ग्वालियर किला का इतिहास और रहस्य || History Of Gwalior Fort
ग्वालियर के स्वर्णिम इतिहास को बयान करता ग्वालियर किला आज भी सीना तान कर खड़ा है। भारतवर्ष के सबसे सुंदरतम और अभेद किलो में से एक हैं, ग्वालियर का किला। जिस तरह भारत में चित्तौड़गढ़ के किले को गढ़ों का सिरमौर कहा जाता है, वैसे ही ग्वालियर का किला एक अभेद किला है।
ग्वालियर किला का इतिहास शुरू करने से पहले संक्षिप्त में इसके बारे में आपको बता दें कि ग्वालियर किला एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस पर्वत का नाम गोपाचल है। लाल बलुव रंग के पत्थरों से निर्मित यह किला, ग्वालियर शहर कि हर दिशा से स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
सबसे पहले यह किला कछवाहा राजपूत शासकों के नियंत्रण में था जिनके 83 वंशजों ने इस पर राज किया था। इसके पश्चात यह किला परिहार वंश के अधीन आ गया, परिहार वंश के बाद तोमर वंश जिसमें राजा मानसिंह का नाम आज भी इतिहास में बहुत ही गर्व के साथ लिया जाता है। उसके बाद क्रमशः मुगल, जाट और सिंधिया परिवार ने इस किले पर राज किया था। आज के समय में यह किला मध्य प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है।
ग्वालियर किला का इतिहास (History Of Gwalior Fort)
ग्वालियर किला कहां स्थित हैं | ग्वालियर (मध्य प्रदेश) |
किसके नियंत्रण में हैं | मध्य प्रदेश सरकार |
यहां घूमने जा सकते हैं | जी, हां |
निर्माण किसने करवाया | राजा सुरजसेन पाल |
किले की ऊंचाई | 300 से 500 मीटर |
निर्माण सामग्री | लाल बलुआ पत्थर और चूना |
निर्माण कब हुआ | संभवतया पांचवी और छठी शताब्दी |
मुख्य विशेषता | भारत के मुख्य अभेद किलों में से एक |
मुख्य शासक | कछवाहा राजपूत, परिहार, तोमर, मुगल, जाट, सिंधिया, मराठा और अंग्रेज |
आइए बात करते हैं ग्वालियर के उस ऐतिहासिक किले की जो पिछले 1500 वर्षों से भारत के मध्य में सीना तान कर खड़ा है और ग्वालियर के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा बयां कर रहा है।
जहां तक इस किले के निर्माण की बात है तो इसे कछवाहा राजपूत शासक राजा सूरजसेन ने छठी शताब्दी के प्रारंभ में बनाया था। इसके निर्माण को लगभग 1500 वर्ष बीत चुके हैं।
यहां पर इस किले से संबंधित एक कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार ग्वालीपा नामक एक संत घूमते घूमते इस किले के यहां पर आ पहुंचे। इस किले की सुंदरता देखकर उनके मन में इसे अंदर से देखने की लालसा जागी और वह इसे देखने के लिए इस किले के ऊपर चले गए।
वहां पर जाकर उन्होंने देखा कि सत्तारूढ़ राजा सूरजसेन कुष्ठ रोग से ग्रसित हैं और बहुत उपचार के बाद भी वह ठीक नहीं हो पाए हैं। तब ग्वालीपा संत वहां पर मौजूद एक तालाब से पानी लिया और कुछ बूंदे राजा सूरजसेन को पिलााई।
कुछ ही समय में राजा सूरजसेन एकदम स्वस्थ हो गए और उसी संत के नाम पर उस किले का नाम “ग्वालियर किला” रख दिया. संत ने भी राजा सूरजसेन को आशीर्वाद दिया कि युगों युगों तक इस किले पर आपके वंशजों का राज रहेगा।
ऐसा कहा जाता है कि राजा सूरजसेन 83 उत्तराधिकारीओं ने इस किले पर राज किया, लेकिन 84वें राजा तेजकरण सिंह इस किले को नहीं बचा पाए और यह किला उनके हाथ से निकल गया।
1857 ईस्वी के विद्रोह के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए ग्वालियर तक आ पहुंची और यहां के सिंधिया परिवार से मदद मांगी लेकिन मदद नहीं मिली और वह वीरगति को प्राप्त हुई थी।
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ग्वालियर किले की संरचना
पहाड़ी के ऊपर निर्मित इस किले के ऊपर पहुंचने के लिए दो मुख्य रास्ते हैं एक जिसे “ग्वालियर गेट” के नाम से जाना जाता है जबकि दूसरा “उरवाई गेट” के नाम से जाना जाता है।
अगर आप “ग्वालियर गेट” के माध्यम से इसके ऊपर जाना चाहते हैं, तो आपको पैदल जाना पड़ेगा जबकि आप गाड़ी या किसी साधन के माध्यम से इसके ऊपर चढ़ाई करना चाहते हैं, तो आपको “उरवाई गेट” से होकर जाना पड़ेगा।
चढ़ाई करते वक्त आप देखेंगे कि दोनों तरफ बगल में बड़ी-बड़ी चट्टानों पर जैन तीर्थकारों की बहुत बड़ी और सुंदर मूर्तियां बहुत ही बारीकी के साथ गढ़ी गई हैं, जो आपका मन मोह लेगी।
कई ऐतिहासिक स्मारकों को अपने अंदर समाए हुए यह किला 3 वर्ग किलोमीटर ( 1.2वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता है और 11 मीटर अर्थात 36 फीट चौड़ा है। इसका प्राचीर पहाड़ी के किनारे पर बना हुआ है जो 6 मीनारों से जुड़ा हुआ है।
ग्वालियर किला के अंदर मुख्य स्मारक
सिद्धचल गुफाएं और गोपाचल रॉक -कट दो मुख्य और अद्वितीय जैन स्मारक इस किले के परिसर के अंदर मौजूद हैं। वास्तुशिल्प की बात की जाए तो “तेली का मंदिर” और सहस्त्रबाहु मंदिर (जिसे सास बहू का मंदिर भी कहते हैं) दो मुख्य हिंदू मंदिर है।
सिखों के छठे धर्मगुरु हरगोबिंद सिंह जी को जहां मुगल जहांगीर द्वारा बंदी बनाकर रखा गया था उस स्थान पर एक बहुत ही पवित्र गुरुद्वारा बना हुआ है। इसके अलावा जैन मंदिर, तेली का मंदिर, गुरुडा स्मारक, सहस्त्रबाहु (सास बहू का मंदिर) मंदिर, गुरुद्वारा दाता बंदी छोर मुख्य है। तानसेन स्मारक भी इसकी शान में चार चाँद लगता हैं।
जबकि अन्य महलों की बात की जाए तो ग्वालियर किला के इतिहास को बयां करते मनमंदिर महल, हाथी पोल, कर्ण महल, विक्रम महल और भीमसिंह राणा की छतरी मुख्य है।
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