राजा मान मोरी का इतिहास || History Of Raja Maan Mori

मान मोरी या राजा मौन को उनके वंश का अंतिम शासक कहा जाता है, जिन्होंने चित्तौड़ में मानसरोवर झील का निर्माण करवाया था। राजा मान मोरी ने गहलोत वंश के बप्पा रावल को अपने राज्य में आश्रय दिया था। उज्जैन का यह मोरी वंश इतिहास के पन्नों और किताबों से लगभग गायब हो गया है।

प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी क़िताब में राजा मान मोरी और उसके वंश के साथ-साथ राजस्थान में मिले उसके शिलालेख का उल्लेख भी किया है।

राजा मान मोरी का इतिहास

राजा मान मोरी के सम्बंध में, राजस्थान में मिले शिलालेख संख्या III में लिखा हुआ है कि आपको जलदेव सुरक्षा प्रदान करें। ऐसा क्या है जो समुद्र के समान दिखाई पड़ता हैं, जिसके किनारों पर बहुत सुंदर कलियां और मीठे शहद वाली मधुमक्खियां मंडराती रहती है। जिसमें अमृत के समान जल है ऐसा सागर आपकी रक्षा करें।

कैप्टन दिलीप सिंह अहलावत के अनुसारयह उस समय की बात है जब मौर्य वंश का शासन अवध अर्थात पाटलिपुत्र से समाप्त हो गया, उसके बाद मौर्य वंश के ही शासक राजा मान मोरी ने चित्तौड़ पर शासन किया था। चित्तौड़ पर मौर्य वंश के अंतिम शासक के रूप में इन्हें याद किया जाता हैं।

साथ ही लिखते हैं कि बप्पा रावल उनकी सेना में सेनापति था और धीरे-धीरे उनका दोस्त बन गया लेकिन भीलों का सहारा लेकर बप्पा रावल ने राजा मान मोरी की हत्या कर दी और गोहिल वंश (सिसोदिया वंश) की स्थापना की। राजा मान मोरी बौद्ध धर्म को मानने वाला था। इससे भी यह साबित होता है कि वह मौर्य वंश का शासक ही था।

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राजा मान मोरी के खिलाफ हरित ऋषि की साजिश

राजा मान मोरी का इतिहास पढ़ते समय हरित ऋषि का नाम भी आता है। हरित ऋषि उस समय हिंदू सनातन संस्कृति के विस्तार का कार्य कर रहे थे। हरीश ऋषि को एक ऐसा शक्तिशाली व्यक्ति चाहिए था जो उनके इस मिशन में मदद कर सके। तभी उन्हें बप्पा रावल का साथ मिला इसमें बप्पा रावल का भी फायदा था और हरित ऋषि का भी।

राजा मान मोरी की सेना धीरे-धीरे उनके खिलाफ हो गई और बप्पा रावल ने उसके साम्राज्य को हथिया लिया। जैसा कि आप जानते हैं बप्पा रावल हिंदू हृदय सम्राट थे, उन्होंने धर्म के प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं रखी थी जिससे भी उपरोक्त बात सत्यता के करीब प्रतीत होती है।

CV वैद्य ने इस घटना का वर्णन करते हुए लिखा कि बप्पा रावल उस समय राजा मान मोरी के यहां सामंत के रूप में कार्य करते थे। उदयपुर के समीप स्थित नागदा नामक राज्य पर बप्पा रावल राज करते थे।

उस क्षेत्र के आसपास रहने वाले भील समुदाय के लोगों पर बप्पा रावल का प्रभुत्व था। साथ ही भील समुदाय भी उनका मुख्य सहयोगी माना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि भीलों की सहायता से ही बप्पा रावल ने अरबी आक्रमणों का सामना किया था। 740 ईसवी के आसपास बप्पा रावल ने राजा मान मोरी से राज्य हड़प लिया था।

निष्कर्ष के तौर पर देखा जाए तो राजा मान मोरी के साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया था और हरित ऋषि ने भी षड्यंत्र रचा, साथ ही बप्पा रावल पर विश्वास करना उनको भारी पड़ा। आंतरिक रुप से लगातार राजा मान मोरी के दुश्मन मजबूत होते गए, जिसकी उन्हें भनक तक नहीं लगी और मौका देख कर राजा मान मोरी को अपदस्थ कर दिया गया।

धीरे-धीरे राजा मान मोरी के साथी चित्तौड़ छोड़कर ग्वालियर की तरफ चले गए। उनका कहना था कि ऋषि के श्राप की वजह से उन्हें चित्तौड़ छोड़ना पड़ा, संभवतः यह हरित ऋषि ही थे। अगर हम बात करें तो बप्पा रावल ऊंचा लंबा कद और मजबूत कद काठी वाले थे। साथ ही युद्ध कलाओं में भी निपुण थे, यही वजह रही कि हरित ऋषि ने उन्हें अपने साथ मिलाया।

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राजा मान मोरी की मृत्यु

दुश्मनों के एक हो जाने के पश्चात कई प्रमाण मिले हैं कि 738 ईसवी तक राजा मान मोरी ने चित्तौड़ पर शासन किया था। लेकिन उसके पश्चात बप्पा रावल ने उनकी हत्या कर दी।कई इतिहासकारों ने एवं शिलालेखों का अध्ययन किया जाए तो लगभग 740 ईसवी में राजा मान मोरी की मृत्यु हुई थी।

राजा मान मोरी के इतिहास को प्रमाणित करते लेख

ठाकुर देशराज जी लिखते हैं राजा मान मोरी का चित्तौड़ में शासन था। श्री राव बहादुर चिंतामणी विनायक वैध  (हिंदू भारत का उत्कर्ष के लेखक) राजा मान मोरी से बप्पा रावल ने चित्तौड़ अपने कब्जे में लिया था।

चालुक्यों के शिलालेख (नवसारी) अरबों ने मौर्यों पर हमला किया था। चित्तौड़ में मिले शिलालेख के अनुसार संवत 770 अर्थात् 713 में राजा मान मोरी ही शासक था।

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