दत्ताजी राव सिंधिया को दत्ताजी राव शिंदे के नाम से भी जाना जाता है। यह सिंधिया वंश के संस्थापक राणोजी राव शिंदे और मैनाबाई उर्फ़ निंबाबाई के दूसरे पुत्र थे। इनके बड़े भाई का नाम जयप्पाजी राव शिंदे और छोटे भाई का नाम ज्योतिबा राव सिंधिया था। दत्ताजी राव शिंदे मराठा साम्राज्य में सरदार थे।
दत्ताजी राव सिंधिया का इतिहास (History Of Dattaji Rao Scindia)
परिचय बिंदु | परिचय |
अन्य नाम | दत्ताजी राव शिंदे |
जन्म वर्ष | 1723 |
मृत्यु तिथि | 10 जनवरी 1760 |
पिता का नाम | राणोजी राव शिंदे |
माता का नाम | मैनाबाई |
राजनिष्ठा | मराठा साम्राज्य |
भाई | जयप्पाजी राव शिंदे और ज्योतिबा राव शिंदे |
सौतेले भाई | तुकोजीराव शिन्दे और महादजी शिन्दे |
भतीजा | जानकोजी राव शिंदे |
मृत्यु के समय आयु | 37 वर्ष |
पद | सरदार |
धर्म | हिंदू सनातन |
दत्ताजी राव सिंधिया, महादजी शिंदे के बड़े सौतेले भाई थे जो बाद में ग्वालियर के मुखिया बने। इनके पिता की मृत्यु के पश्चात इनके बड़े भाई जयप्पाजी राव शिंदे को ग्वालियर का महाराजा चुना गया।
जब जयप्पाजी राव शिंदे की मृत्यु हो गई उसके बाद इनका पुत्र जानकोजी राव शिंदे ग्वालियर रियासत के महाराजा बने।
लेकिन इस समय इनकी आयु महज 10 वर्ष थी, इसी वजह से इनके काका दत्ताजी राव शिंदे ने उनकी मृत्यु तक अर्थात 1755 तक शासन किया था। हालांकि महाराजा के पद पर जान को जी राव शिंदे ही विराजमान थे लेकिन समस्त कार्य और शासन व्यवस्था की देखरेख दत्ताजी राव सिंधिया द्वारा की जाती थी।
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दत्ताजी राव सिंधिया का मराठा साम्राज्य में योगदान
दत्ताजी राव सिंधिया मराठा सेना में सेनापति थे। मराठा साम्राज्य में उनके योगदान की बात की जाए तो सन 1758-59 ईसवी में भारत के उत्तरी क्षेत्रों में अफ़गानों और मराठों के बीच में जोरदार संघर्ष छिड़ा हुआ था। अफ़गानों का सामना करने के लिए इस दौरान दत्ताजी राव शिंदे को पंजाब प्रांत की कमान सौंपी गई।
अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व वाली अफगानी सेना पंजाब पर आक्रमण करने के लिए तैयार थी, जिन्हें रोकने के लिए मराठा साम्राज्य के पेशवा ने दत्ताजी राव शिंदे को दारोमदार सौंपा। यह समय इतिहास के पन्नों में सदा के लिए याद रखा जाएगा क्योंकि दत्ताजी राव सिंधिया ने ना सिर्फ अहमद शाह दुर्रानी को रोका बल्कि इनके नेतृत्व में मराठों ने सन 1757 -1758 में अटॉक और पेशावर के किलो पर विजय हासिल की।
कई सदियों के बीत जाने के बाद अर्थात लगभग 700 वर्षों के बाद पंजाब और सिंध क्षेत्र में पुनः हिंदू शासन स्थापित किया। 1020 ईस्वी में गजनी के महमूद ने हिंदू शासक त्रिलोचन पाल को हराकर इन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था जो इतने समय से मुगलों के अधीन था।
मराठा साम्राज्य के पेशवा रघुनाथ राव पुनः दिल्ली लौट आए। मार्च 1759 ईस्वी में दत्ताजी राव शिंदे एक विशाल सेना के साथ मैकचीवाड़ा (Macchiwara) पहुंचे। पेशवा रघुनाथ राव की तरह दत्ताजी राव शिंदे भी पंजाब प्रांत में नहीं रहना चाहते थे।
उन्होंने पेशवा को एक पत्र लिखा और उसमें जिक्र किया कि वह भी पंजाब में नहीं रहना चाहते हैं। पंजाब के काम देखने के लिए उन्होंने सबाजी शिंदे को तैनात कर दिया है, सबाजी शिंदे के साथ बापू राव और दादू राव दोनों काम करेंगे। इसके बाद दत्ताजी राव शिंदे नजीब -उद -दौला के साथ गंगा घाटी के रोहिल्ला में युद्ध करने के लिए चले गए।
लेकिन दूसरी ओर सबाजी शिंदे की अनुपस्थिति में रोहतास में जहान खान ने आक्रमण कर दिया और अटॉक और पेशावर के किलो पर पुनः कब्जा कर लिया। सन 1759 ईस्वी में सबाजी शिंदे और सिख सरदार एक हो गए और अफ़गानों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया कई दिनों तक चले इस युद्ध में अफ़गानों को हार का सामना करना पड़ा।जहान खान का बेटा मौत के घाट उतार दिया गया। डर के मारे जहान खान और अफगान पीछे हट गए।
इस हार के साथ अहमद शाह दुर्रानी बौखला गया और युद्ध करने के लिए लालायित हो उठा। लगातार हारों ने उसे और अधिक आक्रामक बना दिया। अफ़गान और रोहिलों ने एक साथ लड़ाई करने के लिए समझौता किया। 60000 सैनिकों की विशाल सेना के साथ अहमद शाह दुर्रानी ने जहान खान को फिर युद्ध के लिए भेजा।
जहां इंसान ने पुनः अटॉक जीता और पेशावर में मराठा गैरिसन को हरा दिया। इसके बाद जहान खान ने त्र्यंबक राव की 6000 सेना को हराया। लगातार अपने क्षेत्र में विस्तार करते हुए अहमद शाह दक्षिण पंजाब की ओर बढ़ गया और पंजाब की राजधानी लाहौर पर कब्जा कर लिया। अहमद शाह ने दत्ताजी राव शिंदे की 2500 सैनिकों की सेना पर हमला किया, दत्ताजी राव शिंदे एक बार फिर दिल्ली लौट आए। 1760 ईस्वी में अहमद शाह दुर्रानी ने नजीब खान रोहिल्ला के साथ गठबंधन किया और दत्ताजी राव शिंदे पर हमला कर दिया।
दत्ताजी राव सिंधिया की मृत्यु
जनवरी, 1760 ईस्वी में जब अहमद शाह दुर्रानी और नजीब खान रोहिल्ला साथ आ गए, तो इनका गठबंधन बड़ा हो गया और सेना की संख्या बढ़ गई। 10 January 1760 के दिन दिल्ली के समीप स्थित (barari) बरारी घाट पर बुरारी घाट युद्ध में दत्ताजी राव शिंदे पराजित हो गए और इन्हें बेरहमी के साथ मौत के घाट उतार दिया।
वर्ष 1994 में हिंदी टीवी सीरियल “दी ग्रेट मराठा” में मंगल ढिल्लन ने दत्ताजी राव सिंधिया के क़िरदार को निभाया था।
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