History Of Jankoji Rao Scindia || जानकोजी राव सिंधिया प्रथम का इतिहास
जानकोजी राव सिंधिया (Jankoji Rao Scindia) ग्वालियर रियासत के तीसरे महाराजा थे। इन्होंने 1755 से लेकर 1761 ईसवी तक लगभग 6 वर्षों तक शासन किया था। इनके पिता जयप्पाजी राव सिंधिया की जोधपुर में हत्या के पश्चात इन्हें ग्वालियर के तीसरे महाराजा के रूप में नवाजा गया। जानकोजी राव सिंधिया ने पानीपत के तीसरे युद्ध में भाग लिया था जोकि अहमद शाह अब्दाली और मराठी सेना के बीच 1761 ईस्वी में लड़ा गया था। इसी युद्ध में यह वीरगति को प्राप्त हुए थे।
जानकोजी राव सिंधिया जीवन परिचय (Jankoji Rao Scindia history in hindi)
परिचय बिंदु | परिचय |
अन्य नाम | जानकोजी राव शिंदे (Jankoji Rao Shinde) |
जन्म वर्ष | 1745 |
मृत्यु वर्ष | 1761 |
पिता का नाम | जयप्पाजी राव सिंधिया |
कहां के राजा थे | ग्वालियर रियासत |
इनसे पहले महाराजा | जयप्पाजी राव सिंधिया |
इनके बाद महाराजा | कादरजी राव सिंधिया |
शासन काल | 1755 से 1761 तक |
धर्म | हिंदू सनातन |
25 जुलाई 1755 को जब इनके पिता जयप्पाजी राव सिंधिया (Jankoji Rao Scindia) की मृत्यु हो गई उसके बाद इन्हें ग्वालियर रियासत का महाराजा बनाया गया।
इस समय इनकी आयु मात्र 10 वर्ष थी। इतनी कम आयु में इतना बड़ा पद संभालना आसान नहीं होता है। लेकिन वंशानुगत चले आ रहे इस पद के लिए उन्हें सभी सरदारों का साथ मिल गया।
मात्र 10 वर्ष की आयु होने की वजह से एक रीजेंसी की स्थापना की गई जिसका नेतृत्व उनके चाचा दत्ताजी राव शिंदे द्वारा 10 जनवरी 1760 तक किया गया था।
अपने पिता जयप्पाजी राव सिंधिया से इन्होंने युद्ध कला में निपुर्णता हासिल की। मात्र 16 वर्ष की आयु में इन्हें पहला और बहुत बड़ा युद्ध लड़ना पड़ा जो इनके जीवन का अंतिम युद्ध भी साबित हुआ।
पानीपत का तीसरा युद्ध और जानकोजी राव सिंधिया की भूमिका
जैसा कि आप जानते हैं पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच 14 जनवरी 1761 को लड़ा गया था। पिता की मृत्यु हो जाने के बाद बहुत कम उम्र में जानकोजी राव सिंधिया (Jankoji Rao Scindia) कोई युद्ध मैदान में जाना पड़ा।
यही समय था अपना कौशल दिखाने का, यही समय था मातृभूमि की रक्षार्थ मर मिटने का और इसका सीधा फायदा उठाया जानकोजी राव सिंधिया ने। जानकोजी राव सिंधिया प्रथम (Jankoji Rao Scindia) की आयु कम थी लेकिन हौसले आसमान को छूने वाले थे। दोनों हाथों में तलवार लिए हिंदुस्तान के लिए नया इतिहास लिखने को तैयार एक ऐसा योद्धा जिसके हौसले मात्र से दुश्मन पीछे हट गए।
सूर्योदय के साथ ही युद्ध का शंखनाद हुआ जानकोजी राव सिंधिया सेना की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे। शमशेर बहादुर प्रथम (बाजीराव मस्तानी का पुत्र) के अधीनस्थ 7000 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए जानकोजी राव सिंधिया युद्ध (Jankoji Rao Scindia) मैदान में आगे बढ़ रहे थे। इनके सामने था नजीब उद दावलाह (Najib ad Dawlah).
युद्ध मैदान में एक खबर बिजली की तरह फैल गई खबर यह थी कि युद्ध में विश्वासराव, जानकोजी राव और उनके चाचा तुकोजीराव की मृत्यु हो गई। यह खबर सुनते ही मराठी सेना में अफरा-तफरी मच गई। हालांकि इस समय तक जानकोजी राव की मृत्यु नहीं हुई थी, मराठी सेना के बीच में घुस आए अफगानी सैनिकों का वह बहुत ही बहादुरी के साथ सामना कर रहे थे।
अफगानिस्तानी सेना की ओर से लड़ रहे बरखुरदार खान को बंदी बना लिया गया। जानकोजी राव सिंधिया इस युद्ध में घायल हो गए उन्हें बंदी बना लिया गया। ₹700000 की फिरौती के साथ जान को जी राव सिंधिया को बंदी से मुक्त करने की बात की गई।
लेकिन जब यह बात अहमद शाह अब्दाली तक पहुंची तो उन्होंने मना कर दिया कि किसी भी कीमत पर जानकोजी राव सिंधिया (Jankoji Rao Scindia) को वापस लौट आया नहीं जाएगा।
जानकोजी राव सिंधिया की मृत्यु (Death of Jankoji Rao Scindia)
अहमद शाह अब्दाली के आदेश अनुसार जानकोजी राव सिंधिया को 14 जनवरी 1761 के ढलती शाम के साथ सदा के लिए सुला दिया गया। जानकोजी राव सिंधिया (Jankoji Rao Scindia) की मृत्यु ना सिर्फ ग्वालियर रियासत के लिए बड़ी क्षति थी बल्कि मराठा साम्राज्य के लिए भी बहुत बड़ी क्षति थी।
इनकी मृत्यु के पश्चात ग्वालियर रियासत के महाराजा का पद आगामी 2 वर्षों तक खाली पड़ा रहा, लेकिन उसके बाद कादरजी राव सिंधिया को ग्वालियर रियासत के चौथे महाराजा के रूप में गद्दी पर बिठाया गया।
यह भी पढ़ें –
सावित्री बाई फुले की जीवनी
सेवरी फोर्ट का इतिहास
Post a Comment