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हाइफा का युद्ध जिसके बाद इजराइल को आजादी मिली

हाइफा के युद्ध ने इज़राइल को आजाद करवाया था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इज़राइल पर “ओटोमैन सम्राज्य” का आधिपत्य था। इस समय भारत में अंग्रेज़ी शासन था। हाइफा के युद्ध में राजस्थान के रणबांकुरों ने भाग लिया था। यह युद्ध इतना ऐतिहासिक हैं कि आज भी इज़राइल के स्कूलों में पढ़ाया जाता हैं।

अगर आप यह जानना चाहते हैं कि Haifa war in hindi या हाइफा युद्ध का इतिहास (Haifa war history in hindi) ? हाइफा का युद्ध क्यों लड़ा गया? इसमें किसने भाग लिया या फिरइजराइल को किसने आजाद कराया था?. तो यह लेख पूरा पढें।

हाइफा का युद्ध

हाइफा का युद्ध (Haifa war) कब हुआ था?- 23 सितंबर 1918.
हाइफा का युद्ध (Haifa war) किसके बिच हुआ - ओटोमैन सम्राज्य (जर्मन और तुर्क) और भारतीय सेना के बिच (अंग्रेजी शासन के अधीन).
सेनापति- दलपत सिंह (रावणा राजपूत).
हाइफा का युद्ध (Haifa war) किसने जीता - भारतीय सेना.

हाइफा नामक जगह इजराइल में स्थित हैं। लगभग 14वीं शताब्दी से यहां पर “ओटोमैन सम्राज्य” का शासन था। 400 साल राज करने के पश्चात् भारतीय सेना की मदद से हाइफा (इजराइल) को आजादी मिली। 23 सितंबर 1918 का दिन इजराइल के इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। अंग्रेजी शासन ने भारतीय सेना को आदेश दिया कि हाइफा को मुक्त करवाए।

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की तरफ़ से राजस्थान के जोधपुर रियासत की सेना, मैसूर और हैदराबाद के सैनिकों ने भाग लिया था। विश्व इतिहास में यह लड़ाई “हाइफा का युद्ध” (Haifa war) नाम से जाना जाता हैं। हैदराबाद रियासत के सभी सैनिक मुस्लिम थे इसलिए अंग्रेज़ी शासन ने उन्हें तुर्की के खलीफा के साथ युद्ध में हिस्सा लेने से रोक दिया गया। जोधपुर और मैसूर के सैनिक युद्ध के लिए निकल पड़े।

जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह जी शेखावत इस युद्ध में सेना का नेतृत्व कर रहे थे। इनके साथ अमान सिंह जोधा भी मुख्य नेतृत्वकर्ता थे। दलपत सिंह जी का जन्म पाली (देवली) में हुआ था। अंग्रेजी शासन का आदेश मिलते ही जोधपुर रियासत की सेना तलवारों, भालों और तीर कमान के दम पर घोड़ों पर सवार होकर हाइफा की तरफ़ निकल पड़ी।

हाइफा पर कब्जा करने के लिए जोधपुर के वीर सपूत दलपत सिंह जी के एक इशारे का इंतजार कर रहे थे। दलपत सिंह जी का आदेश मिलते ही जोधपुर के रणबांकुरे दुश्मनों को मिटाने और हाइफा पर कब्जा करने के लिए निकल पड़े।

इस दौरान अंग्रेजी शासन के पास ख़बर आई कि दुश्मनों के पास बंदूके और आधुनिक हथियार (मशीन गन) हैं,तो उन्होंने दलपत सिंह जी को रुकने का हुक्म दिया क्योंकि उनके पास सिर्फ घोड़ों पर सवार सैनिकों, तलवारों और भालों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।

अंग्रेज़ी हुकूमत को दलपत सिंह जी ने ऐसा जवाब दिया कि उसके बाद उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला। दलपत सिंह जी का सीधा और सटीक जवाब था कि “राजस्थानियों में वापस लौटने का रिवाज़ नहीं, जान चली जाए, शीश कट जाए पर पिछे तो नहीं हटेंगे या तो जीत हासिल करेंगे या रणभूमि में वीरगति को प्राप्त होंगे”।

हाइफा का युद्ध और दलपत सिंह” जी का नाम हमेशा के लिए विश्व इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाला था।

हाइफा पहुंचते ही दलपत सिंह जी की सेना और ओटोमैन सम्राज्य (जर्मन, तुर्की) की सेना आमने सामने हो गई। तोपों के सामने अपना सीना तान कर परंपरागत तरीके से युद्ध प्रारम्भ हो गया। दलपत सिंह जी की सेना जोश और हौंसले से लबालब थी। दुश्मनों की गोलियों का सामना करते हुए निरन्तर आगे बढ़ रहे हिंदू वीरों के आगे तोप और बंदूकों की चमक फीकी पड़ रही थी।

छाती पर गोलियां खाते हुए जोधपुर रियासत के करीब 900 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए,लेकिन तब तक इतिहास के पन्नों में यह युद्ध (Haifa war) हमेशा के लिए अमर हो चुका था। Haifa war विश्व इतिहास में एकमात्र ऐसा युद्ध था जो तलवारों और भालों के सामने बंदूके और तोपें होने के बाद भी तोप और तलवार की जीत हुई।

जर्मन और तुर्क कैदियों पर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया जिनकी संख्या लगभग 1350 थी। इसमें नुकसान की बात की जाए तो लगभग 60 घोड़े मारे गए, 8 लोग भी मरे और 34 लोग बुरी तरह घायल हो गए।

भारतीय सेना ने दो जर्मन अधिकारियों, 35 ऑटोमन अधिकारियों, 17 तोपखाने बंदूकें और 11 मशीनगनों को अपने अधिकार में ले लिया। दलपत सिंह जी ने दुश्मनों के दांत खड़े कर दिए। ऐसा विश्व में पहली बार हुआ। 400 सालों से कब्जा जमाया बैठे ओटोमैन सम्राज्य का अंत हो गया। इसी युद्ध के परिणामस्वरूप भारत और इजराइल के सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं।

जोधपुर रियासत की सेना को सम्मान या हाइफा योद्धाओं को सम्मान

हाइफा के युद्ध में major dalpat Singh Shekhawat शहीद हुए। उनके साथ जोधपुर लांसर सवार तगत सिंह, सवार शहजाद सिंह, मेजर शेर सिंह, आइओएम(इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट) दफादार धोकल सिंह, सवार गोपाल सिंह और सवार सुल्तान सिंह बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ते हुए इस युद्ध में शहीद हुए।

हाइफा युद्ध में प्राप्त अद्वितीय जीत से गदगद ब्रिटिश सेना ने कमांडर इन चीफ हाउस के नाम से एक भवन का निर्माण करवाया। एक चौराहे के समीप स्थित इस भवन में एक स्तम्भ पर तीन सैनिकों को की प्रतिमा का निर्माण करवाया गया है जो जोधपुर रियासत की सेना के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान था।

मेजर दलपत सिंह जी शेखावत को मिलिट्री क्रॉस जबकि कैप्टन अमान सिंह जोधा को सरदार बहादुर की उपाधि देते हुए इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट तथा ऑर्डर ऑफ ब्रिटिश एंपायर से सम्मानित किया गया। इजराइल की सरकार आज भी हाइफा, यरुशलम और रामलेह में बनी इन 900 सैनीकों की समाधियां बनी हुई हैं।

हाइफा दिवस

भारतीय सेना और हाइफा के महापौर, भारतीय दूतावास के लोग और वहां की आम जनता एक साथ प्रतिवर्ष 23 सितंबर को हाइफा दिवस मनाते हैं।

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