जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ को कौन नहीं जानता हैं। राव रिड़मल राठौड़ से जुड़ा एक किस्सा इस लेख के माध्यम से आप जान पायेंगे कि किस तरह राव रिड़मल राठौड़ ने भरी सभा में मुग़ल बादशाह को औकात दिखाई और साबित कर दिया कि भारत के वीर सपूतों से बढ़कर कोई और नहीं है।
आईये जानते हैं एक ऐसा किस्सा जो ना सिर्फ यह भ्रम दूर करेगा कि मुगल महान थे, बल्कि मुगल बादशाह का अहंकार चकनाचूर कर देगा।
राव रिड़मल राठौड़ का किस्सा-
एक समय दिल्ली में पृथ्वीराज चौहान के नानाजी का राज हुआ करता था लेकिन राजपूतों में आपस में फूट डालकर दिल्ली की गद्दी पर मुगलों ने अधिकार कर लिया। यह उनकी बहादुरी या ताक़त के बल पर नहीं हुआ था, यह तो यहां के राजाओं की आपसी फूट और लालच की वजह से हुआ।
जैसे-तैसे दिल्ली की गद्दी हासिल कर मुगल बादशाह अपने आप को सर्वेसर्वा समझने लगे, उन्हें यह भ्रम हो गया कि भारत में उनके जैसा वीर योद्धा और शक्तिशाली कोई नहीं हैं।
यह उस समय कि बात हैं जब दिल्ली में मुगल बादशाह का दरबार लगा हुआ था। इस विशेष दरबार में भारत के कई ठिकानों और राज्यों के राजा-महाराजा शामिल थे। दरबार में बड़े-बड़े और नामी राजाओं को सामने देखकर मुगल बादशाह ने हुंकार भरते हुआ कहा कि क्या हिंदुस्तान में मुझसे बड़ा, बहादुर और ताकतवर व्यक्ति हैं जो इतनी बड़ी सल्तनत को संभाल सके?
सभा में शांति थी क्योंकी एक तो मुगलों का दरबार था, दूसरा राजपूत राजाओं में आपस में फूट थी। यही वजह थी कि किसी ने भी मुगल बादशाह को जवाब देना उचित नहीं समझा। सभा में पसरे सन्नाटा को देखकर मुगल बादशाह और अधिक जोर से हुंकार भरी और ऊंची आवाज में बोला अरे! कोई हैं क्या हमारे जैसा?
दूसरी बार बोलने के पश्चात् भी दरबार में सन्नाटा छाया हुआ था। यह देख मुगल बादशाह मुस्कुराने लगा। इस सभा में राजस्थान के जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ भी मौजुद थे। उनसे इस तरह कि घमंड की बात और सरासर झूठी शान सहन नहीं हो रही थी। वो चुपचाप मुगल बादशाह की बात सुन रहे थे लेकिन उनकी रगों में रक्त संचार बढ़ रहा था।
तीसरी बार पुनः मुगल बादशाह घमंड और हल्की मुस्कान के साथ खड़े होकर आवाज़ लगाई कोई हैं क्या मुझसा बहादुर? राव रिड़मल राठौड़ खड़े हो गए,उनकी आंखों में गुस्सा था।
राव रिड़मल राठौड़ बोले हां हैं,आपसे कई गुना महान और वीर। इतना ही नहीं वो यह भी बोले कि आप उनके सामने कुछ नहीं हो। सभा में मौजुद सभी लोगों ने कौतूहल पूर्ण तरीके से राव रिड़मल राठौड़ की ओर देखने लगे।
मुगल बादशाह का अहंकार और मुस्कान एक ही क्षण में गायब हो गया। उनका मुंह उतर गया, जैसे मुगल बादशाह का गला सुख सा गया, वो कुछ नहीं बोल पाए।
थोड़ी देर रुकने के बाद लंबी सांस लेते हुए, गुस्से में मुगल बादशाह बोला कौन है ऐसा? राव रिड़मल राठौड़ ने जवाब दिया “राजपूत”. अगर आपस में मतभेद पैदा करके राजपूत राजाओं को आपस में लड़ाया नहीं होता तो एक भी मुगल राज करने की बात तो दूर भारत की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देख सकते थे। इतना ही नहीं मात्र राजपूत ही शीश कट जाने के बाद लड़ते हैं। इतना पराक्रम किसी में नहीं।
यह सुनकर मुगल बादशाह का मुंह गुस्से से लाल हो गया। ऐसे तो मैं भी हजारों मुगलों के नाम बता दू और कह दू कि हम भी शीश कट जाने के पश्चात लड़ सकते हैं तो क्या तुम यकीन करोगे? बादशाह बोला,अगर कोई ऐसा हैं तो सामने लाओ।
राव रिड़मल राठौड़ ने जवाब दिया अभी तो यहां कोई नहीं हैं, लेकीन मैं ऐसे वीर योद्धा को लेकर आऊंगा और यह बात जो मैंने बोली हैं उसे, सही साबित करके दिखाऊंगा। यह सुनकर मुगल बादशाह हँसने लगा और बोला मैं इंतज़ार करूंगा।
परेशान होकर राव रिड़मल राठौड़ वहां से चले गए। बार-बार उनके मन में यही विचार आ रहा था कि कैसे मुगल बादशाह को गलत साबित किया जाए और असली राजपूत का पराक्रम दिखाया जाए। राव रिड़मल राठौड़ पुनः अपने राज्य जोधपुर आ गए।
जोधपुर आने के बाद रात भर उनके मन में यही ख्याल आता रहा कि क्या किया जाए। तभी अचानक उनके मन में रोहिणी जागीर के जागीरदार का ख्याल आया। रात के लगभग 12 बजे थे, 2 घुड़सवार रोहिणी पहुंचे और जागीरदार जी को आवाज़ लगाई। आवाज सुनते ही बुजुर्ग जागीरदार दौड़कर बाहर आए और दोनों घुड़सवारों को प्रणाम किया।
बोले महाराज आज आप भेष बदलकर क्यों आए हैं, होकम अगर आप संदेश भिजवा दिया होता तो मैं खुद चला आता। आपको बचपन में खिलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, मैं आपको आपकी आवाज से ही पहचान गया। कहिए आप आज इतनी रात को कैसे आए? राव रिड़मल राठौड़ बहुत ही विनम्रता के साथ बोले मैं एक संकट में फस गया हूं। कौन सा संकट, क्या संकट, बताइए महाराज?
राव रिड़मल राठौड़ ने दिल्ली दरबार में घटित घटना को बताया और कहा कि जिंदा योद्धा का कैसे पता लगाएं कि वह गर्दन कटने के बाद भी लड़ सके। इस बात पर वह जागीरदार थोड़े मुस्कुराए और बोले इसमें चिंता करने की क्या जरूरत है, मेरे दोनों पुत्र गर्दन कटने के बाद भी लड़ सकते हैं। वह आपकी और देश की सेवा में, मैं समर्पित करता हूं। आप उन्हें ले जाइए और साबित कर दीजिए कि राजपूत महान योद्धा होते हैं।
एकाएक हंसते-हंसते इस तरह अपने पुत्रों को बलिदान के लिए भेजने की बात करने पर जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ को बहुत आश्चर्य हुआ। राव रिड़मल राठौड़ के मन में विचार आया कि मुझे एक बार दोनों लड़कों की माता को भी पूछ लेना चाहिए या इस विषय पर उनसे चर्चा करनी चाहिए क्योंकि पिता का मन कठोर होता है, इसलिए उन्होंने हां कह दिया।
ठाकुर साहब और जोधपुर के राजा राव रिड़मल राठौड़, दोनों उन लड़कों की माता के पास पहुंचे और माता से पूछा कि राजपूती रजवाड़े का मान रखने के लिए मैं अपने दोनों पुत्रों को दिल्ली दरबार में सिर कटवाने के लिए भेज रहा हूं ताकि सिर कटने के बाद भी यह लड़ सके। आप बताइए कि दोनों में से कौन सिर कटने के बाद भी लड़ने में सक्षम है।
यह बात सुनकर उनकी माता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई, उन्होंने कहा मेरे बड़े पुत्र पर मुझे कुछ तनिक भी संदेह नहीं है लेकिन छोटे वाले पुत्र ने बचपन में मेरा दूध नहीं पिया इसलिए हो सकता है कि वह सिर कटने के बाद लड़ नहीं सके। ठाकुर साहब लड़ने में तो दोनों सक्षम हैं, आप निश्चिंत होकर इन्हें दिल्ली दरबार में भेजिए, जरूर यह दोनों राजपूती मान मर्यादा को सातवें आसमान पर पहुंचाएंगे।
फिर क्या था ठाकुर साहब के दोनों पुत्रों को लेकर जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ चल पड़े दिल्ली दरबार की ओर, सुबह होते होते तीनों मुगल बादशाह के दरबार में पहुंचे।
पूरे दिल्ली राज्य में यह सूचना बिजली की तरह फैल गई कि राजस्थान के जोधपुर से दो राजपूत आए हैं जो सर कटने के बाद भी युद्ध लड़ेंगे और साबित करेंगे कि मुगलों से कई गुना महान राजपूत है। मुगल बादशाह अभी हैरान और परेशान था, दिल्ली में मुगल बादशाह के सामने दरबार लगा। मुगल बादशाह ने जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ से कहा कि कौन है वह जो सिर कटने के बाद भी युद्ध लड़ सके।
तभी राव रिड़मल राठौड़ ने दोनों भाइयों में से बड़े वाले को मुगल बादशाह के सम्मुख खड़ा कर दिया। मुगल बादशाह ने अपने सैनिक को आदेश दिया कि इसका सर धड़ से अलग कर दो। यह सुनकर बीकानेर के महाराजा अपनी जगह से खड़े हुए और बोले “राजपूतों का खून इतना सस्ता भी नहीं है कि सिर्फ आपके आदेश मात्र से उनकी गर्दन धड़ से अलग कर दी जाए। अगर आप इसकी गर्दन धड़ से अलग करना चाहते हैं, तो यद्ध करके गर्दन को धड़ से अलग करो।
मुगल बादशाह को यह थोड़ा अपमानजनक लगा उन्होंने गुस्सा होकर अपने मुख्य 10 सैनिकों को उसका सिर धड़ से अलग करने के लिए भेजा लेकिन उस राजपूत योद्धा ने मुगल बादशाह के सभी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
मुगल बादशाह ने फिर चुनिंदा सैनिकों को उस राजपूत योद्धा की गर्दन धड़ से अलग करने के लिए भेजे लेकिन फिर वही हुआ उस राजपूती योद्धा ने दोबारा सभी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। यह सिलसिला बहुत देर तक चलता रहा इसमें मुगल बादशाह ने अपनी सेना के 500 सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी लड़ाकू सैनिकों को खो दिया।
तभी मुगल बादशाह के सेनापति ने बादशाह से कहा कि इस तरह तो हमारे सभी सैनिक मारे जाएंगे, इस काफिर के सर में गोली मार दो। तभी उस राजपूत योद्धा के सर में एक के बाद एक कई गोलियां दाग दी गई लेकिन फिर भी वह लड़ता रहा। लेकिन सबसे आश्चर्य की बात तो यह थी कि सर में गोली लगने के पश्चात वह दोगुनी क्षमता और पराक्रम के साथ लड़ने लगा। मुगल बादशाह के दरबार में अफरा-तफरी मच गई।
डर के मारे मुगल बादशाह के हाथ-पैर फूल गए वह घबरा गया और अपनी जगह से खड़ा होकर थोड़ा ऊपर की तरफ चला गया, जहां पर वह राजपूत योद्धा पहुंच नहीं सके। Rao Ridmal Rathod का सीना गर्व से भर रहा था।
मुगल बादशाह के दरबार में मारकाट अभी भी जारी थी, वह राजपूत योद्धा किसी को टिकने नहीं दे रहा था। मुगल बादशाह के मंत्री ने उनसे कहा कि यह इतनी वीरता के साथ लड़ रहा है तो निश्चित तौर पर इसका छोटा भाई भी योद्धा ही होगा, उसे छोटी सी रियासत का लालच दो और अपनी सेना में शामिल कर लो।
बड़े भाई पर हो रहे ताबड़तोड हमलों को देखकर छोटे भाई से रहा नहीं गया और उसने भी तलवार खींच ली। वह मुगल सैनिकों पर टूट पड़ता उससे पहले ही उसके समीप खड़े एक मुगल सैनिक ने उसके गर्दन को धड़ से अलग कर दिया लेकिन फिर वही इतिहास। वह बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ता रहा और हजारों की संख्या में मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
मुगल बादशाह ने दोनों हाथ जोड़कर दोनों राजपूत योद्धाओं को प्रणाम किया और माना कि वाकई में राजपूत योद्धा मुगलों से कई गुना बहादुर और पराक्रमी होते हैं, मान गए Rao Ridmal Rathod जी। तभी मुगल बादशाह के समीप उनका सबसे विश्वसनीय मंत्री जाता है और उन्हें सुझाव देता है कि यह राजपूत योद्धा अपनी रगों में बह रहे खून से ज्यादा ईष्ट के दम पर लड़ाई लड़ते हैं, अगर इनके ऊपर शराब का छिड़काव किया जाए तो हो सकता है दोनों ठंडे पड़ जाए अन्यथा अनर्थ हो जाएगा।
मंत्री की बात पर विश्वास करते हुए मुगल बादशाह ने आदेश दिया कि इन दोनों योद्धाओं के ऊपर शराब फेंका जाए। मुगल बादशाह की आज्ञा का पालन करते हुए सैनिकों ने जैसे ही उनके ऊपर शराब फेंका धीरे-धीरे दोनों भाई की रगों में बहता खून ठंडा पड़ गया और जमीन पर गिर पड़े। राजपूती मान मर्यादा और शान के लिए दोनों भाई मर मिटे। मुगल बादशाह के दरबार में मौजूद भारत के सभी राजपूत राजाओं का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। मुगल बादशाह अब भी उन दोनों के पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
वह जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ के समीप आया और कहा कि वाकई में मैं मान गया हूं की हमसे हजारों गुना महान इस देश के योद्धा है। मुगल बादशाहा घुटनों के बल पर उन दोनों योद्धाओं के समीप बैठा और उन्हें प्रणाम किया। यह नजारा Rao Ridmal Rathod बहुत प्रसन्न हुए।
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