मानाजी राव सिंधिया (History Of Manaji Rao Scindia)
मानाजी राव सिंधिया ग्वालियर रियासत के पाँचवें महाराजा बनें। ये लगभग 4 वर्षों तक इस पद पर बने रहे। कादरजी राव सिंधिया के पद त्याग देने के बाद इन्हें इस पद से नवाजा गया। अगर इनके कार्यकाल की बात की जाए तो सन 1764 से लेकर 1768 ईस्वी तक रहा।
मानाजी राव सिंधिया का इतिहास
अन्य नाम | मानाजी राव शिंदे |
जन्म वर्ष | अज्ञात |
मृत्यु वर्ष | 1800 |
हाउस | सिंधिया |
दादाजी का नाम | साबाजी राव शिंदे |
इनसे पहले महाराजा | कादरजी राव सिंधिया |
इनके बाद महाराजा | महादजी राव शिंदे |
सम्राज्य | मराठा साम्राज्य |
धर्म | हिंदू, सनातन |
शासन अवधि | 1764 से लेकर 1768 तक |
मानाजी राव सिंधिया का इतिहास देखा जाए तो कादर जी राव सिंधिया के इस्तीफे के बाद इन्हें ग्वालियर रियासत का महाराजा बनाया गया था। कादरजी राव सिंधिया ने भी महज 1 वर्ष तक ग्वालियर रियासत के चौथे महाराजा के रूप में कार्य किया था।
मानाजी राव सिंधिया को ग्वालियर रियासत की सेवा करने के लिए पांचवें महाराजा के रूप में सौभाग्य मिला जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और 4 वर्षों तक इस पद पर रहे इनके कार्यकाल में प्रजा बहुत सुखी थी। मानाजी राव सिंधिया वरिष्ठ और बहुत अनुभवी थे, जिनके अनुभव का फायदा ना सिर्फ ग्वालियर रियासत को मिला बल्कि मराठा साम्राज्य में भी इनका अभूतपूर्व योगदान रहा।
कादरजी राव सिंधिया के इस्तीफा देने के बाद उनके नेतृत्व में काम करने वाले सरदारों और मंत्रियों के साथ साथ, मराठा साम्राज्य के पेशवा और सलाहकार मंत्रियों से सलाह मशवरा करने के बाद 10 जुलाई 1764 ईस्वी को मानाजी राव सिंधिया को ग्वालियर का नया और पांचवा राजा नियुक्त किया गया।
हालांकि कादरजी राव सिंधिया को मानाजी राव सिंधिया ने बहुत समझाया कि वह इस पद पर बने रहे और निरंतर ग्वालियर रियासत की शासन व्यवस्था चलाते रहे। मगर कादरजी राव सिंधिया स्वतंत्र रूप से काम करना चाहते थे इसलिए उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।
जब मानाजी राव सिंधिया ने महाराजा का पद संभाला उस समय उनके सामने बहुत सारी चुनौतियां थी। पहली चुनौती यह थी कि 1761 ईस्वी में जो पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ था उसमें मराठा साम्राज्य को बहुत क्षति पहुंची थी और उनकी प्रतिष्ठा में भी कमी आई थी उसे पुनः स्थापित करना।
अपने कार्यकाल में इन्होंने ना सिर्फ ग्वालियर रियासत पर ध्यान दिया बल्कि मराठा साम्राज्य को पुनः स्थापित करने बल्कि कई छोटे-छोटे युद्धों में भाग लिया और सफल नेतृत्व किया। जब इन्हीं लगा कि अब यह शासन व्यवस्था देखने में असमर्थ हैं तब इन्होंने 18 जनवरी 1768 के दिन महाराजा के पद से इस्तीफा दे दिया।
मानाजी राव सिंधिया के इस्तीफा देने के पश्चात 18 जनवरी 1768 के दिन ही महादजी शिंदे ने ग्वालियर रियासत के छठे महाराजा के रूप में शपथ ग्रहण की। हालांकि कादरजी राव सिंधिया और मानाजी राव सिंधिया का कार्यकाल बहुत ही संक्षिप्त रहा। लेकिन इनके पश्चात महाराजा बने महादजी शिंदे ने ग्वालियर रियासत की लगभग 26 वर्षों तक सेवा की।
प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के दौरान महादजी शिंदे के साथ मानाजी राव सिंधिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही थी। 1782 ईस्वी में तैमूर शाह दुर्रानी के साथ हुए युद्ध में महादजी शिंदे ने उन्हें पराजित किया था, जो कि सेना का नेतृत्व कर रहे थे और उनका साथ दे रहे थे मानाजी राव सिंधिया.
मानाजी राव सिंधिया की मृत्यु
लगातार निस्वार्थ ग्वालियर रियासत और मराठा साम्राज्य की शासन व्यवस्था, पुनरुत्थान और सफलतापूर्वक कार्य करने के पश्चात सन 1800 में इन्होंने प्राण त्याग दिए। इस तरह एक अनुभवी, वीर, दूरदर्शी और कर्मठ व्यक्तित्व के चले जाने से व्यक्तिगत रूप से ग्वालियर रियासत को बहुत बड़ा नुकसान हुआ।
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