कादरजी राव सिंधिया ग्वालियर रियासत के चौथे महाराजा थे जिन्होंने बहुत ही कम समय के लिए इस पद को संभाला था। 1763 से लेकर 1764 के बीच में वह 1 साल से भी कम समय के लिए ग्वालियर रियासत के महाराजा बने।
पानीपत का तीसरा युद्ध (1761) जोकि अहमद शाह अब्दाली और मराठों के बीच में लड़ा गया था उसमें जानकोजीराव सिंधिया/शिंदे की मृत्यु हो गई किसी वजह से इन्हें यह पद मिला। इनका कार्यकाल बहुत छोटा था लेकिन मराठा साम्राज्य में योगदान उतना ही बड़ा था। हालाँकि महज 1 वर्ष तक ग्वालियर रियासत के महाराजा के पद पर रहे लेकिन इन्होंने लगभग 14 वर्षों तक मराठा साम्राज्य और ग्वालियर रियासत के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया जिसे कभी नहीं भुलाया सा सकेगा।
कादरजी राव सिंधिया का इतिहास (History Of Kadarji Rao Scindia)
अन्य नाम | कादरजी राव शिंदे |
जन्म वर्ष | अज्ञात |
मृत्यु तिथि | 30 जनवरी 1778 |
पिता का नाम | तुकोजी राव सिंधिया |
इनके बाद महाराजा | मानाजी राव सिंधिया |
इनसे पहले महाराजा | जानकोजीराव सिंधिया |
धर्म | हिंदू सनातन |
जैसा कि आप जानते हैं पानीपत के तीसरे युद्ध में जो कि मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बिच लड़ा गया था में मराठा साम्राज्य को बहुत नुकसान हुआ था। मराठों के कई बड़े सरदार इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। जानकोजी राव शिंदे भी उनमें से एक थे। इनकी मृत्यु के पश्चात कादरजी राव सिंधिया ही एकमात्र ऐसा चेहरा था जिन्हें ग्वालियर रियासत के महाराजा के रूप में नवाजा जा सके।
जब यह बात कादरजी राव सिंधिया के पास पहुंची तो उन्होंने विनम्रता पूर्वक महाराजा बनने से इनकार कर दिया। वह बिना दायित्व लिए ग्वालियर की सेवा करना चाहतेे थे। ताकि सुनियोजित रूप से शासन व्यवस्था चलाई जा सके। लेकिन पेशवा और बड़े सरदारों के मनाने से वह मान गए और 1763 ईस्वी में उन्हें ग्वालियर रियासत के चौथे महाराजा के रूप में शपथ दिलाई गई।
इस 1 वर्ष से भी कम समय में इन्होंने ग्वालियर रियासत और मराठा साम्राज्य के बीच में सामंजस्य बिठाया। अपनी रियासत को दुश्मनों से बचाने के साथ-साथ मराठा साम्राज्य के विस्तार में इन्होंने कई युद्धों में भाग लिया और सैन्य टुकड़ियों का नेतृत्व किया। ऐसे वीर योद्धा कादरजी राव सिंधिया के इतिहास की बात की जाए तो इसके बारे में बहुत कम जानकारी मौजूद हैं, लेकिन इनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
जैसे ही इनका कार्यकाल पूरा हुआ जो कि इनके मन मुताबिक था , उसके बाद पेशवा ने निर्णय लिया कि ग्वालियर रियासत के लिए नए महाराजा की नियुक्ति की जाए।
कादरजी राव सिंधिया के नेतृत्व में काम करने वाले सरदारों और मंत्रियों के साथ पेशवा के अधीन कार्य करने वाले सरदारों और मंत्रियों से सलाह मशवर के बाद 10 जुलाई 1764 ईस्वी को मानजी राव सिंधिया को ग्वालियर रियासत का नया राजा नियुक्त किया गया।
महाराजा कादरजी राव सिंधिया ने कभी भी पद की लालसा नहीं की और निस्वार्थ देश और रियासत की सेवा में लगे रहे। इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो ऐसे बहुत कम योद्धा देखने को मिलते हैं जो त्याग को ही सेवा समझते थे।
कादरजी राव सिंधिया की मृत्यु
ग्वालियर रियासत के महाराजा के पद से इस्तीफा देने के बाद भी यह लगातार काम करते रहे। महाराजा का पद त्यागने के लगभग 14 वर्ष के पश्चात 30 जनवरी 1778 के दिन इनकी मृत्यु हो गई।ना केवल मराठा इतिहास या फिर सिंधिया राजवंश के इतिहास में , भारत के इतिहास में भी युगो युगो तक कादरजी राव सिंधिया (Kadarji Rao Scindia History In Hindi) नाम अमर रहेगा।
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