महाराणा उदयसिंह प्रथम को उदयकरण, उदाह और उदा नामों से भी जाना जाता हैं। महाराणा उदय सिंह प्रथम, महाराणा कुम्भा के पुत्र थे। महाराणा उदय सिंह प्रथम रघुवंशी राजपूत परिवार में जन्म लेने वाले और मेवाड़ के इतिहास में ऐसे राजा हुए जिन्होंने अपने माथे पर पिता की हत्या का टीका लगाया।
1468 ईस्वी में अपने पिता महाराणा कुम्भा की हत्या कर महाराणा उदय सिंह प्रथम ने स्वयं को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया। इन्हें एक क्रूर शासक के रूप में याद किया जाता हैं।
महाराणा उदय सिंह प्रथम ने वर्ष 1468 से लेकर 1473 तक मेवाड़ पर राज्य किया। 1473 ईस्वी में इनकी मृत्यु के पश्चात इनका भाई राणा रायमल इनका उत्तराधिकारी बना।
महाराणा उदय सिंह प्रथम का इतिहास और जीवन परिचय
- पूरा नाम Full Name Of Udai Singh- महाराणा उदय सिंह प्रथम।
- अन्य नाम Other Name’s- उदयकारण, उदाह और उदा।
- जन्म वर्ष –
- मृत्यु वर्ष – 1473 ईस्वी।
- पिता का नाम- महाराणा कुम्भा।
- माता का नाम- शासन अवधि – 1468-1473 ईस्वी तक।
- पुत्र- सेंसमल व सूरज मल.
- इनसे पहले राजा- महाराणा कुम्भा।
- इनके बाद राजा- राणा रायमल (उदय सिंह प्रथम का भाई).
- धर्म- हिन्दू सनातन।
- राज्य- मेवाड़ (वर्तमान चित्तौड़गढ़).
महाराणा उदय सिंह प्रथम को इतिहास में एक क्रूर शासक के रूप में याद किया जाता हैं। जब इनके पिता राणा कुंभा एकलिंग नाथ की प्रार्थना कर रहे थे, तब उदय सिंह प्रथम ने उनकी हत्या कर दी और स्वयं को मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया। महाराणा उदय सिंह प्रथम के बारे में कहा जाता है कि इस दुराचारी महाराणा ने असत्य और अस्थिर राज्य के लालच में अपने धर्मशील, विवेकी, प्रजावत्सल और प्रतापी पिता महाराणा कुंभा को मारकर सूर्यवंशीयों के कुल में अपने आप पर कलंक का टीका लगाया।
विश्व का इतिहास भी उठा कर देखा जाए तो इस तरह की घटना देखने को नहीं मिलती है। महाराणा उदय सिंह प्रथम ने अपने कुल के साथ-साथ मेवाड़ के इतिहास को भी कलंकित किया। महाराणा कुंभा मेवाड़ साम्राज्य के सबसे सदाचारी महाराजाधिराज माने जाते थे। महाराणा कुम्भा को मनाने वाले लोग भला यह कैसे स्वीकार करते। राज्य में ज्यादातर लोगों को महाराणा उदयसिंह प्रथम से नफरत हो गई। मुख्य पदों पर आसीन ज्यादातर लोगों ने महाराणा उदय सिंह प्रथम की सेवा के लिए स्वयं ना जाकर अपने भाई एवं पुत्रों को भेजा।
पिता की हत्या करने वाले ऐसे राजा को मेवाड़ में कोई भी पसंद नहीं कर रहा था। इस भारी अपराध की वजह से लोगों के दिलों में बहुत बड़ा रंज पैदा हो गया और सब लोग महाराणा उदय सिंह प्रथम के विरोधी बन गए। महाराणा उदय सिंह प्रथम ने सिरोही के देवड़ों को स्वतंत्र किया और अपने राज्य में से कई क्षेत्रों को आसपास के राजाओं को सौंप दिया। मेवाड़ राज्य की स्थिति दिन ब दिन खराब होती जा रही थी। महाराणा उदय सिंह प्रथम राज्य को ठीक ढंग से संभाल नहीं पा रहे थे। साथ ही मेवाड़ के नियमों के विरुद्ध कार्य हो रहा था।
कांधल और उसके साथी सरदारों ने महाराणा उदयसिंह प्रथम के भाई महाराणा रायमल को बुलाया। इस समय महाराणा रायमल उनके ससुराल (ईडर) में रहते थे। जैसे तैसे महाराणा रायमल तक इस संबंध में सूचना पहुंचाई। मेवाड़ के सरदार मिलकर महाराणा रायमल को मेवाड़ का राजा बनाना चाहते थे। खबर मिलते ही रायमल कुंभलमेर आ गया। इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा उदय सिंह प्रथम को बहाना बनाकर शिकार के बहाने किले से बाहर निकाला और इसी समय अवधि में महाराणा रायमल ने किले के भीतर प्रवेश किया।
महाराणा उदय सिंह प्रथम की जगह रायमल को राजा नियुक्त करने की घटना
सन 1473 ईस्वी की बात है (विक्रम संवत् 878 हि.) मेवाड़ के सरदारों ने मिलकर उदयसिंह प्रथम के भाई रायमल को मेवाड़ का महाराणा बनाया। यह खबर आग की तरह फैल गई। प्रजा बहुत प्रसन्न हुई, साथ ही उदयसिंह प्रथम का साथ देने वाले सरदार भी उनका साथ छोड़कर किले में आ गए।
महाराणा रायमल के मेवाड़ का राजा बनते ही मेवाड़ी सरदारों ने महाराणा उदय सिंह का प्रथम के पुत्रों सेंसमल व सूरज मल को किले से बाहर निकाला।इस घटना को लेकर अज्ञात कवि द्वारा एक बहुत ही सुंदर दोहा बोला गया था जो निम्न है-
ऊदा बाप न मारजै, लिखियों लाभै राज।देस बासायो रायमल, सरयो न एको काज।।
300 वर्ष पूर्व लिखित रायमल के रासे के अनुसार जब महाराणा कुंभा को मार कर उदय सिंह प्रथम मेवाड़ के राज्य सिंहासन पर बैठे। तब से ही यह बात महाराणा रायमल को बहुत बुरी लग रही थी। इसी वजह से उन्होंने मेवाड़ छोड़ दिया और अपने ससुराल ईडर में रहने लगे। महाराणा रायमल ने शुरू से ही महाराणा उदय सिंह प्रथम पर धावा बोलना शुरू कर दिया था। दो-तीन वर्षों तक महाराणा रायमल और महाराणा उदय सिंह प्रथम की सेनाओं के बीच मुकाबला होता रहा।
बाद में रायमल ने जावर नामक स्थान पर महाराणा उदय सिंह प्रथम की सेना को हराकर अधिकार कर लिया। इसके बाद रायमल एकलिंगजी पूरी आ गए और मेवाड़ के सरदारों को एकत्रित किया। जब इस बात का महाराणा उदयसिंह प्रथम को पता चला तो वह 10000 सैनिकों के साथ रायमल से लड़ाई करने के लिए निकला।
दाड़मी नामक गांव में दोनों के बिच भयंकर युद्ध हुआ। इस घमासान युद्ध में रायमल ने महाराणा उदय सिंह प्रथम को पराजित कर दिया। महाराणा उदय सिंह प्रथम को अपनी जान बचाने के लिए युद्ध भूमि से भाग जाना ही उचित लगा। महाराणा उदय सिंह प्रथम जावी के किले में जाकर छिप गया लेकिन रायमल ने उसे वहां से भी खदेड़ दिया। रायमल के सामने बस एक कसक बाकी रह गई थी और वह था चित्तौड़ का किला।
प्रातः काल होते होते रायमल ने चित्तौड़ का किला भी जीत लिया। उदय सिंह प्रथम कुंभमेर के किले में जाकर छुप गए।धीरे धीरे वागड़, मारवाड़, खेराड और बूंदी आदि के सभी सरदार लोग महाराणा रायमल के पक्ष में हो गए। यहां से भी महाराणा उदय सिंह प्रथम भाग निकले। संपूर्ण मेवाड़ में महाराणा रायमल का राज हो गया। इस संबंध में एकलिंग जी के द्वार की प्रशस्ति के 66वें लोग में जानकारी मौजूद है।
महाराणा उदय सिंह प्रथम की मृत्यु कैसे हुई?
महाराणा उदय सिंह प्रथम सोजत से बीकानेर और बीकानेर से मांडू के बादशाह गयासुद्दीन के पास गया। उदय सिंह प्रथम अपने अपमान का बदला लेने के लिए, गयासुद्दीन के सामने यह शर्त रखी कि यदि आप मुझे मेवाड़ राज्य दिला देंगे तो मैं अपनी पुत्री का विवाह आपके साथ कर दूंगा।
गयासुद्दीन ने यह शर्त मान ली और महाराणा रायमल से युद्ध करने के लिए निकल पड़े। इससे पहले इस इस कुल में यह कलंक कभी नहीं लगा था कि इस घराने की कोई लड़की किसी मुस्लिम से शादी करें। शायद भगवान को भी यह पसंद नहीं था, इसलिए जब उदय सिंह प्रथम महाराणा रायमल से लोहा लेने के लिए आ रहे थे, तब आसमानी बिजली गिरने से उनकी मृत्यु हो गई। इस तरह महाराणा उदय सिंह प्रथम की मृत्यु हुई।
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