रावल रतन सिंह का इतिहास और जीवन परिचय मेवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। रावल रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) की पत्नी का नाम महारानी पद्मिनी था।
13वीं शताब्दी के प्रारंभ में मेवाड़ (चित्तौड़) के शासक बने, इनका का कार्यकाल बहुत छोटा रहा लेकिन मेवाड़ के इतिहास में अधिक छाप छोड़ी।
चित्तौड़ के एक राजपूत शासक के तौर पर इन्होंने 1302 ईस्वी में राजगद्दी संभाली और 1303 ईस्वी में युद्ध में इनकी मृत्यु हो गई। बप्पा रावल वंश के अंतिम शासक रावल रतन सिंह ही थे। अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ इनका युद्ध हुआ था।
रावल रतन सिंह का जीवन परिचय
रावल रतन सिंह का जीवन परिचय संक्षिप्त में निम्नलिखित हैं-
- पुरा नाम- रावल रतन सिंह।
- अन्य नाम- रतन सिंह, रतन सेन, रत्न सिंह, रत्न सेन, रतन सिंह द्वितीय।
- जन्म- पद्मावत के अनुसार 13वीं शताब्दी के अंत में।
- जन्म स्थान- चित्तौड़।
- मृत्यु Rawal Ratan Singh died – 1303.
- मृत्यु स्थान- चित्तौड़।
- पिता का नाम- रावल समारसिंह।
- पत्नी का नाम- पहली पत्नी का नाम नागमति और दुसरी पत्नी का नाम रानी पद्मिनी या रानी पद्मावती।
- शासनकाल– 1302-1303.
- वंश- गुहिल वंश
- राजघरना- राजपुत।
- धर्म- हिन्दू सनातन धर्म।
- राजधानी– चित्तौड़।
- इनसे पूर्व मेवाड़ के शासक- रावल समर सिंह।
- युद्ध- अलाउद्दीन खिलजी के साथ।
- पुत्र– रावल रतन सिंह के पुत्र के बारें में कोई जानकारी नहीं हैं।
संक्षिप्त में रावल रतन सिंह का जीवन परिचय देखा जाए तो इनका बचपन चित्तौड़ में ही बीता। इनके पिता समर सिंह ने इनका विशेष खयाल रखा और इन्हें बचपन से ही युद्ध कलां सिखाई। रावल रतन सिंह दूरदर्शी, बुद्धिमान, वाकपटु और बलशाली व्यक्तित्व के धनी थे।
बढ़ती उम्र के साथ इनके व्यक्तित्व में एक शौर्यशाली योद्धा के सभी गुण विकसित होते रहे। इस समय मेवाड़ में शांति थी। रावल रतन सिंह के पिता रावल समर सिंह चित्तौड़ पर शासन कर रहे थे।
बप्पा रावल अर्थात भोजराज वंश के अंतिम शासक के रूप में रावल रतन सिंह ने चित्तौड़ पर राज किया था। इनका प्रथम विवाह नागमती के साथ हुआ था, जबकि दूसरा विवाह महारानी पद्मिनी के साथ हुआ था जो अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती थी।
रावल रतन सिंह की दूसरी पत्नी महारानी पद्मिनी की सुंदरता अलाउद्दीन खिलजी के साथ ही युद्ध का मुख्य कारण थी। भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो मेवाड़ का इतिहास सबसे अनूठा रहा है।
यहां के राजाओं ने अपनी आन, बान और शान के लिए सर कटा दिए लेकिन कभी किसी के सामने झुके नहीं। पद्मावत नामक ग्रंथ भी रावल रतन सिंह का जीवन परिचय की व्याख्या करता हैं। कई लोग रावल रतन सिंह के पुत्र का नाम जानना चाहते हैं या फिर यह सर्च करते हैं कि रावल रतन सिंह के कितने पुत्र थे तो आपको बता दें कि इतिहास में इस सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हैं।
रावल रतन सिंह का इतिहास
रावल रतन सिंह का इतिहास विवादास्पद रहा हैं। मात्र एक साल का कार्यकाल होने की वजह से इतिहासकारों ने इन्हें इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में ज्यादा जगह नहीं दी। अगर भाटों की बात की जाए तो वह भी इन्हें भुल गए। रावल वंश के अंतिम शासक होने की वजह से और संक्षिप्त कार्यकाल की वजह से इनका जिक्र बहुत कम किया गया, लेकिन रावल रतन सिंह का इतिहास उतना ही अधिक महत्वपूर्ण है।
विश्व विख्यात इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान के इतिहास से संबंधित उनके मुख्य ग्रंथ में रावल रतन सिंह का इतिहास तो दूर इनके नाम तक नहीं लिखा। इन्होंने एक बहुत ही भ्रामक जानकारी देते हुए महारानी पद्मिनी को भीम सिंह की पत्नी बताया, जिसे कई इतिहासकारों ने सिरे से खारिज कर दिया।
महामहोपाध्याय राय बहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा नहीं वास्तविक रूप में रावल रतन सिंह के इतिहास के संबंध में स्पष्टीकरण दिया जो अधिक तर्कसंगत लगता है। इतिहासकार ओझा जी के अनुसार रावल समर सिंह के पश्चात् उनका पुत्र रावल रतन सिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठा।
6 महीने बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी की खूबसूरती के बारे में सुना तो रानी को देखने की जिज्ञासा जाग उठी।
अलाउद्दीन खिलजी ने रावल रतन सिंह को एक पत्र दूत के साथ भेजा। उसने लिखा कि मैं एक बार रानी पद्मिनी को देखना चाहता हूं,एक बार देख कर पुनः दिल्ली लौट जाऊंगा। यह बात रावल रतन सिंह को बहुत बुरी लगी। रतन सिंह ने साफ़ इनकार कर दिया। मेवाड़ शुरु से ही मर्यादाओं में रहा है।
अल्लाउद्दीन खिलजी को यह बात दिल पर लगी, वह रावल रतन सिंह से युद्ध की योजना बनाई। अभी रतन सिंह को राजा बनें मात्र छः महीने का समय ही हुआ था। सन 1302 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ की तरह किले को घेर लिया। यहां एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें रावल रतन सिंह की मृत्यु हो गई। इस तरह रावल रतन सिंह का इतिहास, रावल वंश के अंतिम शासक से लेकर पद्मनी और मेवाड़ की शान की रक्षा हेतु मातृभूमि के लिए प्राण त्याग देने तक स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ हैं।
मतभेद और ऐतिहासिक साक्ष्य
मेवाड़ के कुछ ख्यातोंं, महाकाव्य, राजप्रशस्ति और विश्व विख्यात इतिहासकार जेम्स कर्नल टॉड के मतानुसार रतन सिंह नाम का कोई राजा था ही नहीं। ये सब बताते हैं कि समर सिंह के बाद करणसिंह मेवाड़ के राजा बनें। जब हम इसका गहन अध्ययन करेंगे तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि करणसिंह (कर्ण सिंह) समर सिंह के बाद में मेवाड़ के राजा नहीं बने बल्कि उनसे लगभग 8 पीढ़ी पहले राजा हुए थे।
मुहणोत नैंणसी बताते है कि रतन सिंह रानी पद्मिनी के लिए अल्लाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। आगे लिखते हैं कि रावल रतन सिंह, समर सिंह का पुत्र था जबकि दूसरी तरफ रतन सिंह को अजय सिंह का बेटा बताया और लक्ष्मण सिंह का भाई बताया।
इस बारे में स्पष्टीकरण से पता चलता है कि लक्ष्मण सिंह, अजय सिंह का पुत्र नहीं बल्कि पिता था और सिसोदे का सरदार था। इस तरह रावल रतन सिंह लक्ष्मण सिंह का भाई नहीं था बल्कि मेवाड़ के शासक समर सिंह का पुत्र था। यह बात राणा कुंभा के समय के कुंभलगढ़ शिलालेख एवं एकलिंगमाहात्म्य से जानकारी मिलती है।
इन दोनों शिलालेखों का अध्ययन करने से पता चलता है कि समर सिंह के बाद उसका पुत्र रतन सिंह चित्तौड़ के राजा बने। साथ ही यह भी जानकारी मिलती है कि लक्ष्मण सिंह चित्तौड़ की रक्षा के लिए मुसलमानों का संहार करते हुए उनके 7 पुत्रों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए।
अब तक जितने भी शिलालेख, प्रशस्ति पत्र और इतिहासकारों से जानकारी प्राप्त हुई है उसके आधार पर रावल रतन सिंह के बारे में कोई विवरणात्मक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
लेकिन जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और रावल रतन सिंह से उनका जो युद्ध हुआ है उसका विवरण अमीर खुसरो द्वारा लिखित ग्रंथ “तारीखें अलाई” में मिलता है। “तारीखें अलाई” के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ फतेह के लिए 28 जनवरी 1303 ईस्वी को दिल्ली से निकला था, और लगभग 7 महीने पश्चात अर्थात 26 अगस्त 1303 ईस्वी को किला फतह किया।
रावल रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के इतिहास को प्रमाणित करता कवि मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा लिखित महाकाव्य पद्मावत उपयोगी साबित हुआ है। इसके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह के बीच युद्ध रानी पद्मिनी के लिए हुआ था।
पहली बार जब अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ आया तो उसे युद्ध में सफलता नहीं मिली और पुनः दिल्ली लौटना पड़ा। जबकि दूसरी बार पूरी सेना के साथ वह चित्तौड़ आया और रावल रतन सिंह को युद्ध में पराजित किया।
दूसरी और इतिहासकारों का एक तबका यह मानता है कि अलाउद्दीन खिलजी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षी व्यक्ति था। वह चित्तौड़ की सैनिक एवं व्यापारिक उपयोगिता जानता था और यही वजह थी कि उसने चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
उस समय व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान सिंध, मध्य प्रदेश, मालवा, संयुक्त प्रांत और गुजरात आदि जगहों पर जाने के लिए चित्तौड़ होकर जाना पड़ता था और यही वजह थी कि अलाउद्दीन खिलजी के लिए चित्तौड़ विजय करना महत्वपूर्ण हो गया।
यह भी कहना उचित होगा कि अलाउद्दीन खिलजी साम्राज्य विस्तार हेतु चित्तौड़ आया हो लेकिन रानी पद्मिनी की सुंदरता देखकर उसे प्राप्त करना उसका उद्देश्य बन गया हो।
जो भी उसका उद्देश्य रहा हो बप्पा रावल के अंतिम वंशज के रूप में जाने जाने वाले रावल रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) का खात्मा हो गया, साथ ही बप्पा रावल के वंशज का भी अंत हुआ। यही वह समय था जब सिसोदिया राजवंश प्रभुत्व में आया।
अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह की लड़ाई की वजह?
अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह की लड़ाई की 2 मुख्य वजह इतिहासकारों द्वारा बताई जाती है –
1 राजनीतिक महत्वाकांक्षा और सत्ता के लिए संघर्ष–
राजेंद्र सिंह खंगारोत जोकि जयपुर में इतिहास के प्रोफेसर हैं और उन्होंने जयगढ़, सवाई मानसिंह और आमेर पर पुस्तकें भी लिखी है। इनके अनुसार अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह के बीच लड़ाई सत्ता के लिए थी, इनके अनुसार यह युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच 1191 से चला आ रहा था।
राजपूत और तुर्की शासक धीरे-धीरे साम्राज्य विस्तार कर रहे थे और भारत के संपूर्ण राज्यों में फैल रहे थे। इसी कड़ी में इल्तुतमिश जालौर और रणथंबोर में सक्रिय रहे जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक जो कि मोहम्मद गोरी के सेनापति थे, वह अजमेर देख रहे थे। इनके साथ ही बल्बन ने मेवाड़ में पैर पसारने की कोशिश की लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली।
जब अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के बादशाह बने तब उन्होंने राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चित्तौड़ को जीतने के लिए रावल रतन सिंह के साथ युद्ध किया था। इसका उल्लेख फारसी दस्तावेजों में मिलता है और इससे यह भी साफ है कि अलाउद्दीन खिलजी को ताकत चाहिए थी।
2 रानी पद्मिनी–
कई इतिहासकारों का यह मानना है कि अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह के बीच लड़ाई चित्तौड़ की रानी पद्मिनी को लेकर हुई थी। क्योंकि अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी की सुंदरता पर मोहित था और उसे पाना चाहता था, वहीं दूसरी तरफ रतन सिंह मरने के लिए तैयार थे लेकिन किसी के सामने झुकने के लिए नहीं। इसी टकराव को लेकर अलाउद्दीन खिलजी और रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) के बीच लड़ाई हुई थी।
रावल रतन सिंह और पद्मनी का विवाह
रानी पद्मावती का स्वयंवर हुआ था। राजा महाराजाओं के समय विवाह की इस पद्धति का ज्यादा प्रचलन था। पद्मिनी की आयु विवाह के योग्य हो गई तब इनके पिता ने दूर -दूर के राजा महाराजाओं और सामन्तों को स्वयंवर का समाचार भेजा था। सिंहल द्वीप से चित्तौडग़ढ़ बहुत सुदूर प्रदेश था। राजा रतन सिंह और इनके साथी जंगल में शिकार करने गए। इनकी नजर पेड़ पर बैठे एक बहुत सुन्दर तोते पर पड़ी जो मनुष्यों की तरह बोल रहा था।
यह देखकर दोनों को बहुत आश्चर्य हुआ। यह वही रानी पद्मावती का प्रिय तोता था। इस तोते ने रतन सिंह के सामने पद्मावती की सुंदरता का बखान किया था। साथ ही स्वयंवर का समाचार भी सुनाया। हीरामणि तोता की बात सुनकर रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) बहुत प्रभावित हुए और अपने साथियों के साथ स्वयंवर में शामिल होने के लिए निकल पड़े।
जब राजा रावल रतन सिंह यहाँ पहुंचे तो पहले से बहुत राजा ,महाराज और बड़े – बड़े सामंत उपस्थित थे। जिनमें राजा रतन सिंह के सबसे प्रतिस्पर्धी थे मलकान सिंह। मलकान सिंह भी एक छोटे से राज्य के राजा थे। पदमिनी से विवाह करने के लिए दोनों के बिच में युद्ध हुआ , इस युद्ध में रावल रतन सिंह की जीत हुई। मलकान सिंह को पराजित करके , स्वयंवर में राजा रतन सिंह ने रानी पद्मावती के साथ विवाह किया था।
पद्मावती से विवाह पूर्व रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) की 13 रानियाँ थी। पद्मावती से विवाह के उपरांत दोनों चित्तौड़गढ़ आ गए। चित्तौड़गढ़ आने पर महारानी पद्मावती का ज़ोरदार स्वागत किया गया। रावल रतन सिंह का यह 14 वां विवाह था। ऐसा कहा जाता हैं कि इसके बाद रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) ने कोई शादी नहीं की थी , पद्मावती बहुत सुन्दर थी।
रावल रतन सिंह और अल्लाऊद्दीन खिलज़ी का युद्ध
रानी पद्मावती को देखने और उसकी एक झलक पाने के लिए वह बहुत ही उत्सुक हो उठा ,वह अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा। चित्तौड़गढ़ पहुंचने पर खिलजी ने देखा कि चित्तौड़गढ़ का किला वीर मेवाड़ी सैनिकों द्वारा पूर्णतया सुरक्षित है, जिसको भेद पाना मुमकिन नहीं है।
खिलजी ने पहले ही मेवाड़ के वीरो की गाथाएं सुन रखी थी तो वहां एकाएक आक्रमण करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाया। तभी उसके मन में एक ख्याल आया उसने रावल रतन सिंह को एक संदेश भिजवाया और लिखा- “महाराज में रानी पद्मिनी के दर्शन करने आया हूं और महारानी को अपनी बहन बनाना चाहता हूं”।
यह बात सुनकर भी रावल रतन सिंह को अच्छा नहीं लगा। राजा रतन सिंह ने इसको मेवाड़ की शान के खिलाफ बताया और खिलजी को वापस लौट जाने का आदेश दिया। राजा रावल रतन सिंह जानता था कि सभी विदेशी मुस्लिम शासक कपटी होते हैं।
यह सुनकर खिलजी ने स्वयं को घोर अपमानित महसूस किया। सुबह के समय सहमें कदमों से पीछे हट गया और धीरे-धीरे दिल्ली की तरफ प्रस्थान करने लगा। बहुत से इतिहासकार कहते हैं कि खिलजी ने पद्मावती को काँच में देखा, लेकिन यह सत्य नहीं है। उस समय का काँच का आविष्कार तक नहीं हुआ था।
ख़िलजी वापस दिल्ली लौट गया। उसके मन में अपमान का बदला लेने की आग लगी थी और उसने ठान लिया था कि किसी भी हाल में रानी पद्मावती को हासिल करना है। कुछ समय पश्चात वह अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा । रावल रतन सिंह जी को पहले से पता था कि ख़िलजी आएगा जरूर। इसलिए वह चौकस था।
ख़िलजी चित्तौड़गढ़ पहुंचा और एक बार फिर रतन सिंह को संदेश भिजवाया की “हे राजन आप मुझे पद्मावती की एक झलक दिखा दीजिए या फिर आप खुद मुझसे मिलने आइये”। राजा रतन सिंह मेवाड़ राज्य की शान को ध्यान में रखते हुए अपने यहां आए मेहमान से मिलने पहुंच गए।
खिलजी बहुत ही धूर्त और विश्वासघाती था उसने कपटता पूर्वक रावल रतन सिंह को बंदी बना लिया और राज दरबार में संदेश भिजवाया की ,पद्मावती के बदले में राजा रतन सिंह को छुड़ा ले जाएं जैसे ही यह संदेश राज भवन में पहुंचा सब स्तब्ध रह गए।
लेकिन मेवाड़ के वीर पीछे हटने वालों में नहीं थे। फिर मेवाड़ी सैनिकों ने ख़िलजी की सेना पर धावा बोल दिया। मेवाड़ी सैनिकों की बिजली सी चमक और बहादुरी देखकर खिलजी घबरा गया और अपनी पूरी सेना के साथ राजा रतन सिंह को बंदी बनाकर दिल्ली लौट आया।
दिल्ली पहुंचकर खिलजी ने माता पद्मावती को संदेश भेजा कि रतन सिंह को जीवित देखना है तो स्वयं को हमारे सामने आत्मसमर्पण करना होगा। माता पद्मावती की चिंता बढ़ गई माता ने तुरंत गोरा व बादल को बुलाया और पूरी बात बताई । गोरा बादल दोनों ही शूरवीर थे, बिजली जैसी चमक, आग की तरह लपक थी।
गोरा बादल की वीरता को शब्दों में बयां कर पाना संभव नहीं है। दोनों ने माता पद्मावती के साथ मिलकर योजना बनाई कि कैसे रतन सिंह (Rawal Ratan Singh) को कपटी खिलजी के चंगुल से मुक्त करवाया जाए। योजना के तहत खिलजी को संदेश दिया गया कि माता पद्मिनी के साथ 16000 रानियों भी आएगी और प्रत्येक रानी पालकी में बैठकर ही आएगी। यह संदेश सुनकर खिलजी बहुत खुश हुआ और माता पद्मिनी की शर्त मान ली।
फिर क्या था योजनाबद्ध तरीके से प्रत्येक पालकी में एक एक वीर योद्धा को हथियारों के साथ औरतों के वेश में बिठाया गया और आदेश दिया कि जैसे ही वह रतन सिंह को लेकर आएंगे उन पर धावा बोलना है। उन पालकियों के अंत में कुछ वीर और घोड़े रहेंगे जो रतन सिंह को सुरक्षित चित्तौड़गढ़ पहुंचाने का कार्य करेंगे। सभी पालकिया दिल्ली पहुंच जाती है खिलजी के सामने शर्त रखी जाती है कि जैसे ही राजा रतन सिंह को मुक्त किया जाएगा उसके बाद आप पद्मनी से मिल पाओगे।
खिलजी बहुत ही प्रसन्नता के साथ रतन सिंह को छोड़ देता है रतन सिंह को पालकियों के अंत में पहुंचाया जाता है। अलाउद्दीन के सैनिक पालकियों की तरफ बढ़ते हैं तभी वीर योद्धा गोरा और बादल और साथ ही पालकियों में बैठे वीर मेवाड़ी सैनिक बिजली की तरह ऊन पर टूट पड़ते हैं।
हर मेवाड़ी वीर दस- दस पर भारी पड़ रहे थे। संख्या में काफी कम होने के बाद भी दुश्मनों की धज्जियां उड़ा दी, यह सब देखकर खिलजी ने अपनी पूरी सेना को ,जो कि लाखों की तादाद में थी को आक्रमण का आदेश दिया। धीरे-धीरे मेवाड़ी सैनिक वीरगति को प्राप्त होने लगे लेकिन जैसे-जैसे सैनिक कम होते गए मेवाड़ी वीरों का जोश दोगुना होता गया।
गोरा बादल की वीरता देख कर ख़िलजी की आंखें खुली रह गई। इस बीच राजा रतन सिंह को वहां से सुरक्षित निकाल लिया गया । पीछे से वार कर गोरा का सिर धड़ से अलग कर दिया गया, बिना सिर का धड़ भी अंधाधुंध तलवार चला रहा था।
सभी मेवाड़ी सेनिक वीरगति को प्राप्त हुए। जैसे ही गोरा का धड़ गिरा खिलजी ने राहत की सांस ली और गोरा की वीरता देख कर घुटनों के बल बैठ गया और गोरा को नमन किया। अलाउद्दीन खिलजी तत्काल अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ की तरफ निकल पड़ा।
चित्तौड़ राज दरबार में जब यह खबर आती है कि खिलजी पूरी सेना के साथ आक्रमण करने वाला है तो वहां मौजूद सभी रानियां और माता पद्मावती वीरों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहती हैं।
लेकिन रानियों को पता था कि खिलजी से पार पाना मुमकिन नहीं है ,तो वह सभी 16000 रानियो और रानी पद्मावती अपनी आन बान और शान की रक्षा के लिए एक साथ जौहर करने का निश्चय करती हैं। जोहर का मतलब होता है अपने आप को अग्नि के हवाले करना। पद्मावती जानती थी कि जौहर के पश्चात खिलजी सेना पर मेवाड़ी वीर बिजली की तरह टूट पड़ेंगे और खिलजी को राख के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।
रावल रतन सिंह की मृत्यु कैसे हुई ? (How Rawal Ratan Singh Died)
अलाउद्दीन खिलजी अपनी विशाल सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पहुंचा, जहां पर रावल रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावल रतन सिंह की मृत्यु हो गई।
रावल रतन सिंह की मृत्यु के पश्चात रानी पद्मावती ने 16000 रानियों के साथ जोहर कर लिया।
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