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पृथ्वीराज चौहान की कहानी || Story Of Prithviraj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान की कहानी बहुत दिलचस्प और ऐतिहासिक हैं। पृथ्वीराज चौहान की कहानी एक ऐसे वीर की जो बाल्यावस्था में राजा बना और बड़े-बड़े बादशाहों को झुका दिया। शब्दभेदी बाण का अभ्यास इन्होंने बचपन से ही शुरू कर दिया। ये चौहान वंश के अंतिम सम्राट थे। इनके पश्चात् कोई ऐसा हिन्दू राजा इस साम्राज्य में नहीं आया जो इनकी कमी को पूरा कर सकें।

पृथ्वीराज चौहान की कहानी (Prithviraj Chauhan Story)

एक बालक जिसकी चमक बचपन में ही दिखने लगी ,तेज़ तर्रार और ओजस्वी भाषा, शेर की तरह चाल, चीते के समान लपक और चील के समान आँखें ये सब गुण एक साधारण बालक में नहीं हो सकते हैं।

बचपन में ही इनके माता पिता का देहांत हो गया। मात्र 11 वर्ष की आयु में इन्हें अजयमेरु और दिल्ली की सत्ता पर बैठने का सौभाग्य मिला। युद्धकला इन्होंने अल्पायु में ही सीखना प्रारंभ कर दिया, शब्दभेदी बाण इनकी मुख्य विद्या थी। सन 1149 में इस धरती को पृथ्वीराज चौहान के रूप में एक वीर पुत्र की प्राप्ति हुई।

इनके माता पिता की शादी के 12 वर्षों के पश्चात् इनका जन्म हुआ, यह खबर राज्य में कई लोगों को बहुत बुरी लगी। पृथ्वीराज चौहान की कहानी की असली शुरुआत यहीं से हुई। इनको मारने के लिए षड़यंत्र शुरू हो गए लेकिन किस्मत के धनी पृथ्वीराज चौहान को महज़ 11 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठने का सौभाग्य मिला।

इन्हें पृथ्वीराज चौहान तृतीय या राय पिथौरा के नाम से जाना जाता हैं। भाई के समान बचपन में इनका दोस्त था जिसका नाम चंदबरदाई था  जो कि तोमर वंश से सम्बन्ध रखने वाली अनंगपाल की पुत्री का पुत्र था।

अंगपाल की इकलौती पुत्री कपुरीदेवी जो की अजमेर की महारानी थी,इनके पिता के सामने उत्तराधिकारी को लेकर दुविधा थी। अब पुत्री के हाथ में शासन सौंपा जाना भी गलत था तो इन्होंने अपने दोहिते को राज्य सौंपने का मन बनाया और नन्हें से राजकुमार पृथ्वीराज चौहान को राजगद्दी पर बिठाया।

यह 1166 ईस्वी की बात हैं जब अंगपाल की मृत्यु हो गई, मृत्यु के पश्चात राजभार पृथ्वीराज चौहान के कन्धों पर आ गया, महज 11 वर्ष की आयु में दिल्ली को एक शक्तिशाली शासक मिल गया।

पृथ्वीराज चौहान की कहानी में पहला मुड़ाव तब आया जब पृथ्वीराज चौहान की नजर संयोगिता पर पड़ी तो वो अपना होश खो बैठे ,पहली नजर में प्यार हो गया वो भी सिर्फ फोटो देखकर। एक अनूठी प्रेम कहानी शुरू हो गई ,पृथ्वीराज चौहान ने संयोगिता के सामने अपने दिल की बात रख दी लेकिन संयोगिता ने बताया की में अपने पिता की आज्ञा के बिना शादी नहीं कर सकती। स्वयंवर में आना होगा वही पर मेरा वर तय होगा।

कन्नौज के राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान से नफरत करते थे इसलिए स्वयंवर में पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर देश के सभी छोटे – बड़े राजाओं को आमंत्रित किया।

यहाँ से पृथ्वीराज चौहान की कहानी में मोड़ आ गया, चिंतित- व्यथित पृथ्वीराज चौहान को खबर मिली कि संयोगिता उनसे शादी करना चाहती हैं। पृथ्वीराज चौहान वहां पहुँच गए।

भरी महफ़िल में नामी गरामी राजाओं के सामने पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को उठा लाया, दिल्ली में आकर धूमधाम से शादी की। इस घटना के बाद राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान के कट्टर दुश्मन बन गए।

पृथ्वीराज चौहान के तेरह रानियाँ थी, जिनमें सबसे ज्यादा प्रेम उन्हें संयोगिता से था ,इनकी प्रेम कहानी इतिहास में  सदा के लिए अमर हो गई। 

सब कुछ ठीक चल रहा था तभी पृथ्वीराज चौहान की कहानी में धोखाबाजी और राजनीती का सामना करना पड़ा ।

संयोगिता को पिता और कन्नौज के राजा जयचंद पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दुश्मन मोहम्मद गौरी से जा मिले और पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के लिए षड़यंत्र करने में जुट गए।

पृथ्वीराज चौहान के पास विशाल सेना थी, 300 हाथीयों के साथ-साथ 3 लाख की विशाल और सुसंगठित सेना थी।  

कुशल घुड़सवारों की कमी थी जो राजा जयचंद को पता था, राजा जयचंद गद्दार था जो पुरे समर्पित भाव से दुश्मनों का साथ दे रहा था। और इसी गद्दारी के चलते पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया था।

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