंभ माना जाता रहा है, यहां पर तानसेन के नाम पर एक स्मारक बना हुआ है जिसे तानसेन स्मारक के नाम से जाना जाता है। यह मुगल स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है, प्रतिवर्ष ग्वालियर में तानसेन की याद में नवंबर माह में “तानसेन समारोह” का आयोजन होता है जिसमें बड़े-बड़े संगीतकार भाग लेते हैं।

11. रानी लक्ष्मीबाई स्मारक
झांसी की रानी लक्ष्मीबई जब सहायता के लिए ग्वालियर के सिंधिया राजवंशों के पास पहुंची तो उन्होंने सहायता करने के लिए मना कर दिया और उल्टा अंग्रेजों का साथ दिया था। जिस क्षेत्र में रानी लक्ष्मीबाई की सेना ने अपना डेरा डाला, उस स्थान पर रानी लक्ष्मीबाई के नाम पर एक बहुत ही सुंदर और ऐतिहासिक

स्मारक बनाया गया है जिसे “रानी लक्ष्मीबाई स्मारक” के नाम से जाना जाता है। इसी क्षेत्र में अंग्रेजों और रानी लक्ष्मीबाई की सेना के बीच में युद्ध हुआ था और रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थी। यही एक ऐसा युद्ध था जिसमें सिंधिया परिवार का गौरव संदेहास्पद हो गया। यहां पर रानी लक्ष्मीबाई के साथ भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानायक रहे “तात्या टोपे” का स्मारक भी बना हुआ है।

12. अन्य स्मारक और स्थान
कोर्णक के सूर्य मंदिर से प्रेरित “विवस्वान सूर्य मंदिर” यहां पर स्थित है जिसका निर्माण बिरला ने करवाया था। गोपाचल पर्वत यहां पर स्थित है, इसके अंदर तोमरवंश के राजा वीरमदेव, डूंगर सिंह और कीर्ति सिंह के द्वारा कलात्मक जैन मूर्तियों का निर्माण करवाया गया है, जिनका निर्माण संभवतः है 1398 से लेकर 1536 के बीच हुआ था। ग्वालियर का प्रसिद्ध किला भी इस पर्वत के ऊपर स्थित है।

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