अग्निमित्र शुंग का इतिहास || History Of Agnimitra Shung

अग्निमित्र शुंग राजवंश के द्वितीय सम्राट और पुष्यमित्र शुंग का पुत्र था। पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के पश्चात इन्होंने राजकार्य संभाला था। 149 ईसा पूर्व में पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु हो गई थी। अग्निमित्र शुंग का कार्यकाल 149 ईसा पूर्व से लेकर 141 ईसा पूर्व तक माना जाता हैं।

पुष्यमित्र शुंग के कार्यकाल में उनका पुत्र अग्निमित्र शुंग विदिशा का उपराजा (गोप्ता) था। विदिशा से संबंधित समस्त राजकर्य अग्निमित्र शुंग ही देखता था, इस वजह से इन्हें राजकार्य का पूरा अनुभव हो गया।

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अग्निमित्र शुंग का जीवन परिचय (History Of Agnimitra Shung)

  • नाम- अग्निमित्र शुंग।
  • पिता का नाम पुष्यमित्र शुंग
  • पत्नियों के नाम – मालविका, धारणी और इरावती।
  • पुत्र का नाम – वसुज्येष्ठ शुंग।
  • शासन अवधि– 149-141 ईसा पूर्व।
  • पूर्ववर्ती शासक– पुष्यमित्र शुंग।
  • उतरवर्ती शासक– वसुज्येष्ठ शुंग।
  • धर्म- हिन्दू सनातन।

अग्निमित्र शुंग के कार्यकाल को महाकवि कालिदास के काल के समकालीन माना जाता है। अग्निमित्र शुंग ने अपने पिता के समान ही भारतीय सनातन संस्कृति और वैदिक धर्म के प्रचार एवं प्रसार को जारी रखा।

अग्निमित्र शुंग से संबंधित कुछ ऐतिहासिक साक्ष्य और प्रमाण मौजुद हैं। इनमें पुराण और कवि कालिदास कृत “मालविकाग्निमित्र” को सुदृढ़ प्रमाण माना जाता है। इसके अलावा पंचाल ( रूहेलगढ़) और उत्तर कौशल से प्राप्त मुद्राएं भी अग्निमित्र शुंग के राज्य और अग्निमित्र शुंग के इतिहास को बताती हैं।

कवि कालिदास कृत “मालविकाग्निमित्र” यह प्रमाणित करता हैं कि अग्निमित्र शुंग ने तीसरी पत्नी के रुप में मालविका से शादी की थी। इससे पहले भी इनकी दो पत्नियां थी जिनका नाम धारणी और इरावती था। साथ ही मालविकाग्निमित्र से यवनों के साथ हुए युद्ध और इस युद्ध में अग्निमित्र शुंग के नायकत्व का उल्लेख मिलता हैं।

पुष्यमित्र शुंग ने अपने पुत्र अग्निमित्र शुंग को राज्यों के एकत्रीकरण का कार्य सौंपा। अग्निमित्र शुंग गज के समान शक्तिशाली माने जाते हैंं।
लगातार अपने पराक्रम और शौर्य के दम पर अग्निमित्र शुंग राज्य दर राज्य विजय हासिल करते जा रहे थे और विदर्भ तक पहुंच गए, यहां इन्होंने नर्मदा नदी के तट पर अपना डेरा डाला।

अग्निमित्र शुंग ने अपने साम्राज्य को तिब्बत तक फैलाया जबकि दूसरी ओर अग्निमित्र शुंग के पुत्र वसुमित्र ने चीन तक अपने सम्राज्य को फैला दिया था। आज भी चीन में शुंग सरनेम वाले लोग रहते हैं।

अग्निमित्र शुंग कि विदर्भ विजय

मौर्य साम्राज्य के अंतिम सम्राट बृहद्रथ के मंत्री का संबंधी यज्ञसेन इस समय विदर्भ के शासक थे। अग्निमित्र शुंग ने यज्ञसेन के सामने संधि का प्रस्ताव रखा और अधीनता स्वीकार करने के लिए आग्रह किया।लेकिन यज्ञसेन ने मना कर दिया, जिसके उपरांत यज्ञसेन और अग्निमित्र शुंग के बीच एक बहुत ही भयानक युद्ध हुआ।

इस युद्ध में यज्ञसेन के चचेरे भाई माधवसेन ने अग्निमित्र शुंग का साथ दिया। माधवसेन को बंदी बना लिया गया और रिहा करने के बदले कई शर्ते रखी जिन्हें अग्निमित्र शुंग ने मानने से इनकार कर दिया।

अब युद्ध ही एकमात्र रास्ता था अग्निमित्र शुंग की शक्तिशाली सेना ने यज्ञसेन की सेना को पराजित कर दिया और यज्ञसेन ने भी अधीनता स्वीकार कर ली, साथ ही माधवसेन को भी मुक्त कर दिया। विदर्भ राज्य को दोनों चचेरे भाइयों यज्ञसेन और माधवसेन के बीच अलग-अलग बांट दिया गया।

अग्निमित्र शुंग और मालविका की प्रेम कहानी

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विदर्भ जीत के पश्चात वहां के शासक यज्ञसेन और माधवसेन से मिलने के लिए 1 दिन अग्निमित्र शुंग उनके महल में जाते हैं। तभी अचानक उनकी नजर दीवार पर टंगी एक बहुत ही खूबसूरत तस्वीर पर पड़ती है। इस तस्वीर में यह खूबसूरत फोटो यज्ञसेन की बहन मालविका की थी। अग्निमित्र शुंग उस तस्वीर को निहारते ही रह जाते हैं और यज्ञसेन से पूछते हैं कि यह कौन है?

तभी आदर पूर्वक यज्ञसेन बताते हैं कि यह उनकी बहन है, जो उनकी भुआ कौशिकी के साथ अज्ञातवास पर हैं। संयोगवश वह अग्निमित्र शुंग के महल में ही रह रही होती है। राजा अग्निमित्र शुंग विदर्भ से लौट आते हैं लेकिन उनका दिल वही रह जाता है। अग्निमित्र शुंग की पहली पत्नी धारिणी मालविका को शास्त्रीय संगीत और नृत्य सिखाने के लिए एक नाट्यचार्य गणदास को नियुक्त करती हैं।

इस बीच धारिणी ने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि राजा अग्निमित्र शुंग की नजर मालविका की सुंदरता पर नहीं पड़ जाए, वरना वह मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। लेकिन वह इसे ज्यादा दिन तक छिपा नहीं सकी और राजा अग्निमित्र शुंग को पता लग गया कि यही मालविका है, जिसका फोटो उन्होंने विदर्भ के महल में देखा था।

फिर क्या था अग्निमित्र शुंग और मालविका की प्रेम कहानी आगे बढ़ गई और दोनों ने शादी कर ली। मालविका अग्निमित्र शुंग की तीसरी पत्नी थी। इसी प्रेम कहानी को लेकर महाकवि कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् नामक काव्य की रचना की थी, जिसमें इसका सजीव चित्रण देखने को मिलता है।

अश्वमेध यज्ञ और अग्निमित्र शुंग

सफलतापूर्वक सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना और वैदिक धर्म की स्थापना के पश्चात पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया था, जिसका प्रमाण पतंजलि में मिलता है।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा छोड़े गए अश्व को यवनों द्वारा पकड़ लिया जाता है, इसके पश्चात पुष्यमित्र शुंग उनके पुत्र अग्निमित्र शुंग (Agnimitra Shung) को बताते हैं कि उस अश्व को मुक्त करवाओ नहीं तो यह यज्ञ सफल नहीं होगा।

अग्निमित्र शुंग अपने पुत्र वसुमित्र शुंग की सहायता से अश्व को पारदेश्वर मिथ्रदात के साथ युद्ध करके मुक्त करवाते हैं।

अग्निमित्र शुंग के सम्बंध में प्रमाण या साक्ष्य

अग्निमित्र शुंग के संबंध में पुरातात्विक साक्ष्य निम्नलिखित है-

1. मुद्राएं –

अग्निमित्र शुंग का उल्लेख करती मुद्राएं उत्तरी पंचाल में प्राप्त हुई थी। इन्हीं के आधार पर रैपसन और कनिंघम नामक विद्वानों ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह मुद्राएं शुंग कालीन हैं।इन मुद्राओं की प्राप्ती उत्तरी कौशल में प्रचुर मात्रा में मिली, जिससे यह सिद्ध होता है कि यह मुद्राएं अग्निमित्र शुंग कालीन हैं।

2. अयोध्या का अभिलेख-

पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी धनदेव ने यह अभिलेख लिखवाया था। इसमें पुष्यमित्र शुंग के द्वारा करवाए गए अश्वमेध यज्ञ और पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र शुंग के कार्य को दर्शाया गया है।

3. हेलियोडोरस का अभिलेख

बेसनगर स्थित इस अभिलेख को यवन राजदूत हेलियोडोरस ने लिखवाया था। इसमें सनातन धर्म और भागवत धर्म की लोकप्रियता का उल्लेख मिलता हैं।

4. भरहुत का लेख-

भरहुत के लेख में भी शुंगकालीन राज्य, प्रशासन और राजाओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं।

5. भातविकाग्निमित्रम-

नामक ग्रंथ में विर्दभ युद्ध का वर्णन मिलता हैं।

6. महाभाष्य और गार्गी संहिता –

पतंजली द्वारा रचित महाभाष्य और गार्गी संहिता में यूनानियों ने साकेत को घेरा और यूनानियों ने मध्यमिका को घेरी वाक्य देखने को मिलते हैं।साथ ही गार्गी संहिता में लिखा हुआ है कि दुष्ट यूनानियों ने मथुरा और साकेत को जीत लिया है। साथ ही इसमें अश्वमेध यज्ञ का वर्णन किया गया हैं।

7. मालविकाग्निमित्रम-

से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग की अंतिम अवस्था में उसके पुत्र अग्निमित्र शुंग और पौत्र वसुमित्र को सेना का नेतृत्व करता दिखाया गया है।साथ ही अग्निमित्र शुंग और मालविका की प्रेम कहानी का भी वर्णन हैं।

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